––राकेश सूद

अरब स्प्रिंग के बाद, अन्दरूनी और बाहरी क्षेत्रों में नये तरह के काले बादलों ने पश्चिमी एशिया के फिलिस्तीन और इजराइल के लम्बे संघर्ष को ढंक लिया है। इराक से शुरू हुए इस्लामी राज्य और उसकी उपशाखाओं के खिलाफ लड़ाईय सीरिया संघर्ष जो अमरीका, रूस, ईरान और तुर्की के बीच चल रहा हैय गोलान हाइट्स में इजराइल और ईरान के बीच ताजा मुठभेड़ और यमन में गृह युद्ध जहाँ सऊदी अरब और ईरान की भागीदारी ने पुराने क्षेत्रीय दोषपूर्ण सीमारेखा को उजागर करते हुए तनाव बढ़ाया है। व्यापक संघर्ष की बढ़ती आशंका प्रथम विश्व युद्ध के बाद खींची गयी सीमाओं को पलटने का खतरा पैदा कर सकती है।

अमरीका की वापसी

इस अस्थिर परिस्थिति में, 8 मई को नयी अनिश्चिततायें जुड़ गयीं जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की कि अमरीका जॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) से बाहर निकल रहा है। ईरानी विदेश मंत्री जावेद जारिफ के बीजिंग, मॉस्को और ब्रुसेल्स का दौरा करने के बाद राजनायिक गतिविधि में हलचल मच गयी। ब्रुसेल्स में, वह ई –3 (फ्रांस, जर्मनी और यूके) के विदेश मंत्रियों और यूरोपीय संघ (ईयू) के उच्च प्रतिनिधि फेडेरिया मोगिरीनी से इस सम्भावना का पता लगाने के लिए मिले कि समझौते को कैसे बचाया जा सकता है। इसके बाद मई में सोफिया में एक शिखर सम्मेलन हुआ जहाँ यूरोपीय संघ के नेताओं ने यूरोपीय आयोग को निर्देश दिया कि वह अवरोधक अधिनियम (ब्लॉकिंग स्टेच्युट) को लागू करे जो यूरोपीय कम्पनियों को अमरीकी प्रतिबन्धों के अतिरिक्त–क्षेत्रीय प्रभावों का पालन करने से रोकता है। इसने यूरोपीय निवेश बैंक से एक विशेष प्रयोजन साधन को स्थापित करने की सिफारिश की जो ईरान में यूरोपीय कम्पनियों के निवेश की रक्षा करे।

1996 में ध्यान में लाया गया, अवरोधक अधिनियम अमरीका के उस कानून के विरोध में लाया गया था जो क्यूबा से जुड़ी कम्पनियों पर अतिरिक्त क्षेत्रीय प्रतिबन्ध लगाता था। इसने यूरोपीय संघ को यह अधिकार दिया कि वह यूरोप में अमरीकी कम्पनियों की उतनी सम्पत्तियों को जब्त कर ले जितनी यूरोपीय कम्पनियों पर जुर्माने के रूप में लगायी गयी। आखिरकार, छूट का प्रस्ताव देकर गतिरोध का समाधान किया गया। अन्तर यह है कि 1996 में, क्लिंटन प्रशासन यूरोपीय संघ की अवस्थिति के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाता था लेकिन 2018 में, अमरीकी कांग्रेस की तुलना में ट्रम्प प्रशासन कड़ा रुख अपनाने के लिए तैयार बैठा है!

21 मई को हेरिटेज फाउंडेशन में अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पे के भाषण से यह स्पष्ट है जिसमें यूरेनियम संवर्द्धन का स्थायी खात्मा, निरीक्षकों के लिए बेरोकटोक आवाजाही, मिसाइल प्रसार का खात्मा, हिजबुल्लाह, हमास, हुथी विद्रोहियों (यमन), शिया मिलिशिया (इराक) तथा तालिबान और सीरिया से पूरी वापसी का समर्थन समाप्त करने सहित ईरान के लिए एक दर्जन शर्तों का खुलासा किया गया। यह कोई प्लान बी नहीं है बल्कि एक चेतावनी है, जिसमें संवाद या कूटनीति के लिए कोई जगह नहीं है।

