गैर बराबरी की महामारी
सामाजिक-सांस्कृतिक––शालू पंवार
आज की दुनिया में गैर बराबरी एक महामारी का रूप धारण कर चुकी है। दुनिया के किसी भी हिस्से में जीवन का कोई भी पहलू ऐसा नहीं है जिसने इसे संक्रमित ना किया हो। इसका फैलाव इस कदर भयावह हो चुका है कि खुद पूँजीवादी बुद्धिजीवी चिन्तित हैं। हालाँकि वे उन नीतियों से इंच भर भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है जिन्होंने इस गैर बराबरी को पैदा किया है।
पूरी दुनिया एक ऐसे जालिम तंत्र की गिरफ्त में है जो विशाल मेहनतकश जनता के शरीर से रक्त और मज्जा निचैड़ कर मुठ्ठीभर पूँजीपतियों की तिजौरी में कैद करता जा रहा है। पूरी दुनिया एक ऐसे नर्क में तब्दील हो चुकी है जिसमें स्वर्गोपम अय्याशी से भरे कुछ टापू तैर रहे हैं। अमरीका और यूरोप से लेकर अप्ऱीका और एशिया तक स्वर्गिक टापूओं और नंदित नर्क के बीच एक स्पष्ट रिश्ता कायम है। जितने ज्यादा अरबपति उतना भयावह और व्यापक कंगालीकरण। कोरोना महामारी ने इस प्रक्रिया को रॉकेट की रफ्तार प्रदान की है। पूँजीपतियों की संस्था आक्सफेम ने न केवल इसे स्वीकार किया बल्कि गहरी चिन्ता भी जतायी है।
कोरोना महामारी में अरबपतियों की दौलत और कम्पनियों के मुनाफे में रिकॉर्ड वृद्धि हुई हैय दूसरी ओर, एक अरब से ज्यादा लोग कंगाली की चपेट में आ गये है इसके बाद शुरू हुए यूक्रेन युद्ध ने खाद्य पदार्थों की कीमतंे बढ़ाकर संकट और ज्यादा गहरा कर दिया है।
हम यहाँ पूँजीवादी संस्था ‘आक्सफेम’ की रिपोर्ट में सामने आये तथ्यों को ही सपाट रूप में रखेंगे, उनका कोई जनपक्षधर विश्लेषण या व्याख्या नहीं करेंगे क्योंकि खुद आक्सफेम ने इस रिपोर्ट को चेतावनी भरे अंदाज में लिखा है रिपोर्ट कहती है कि––
कोरोना महामारी के 24 महीनों में अबरपतियों ने इतनी दौलत कमाई है जितनी उन्होंने पिछले 23 सालों में कमाई थी।
पिछले 10 सालों में केवल भोजन के क्षेत्र में कारोबार करके 62 नये अरबपति पैदा हुए हैं।
हवा और पानी के बाद भोजन और उ़र्जा मानव जीवन की अनिवार्य शर्त है। इन दो क्षेत्रों में अरबपतियों ने रोजाना लगभग 40 अरब रुपये कमाये हैं। भोजन और उ़र्जा की कीमतों में रिकोर्ड बढ़ोतरी हुई है।
कोरोना काल में केवल भोजन के क्षेत्र में अरबपतियों की मुनाफा वसूली से दुनिया में 26 करोड़ से ज्यादा लोग कंगाल हुए हैं। यानी हर रोज 7–27 लाख लोग। इसी दौरान, दूसरे छोर पर हर तीस घण्टे में एक अरबपति पैदा हुआ है। यानी लगभग हर 10 लाख लोगों की कंगाली की कीमत पर एक अरबपति पैदा हुआ है।
आइये एक नजर दुनिया में दौलत के बँटवारे पर डाले आक्सफेम बताता है––
आज दुनिया में 2668 अरबपति हैं। 2020 के बाद, कोरोना काल में दुनिया की जनता तबाही झेल रही थी, उस दौरान 573 नये अरबपति पैदा हुए।
सारे अरबपतियों की कुल दौलत 12,700 अरब डॉलर से ज्यादा है। इसका 42 प्रतिशत लगभग 3780 अरब डॉलर कोरोना काल में कमाये गये हैं। अरबपतियों की दौलत दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद के 13–9 प्रतिशत के बराबर है।
दुनिया के सबसे अमीर 10 लोगों की दौलत दुनिया के सबसे गरीब 40 प्रतिशत लोगों के बराबर है।
एलन मस्क दुनिया का सबसे अमीर आदमी है। अगर वह अपनी 99 प्रतिशत दौलत दान कर दे तो भी दुनिया के सबसे अमीर 10 लोगों में शुमार रहेगा। पिछले 2 साल में इसकी दौलत लगभग 7 गुना बढ़ी है।
आय में असमानता
आय में भारी असमानता कोरोना से पहले भी मौजूद थी लेकिन कोरोना काल में यह शिखर पर पहुँच गयी। भोजन और उ़र्जा के क्षेत्र पर सरकारों के बजाय कुछ कम्पनियों के एकाधिकार ने उन्हें संकट के समय मन माफिक मुनाफा कमाने का मौका दिया। इसके चलते कीमतों में तेज बढ़ोतरी हुई जिसने गरीब जनता को तबाह करके असमानता को ऐतिहासिक उ़ँचाई पर पहुँचा दिया।
कोरोना महामारी के दौरान दुनिया के 99 प्रतिशत लोगों की आमदनी में गिरावट आयी है। केवल 2021 में ही 12–5 करोड़ स्थायी नौकरी समाप्त हो गयी।
