इलेक्टोरल बॉण्ड घोटाले पर जानेमाने अर्थशास्त्री डॉक्टर प्रभाकर का सनसनीखेज खुलासा
राजनीतिपत्रकार– नमस्कार मैं दीपक शर्मा। दोस्तो, मोदी सरकार के भ्रष्टाचार की जो लोग कलई खोल रहे हैं या जो ऐतराज कर रहे हैं या सवाल उठा रहे हैं ऐसे लोगों को क्या प्रधानमन्त्री मोदी डराने की कोशिश कर रहे हैं? धमकी देने की कोशिश कर रहे हैं? अब ये आरोप मैं नहीं लगा रहा हूँ, ये गम्भीर आरोप मोदी जी पर, मोदी सरकार पर, देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति डॉक्टर प्रभाकर लगा रहे हैं। अपने ताजा इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि जो लोग इलेक्टोरल बॉण्ड पर, चन्दे पर सवाल उठा रहे हैं, उनको कहीं न कहीं मोदी डराने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे धमकी दे रहे हों। सुनिए डॉक्टर प्रभाकर का यह बड़ा खुलासा।
डॉक्टर– प्राइम मिनिस्टर की इस बात का यह मतलब है कि वे थ्रेट दे रहे हैं, थ्रेट दे रहे हैं, क्या बोलते हैं आप हिन्दी में?
पत्रकार– धमकी दे रहे हैं।
डॉक्टर– धमकी दे रहे, या तो देखो अभी आप। ‘इसके बारे में बहुत आलोचना कर रहे हैं आप पछताओगे’ यह थ्रेट है–––
पत्रकार– अब दोस्तों जो पहला इंटरव्यू मैंने लिया था डॉक्टर प्रभाकर का जिसमें उन्होंने खुलासा किया था कि अगर मोदी सत्ता में आ जाते हैं तो इस देश का संविधान बदल देंगे। इस देश का नक्शा ही बदल दिया जाएगा। अगर मोदी आते हैं और हो सकता है कि 2029 में फिर चुनाव न हो। उस इंटरव्यू से हड़कम्प मचा। यह जो इंटरव्यू का दूसरा हिस्सा है। इसमें भी डॉक्टर प्रभाकर ने भ्रष्टाचार को लेकर कई बड़े खुलासे किये हैं। उन्होंने कहा कि यह जो इलेक्टोरल बॉण्ड की स्कीम है इसे फाइनेंस मिनिस्ट्री लेकर नहीं आयी थी। जी हाँ, फाइनेंस मिनिस्ट्री यानी अरुण जेटली की सदारत में इलेक्टोरल बॉण्ड की स्कीम नहीं आयी थी। यह जो स्कीम है यह आरएसएस की भी नहीं है। यह स्कीम मोदी जी की है। किस तरह से चन्दा लेना है? किस तरह से नाम छुपाने हैं? डॉक्टर प्रभाकर कहते हैं कि अगर इसमें भ्रष्टाचार है, जिस तरह से रिश्वत ली गयी है, चन्दा जिस तरह से लिया गया, ठेकों के बदले या फिर छापों को रोकने के एवज में, यह एक भ्रष्टाचार का मामला है और इसमें कहीं न कहीं जो रिस्पांसिबिलिटी है वह फाइनेंस मिनिस्टर की नहीं है, वह प्राइम मिनिस्टर की है क्योंकि प्राइम मिनिस्टर मोदी ही इस स्कीम को लेकर आये हैं। उन्हीं की यह सोच थी यह वो खुलासा कर रहे हैं इस इंटरव्यू में जो आप देखने जा रहे हैं।
जानेमाने राजनीतिक विश्लेषक और अर्थशास्त्री डॉक्टर प्रभाकर लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी हैं। इन्होंने एक और बात कही कि देश का बड़ा प्राइवेट बैंक कोटक महिन्द्रा बैंक पर तमाम तरह के आरोप थे। इसने कई नियमों का उल्लंघन किया था। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भाजपा सरकार के दबाव में कोटक महिन्द्रा को बहुत सी रियायतें दीं। रिजर्व बैंक जो एक ऑटोनोमस संस्था है उसने सरकार के दबाव में प्राइवेट बैंक पर एहसान किया और इसके बदले में कोटक बैंक ने एक मोटी रकम भाजपा को दी और भाजपा ने उसको कैश किया।
पत्रकार– डॉक्टर साहब, आपसे मेरा पहला सवाल यह है कि यह जो इलेक्टोरल बॉण्ड है उसके बारे में लोग बहुत कुछ बोल चुके, मैं आपसे जानना चाह रहा था कि क्या इलेक्टोरल बॉण्ड में काम के बदले करोड़ों रुपये मिले हैं? क्या आपको लगता है यह एक रिश्वत का खेल था? कहीं न कहीं सरकार ने रिश्वत ली, बड़े ठेकेदार और बड़े–बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट, बिजनेसमैन से?