ईरान समझौते का तर्क

इसके अलावा, यह न केवल ईरान बल्कि अपने यूरोपीय साझेदारों के लिए भी लोहे का दस्ताना है। कई यूरोपीय लोगों ने ईरान के मिसाइल प्रसार और परीक्षण पर रोक तथा जेसीपीओए द्वारा निर्धारित 15 साल के समय सीमा से परे परमाणु संवर्द्धन प्रतिबन्धों को बढ़ाने के लिए एक रास्ता निकालने का समर्थन किया है। हालाँकि, दूर हटने के बजाय ईरान द्वारा अपने दायित्वों का पूरा पालन करने की स्थिति में, ई–3 और यूरोपीय संघ जेसीपीओए को संरक्षित करना और उस पर आगे बढना चाहते हैं। दूसरी तरफ, ट्रम्प प्रशासन जेसीपीओए समझौते को टुकड़े–टुकड़े करना चाहता है और मजबूत प्रतिबन्धों के दबाव में एक नये सौदे पर बातचीत के लिए ईरान को झुकाना चाहता है।

जेसीपीओए की ताकीद ओबामा प्रशासन के इस एहसास के साथ आया था कि 2009 में स्टक्सनेट हमले के चलते मन्दी के बाद ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्द्धन कार्यक्रम को सफलतापूर्वक बढ़ा दिया था। नवम्बर 2013 तक जब बातचीत शुरू हुई और ईरान अपने कार्यक्रम को रोकने पर सहमत हो गया, वह इस स्थिति में आ गया था कि तीन महीने के भीतर एक परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त समृद्ध यूरेनियम (25 किलो) का उत्पादन कर सके।

लीबिया, इराक और अफगानिस्तान के बाद, तालिका से गतिशील विकल्प बाहर हो गये थे और शासन परिवर्तन की अब कोई भूख नहीं रह गयी थी। अरब स्प्रिंग के बाद, बराक ओबामा ने महसूस किया कि अमरीका की पश्चिमी एशिया के नियन्त्रण की दोहरी नीति ने इजरायल और सऊदी हितों की सेवा की लेकिन इस क्षेत्र में अमरीकी विकल्पों को प्रतिबन्धित कर दिया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जेसीपीओए अपने कड़े सत्यापन प्रावधानों के साथ ईरान के परमाणु कार्यक्रम को धीमा कर देगा, 15 वर्षों तक इसे रोक देगा, प्रतिबन्धों के साथ राष्ट्रपति हसन रूहानी के नेतृत्व में ईरान के मध्यम तत्त्वों को मजबूत करेगा और इसके परिणामस्वरूप अमरीकी राजनायिक विकल्पों में वृद्धि होगी।

ट्रम्प प्रशासन में, रक्षा सचिव जिम मैटिस, जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जोसेफ डनफोर्ड, राज्य के पूर्व सचिव रेक्स टिलरसन और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एचआर मैकमास्टर ने जेसीपीओए को बनाये रखने के लिए दबाव डाला था लेकिन प्रशासन में सचिव पोम्पियो और वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन को शामिल करने के साथ, अमरीकी दृष्टिकोण में बदलाव स्पष्ट है।

स्वीकृति का गठबन्धन

श्री पोम्पियो का भाषण 1979 की ईरानी क्रान्ति की उपलब्धियों पर सवाल उठाता है और यह शासन परिवर्तन के लिए बमुश्किल छिपा हुआ सुझाव है। उनका भाषण अगस्त 2002 में तत्कालीन अमरीकी उपराष्ट्रपति डिक चेनी के भाषण की याद दिलाता है जब उन्होंने इराक के खिलाफ पूर्व–निर्णायक हमले की योजना बनायी क्योंकि सद्दाम हुसैन आतंकवाद का एक प्रमुख प्रायोजक था, उसने अपने परमाणु कार्यक्रम के बारे में झूठ बोला और धोखा दिया था, अपनी जनता का उत्पीड़न किया था जो गरिमा और स्वतंत्रता के जीवन के लायक थे और क्षेत्रीय प्रभुत्त्व की तलाश में गुंडों की तरह व्यवहार कर रहे थे, इत्यादि अगले वर्ष मार्च में, अमरीका ने इराक पर हमला किया। (नोट–– अमरीका ने इराक पर हमले के लिए इन आरोपों को बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया था। आज पूरी दुनिया जानती है कि सद्दाम हुसैन की सरकार के ऊपर अमरीका द्वारा लगाये गये ये आरोप झूठे थे।—––अनुवादक)