उ़पर के 1 प्रतिशत अमीर लोगों में से कोई व्यक्ति एक साल में औसतन जितनी कमाई करता है उतनी कमाई करने में एक साधारण इनसान को 112 साल लगेंगे।
2021 में नीचे के 40 प्रतिशत लोगों की आमदनी में कोरोना काल से पहले की तुलना में 6–7 प्रतिशत की कमी आयी है।
लैगिक असमानता
कोरोना महामारी से तीव्र हुई आर्थिक असमानता ने लैंगिक असमानता को भी तेजी से बढ़ाया है। महामारी के दौरान तुलनात्मक रूप से महिलाओं ने ज्यादा रोजगार गँवा दिये हैं। करोड़ो रोजगारशुदा महिलाएँ अवैतनिक घरेलू कामों में धकेल दी गयी हैं और अब भोजन और उ़र्जा की कीमतंे बढ़ने की मार भी उन्हीं पर सबसे ज्यादा पड़ रही है।
लैगिक भेदभाव के चलते वेतन में होने वाला फर्क बढ़ गया है। आज की दुनिया की गति के हिसाब से महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन पाने में अभी 136 साल और लगेंगे। कोरोना से पहले यह समय 100 साल था।
2020 में काम से निकाले जाने वाले लोगों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से 1–4 गुना ज्यादा थी और उनके अवैतनिक काम पुरुषों से 3 गुना ज्यादा थे।
2019 की तुलना में 2021 में रोजगारशुदा महिलाओं में 1–3 करोड़ की कमी आयी है।
कोरोना काल में अंसगिठत क्षेत्र में केवल लातिन अमरीका में 4 करोड़ से ज्यादा महिलाओं ने अपने रोजगार गँवा दिये हैं।
नस्लीय असमानता
नस्लीय भेदभाव के शिकार समुदायों के संकट को कोरोना महामारी ने बहुत ज्यादा बढ़ाया है। श्वेत लोगों की सर्वश्रेष्ठता बढ़ी ही है साथ ही काले लोगों, मूलनिवासी समुदायों, आदिवासी समुदायों, दलितों आदि पर हमले पूरी दुनिया में बढ़े हैं।
वैक्सीन की लगभग 11–66 अरब खुराकों पर अमीर देशों ने ही कब्जा जमा लिया, जबकि गरीब देशों में केवल 13 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की पूरी खुराकें मिलीं। अगर वैक्सीन का ईमानदारी से बँटवारा किया जाता तो दुनिया के हर व्यक्ति को वैक्सीन की पूरी खुराकें मिल जातीं।
महामारी में दुनिया के हर 4 मिनट में एक बच्चे ने अपने अभिभावक को गँवाया। इनमें से आधे बच्चे भारत में है जिनकी संख्या 20 लाख है।
राष्ट्रों के बीच असमानता
कोरोना महामारी के बाद निम्न और मध्म आय के देश भारी संकट का सामना कर रहे हैं। जबकि अमीर देश इसका अतिरिक्त लाभ पा रहे हैं। गरीब देशों पर कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है कि उनकी इससे उबरने की सम्भावनाएँ क्षीण होती जा रही हैं। ये देश ऐसी भी स्थिति में नहीं हैं कि बढ़ती कीमतों से अपनी जनता की रक्षा कर सकें। कर्जोंं की किस्त चुकाने के लिए इन्हें स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी जन सुविधाओं में कटौती करनी पड़ रही है।
कोरोना माहामारी के दौरान केवल 2020 में ही 16 में से 14 अप्ऱीकी देशों ने 48–7 अरब डॉलर गँवाये हैं। इसकी पूर्ति के लिए इन्हें अपने बजट से सालाना 26–8 अरब डॉलर की कटौती करनी पड़ रही है।
2022 में दुनिया के सारे देशों को कर्जों की किस्त के रूप में 43 अरब डॉलर का भुगतान करना है। जो इन देशों की जनता के भोजन के आधे खर्च और पूर्ण स्वास्थ्य खर्च के योग के बराबर है। 2021 के गरीब देशों का कर्ज इनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर कुल खर्च से 1–71 गुना ज्यादा था।
कोरोना महामारी के दौरान आईएमएफ द्वारा गरीब और मध्यम आय वाले देशों को दिये गये 87 प्रतिशत कर्ज पूँजीपतियों के समर्थन वाली कठोर शर्तों पर दिये गये हैं, जो गरीबी और असमानता को और ज्यादा बढ़ायेंगी।
60 प्रतिशत गरीब देश कर्ज संकट की कगार पर खड़े हैं।
एक बार फिर यह दोहरा देना जरूरी है कि उपरोक्त सभी तथ्य आक्सफेम संस्था द्वारा चेतावनी भरे अन्दाज में जारी किये गये हैं। गौरतलब है कि आक्सफेम खुद उस साम्राज्यवादी तंत्र की संस्था है जो तंत्र दुनिया में इस कदर भयावह असमानता पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। क्या इस तंत्र के समूल नाश के बिना एक समतामूलक दुनिया की कल्पना की जा सकती है।
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