डॉक्टर– शुरू में मैं यह कहना चाहता हूँ कि मेरी हिन्दी बहुत कमजोर है। मैं धीमी गति से बोलूँगा। मैं इलेक्टोरल बॉण्ड के बारे में बहुत कुछ कह चुका हूँ और जो कुछ मैंने कहा था वह बहुत जिम्मेदारी से बोला था। मैंने इसका वर्णन मोदी गेट (घोटाला) के रूप में किया है।
पत्रकार– मतलब आप कह रहे हैं कि यह घपला अरुण जेटली का नहीं। यह किसी आरएसएस का नहीं। मोदी का घपला है। मोदी गेट है। इसके लिए मोदी ही रिस्पांसिबल हैं। आप यह बता रहे हैं।
डॉक्टर– ये मोदी गेट है क्योंकि अभी हाल में तीन–चार दिन पहले एक तमिल चैनल को प्राइम मिनिस्टर ने एक इंटरव्यू दिया। इसमें मोदी जी ने यह कहा कि यह उनकी सोच है। उनके कहने से ही लागू हुआ है। देखिए, यह मोदी गेट है। यह सिर्फ भारत का नहीं, दुनिया का बहुत बड़ा स्कैम है। यानी हिन्दी में स्कैम को आप घोटाला बोलते हैं।
आपके सामने जो पैसे का आँकड़ा है, 6,000 करोड़, 8,000 करोड़, 20,000 करोड़, 16,000 करोड़, ये एक हिस्सा है। लेकिन इससे गहरा किस्सा यह है कि हमारे जो इंस्टिट्यूशन हैं वे चाहे इनकम टैक्स हो, ईडी हो, जीएसटी अथॉरिटीज हो, सीबीआई हो, ये आप जैसे लोग जानते हैं कि इनका स्वतंत्र अस्तित्व कुछ नहीं रहा बहुत सालों से, लेकिन एक संस्था ऐसी थी अब तक जिसके इंडिपेंडेंस के ऊपर सवाल नहीं उठे। यह संस्था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया थी। दैट इंस्टिट्यूशन इज आल्सो इज नाउ अंडर सस्पिशन। आयी टेल यू व्हाई?
यू नो देयर इज अ प्राइवेट बैंक–– कोटक बैंक। इसको दो प्रॉब्लम थी। एक, उसके प्रमोटर का शेयर एक सीमा से ज्यादा हो गया था और सीमा से कम करने का है। दूसरा, उसके चेयरमैन का पद जो बहुत साल से चल रहा था उसको भी खाली करने का था।
पत्रकार– आप स्टेट बैंक की बात कर रहे हैं?
डॉक्टर– नहीं, कोटक बैंक। लेकिन ये रिजर्व बैंक के नॉर्म से उनका शेयर होल्डिंग डाइल्यूट करने का था और उसका लीडरशिप पद से उनको हटना था। ये दोनों रूल्स रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रिलैक्स कर दिया।
पत्रकार– ओहो, अच्छा! एक मिनट, आप यह कह रहे हैं कि कोटक बैंक को फायदा पहुँचाने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कुछ नियमों में ढील दे दी, डॉक्टर साहब यही कह रहे हैं न?