उस समय सऊदी अरब और इजराइल ने चेनी के भाषण की सराहना की थी और आज इन्होंने ट्रम्प के जेसीपीओए को खत्म करने के फैसले का समर्थन किया। दोनों देशों के लिए, दोहरे नियंत्रण (ईरान और इराक) की अमरीकी नीति एक सुरक्षा बोनस थी। उन्होंने ईरान के अलगाव को खत्म करने की दिशा में जेसीपीओए को उठाया कदम समझा और इजरायल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और सऊदी के शाही राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान श्री ट्रम्प के वास्तविक प्रशंसक हैं।

2015 से, सऊदी अरब यमन में एक महँगे दुस्साहसिक काम में लगा हुआ है जो ईरान के साथ तनाव बढ़ाने वाला है। ईरान ने सीरिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है, उसने सीरियाई सेना के सहयोग के लिए शिया मिलिशिया और इस्लामी क्रान्तिकारी गार्ड कोर के सलाहकारों को वहाँ भेजा है, जिससे इजराइल के साथ तनाव बढ़ रहे हैं। इससे पहले, इजराइली सेनाएँ सीरिया में हथियारों के उन अड्डों या काफिले पर हमला करेंगी जो हिजबुल्ला को मजबूत करने के उद्देश्य के लिए हैं। फरवरी से, गोलन हाइट्स के करीब बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के ईरानी प्रयासों को निशाना बनाने में तेजी आयी है। अमरीका के जेसीपीओए से हटने के फैसले की घोषणा के बाद, ईरान ने गोलान हाइट्स पर रॉकेट बैराज के साथ प्रतिशोध किया जिसके परिणामस्वरूप इजरायल ने भारी प्रतिक्रिया करते हुए सीरिया के अन्दर 70 से अधिक ईरानी लक्ष्यों को निशाना बनाया।

एक निर्णायक बिन्दु

अब तक ईरान की प्रतिक्रिया उदारवादी रही है लेकिन श्री रूहानी के पास घुसपैठ के लिए बहुत कम जगह है क्योंकि ईरान में इस समझौते के आलोचक कट्टरपंथी तत्त्व जमीन हासिल कर रहे हैं। वह यह देखने का इंतजार कर रहा है कि रूस और चीन के साथ यूरोपीय संघ, जेसीपीओए को बचा सकता है जिसने 2015 में तेल निर्यात को 10 लाख बैरल से बढ़कर 26 लाख कर दिया है और तेल अन्वेषण, विमानन जैसे क्षेत्रों में पश्चिमी वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों को पहुँचने की अनुमति दी है। ईरानी अधिकारियों के एक सम्बोधन में, सर्वाेच्च नेता अयातुल्लाह खमेनी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ई–3 के लिए ईरान के मिसाइल परीक्षण और क्षेत्रीय व्यवहार की आलोचना को रोकने और ठोस आर्थिक गारन्टी को सुनिश्चित करने लिए ई–3, रूस और चीन यूएन सुरक्षा परिषद में इस मामले को उठायेंगे।

हालाँकि, संकेत आशाजनक नहीं हैं क्योंकि बड़ी यूरोपीय कम्पनियाँ अमरीकी प्रतिबन्धों को बर्दाश्त नहीं कर सकती हैंय टोटल एंड एयरबस पहले से ही अपने को कई अरब डॉलर सौदों से बाहर खींच रहे हैं। ईरान जेसीपीओए की हत्या का आरोप अपने ऊपर नहीं लेना चाहता है लेकिन जल्द ही इसे तय करने की आवश्यकता होगी कि यह उसके गहन निरीक्षण की पद्धति का पालन कब तक जारी रखेगा। इस इलाके में जिस दिन वह इजराइल और सऊदी अरब की ओर अपनी प्रतिक्रियाओं की चेतावनी देगा, तो यह बड़े बदलावों की शुरुआत हो सकता है। जैसा कि जेसीपीओए के बढ़ते सत्यापन प्रावधानों के बिना, ईरान द्वारा परमाणु अप्रसार संधि के पूर्ण अनुपालन को सत्यापित करना अधिक कठिन है, लेकिन जब ईरान जेसीपीओए का पूरी तरह पालन कर रहा है तो ईरान के ऊपर हमले को उचित ठहराना मुश्किल है। अमरीकी निर्णय संतुलन को बिगाड़ सकता है।

(द हिन्दू से साभार)

अनुवाद–– विक्रम प्रताप