क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमान होना ही गुनाह है?
समाचार-विचारपिछले तीन सालों में जब से योगी सरकार सत्ता में आयी है, उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की हालत खास से आम वाली बन गयी हैं। इतना आम कि अब इसे खबरों के बीच जगह भी नहीं मिलती। इताना आम कि पुलिस के लिए भी किसी का मुसलमान होना अपराधी होने के बराबर है। मुस्लिमों पर फिर्जी मुकदमें लगा कर सालों जेल में रखा जाना भी आम बात है।
इसकी नयी मिसाल मुख्य धारा की मीडिया के लिए आम बात थी, जो 25 मई 2020 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले के गाँव टपराना में सामने आयी। गाँव के दो युवक अफजल और नौशाद गौ–हत्या के केस में जिला बदर किये गये थे। यह ऐसा केस है जो किसी भी मुसलमान पर कभी भी लगाया जा सकता है। उनकी जिला बदरी का समय पूरा होने में सात, आठ दिन बाकी थे। ईद के त्यौहार के कारण वे दोनों अपने घर आये थे। इस बात का पता जब स्थानीय पुलिस को लगा तो वह अफजल को पकड़ने के लिए ईद के दिन ही उसके घर पहुँच गयी, मानों कोई दुर्दान्त अपराधी आया हो। अफजल ने उनसे बचकर भागने की कोशिश की। इससे गुस्साये पुलिस अधिकारियों ने अफजल को इतनी बुरी तरह से पीटा कि उसे मुँह से खुन के फव्वारे छूटने लगे। बीच में बोलने वाले ग्रामीणों के साथ भी पुलिस ने यही सलूक किया। इससे ग्रामीणों और पुलिस के बीच झड़प हो गयी, जिसमें दो पुलिस कर्मियों के सर में चोट आयी और कई ग्रामीण घायल हुए बाद में अफजल को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। ग्रामीणों का कहना था कि पुलिस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होनी चाहिए, लेकिन दो स्थानीय नेताओं ने वादा किया कि हम एसओ साहब को बुलाकर यहीं फैसला करवा दंेगे। देर रात दोनों पक्षों के बीच फैसला हो गया।
अगले दिन शाम के समय ग्राम प्रधान के पास एसओ साहब का फोन आया कि अफजल को थाने लेकर आ जाओ। हम कुछ नहीं करेंगे। दोनों नेता, जिन्होंने फैसला करवाया था वे अफजल को लेकर झिंझाना थाने में पहुँच गये, लेकिन पुलिस ने उन्हें भी थाने में ही बैठा लिया।
रात के लगभग दो बजे पुलिस की दस–बारह गाड़ियाँ और पीएससी के दो ट्रक गाँव में आ धमके और गाँव में एक तरफ से मार–पीट और तोड़–फोड़ शुरू कर दी। लोगों ने दरवाजे नहीं खोले तो पुलिस ने हथौडों से तोड़ा और फिर अन्दर घुस गये। घर के अन्दर जो भी सामान था। सब तोड़–फोड़ दिया, जो भी सामने आया, उसे बुरी तरह से पीटा, यहाँ तक कि बच्चों, लड़कियों और जिन बुर्जुगों से चला भी नहीं जाता था, उन पर भी कोई रहम नहीं किया गया। कई घरों में मेहमान ईद मिलाप के लिए आये हुए थे, पुलिस ने उनको भी नहीं छोड़ा। एक ग्रामीण ने हमें बताया कि ऐसा लग रहा था जैसे कयामत की रात है। आज हम नहीं बचेंगे। ऐसा लग रहा था कि पुलिस ने हमें आतंकवादी मान लिया है। पुलिस लगातार गालियाँ दे रही थी, देशद्रोही कह रही थी और पाकिस्तान चले जाने की बात कर रही थी। गाँव के लगभग तीस–बत्तीस घरों में भयानक तोड़–फोड़ और मारपीट हुई तथा इकत्तीस लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। गाँव वालों को पुलिस के अत्याचार के खिलाफ बोलने की ऐसी सजा मिली।