डॉक्टर– जी, और अभी हमको मालूम है कि यह ढीला कब हुआ, इलेक्टोरल बॉण्ड पे करने के बाद, इसका मतलब यह है कि भाजपा और जो लोग यह सब घोटाला किये, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी इससे बाहर नहीं है। आप ईडी छोड़ दीजिए, सीबीआई छोड़ दीजिए, जीएसटी छोड़ दीजिए–––
पत्रकार– डॉक्टर साहब, आपने बड़ी बात कही। मैं इसको और आसानी से समझा दूँ। आपने यह कहा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी कहीं न कहीं इसमें शामिल है क्योंकि कोटक महिन्द्रा बैंक को जिस तरह से सरकार ने फायदा दिया और रिजर्व बैंक भी कहीं न कहीं उस साजिश में शामिल है और नियमों में यह सारी ढिलाई तब हुई जब इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिये कोटक बैंक ने मोटी रकम भाजपा को दी। सर, मैं सही कह रहा हूँ?
डॉक्टर– जी, इलेक्टोरल बॉण्ड खरीदा गया और उस इलेक्टोरल बॉण्ड को भाजपा ने रिडीम कर दिया। उसके पैसे ले लिया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ऊपर भाजपा सरकार ने इतना प्रेशर डाला कि उसने रूल को ढीला कर दिया।
पत्रकार– डॉक्टर साहब, इसमें तो बड़ी हिम्मत है। मैं तो सुनकर चौंक रहा हूँ क्योंकि रिजर्व बैंक जो है वह वित्त मंत्रालय में आता है। उसके अंडर में और वित्त मंत्री आपकी पत्नी हैं। इसलिए मैं कहूँगा कि आप सच बोलने में आपका तो मतलब जी–––
डॉक्टर– दीपक जी, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया किसी मंत्रालय के अंडर में नहीं आता है। रिजर्व बैंक एक ऑटोनोमस बॉडी (स्वायत्त संस्था) है। सरकार के साथ काम करता है लेकिन सरकार से ही ये स्वतंत्र प्रतिपति के नाते काम करता है। इट इज नॉट अंडर इट। इट इज नॉट गवर्नमेंट डिपार्टमेंट। (यह सरकारी विभाग नहीं है।)
देखिए, बहुत सारी फर्म्स ने इलेक्टोरल बॉण्ड खरीदा, जिनके पास पैसे नहीं हैं, प्रॉफिट (मुनाफा) नहीं है। उन्होंने प्रॉफिट से कई गुना ज्यादा इलेक्ट्रोल बॉण्ड खरीदा। कहाँ से आये पैसे?
तो कहीं यह ब्लैक मनी, मनी लॉण्डरिंग हो गयी है इसमें?
पत्रकार– जी, डॉक्टर साहब, आप एक चीज बताइये। आप कह रहे हैं कि मनी लॉण्डरिंग हुई है। अब क्योंकि आप अर्थशास्त्री हैं, मुझे लगता है कि आज की तारीख में हिन्दुस्तान में जो चन्द अर्थशास्त्री होंगे उसमें आपका नाम शुमार होता है। मेरा सौभाग्य है और मेरे दोस्तों का भी कि इतने बड़े अर्थशास्त्री को सुन रहे हैं। अगर आप कह रहे हैं कि इलेक्टोरल बॉण्ड मनी लॉण्डरिंग है, काला धन है तो आप क्योंकि अर्थशास्त्री है, मैं आपसे एक सवाल पूछ रहा हूँ कि क्या फिर इसकी जाँच होनी चाहिए? क्या सुप्रीम कोर्ट को इसकी जाँच करनी चाहिए? यह जो घपला हुआ है क्या मोदी के खिलाफ जाँच होनी चाहिए? आप कह रहे हैं कि मोदी की ही स्कीम थी और आप कह रहे हैं कि इस स्कीम में बहुत से बड़े–बड़े उद्योगपतियों पर एहसान किया गया, उसके बदले में पैसे लिये गये तो क्या यह रिश्वत का मामला है और क्या इसमें सुप्रीम कोर्ट को कोई जाँच करनी चाहिए? क्योंकि आप कह रहे हैं कि सीबीआई, ईडी पर भरोसा नहीं तो कौन जाँच करे?
