त्रिपुरा हिंसा की वह घटना जब तस्वीर लेना ही देशद्रोह बन गया!
समाचार-विचार26 अक्टूबर को त्रिपुरा राज्य के चमटीला में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) ने एक रैली निकाली थी। यह रैली बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे हमलों के विरोध मेंे निकाली थी। जल्द ही हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता मुसलमान विरोधी नारे लगाने लगे और रैली ने उग्र रूप धारण कर लिया। शाम होते–होते हिन्दुत्ववादी गुण्डों ने पानीसागर इलाके में मुसलमानों के धार्मिक स्थलों, दुकानों और घरों में आगजनी व तोड़–फोड़ शुरू कर दी। करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ। जब धर्मान्ध भीड़ तोड़–फोड़ और आगजनी कर रही थी तो त्रिपुरा पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही।
त्रिपुरा की भाजपा सरकार हिन्दुत्ववादी गुण्डों का इस हद तक सर्मथन कर रही है कि आज तक एक भी उपद्रवी को गिफ्तार नहीं किया गया है और न ही किसी की पहचान की गयी है। इसके उलट इस साम्प्रदायिक हिंसा को सबके सामने लाने वाले पत्रकारों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर त्रिपुरा पुलिस देशद्रोह के मुकदमें लगा रही है। अभी तक 100 से भी ज्यादा लोगों पर यूएपीए जैसी धाराओं में मुकदमें दर्ज हो चुके हैं और कई लोग जेल में भी डाले जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा चार वकीलों की एक फैक्ट–फाइंडीग टीम त्रिपुरा भेजी गयी तो त्रिपुरा पुलिस ने तमाम सीमाएँ लागते हुए उन पर भी गम्भीर धाराओं में मुकदमें लगा दिये। हिंसा पर मुख्यमंत्री विप्लव देव का कहना है कि “कहाँ हिंसा हुई मैनें तो नहीं देखी”। यानी अब उसे ही हिंसा माना जाएगा, जिसके चस्मदीद मुख्यमंत्री खुद होंगे।
त्रिपुरा हिंसा से ठीक 13 दिन पहले बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत सरकार से कहा था कि “भारत में ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे हमारा देश प्रभावित हो और हमारे देश के हिन्दुओं को मुश्किलों का सामना करना पड़े। भारत में मुसलमानों के खिलाफ कुछ होता है तो हमारे यहाँ के हिन्दू भी उससे प्रभावित होते हैं।” इसके बावजूद त्रिपुरा की सरकार ने विश्व हिन्दू परिषद को यह भड़काऊ रैली करने दी।
2019 में त्रिपुरा में भाजपा पहली बार सत्ता में आयी। अमूमन शान्त रहने वाला यह राज्य तभी से हिन्दुत्ववादी गिरोह के खुले उत्पात का क्षेत्र बना हुआ है। खुद मुख्यमंत्री विप्लव देव हर रोज भड़काऊ और विघटनकारी बयानबाजी करते हंै। एक महीने पहले ही हिन्दुत्ववादी गुण्डों ने एक प्रतिष्ठित अखबार “प्रतिवादी कलम” के दफ्तर में तोड़–फोड़ और आगजनी की और पत्रकारों की गाड़ियों में आग लगा दी थी। कारण यह था कि इस अखवार ने 150 करोड़ रुपये के एक कृषि घोटाले को उजागर किया था। इसी तरह तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव के साथ भी हिन्दुत्ववादी गुण्डों ने मारपीट की, उनके कार्यकर्ताओं के घरों और दफ्तरों में तोड़–फोड़ की और 30 से अधिक कारों को आग के हवाले कर दिया। सांसद ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया है कि वह हिन्दुत्ववादी गुण्डों के सामने नतमस्तक हैं और इन पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें संरक्षण दे रहे हैं।
13 अक्टूबर की हिंसा के बाद “न्यूज नेटवर्क” की दो पत्रकार त्रिपुरा हिंसा की रिपोर्टिंग करने गयीं तो पहले उन्हें भी पुलिस द्वारा परेशान किया गया। उनके आधार कार्ड, पैन कार्ड, पोस्ट कार्ड फोटो थाने मंे जमा कराये गये। इसके बावजूद पुलिस इनका पीछा करती रही। इन्हें घटना स्थल पर जाने से रोका गया। इसके बाद भी पत्रकार अपना काम करती रही तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी का कारण हिन्दू परिषद के लोगों द्वारा इनकी शिकायत करना बताया गया। कोर्ट के हस्तक्षेप पर पत्रकारों को रिहा किया गया। ‘न्यूज क्लिक’ के पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर “त्रिपुरा जल रहा है” केवल इतना ही लिख दिया तो उन पर यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया।
पत्रकारों और कुछ संगठनों ने त्रिपुरा हिंसा पर संज्ञान लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चार वकीलों के एक दल का गठन किया और उन्हें चार हफ्तों में रिपोर्ट सौंपने को कहा। जब यह दल त्रिपुरा पहुँचकर जली दुकानों और घरों के वीडियो बनाने और फोटो खींचने लगा तो त्रिपुरा पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और इस दल पर अलग–अलग धाराओं में सात मुकदमे लगा दिये गये।
त्रिपुरा हिंसा के साक्ष्य जुटाने वाले पत्रकार, बुद्धिजीवी, वकील जेल में ठूँस दिये गये हैं जबकि हिन्दू परिषद के गुण्डे, जिन्होंने इस हिंसा को अन्जाम दिया था, वह आजाद घूम रहे हैं। इनके नफरत फैलाने वाले सैकड़ों मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। इन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और न आगे होने की सम्भावना है क्योंकि जब धर्म की चासनी में राजनीति घुल जाती है, तब समाज में कट्टरता और साम्प्रदायकिता अपना नंगा नाच दिखाती हैं। त्रिपुरा में यहीं हो रहा है।
आज अगर खामोश रहे/ तो कल सन्नाटा छायेगा
हर बस्ती में आग लगेगी/ हर आँगन जलाया जायेगा।
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