अगली सुबह पुलिस ने 42 गाँव वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी। पुलिस ने मीडिया को बताया कि हम अफजल को पकड़ने गये थे तो गाँव वालों ने हमारे ऊपर पथराव किया, जबकि सच्चाई यह है कि उस वक्त पुलिस ने अफजल को थाने में बैठा रखा था। पुलिस ने मीडिया को पुलिस जीप पर पड़े पथत्रों के फोटो दिखाये। एक ग्रामीण ने हमें बताया कि पुलिस वालों ने गाँव से एक किलोमीटर दूर मजिस्द के पास अपनी गाड़ियाँ रोक रखी थी, ताकि किसी को खबर न हो सके। ऐसे में उन पर पत्थर कहाँ से बरस पड़े। गाँव वालों न बताया कि अगर पुलिस पर पत्थर फेंके भी गये तो गाड़ियाँ चार किलोमीटर चल कर थाने पहुँची और फिर उनके बोनट पर पत्थर कैसे रुक सकते है। पत्थरों में चुम्बक नहीं होता। पुलिस झूठ बोल रही है। इस घटना के बाद पुलिस के खिलाफ गाँव का कोई भी व्यक्ति बोलने से डरता है क्योंकि उन्हें धमकी दी गयी है कि अगर उन्होंने कुछ भी कहा तो उनका नाम भी एफआईआर में जोड़ दिया जाएगा। 80–90 अज्ञात लोगों की जगह खाली है। डॉक्टर अयाज खान ने पुलिस के खिलाफ मीडिया में बयान दिया, तो अगले दिन पुलिस ने डॉक्टर साहब का नाम भी एफआईआर में जोड़ दिया और उनके ऊपर लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने का आरोप लगाया। डॉक्टर अयाज से जब हमने बात कि तो उन्होंने कहा कि लोगों को उनके हक के लिए जागरुक करना क्या सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काना है? दरअसल इस तरह के मामलों में कुछ अज्ञात लोगों को रखना पुलिस का एक जाँचा–परखा हथियार है, ताकि उसके ऊपर उँगली उठाने वाले को भी उसी मामले में फँसाया जा सके।
इस घटना के तीन महीने हो गये है। सभी नामजद लोग जेल में बन्द हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है। भारतीय न्याय व्यवस्था ऐसी है कि इसमें किसी साधारण मामले का फैसला आने में भी सालों लग जाते है। ऐसे मामलों में पुलिस अपने हिस्से की कार्रवाई पूरी करने में जान–बूझकर ज्यादा समय लगाती है, ताकि फँसे हुए निर्दोष लोगों का अधिक से अधिक उत्पीड़न हो। इसके अलावा अभियुक्त दोषी हो या निर्दोष वह जेल में सड़ता है और सुनवाई के बाद वह निर्दोष पाया जाता है तो उसने अपनी जिन्दगी का जो कीमती समय जेल में काटा, उसकी क्षतिपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है। भारतीय विधि आयोग का मानना है कि भारत में अदालतें आसानी से जमानत नहीं देतीं, ऐसी स्थिति में पुलिस द्वारा झूठे मुकदमों में फँसाये गये लोगों को किस हद तक उत्पीड़न झेलना पड़ता है, हम इसकी कल्पना ही कर सकते हैं।
स्थानीय अखबारों की भूमिका
मीडिया के लिए तो जैसे यह नियम ही बन गया है कि उसे सत्ता का गुणगान करना है और उसके कुकर्मों पर पर्दा डालना है। 2013 में शामली और मुजफ्फरनगर जिलों में हुए दंगे के कई महीने पहले से ही स्थानीय अखबारों ने अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने और बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय को भड़काने का अभियान चला रखा था। कई मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि दंगों के पीछे इन अखबारों की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि सौ से ज्यादा लोग मारे गये और हजारों लोग बेघर हो गये। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आपसी सौहार्द का जो माहौल था, उसे मीडिया ने जहरीला बना दिया और लोगों को एक भीड़ में बदल दिया जो छोटी सी बात पर भी किसी का कत्ल कर सकती है। टपराना की घटना में स्थानीय अखबारों ने कई दिन पहले से ही लिखना शुरू कर दिया कि वहाँ पर गौ तस्करी हो रही है, जिससे बहुसंख्य हिन्दुओं में मुसलमानों के खिलाफ गुस्सा पैदा हुआ और इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद बहुत से हिन्दुओं ने कहा कि पुलिस ने सही किया। इनके साथ होना भी यही चाहिए। पिछले कुछ सालों में मीडिया मुसलमानों को हिन्दुओं की नफरत का पात्र बनाने में कामयाब रहा है और पुलिस भी इससे अछूती नहीं है।
मुस्लिमों के साथ पुलिस का रवैया
सीएसडीएस के आँकड़ांे के अनुसार 56 प्रतिशत पुलिस मानती है कि मुस्लिम जन्मजात अपराधी होते हैं। इसलिए पुलिस की आम सोच यह बन गयी कि मुस्लिम होना ही अपराधी होने के लिए काफी है। अपनी इसी सोच के आधार पर व्यवहार करने के लिए उसे राज्य की योगी सरकार का बढ़ावा भी हासिल है। गाँव के एक बुजुर्ग मुस्लिम का कहना था कि क्या पुलिस जाटों, गुर्जरों, ठाकुरों को भी इस तरह पीट सकती थी? आपने कभी इनके पूरे गाँव को पिटते देखा है। बाबूजी अब यूपी में मुसलमान होना ही गुनाह है।
पुलिस द्वारा अंजाम दी गयी यह शर्मनाक घटना केवल एक जगह ही नहीं घटी है, ऐसे बहुत से ऐसे मामले है जहाँ खास तौर पर मुस्लिम समुदाय के प्रति पुलिस की बर्बरता दिखायी देती है। जैसे नागरिकता कानून संशोधन के खिलाफ खालापार, मुजफ्फरनगर में शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे मुस्लिमों के घरों में पुलिस ने तोड़फोड़ की तथा बहुतों को संगीन धाराओं में गिरफ्तार किया। कैराना में नगरपालिका और पुलिस की मिलीभगत से लगभग 100 मुस्लिम परिवारों को उनकी जमीन से बेदखल करने और मेरठ में अवैध कॉलोनी बताकर 200 मुस्लिम परिवारों के घरों में पुलिस द्वारा आग लगवा देने जैसी घटनाएँ भी ताजा ही हैं।
इन घटनाओं से हमें पुलिस प्रशासन के एकतरफा रवैये का पता चलता है और जबसे योगी सरकार सत्ता में आयी है, तबसे मुस्लिमों पर अत्याचार और मुकदमे लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। एक समय था जब देश में आपसी सौहार्द की मिशालें दी जाती थीं, लेकिन अब सरकार और उसके चहेतों ने कानून अपने हाथ में ले लिया है और उसे अपने हिसाब से चला रहे हैं।
–– रवि
लेखक की अन्य रचनाएं/लेख
राजनीति
- 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय के प्रति बिहार सरकार का शत्रुवत व्यवहार –– पुष्पराज 19 Jun, 2023
- इलेक्टोरल बॉण्ड घोटाले पर जानेमाने अर्थशास्त्री डॉक्टर प्रभाकर का सनसनीखेज खुलासा 6 May, 2024
- कोरोना वायरस, सर्विलांस राज और राष्ट्रवादी अलगाव के खतरे 10 Jun, 2020
- जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का तर्कहीन मसौदा 21 Nov, 2021
- डिजिटल कण्टेण्ट निर्माताओं के लिए लाइसेंस राज 13 Sep, 2024
- नया वन कानून: वन संसाधनों की लूट और हिमालय में आपदाओं को न्यौता 17 Nov, 2023
- नये श्रम कानून मजदूरों को ज्यादा अनिश्चित भविष्य में धकेल देंगे 14 Jan, 2021
