–– कृश्न चन्दर
(कृश्न चन्दर की प्रसिद्ध कहानी ‘जामुन का पेड़’ को दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। इसे हटाने वाली सरकारी संस्था काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (आईसीएसई) ने बिना कोई उचित कारण बताये दावा किया कि यह कहानी दसवीं के छात्रों के लिए ‘उपयुक्त’ नहीं थी। साठ के दशक की यह कहानी व्यंग्यात्मक शैली में सरकारी विभागों के काम के कछुआ चाल पर सवाल उठाती है। यह संस्था इस कहानी से क्यों परहेज कर रही है, इसे कहानी पढ़कर समझा जा सकता है।)

रात को बड़े जोर का झक्कड़ (आँधी) चला। सेक्रेटेरियट के लॉन में जामुन का एक दरख्त गिर पड़ा। सुबह जब माली ने देखा तो इसे मालूम पड़ा कि दरख्त के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।
माली दौड़ा–दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी दौड़ा–दौड़ा क्लर्क के पास गया। क्लर्क दौड़ा–दौड़ा सुपरिटेण्डेण्ट के पास गया। सुपरिटेण्डेण्ट दौड़ा–दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में गिरे हुए दरख्त के नीचे दबे हुए आदमी के गिर्द मजमा इकट्ठा हो गया।
‘बेचारा! जामुन का पेड़ कितना फलदार था।’ एक क्लर्क बोला।
‘इसकी जामुन कितनी रसीली होती थी।’ दूसरा क्लर्क बोला।
‘मैं फलों के मौसम में झोली भर के ले जाता था। मेरे बच्चे इसकी जामुनें कितनी खुशी से खाते थे।’ तीसरे क्लर्क ने तकरीबन आबदीदा (रुआँसे) होकर कहा।
‘मगर ये आदमी?’ माली ने दबे हुए आदमी की तरफ इशारा किया।
‘हाँ, यह आदमी!’ सुपरिटेण्डेण्ट सोच में पड़ गया।
‘पता नहीं जिन्दा है कि मर गया!’ एक चपरासी ने पूछा।
‘मर गया होगा। इतना भारी तना जिनकी पीठ पर गिरे, वह बच कैसे सकता है!’ दूसरा चपरासी बोला।
‘नहीं मैं जिन्दा हूँ!’ दबे हुए आदमी ने बमुश्किल कराहते हुए कहा।
‘जिन्दा है!’ एक क्लर्क ने हैरत से कहा।
‘दरख्त को हटाकर इसे निकाल लेना चाहिए।’ माली ने मशविरा दिया।
‘मुश्किल मालूम होता है।’ एक काहिल और मोटा चपरासी बोला। ‘दरख्त का तना बहुत भारी और वजनी है।’
‘क्या मुश्किल है?’ माली बोला। ‘अगर सुपरिटेण्डेण्ट साहब हुक्म दंे तो अभी पन्द्रह–बीस माली, चपरासी और क्लर्क जोर लगाकर दरख्त के नीचे से दबे आदमी को निकाल सकते हैं।’
‘माली ठीक कहता है।’ बहुत–से क्लर्क एक साथ बोल पड़े। ‘लगाओ जोर, हम तैयार हैं।’
एकदम बहुत से लोग दरख्त को काटने पर तैयार हो गये।
‘ठहरो!’, सुपरिटेण्डेण्ट बोला, ‘मैं अण्डर–सेक्रेटरी से मशविरा कर लूँ।’
सुपरिटेण्डेण्ट अण्डर–सेक्रेटरी के पास गया। अण्डर–सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी के पास गया। डिप्टी सेक्रेटरी जॉइन्ट सेक्रेटरी के पास गया। जॉइन्ट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास गया।
चीफ सेक्रेटरी ने जॉइन्ट सेक्रेटरी से कुछ कहा। जॉइन्ट सेक्रेटरी ने डिप्टी सेक्रेटरी से कुछ कहा। डिप्टी सेक्रेटरी ने अण्डर सेक्रेटरी से कुछ कहा। एक फाइल बन गयी।
फाइल चलने लगी। फाइल चलती रही। इसी में आधा दिन गुजर गया। दोपहर को खाने पर दबे हुए आदमी के गिर्द बहुत भीड़ हो गयी थी। लोग तरह–तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्लर्कों ने मामले को अपने हाथ में लेना चाहा।
वह हुकूमत के फैसले का इन्तजार किये बगैर दरख्त को खुद से हटाने का तहैया कर रहे थे कि इतने में सुपरिटेण्डेण्ट फाइल लिए भागा–भागा आया, बोला, ‘हम लोग खुद से इस दरख्त को यहाँ से हटा नहीं सकते। हम लोग महकमा तिजारत (वाणिज्य विभाग) से मुताल्लिक (सम्बंधित) हैं और यह दरख्त का मामला है जो महकमा–ए–जिराअत (कृषि विभाग) की तहवील (कब्जे) में है। इसलिए मैं इस फाइल को अर्जेन्ट मार्क करके महकमा–ए–जिराअत में भेज रहा हूँ। वहाँ से जवाब आते ही इस को हटवा दिया जाएगा।’
दूसरे दिन महकमा–ए–जिराअत से जवाब आया कि दरख्त हटवाने की जिम्मेदारी महकमा–ए–तिजारत पर आईद (लागू) होती है। यह जवाब पढ़कर महकमा–ए–तिजारत को गुस्सा आ गया। उन्होंने फौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या न हटवाने की जिम्मेदारी महकमा–ए–जिराअत पर आईद होती है। महकमा–ए–तिजारत का इस मामले से कोई ताल्लुक नहीं है।
