आज जब लोकतंत्र का पतन अपने चरम पर है, हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इसके पुरोधाओं ने इसकी क्या व्याख्या की थी? हम जानते हैं कि उनके विचारों के प्रसार से सदियों से चली आ रही गैर–बराबरी पर आधारित सामन्ती व्यवस्था की जगह समाज में स्वतंत्रता और समानता के बीज पैदा हुए। लोगों में आजाद होने की भावना पैदा हुई और उसे पाने के लिए उन्होंने एक लम्बा संघर्ष किया। आखिरकार फ्रांसीसी क्रान्ति ने पहली बार स्वतंत्रता के विचारों को जमीन पर रोपा। उसने ईश्वर केन्द्रित सत्ता, जिसने सदियों से लोगों को अंधकार युग में धकेल रखा था, उसे उखाड़ फेंका और उसकी जगह मानव केन्द्रित सत्ता की नींव रखी, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के आदर्शों पर टिका था। इन प्रगतिशील विचारों को रूसो, वॉल्टेयर, मान्तेस्क्यू जैसे विचारकों ने उन्नत किया और लोकतंत्र की अवधारणा दी।

रूसो

लोकतंत्र में राजनेता को जनता का सेवक कहा गया हैं। जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है, देश की बागडोर और उसके सारे संसाधन उनके हाथों में देती है, ताकि जनता के ये प्रतिनिधि देश को बेहतर तरीके से चलायें। उन्होंने चुनाव के दौरान जो वादा किया है, उसे निभाएँ। यही रूसो के ‘सामाजिक अनुबन्ध’ का सार है। जिसे उन्होने लोकतंत्र की नींव कहा था। रूसों ने कहा था कि राज्य एक सामाजिक संस्था है जो लोगों के सामान्य हितों को सरकार का समुचित लक्ष्य घोषित करता है।

गियोर्डानो ब्रुनो

चार सौ साल पहले ब्रुनो ने धर्माधिकारियों के झूठ को मानने से इनकार कर दिया था। सच पर डटे रहने के चलते उन्हें जिन्दा जला दिया गया था। सच बोलने की बड़ी कीमत चुकानी ही पड़ती है। ब्रुनो ने बहुत पहले ही ग्रहों और तारों के बारे में बेहद सटीक अध्ययन कर लिया था। हजारों सालों से धर्माधिकारियों ने ईश्वर का खौफ दिखाकर और झूठ बोलकर लोगों को गुलाम बना रखा था, लेकिन ब्रुनो की खोज उनके झूठ का पर्दाफाश करती थी। कई सालों बाद वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के जरिये ब्रुनो की बात को सच साबित कर दिखाया। ब्रुनो अपवाद नहीं थे, बल्कि यह जानते हुए कि उन्हें भी मार दिया जाएगा कोपरनिकस, गैलीलियो आदि अनेक लोगों ने अत्याचारी सत्ता के खिलाफ आवाज उठायी।

वाल्तेयर

लोकतंत्र के संस्थापकों में से एक, वाल्तेयर ने कहा था कि “सरकार जब गलत रास्ते पर हो और उसके सुधारने की कोई सम्भावना भी न बची हो, तो सभ्य बने रहना बहुत खतरनाक सिद्ध होता है।” साथ ही उन्होंने अपने एक नाटक में जनता के लिए कहा था कि “उठो––– उठो! और अपनी बेड़ियाँ तोड़ डालों।” लोकतंत्र के निर्माताओं का तानाशाही के बारे में क्या मानना था? वाल्तेयर कहते हैं कि “यदि मनुष्य आजाद जन्मा है, तो उचित यही है कि वह सदैव आजाद रहे और यदि कहीं निष्ठुरता या तानाशाही है तो उसे उखाड़ फेंकने का अधिकार भी उसको होना चाहिए”। उनके अनुसार लोकतंत्र जनता को ताकत देता है उसे तानाशाहों से आजाद कराता है। वाल्तेयर ने कहा कि “हो सकता है मैं तुम्हारे विचारों से सहमत न हो पाऊँ लेकिन विचार प्रकट करने के तुम्हारे इस अधिकार की रक्षा जान की बाजी लगाकर भी करूँगा।”

मोंतेस्क्यू

आज मोंतेस्क्यू के उन विचारों को भी याद करना जरूरी है, जिनमें उन्होंने लोकतंत्र के सिद्धान्त को विकसित किया था। उनके अनुसार कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका लोकतंत्र के महत्त्वपूर्ण अंग है जिनका संचालक अलग–अलग होने चाहिए। अगर तीनों के सत्ता का केन्द्रीयकरण हो गया तो वह तानाशाही को जन्म देगा। आज देश में यही हो रहा है। सरकार के बचाव में न्यापालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका तीनों खड़ी नजर आ रही हैं, जिसका सीधा अर्थ है तानाशाही, लोकतंत्र तो कदापि नहीं।