- बेरोजगार भारत का युग 20 Aug, 2022
- बॉर्डर्स पर किसान और जवान 16 Nov, 2021
- मोदी के शासनकाल में बढ़ती इजारेदारी 14 Jan, 2021
- सत्ता के नशे में चूर भाजपाई कारकूनों ने लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से रौंदा 23 Nov, 2021
- हरियाणा किसान आन्दोलन की समीक्षा 20 Jun, 2021
सामाजिक-सांस्कृतिक
- एक आधुनिक कहानी एकलव्य की 23 Sep, 2020
- किसान आन्दोलन के आह्वान पर मिट्टी सत्याग्रह यात्रा 20 Jun, 2021
- गैर बराबरी की महामारी 20 Aug, 2022
- घोस्ट विलेज : पहाड़ी क्षेत्रों में राज्यप्रेरित पलायन –– मनीषा मीनू 19 Jun, 2023
- दिल्ली के सरकारी स्कूल : नवउदारवाद की प्रयोगशाला 14 Mar, 2019
- पहाड़ में नफरत की खेती –– अखर शेरविन्द 19 Jun, 2023
- सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर राजनीति 14 Dec, 2018
- साम्प्रदायिकता और संस्कृति 20 Aug, 2022
- हमारा जार्ज फ्लायड कहाँ है? 23 Sep, 2020
- ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ पर केन्द्रित ‘कथान्तर’ का विशेषांक 13 Sep, 2024
व्यंग्य
- अगला आधार पाठ्यपुस्तक पुनर्लेखन –– जी सम्पत 19 Jun, 2023
- आजादी को आपने कहीं देखा है!!! 20 Aug, 2022
- इन दिनों कट्टर हो रहा हूँ मैं––– 20 Aug, 2022
- नुसरत जहाँ : फिर तेरी कहानी याद आयी 15 Jul, 2019
- बडे़ कारनामे हैं बाबाओं के 13 Sep, 2024
साहित्य
- अव्यवसायिक अभिनय पर दो निबन्ध –– बर्तोल्त ब्रेख्त 17 Feb, 2023
- औपनिवेशिक सोच के विरुद्ध खड़ी अफ्रीकी कविताएँ 6 May, 2024
- किसान आन्दोलन : समसामयिक परिदृश्य 20 Jun, 2021
- खामोश हो रहे अफगानी सुर 20 Aug, 2022
- जनतांत्रिक समालोचना की जरूरी पहल – कविता का जनपक्ष (पुस्तक समीक्षा) 20 Aug, 2022
- निशरीन जाफरी हुसैन का श्वेता भट्ट को एक पत्र 15 Jul, 2019
- फासीवाद के खतरे : गोरी हिरणी के बहाने एक बहस 13 Sep, 2024
- फैज : अँधेरे के विरुद्ध उजाले की कविता 15 Jul, 2019
- “मैं” और “हम” 14 Dec, 2018
समाचार-विचार
- स्विस बैंक में जमा भारतीय कालेधन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी 20 Aug, 2022
- अगले दशक में विश्व युद्ध की आहट 6 May, 2024
- अफगानिस्तान में तैनात और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की आत्महत्या 14 Jan, 2021
- आरओ जल–फिल्टर कम्पनियों का बढ़ता बाजार 6 May, 2024
- इजराइल–अरब समझौता : डायन और भूत का गठबन्धन 23 Sep, 2020
- उत्तर प्रदेश : लव जेहाद की आड़ में धर्मान्तरण के खिलाफ अध्यादेश 14 Jan, 2021
- उत्तर प्रदेश में मीडिया की घेराबन्दी 13 Apr, 2022
- उनके प्रभु और स्वामी 14 Jan, 2021
- एआई : तकनीकी विकास या आजीविका का विनाश 17 Nov, 2023
- काँवड़ के बहाने ढाबों–ढेलों पर नाम लिखाने का साम्प्रदायिक फरमान 13 Sep, 2024
- किसान आन्दोलन : लीक से हटकर एक विमर्श 14 Jan, 2021
- कोयला खदानों के लिए भारत के सबसे पुराने जंगलों की बलि! 23 Sep, 2020
- कोरोना जाँच और इलाज में निजी लैब–अस्पताल फिसड्डी 10 Jun, 2020
- कोरोना ने सबको रुलाया 20 Jun, 2021
- क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमान होना ही गुनाह है? 23 Sep, 2020