दूसरे दिन भी फाइल चलती रही। शाम को जवाब भी आ गया। ‘हम इस मामले को हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेण्ट के सुपुर्द कर रहे हैं क्योंकि यह एक फलदार दरख्त का मामला है और एग्रीकल्चरल डिपार्टमेण्ट को सिर्फ अनाज और खेतीबाड़ी के मामलों में फैसला करने का मजाज (अधिकार) है। जामुन का पेड़ एक फलदार पेड़ है इसलिए पेड़ हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेण्ट के दाइरे–अख्तियार (अधिकार क्षेत्र) में आता है।’
रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल–भात खिलाया हालाँकि लॉन के चारों तरफ पुलिस का पहरा था कि कहीं लोग कानून को अपने हाथ में ले के दरख्त को खुद से हटवाने की कोशिश न करें। मगर एक पुलिस कॉन्स्टेबल को रहम आ गया और इसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाजत दे दी।
माली ने दबे हुए आदमी से कहा, ‘तुम्हारी फाइल चल रही है। उम्मीद है कि कल तक फैसला हो जाएगा।’
दबा हुआ आदमी कुछ न बोला।
माली ने पेड़ के तने को गौर से देखकर कहा, ‘हैरत गुजरी कि तना तुम्हारे कूल्हे पर गिरा। अगर कमर पर गिरता तो रीढ़ की हड्डी टूट जाती।’
दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ न बोला।
माली ने फिर कहा, ‘तुम्हारा यहाँ कोई वारिस हो तो मुझे उसका अता–पता बताओ। मैं उसे खबर देने की कोशिश करूँगा।’
‘मैं लावारिस हूँ।’ दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्किल से कहा।
माली अफसोस जाहिर करता हुआ वहाँ से हट गया।
तीसरे दिन हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेण्ट से जवाब आ गया। बड़ा कड़ा जवाब था और तंजआमेज (व्यंग्यपूर्ण)। हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेण्ट का सेक्रेटरी अदबी मिजाज का आदमी मालूम होता था।
इसने लिखा था, ‘हैरत है, इस समय जब ‘दरख्त उगाओ’ स्कीम बड़े पैमाने पर चल रही हैं, हमारे मुल्क में ऐसे सरकारी अफसर मौजूद हैं जो दरख्त काटने का मशवरा देते हैं, वह भी एक फलदार दरख्त को! और फिर जामुन के दरख्त को! जिस की फल अवाम बड़ी रगबत (चाव) से खाते हैं! हमारा महकमा किसी हालत में इस फलदार दरख्त को काटने की इजाजत नहीं दे सकता।’
‘अब क्या किया जाए?’ एक मनचले ने कहा। ‘अगर दरख्त काटा नहीं जा सकता तो इस आदमी को काटकर निकाल लिया जाए! यह देखिए, उसी आदमी ने इशारे से बताया। अगर इस आदमी को बीच में से यानी धड़ के मुकाम से काटा जाए तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा और आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा, और दरख्त वहीं का वहीं रहेगा।’
‘मगर इस तरह से तो मैं मर जाऊँगा!’ दबे हुए आदमी ने एहतजाज किया।
‘यह भी ठीक कहता है!’ एक क्लर्क बोला।
आदमी को काटने वाली तजवीज (प्रस्ताव) पेश करने वाले ने पुरजोर–एहतजाज (कड़ा विरोध) किया, ‘आप जानते नहीं हैं। आजकल प्लास्टिक सर्जरी के जरिये धड़ के मुकाम पर इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है।’
अब फाइल को मेडिकल डिपार्टमेण्ट में भेज दिया गया। मेडिकल डिपार्टमेण्ट ने फौरन इस पर एक्शन लिया और जिस दिन फाइल मिली उसने उसी दिन इस महकमे का सबसे काबिल प्लास्टिक सर्जन तहकीकात के लिए भेज दिया।
सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्छी तरह टटोलकर, उसकी सेहत देखकर, खून का दबाव, साँस की आमदो–रफ्त, दिल और फेफड़ों की जाँचकर के रिपोर्ट भेज दी कि, ‘इस आदमी का प्लास्टिक सर्जरी का ऑपरेशन तो हो सकता है और ऑपरेशन कामयाब भी हो जाएगा, मगर आदमी मर जाएगा।’
लिहाजा यह तजवीज भी रद्द कर दी गयी।
रात को माली ने दबे हुए आदमी के मुँह में खिचड़ी के लुकमे डालते हुए उसे बताया, ‘अब मामला ऊपर चला गया है। सुना है कि सेक्रेटेरियट के सारे सेक्रेटेरियों की मीटिंग होगी। इसमें तुम्हारा केस रखा जाएगा। उम्मीद है सब काम ठीक हो जाएगा।’
दबा हुआ आदमी एक आह भरकर आहिस्ते से बोला, ‘हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जाएँगे हम, तुमको खबर होने तक!’
