बीते 19 नवम्बर को शाम 7 बजे, गोदी मीडिया ने एक खबर बड़े शोर–शराबे से ब्रेकिंग न्यूज बनाकर प्रसारित करना शुरू किया। यह खबर थी–– भारतीय सेना की पाक ओकुपायेड कश्मीर (पीओके) में हवाई हमले (एयर स्ट्राइक) की।

इस खबर का स्रोत पीटीआई का 13 नवम्बर को एलओसी पर हुए युद्ध विराम के उल्लंघन के ऊपर एक विश्लेषण था। इस लेख को एंकरों ने अपने मन मुताबिक एयर स्ट्राइक बताकर चैनलों पर चला दिया।

सबसे पहले पीटीआई समाचार एजेंसी का हवाला देकर पत्रकार प्रशान्त कुमार का एक ट्वीट आया जिसे स्रोत मानकर चैनलों ने आपाधापी में ये खबर प्रसारित करना शुरू किया। कुछ ही मिनटों बाद एनी समाचार एजेंसी ने भारतीय सेना के डायरेक्टर जनरल परमजीत सिंह के हवाले से इस खबर को गलत बताया। जनरल परमजीत ने बताया कि 19 नवम्बर को सीमा पर कोई फायरिंग या एयर स्ट्राइक नहीं हुई है। इसके बाद अधिकतर चैनलों ने इस खबर को हटा लिया लेकिन इस छोटे से समय के दौरान इन चैनलों ने भारत–पाक युद्ध जैसा माहौल खड़ा कर दिया।

लगभग सभी बड़े और प्रतिष्ठित न्यूज चैनलों ने एक संवेदनशील मसले को ताजा एयर स्ट्राइक के रूप में पेश किया। साथ ही उनसे जुड़े एंकरों ने भी अपने ट्विटर हैण्डल के जरिये बेहद गैरजिम्मेदारी से एक फर्जी खबर फैला दी। ऐसा करने में आज तक, इण्डिया टुडे, टाइम्स नाउ, एबीपी न्यूज, इण्डिया न्यूज, रिपब्लिक भारत, और जी न्यूज आदि प्रमुख हैं। ये सभी चैनल गोदी मीडिया के नाम से बदनाम भी हैं। एबीपी न्यूज की एंकर रुबिका लियाकत ने तो बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी, हैशटैग “अबकी बार पीओके पार” के साथ, “बारूद से होगा सबका स्वागत” ट्वीट किया। इसके बाद जैसे फर्जी राष्ट्रवादियों में भी बढ़–चढ़कर ट्वीट करने की जैसे होड़ लग गयी। इनके साथ ही तथाकथित देशभक्त पार्टी बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने भी ऐसे ही भड़काऊ ट्वीट किये।

ऐसे संवेदनशील व गम्भीर मुद्दों पर फर्जी खबर चलाने से चैनलों के सम्पादकों की समझदारी पर भी सवाल खड़ा होता है। रिपोर्टिंग के कुछ बुनियादी सिद्धान्तों में से एक है कि इस तरह की बड़ी घटना को डबल चेक करना, कम से कम दो स्रोतों से इसकी पुष्टि कर लेना। इसका सबसे आसान तरीका था सेना के प्रवक्ता से, रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता से या फिर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से इसकी पुष्टि कर ली जाती। लेकिन इतने जरूरी तथ्य को नजरन्दाज कर चैनलों ने ये फर्जी खबर चलायी। ऐसा नहीं है कि इन चैनलों ने पहली दफा कोई फर्जी खबर चलायी हो। ठीक ऐसा ही नोटबन्दी के समय हुआ था, जब बहुत से चैनलों ने 2000 के नोट में चिप होने की खबर चलायी थी। ये चैनल युद्धोन्माद और पाकिस्तान के प्रति नफरत फैलाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते।

केबल टीवी नेटवर्क एक्ट 1995 केन्द्र सरकार को, ‘सार्वजानिक हित’ में केबल टीवी नेटवर्क बन्द करने या किसी कार्यक्रम को प्रसारित होने से रोकने का अधिकार देता है, अगर कोई कार्यक्रम देश की अखण्डता, सुरक्षा, दूसरे देश के साथ दोस्ताना सम्बन्ध, पब्लिक सुव्यवस्था, शिष्टाचार या नैतिकता पर बुरा असर डालता हो। कानून के तहत बताये गये ‘प्रोग्राम कोड’ के उल्लंघन पर भी सरकार ये कदम उठा सकती है–– ‘प्रोग्राम कोड’ में धर्म या किसी समुदाय के खिलाफ भावनाएँ भड़काना, झूठी जानकारी या अफवाह फैलाना शामिल है। कानून के उलंघन पर अधिकतम 5 साल की सजा और 2000 रुपया जुर्माने का प्रावधान है। सवाल यह है कि कानून के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान होते हुए भी क्या आज तक किसी गोदी मीडिया पर कोई कार्रवाई हुई ? नहीं! इसका सीधा सा मतलब है–– इन पर सरकार और पूँजीपतियों का वरदहस्त है।

सच्ची मीडिया जनता की पक्षधर होती है, वह सत्ता की चापलूसी नहीं करती। वह सरकार से सवाल पूछने और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाने का काम करती है, न कि सरकार के पक्ष में राय बनाने या जनमत गढ़ने का।

–– विजय राही