- क्यूबा तुम्हारे आगे घुटने नहीं टेकेगा, बाइडेन 16 Nov, 2021
- खाली जेब, खाली पेट, सर पर कर्ज लेकर मजदूर कहाँ जायें 23 Sep, 2020
- खिलौना व्यापारियों के साथ खिलवाड़ 23 Sep, 2020
- छल से वन अधिकारों का दमन 15 Jul, 2019
- छात्रों को शोध कार्य के साथ आन्दोलन भी करना होगा 19 Jun, 2023
- त्रिपुरा हिंसा की वह घटना जब तस्वीर लेना ही देशद्रोह बन गया! 13 Apr, 2022
- दिल्ली उच्च न्यायलय ने केन्द्र सरकार को केवल पाखण्डी ही नहीं कहा 23 Sep, 2020
- दिल्ली दंगे का सबक 11 Jun, 2020
- देश के बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में 14 Dec, 2018
- न्यूज चैनल : जनता को गुमराह करने का हथियार 14 Dec, 2018
- बच्चों का बचपन और बड़ों की जवानी छीन रहा है मोबाइल 16 Nov, 2021
- बीमारी से मौत या सामाजिक स्वीकार्यता के साथ व्यवस्था द्वारा की गयी हत्या? 13 Sep, 2024
- बुद्धिजीवियों से नफरत क्यों करते हैं दक्षिणपंथी? 15 Jul, 2019
- बैंकों की बिगड़ती हालत 15 Aug, 2018
- बढ़ते विदेशी मरीज, घटते डॉक्टर 15 Oct, 2019
- भारत देश बना कुष्ठ रोग की राजधानी 20 Aug, 2022
- भारत ने पीओके पर किया हमला : एक और फर्जी खबर 14 Jan, 2021
- भीड़ का हमला या संगठित हिंसा? 15 Aug, 2018
- मजदूरों–कर्मचारियों के हितों पर हमले के खिलाफ नये संघर्षों के लिए कमर कस लें! 10 Jun, 2020
- महाराष्ट्र के कपास किसानों की दुर्दशा उन्हीं की जबानी 23 Sep, 2020
- महाराष्ट्र में कर्मचारी भर्ती का ठेका निजी कम्पनियों के हवाले 17 Nov, 2023
- महाराष्ट्र में चार सालों में 12 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की 15 Jul, 2019
- मानव अंगों की तस्करी का घिनौना व्यापार 13 Sep, 2024
- मौत के घाट उतारती जोमैटो की 10 मिनट ‘इंस्टेण्ट डिलीवरी’ योजना 20 Aug, 2022
- यूपीएससी की तैयारी में लगे छात्रों की दुर्दशा, जिम्मेदार कौन? 13 Sep, 2024
- राजस्थान में परमाणु पावर प्लाण्ट का भारी विरोध 13 Sep, 2024
- रेलवे का निजीकरण : आपदा को अवसर में बदलने की कला 23 Sep, 2020
- लोग पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए क्यों लड़ रहे हैं 17 Nov, 2023
- विधायिका में महिला आरक्षण की असलियत 17 Nov, 2023
- वैश्विक लिंग असमानता रिपोर्ट 20 Aug, 2022
- श्रीलंका पर दबाव बनाते पकड़े गये अडानी के “मैनेजर” प्रधानमंत्री जी 20 Aug, 2022
- संस्कार भारती, सेवा भारती––– प्रसार भारती 14 Jan, 2021
- सत्ता–सुख भोगने की कला 15 Oct, 2019
- सरकार द्वारा लक्ष्यद्वीप की जनता की संस्कृति पर हमला और दमन 20 Jun, 2021
- सरकार बहादुर कोरोना आपके लिए अवसर लाया है! 10 Jun, 2020
- सरकार, न्यायपालिका, सेना की आलोचना करना राजद्रोह नहीं 15 Oct, 2019
- सरकारी विभागों में ठेका कर्मियों का उत्पीड़न 15 Aug, 2018
- हम इस फर्जी राष्ट्रवाद के सामने नहीं झुकेंगे 13 Apr, 2022
- हाथरस की भगदड़ में मौत का जिम्मेदार कौन 13 Sep, 2024
- हुकुम, बताओ क्या कहूँ जो आपको चोट न लगे। 13 Apr, 2022
कहानी
- जामुन का पेड़ 8 Feb, 2020
- पानीपत की चैथी लड़ाई 16 Nov, 2021
- माटी वाली 17 Feb, 2023
- समझौता 13 Sep, 2024
विचार-विमर्श
- अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है? 23 Sep, 2020