माली ने अचम्भे से मुँह में उँगली दबायी। हैरत से बोला, ‘क्या तुम शायर हो?’
दबे हुए आदमी ने आहिस्ते से सिर हिला दिया।
दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया। चपरासी ने क्लर्क को और क्लर्क ने हेड–क्लर्क को। थोड़े ही अरसे में सेक्रेटेरियट में यह बात फैल गयी कि दबा हुआ आदमी शायर है।
बस फिर क्या था। लोग जोक–दर–जोक (झुण्ड बनाकर) शायर को देखने के लिए आने लगे। इसकी खबर शहर में फैल गयी। और शाम तक मुहल्ले–मुहल्ले से शायर जमा होना शुरू हो गये। सेक्रेटेरियट का लॉन भान्त–भान्त के शायरों से भर गया। सेक्रेटेरियट के कई क्लर्क और अण्डर–सेक्रेटरी तक, जिन्हें अदब और शायरी से लगाव था, रुक गये।
कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी गजलें और नज्में सुनाने लगे। कई क्लर्क इससे अपनी गजलों पर इस्लाह (सुधार) लेने के लिए मुसिर होने (जिद करने) लगे।
जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी शायर है तो सेक्रेटेरियट की सब–कमेटी ने फैसला किया कि चूँकि दबा हुआ आदमी एक शायर है लिहाजा इस फाइल का ताल्लुक न एग्रीकल्चरल डिपार्टमेण्ट से है, न हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेण्ट से बल्कि सिर्फ और सिर्फ कल्चरल डिपार्टमेण्ट से है।
कल्चरल डिपार्टमेण्ट से इसतदअ (गुजारिश) की गयी कि जल्द से जल्द इस मामले का फैसला करके बदनसीब शायर को इस शजरे–सायादार (छाँव देने वाला पेड़) से रिहाई दिलायी जाये।
फाइल कल्चरल डिपार्टमेण्ट के मुख्तलिफ शुआबों (विभाग) से गुजरती हुई अदबी अकादमी के सेक्रेटरी के पास पहुँची। बेचारा सेक्रेटरी इसी वक्त अपनी गाड़ी में सवार हो कर सेक्रेटेरियट पहुँचा और दबे हुए आदमी से इण्टरव्यू लेने लगा।
‘तुम शायर हो?’ इसने पूछा।
‘जी हाँ।’ दबे हुए आदमी ने जवाब दिया।
‘क्या तखल्लुस करते हो?’
‘अवस।’
‘अवस!’ सेक्रेटरी जोर से चीखा। ‘क्या तुम वही हो जिसका मजमुआ–ए–कलाम (शायरी संग्रह) अवस के फूल हाल ही में शाया (प्रकाशित) हुआ है?’
दबे हुए शायर ने इस बात में सिर हिलाया।
‘क्या तुम हमारी अकादमी के मेम्बर हो?’ सेक्रेटरी ने पूछा।
‘नहीं!’
‘हैरत है!’ सेक्रेटरी जोर से चीखा। ‘इतना बड़ा शायर! ‘अवस के फूल’ का मुसन्निफ (लेखक)! और हमारी अकादमी का मेम्बर नहीं है! उफ, उफ कैसी गलती हो गयी हमसे! कितना बड़ा शायर और कैसे गोशिया–ए–गुमनामी (गुमनामी के कोने) में दबा पड़ा है!’