डॉक्टर– अच्छा दीपक जी, इसको दो–तीन हिस्से में देखें। पहला, सुप्रीम कोर्ट ने इसके ऊपर एक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉण्ड की यह पूरी स्कीम असंवैधानिक है। असंवैधानिक स्कीम के जरिये कम्पनियों से जो पैसे लिये गये उसको आप रख सकते हैं क्या?
पत्रकार– ओहो, आप कह रहे हैं कि पैसा रख नहीं सकते।
डॉक्टर– अच्छा, ये बोलते है प्रोसीड्स ऑफ क्राइम, प्रोसीड्स ऑफ एन अनकंस्टीट्यूशनल मेजर। (असंवैधानिक उपाय या अपराध के जरिये कमायी की गयी।) अनकंस्टीट्यूशनल प्रोन्स होने के बावजूद वे पैसे आप कैसे रख सकते हैं? रिश्वत का पैसा है ये।
पत्रकार– जी हाँ, आप सही कह रहे हैं कि अगर यह रिश्वत है तो रिश्वत का पैसा कैसे रख सकते हैं, जब सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि ये सब गैर कानूनी है।
डॉक्टर– अच्छा, सरकार और उसके प्रवक्ता बार–बार बोल रहे हैं कि इसे ट्रांसपेरेंसी के लिए लाया गया था। है न? ट्रांसपेरेंसी को पारदर्शिता बोलते हैं न। इसीलिए लाये हैं न। इफ दैट इज द केस। देन व्हाई इज द गवर्नमेंट सो डेस्पेरेट? इसको रोकने के लिए और इसका डिटेल्स बाहर आने से रोकने के लिए सरकार ने इतनी हताशा भरी कोशिश क्यों की?
पत्रकार– कोशिश क्यों की?
डॉक्टर– सरकार के बहुत ऊँचे लॉ ऑफिसर सुप्रीम कोर्ट के सामने हफ्ते भर पहले यह बोले थे कि पॉलिटिकल पार्टीज का पैसा और चन्दा कैसे आता है लोगों को इसे जानने का हक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुनाने के बाद भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इसको टालने के लिए इतनी कोशिश की और डेडलाइन से कुछ घंटे पहले फिर से सुप्रीम कोर्ट जाकर 30 जून की तारीख तक समय की माँग की थी। इसका मतलब क्या है? इलेक्शन से पहले इसका डिटेल्स बाहर नहीं आने देने के लिए बहुत कोशिश की गयी।
और जब सुप्रीम कोर्ट ने यह बोला कि नहीं, इसको बिल्कुल बाहर आना चाहिए। उसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और देश की ट्रेड एंड इंडस्ट्री की बड़ी एसोसिएशन–– सीआईआई, फिक्की, एसोचैम से भी सरकार ने यह कहलवाया कि उसका डिसक्लोजर होने से बहुत नुकसान पहुँचेगा बिजनेसमैन को, इंडस्ट्रीज को, क्यों? इतना छुपाने के लिए क्या है इसमें?
इसका मतलब यह है दीपक जी, सरकार को इसको छुपाने के लिए इतना इंटरेस्ट था कि अगर यह पूरा बाहर आ जाये, तो उसका करप्शन–––।
पत्रकार– पर्दाफाश हो जाएगा जी।
डॉक्टर– चन्दा, चन्दा, धन्धा।
पत्रकार– पूरा पोल खुल जाएगा।
डॉक्टर– रेड धन्धा, रेड चन्दा। अब देखिए, इसमें दो–तीन तरीके हैं। एक, कम्पनी पर ईडी का रेड होता है और उस कम्पनी से इलेक्टोरल बॉण्ड्स आ जाता है और एक कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है और इसके हिसाब से कुछ परसेंटेज इलेक्टोरल बॉण्ड का चन्दा आता है और जैसे मैंने कुछ देर पहले कहा, दो साल या तीन साल पहले एक कम्पनी रजिस्टर होती है और ऐसी कम्पनी 25 या 50 करोड़ चन्दा दे सकती है क्या? दूसरा, जो भी कम्पनी है, उसका जो प्रॉफिट है उससे कई गुना ज्यादा कैसे चन्दा दे सकती है? कहाँ से आता है उसका पैसा? तीसरा, जो कम्पनियाँ नुकसान में है उन्होंने भी बहुत बड़ा चन्दा दे दिया, कैसे?