- अस्तित्व बनाम अस्मिता 14 Mar, 2019
- क्या है जो सभी मेहनतकशों में एक समान है? 23 Sep, 2020
- क्रान्तिकारी विरासत और हमारा समय 13 Sep, 2024
- दिल्ली सरकार की ‘स्कूल्स ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सलेंस’ की योजना : एक रिपोर्ट! 16 Nov, 2021
- धर्म की आड़ 17 Nov, 2023
- पलायन मजा या सजा 20 Aug, 2022
- राजनीति में आँधियाँ और लोकतंत्र 14 Jun, 2019
- लीबिया की सच्चाई छिपाता मीडिया 17 Nov, 2023
- लोकतंत्र के पुरोधाओं ने लोकतंत्र के बारे में क्या कहा था? 23 Sep, 2020
- विकास की निरन्तरता में–– गुरबख्श सिंह मोंगा 19 Jun, 2023
- विश्व चैम्पियनशिप में पदक विजेता महिला पहलवान विनेश फोगाट से बातचीत 19 Jun, 2023
- सरकार और न्यायपालिका : सम्बन्धों की प्रकृति क्या है और इसे कैसे विकसित होना चाहिए 15 Aug, 2018
श्रद्धांजलि
कविता
- अपने लोगों के लिए 6 May, 2024
- कितने और ल्हासा होंगे 23 Sep, 2020
- चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह 23 Sep, 2020
- बच्चे काम पर जा रहे हैं 19 Jun, 2023
अन्तरराष्ट्रीय
- अमरीका बनाम चीन : क्या यह एक नये शीत युद्ध की शुरुआत है 23 Sep, 2020
- इजराइल का क्रिस्टालनाख्त नरसंहार 17 Nov, 2023
- क्या लोकतन्त्र का लबादा ओढ़े अमरीका तानाशाही में बदल गया है? 14 Dec, 2018
- पश्चिम एशिया में निर्णायक मोड़ 15 Aug, 2018
- प्रतिबन्धों का मास्को पर कुछ असर नहीं पड़ा है, जबकि यूरोप 4 सरकारें गँवा चुका है: ओरबान 20 Aug, 2022
- बोलीविया में तख्तापलट : एक परिप्रेक्ष्य 8 Feb, 2020
- भारत–इजराइल साझेदारी को मिली एक वैचारिक कड़ी 15 Oct, 2019
- भोजन, खेती और अफ्रीका : बिल गेट्स को एक खुला खत 17 Feb, 2023
- महामारी के बावजूद 2020 में वैश्विक सामरिक खर्च में भारी उछाल 21 Jun, 2021
- लातिन अमरीका के मूलनिवासियों, अफ्रीकी मूल के लोगों और लातिन अमरीकी संगठनों का आह्वान 10 Jun, 2020
- सउ़दी अरब की साम्राज्यवादी विरासत 16 Nov, 2021
- ‘जल नस्लभेद’ : इजराइल कैसे गाजा पट्टी में पानी को हथियार बनाता है 17 Nov, 2023
राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
- कम कहना ही बहुत ज्यादा है : एडुआर्डो गैलियानो 20 Aug, 2022
- चे ग्वेरा की बेटी अलेदा ग्वेरा का साक्षात्कार 14 Dec, 2018
- फैज अहमद फैज के नजरिये से कश्मीर समस्या का हल 15 Oct, 2019
- भारत के एक बड़े हिस्से में मर्दवादी विचार हावी 15 Jul, 2019
अवर्गीकृत
- एक अकादमिक अवधारणा 20 Aug, 2022
- डीएचएफएल घोटाला : नवउदारवाद की एक और झलक 14 Mar, 2019
- फिदेल कास्त्रो सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के हिमायती 10 Jun, 2020
- बायोमेडिकल रिसर्च 14 Jan, 2021
- भाषा और साहित्य के क्षेत्र में भारत को मुसलमानों का महान स्थायी योगदान 23 Sep, 2020
- सर्वोच्च न्यायलय द्वारा याचिकाकर्ता को दण्डित करना, अन्यायपूर्ण है. यह राज्य पर सवाल उठाने वालों के लिए भयावह संकेत है 20 Aug, 2022
जीवन और कर्म
मीडिया
- मीडिया का असली चेहरा 15 Mar, 2019
फिल्म समीक्षा
- समाज की परतें उघाड़ने वाली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ 15 Jul, 2019