‘गोशिया–ए–गुमनामी में नहीं बल्कि एक दरख्त के नीचे दबा हुआ––– बराहे–करम मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिये।’
‘अभी बन्दोबस्त करता हूँ।’ सेक्रेटरी फौरन बोला और फौरन जाकर इसने अपने महकमे में रिपोर्ट पेश की।
दूसरे दिन सेक्रेटरी भागा–भागा शायर के पास आया और बोला, ‘मुबारक हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्हें अपनी मर्कजी कमेटी (केन्द्रीय समिति) का मेम्बर चुन लिया है। यह लो परवाना–ए–इन्तखाब!’
‘मगर मुझे इस दरख्त के नीचे से तो निकालो।’ दबे हुए आदमी ने कराहकर कहा। उसकी साँस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आँखों से मालूम होता था कि वह शदीद तशन्नुज और करब (काफी तकलीफ) में मुब्तला है।
‘यह हम नहीं कर सकते।’ सेक्रेटरी ने कहा। ‘जो हम कर सकते थे वह हमने कर दिया है। बल्कि हम तो यहाँ तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्हारी बीवी को वजीफा दिला सकते हैं। अगर तुम दरख्वास्त दो तो हम यह भी कर सकते हैं।’
‘मैं अभी जिन्दा हूँ।’ शायर रुक–रुककर बोला। ‘मुझे जिन्दा रखो।’
‘मुसीबत यह है,’ सरकारी अकादमी का सेक्रेटरी हाथ मलते हुए बोला, ‘हमारा महकमा सिर्फ कल्चर से मुताल्लुक है। इसके लिए हमने ‘फॉरेस्ट डिपार्टमेण्ट’ को लिख दिया है। ‘अर्जेण्ट’ लिखा है।’
शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया कि कल फॉरेस्ट डिपार्टमेण्ट के आदमी आकर इस दरख्त को काट देंगे और तुम्हारी जान बच जाएगी।
माली बहुत खुश था कि गो दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी मगर वह किसी–न–किसी–तरह अपनी जिन्दगी के लिए लड़े जा रहा है। कल तक––– सुबह तक––– किसी न किसी तरह इसे जिन्दा रहना है।
दूसरे दिन जब फॉरेस्ट डिपार्टमेण्ट के आदमी आरी–कुल्हाड़ी लेकर पहुँचे तो इनको दरख्त काटने से रोक दिया गया। मालूम यह हुआ कि महकमा–ए–खारजा (विदेश विभाग) से हुक्म आया कि इस दरख्त को न काटा जाये।
वजह यह थी कि इस दरख्त को दस साल पहले हुकूमते पिटोनिया के वजीरे–आजम (प्रधानमंत्री) ने सेक्रेटेरियट के लॉन में लगाया था। अब यह दरख्त अगर काटा गया तो इस अम्र (बात) का शदीद अन्देशा था कि हुकूमते–पिटोनिया से हमारे ताल्लुकात हमेशा के लिए बिगड़ जाएंगे।
‘मगर एक आदमी की जान का सवाल है!’ एक क्लर्क गुस्से से चिल्लाया।
‘दूसरी तरफ दो हुकूमतों के ताल्लुकात का सवाल है।’ दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया। ‘और यह भी तो समझो कि हुकूमते–पिटोनिया हमारी हुकूमत को कितनी इमदाद (ग्राण्ट) देती है। क्या हम इन की दोस्ती की खातिर एक आदमी की जिन्दगी को भी कुर्बान नहीं कर सकते?’
‘शायर को मर जाना चाहिए।’
‘बिलाशुबा।’ (निसन्देह)
अण्डर–सेक्रेटरी ने सुपरिटेण्डेण्ट को बताया। ‘आज सुबह वजीरे–आजम बाहर–मुल्कों के दौरे से वापस आ गये हैं। आज चार बजे महकमा–ए–खारजा इस दरख्त की फाइल उन के सामने पेश करेगा। जो वह फैसला देंगे वही सबको मंजूर होगा।’
शाम पाँच बजे खुद सुपरिटेण्डेण्ट शायर की फाइल ले कर उसके पास आया। ‘सुनते हो?’ आते ही खुशी से फाइल हिलाते हुए चिल्लाया, ‘वजीरे–आजम ने दरख्त को काटने का हुक्म दे दिया है और इस वाकये की सारी बैनुल–अक्वामी (अन्तरराष्ट्रीय) जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली है। कल वह दरख्त काट दिया जाएगा और तुम इस मुसीबत से छुटकारा हासिल कर लोगे।’
‘सुनते हो? आज तुम्हारी फाइल मुकम्मल हो गयी!’ सुपरिटेण्डेण्ट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शायर का हाथ सर्द था। आँखों की पुतलियाँ बेजान थीं और चींटियों की एक लम्बी कतार उसके मुँह में जा रही थी।
उसकी जिन्दगी की फाइल भी मुकम्मल हो चुकी थी।