पत्रकार– जी, तो आप चाहते हैं इसकी जाँच होनी चाहिए?
डॉक्टर– आपने रेड डाले और दो–चार दिन में आपको चन्दा मिला और आपने कांट्रैक्ट दिया और 10–15 दिन के अन्दर ही आपको इतना परसेंटेज चन्दा मिला। आप बोल रहे कोइंसिडेंस है। क्या बोलते हैं कोइंसिडेंस को हिन्दी में, आप बोलिए?
पत्रकार– संयोग है।
डॉक्टर– संयोग है, अगर यह प्योरली कोइंसिडेंटल है तो मैं यह माँग करना चाहता हूँ कि आपके ऊपर ऐसी एक्वीजिशन आये तो आप ऐसा क्यों नहीं करते कि इसको अनइम्पीचबल इम्पार्शियल जुडिशल इंक्वायरी (निष्कलंक निष्पक्ष न्यायिक जाँच) करवाते हैं। आप आ जाइए बाहर इसके। आप साफ होकर आ जाइए।
पत्रकार– मैं समझ गया डॉक्टर साहब, मेरा यह कहना है कि जिस तरह से चन्दा दर चन्दा लेते गये, ठेका देते गये या फिर कहीं छापे पड़ रहे हैं, ईडी के उन कम्पनियों पर, उससे पैसा ले रहे हैं। यह एक संयोग नहीं हो सकता। इसलिए सरकार को पारदर्शिता रखते हुए इसमें खुद न्यायिक जाँच करानी चाहिए। आपने बहुत अच्छा कहा। मैं थोड़ा सा विषय परिवर्तन करना चाह रहा हूँ क्योंकि आप अर्थशास्त्री हैं और हम आर्थिक मुद्दे पर आप से रात भर बात करते रहेंगे, जी।
डॉक्टर– एक बात मैं जोड़ना चाहता हूँ ये तमिल टीवी के इंटरव्यू में प्राइम मिनिस्टर ने उसके ऊपर भी कहा था कि जो लोग अभी इलेक्टोरल बॉण्ड के ऊपर इतना हल्ला मचा रहे हैं, इसको दोष दे रहे हैं, यह लोग तुरन्त पछताएँगे, आपने सुना होगा।
पत्रकार– जी।
डॉक्टर– अच्छा, मैं इसका मतलब निकालना चाहता हूँ, आपके सहयोग से। क्या उनकी बातों का मतलब यह है कि जो लोग अभी इसके बारे में विरोध कर रहे हैं कि ये लोग आज नहीं तो कल यह जानेंगे कि नहीं, हमसे गलती हो गयी। यह (इलेक्टोरल बॉण्ड) अच्छा है। प्राइम मिनिस्टर की बात का यह मतलब नहीं है। उनकी बात का मतलब है कि वे थ्रेट दे रहे हैं। क्या बोलते हैं आप हिन्दी में।
पत्रकार– धमकी दे रहे हैं।
डॉक्टर– देखो, ‘अभी आप इसके बारे में बहुत आलोचना कर रहे हैं, आप पछताओगे।’ यह थ्रेट है। यह आपको कल समझ में आयेगा।
पत्रकार– डॉक्टर प्रभाकर, आपके जो प्रयास हैं जहाँ–जहाँ अंधेरा है उस पर जिस तरह से आप रोशनी डाल रहे हैं उसको मैं सलूट करता हूँ और मैं चाहूँगा कि आप हमारे शो पर आते रहें और इसी तरह से प्रकाश डालते रहें और आपने आज जो हिन्दी बोली वह भी बहुत गजब की बोली। लगता ही नहीं था कि आप हिन्दी नहीं जानते। थैंक यू सो मच फॉर जॉइनिंग दिस प्रोग्राम। थैंक यू सो मच डॉक्टर प्रभाकर।
(साभार : दीपक शर्मा के यूट्यूब चैनल से)
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राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
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अवर्गीकृत
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जीवन और कर्म
मीडिया
- मीडिया का असली चेहरा 15 Mar, 2019
फिल्म समीक्षा
- समाज की परतें उघाड़ने वाली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ 15 Jul, 2019