–– जोनाह रस्किन

(एडुआर्डो गैलियानो ने बड़ी, मोटी–मोटी किताबें लिखी हैं। लातिन अमरीका के रिसते जख्म(1973), जो वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज ने मई में बराक ओबामा को इस उम्मीद से दी थी कि इससे वह कुछ इतिहास सीख पाएँ। यह 300 से ज्यादा पन्नों की है। इसके बाद गैलियानो की मेमोरी ऑफ फायर ट्रायोलॉजी–– जेनेसिस, फेसेस एण्ड मास्क्स, और सेंचुरी ऑफ द विण्ड आयीं जो लगभग 1,000 पन्नों की हैं। हाल ही में, उन्होंने छोटी किताबें लिखी हैं और शब्दों की एक तरह की अदायगी की कोशिश की है। मिरर्स, उनकी सबसे हालिया किताब में, (हन्टर ऑफ स्टोरीज उनकी आखिरी किताब है–– अनु–) जो लगभग हर चीज के बारे में है, सौ से ज्यादा छोटे–छोटे मुद्दे समेटे हैं–– नमक से लेकर नक्शे और पैसे तक और यह लगभग सभी के बारे में है, क्लियोपेट्रा से लेकर अलेक्जेण्डर हैमिल्टन और चे ग्वेरा तक। कोई भी वाकया एक पन्ने से ज्यादा लम्बा नहीं है। हैरानी नहीं कि इस इण्टरव्यू में गैलियानो के जवाब गूढ़, काव्यात्मक, विनोदी और कभी–कभी टेढ़े होते हैं। “मैं शब्दों की गिरती कीमत से लड़ रहा हूँ, जिनकी हालत लातिन अमरीका में पैसे की गिरती कीमत से भी बदतर है,” वह कहते हैं। “मैं कम शब्दों में ज्यादा कह सकने की कोशिश करता हूँ–– क्योंकि कम कहना ही बहुत ज्यादा है।”–– जोनाह रस्किन)

 

जोनाह रस्किन–– आपने लातिन अमरीका को एक ऐसी औरत की तरह दिखाया है जो आपके कान में आकर बात करती है। क्या वह औरत आपकी माँ थी?

एडुआर्डो गैलियानो–– नहीं, जो आवाज मैंने सुनी वह मेरी माँ की नहीं थी, बल्कि किसी चाहने वाली ने जैसे कुछ राज फुसफुसाया हो।

जोनाह रस्किन–– अपनी जिन्दगी में आपने क्या खोया है?

एडुआर्डो गैलियानो–– वैसे, मैं कहूँगा कि मैं अपनी नाकामियाबियों का पुलिन्दा हूँ। जब मैं छोटा था, मैं फुटबाल का सितारा बनना चाहता था, लेकिन मेरे पास थे काठ के पैर। फिर मैंने सन्त बनने की सोची, लेकिन मैं ऐसा कर नहीं पाया क्योंकि गुनाह करने की तरफ मेरा रुझान था। फिर मैंने फनकार बनने की कोशिश की। अब मैं शब्दों से रंगसाजी करता हूँ।

जोनाह रस्किन–– जब आपने पहली बार पढ़ा कि उपन्यासकार सैण्ड्रा सिस्नेरोस ने कहा कि आप एक औरत की तरह लिखते हैं, तो आपको कैसा लगा?

एडुआर्डो गैलियानो–– मैं न हँसा और न ही कुड़कुड़ाया। मैंने इसे एक स्तुति गान (कसीदा) की तरह लिया।

जोनाह रस्किन–– क्या मर्द की तरह लिखना या किसी लातिन अमरीकी की तरह लिखना जैसी कोई चीज सच में है?

एडुआर्डो गैलियानो–– एक बात जरूरी है, ईमानदारी से लिखना। हम एक दूसरे को उन्हीं शब्दों से जानते हैं जो हम बोलते हैं। मैं वही शब्द हूँ जो मैं बोलता हूँ। और अगर मैंने आपको अपने शब्द दे दिये तो मैंने खुद को आपके हवाले कर दिया।

जोनाह रस्किन–– क्या युग सत्य या हमारे वक्त की रूह जैसा कुछ है?

एडुआर्डो गैलियानो–– दुनिया आज गोलाबारी के बीच फँस गये किसी अन्धे की तरह है।

जोनाह रस्किन–– मैं इतिहास को साम्राज्यों की बुलन्दी पर पहुँचने और खाक में मिल जाने की कहानी बतौर देखता हूँ। क्या कोई और नजरिया आप हमें सुझा सकते हैं?

एडुआर्डो गैलियानो–– ऐसा अक्सर होता है कि इतिहास की कुछ बेहतरीन कहानियों का अन्त खुशी–खुशी नहीं होता। बेशक, खुद इतिहास का कभी अन्त नहीं होता। यह हर दिन नये सिरे से शुरू होता है, और जब हम सोचते हैं कि यह हमें अलविदा कह रहा है, तो असल में यह सिर्फ इतना कह रहा होता है कि “फिर मिलते हैं”।

जोनाह रस्किन–– 1968 का साल मेरी पीढ़ी के लिए खास था। क्या आपके लिए भी कोई साल बहुत खास रहा है, या खास साल होना एक अच्छा खयाल (फिक्सन) है जो हम खुद को सुनाते हैं?

एडुआर्डो गैलियानो–– वक्त उनका मजाक उड़ाता है जो इसे नापने की कोशिश करते हैं। लेकिन मुझे ऐसा भी लगता है कि वक्त, हमारी यादों को तारीखों के साथ बाँधने की हमारी जरूरत को समझता है, ताकि यादें हवा में रेत के टीलों की तरह गायब न हो जायें।

जोनाह रस्किन–– फनकार और लेखक मुझे बताते हैं कि “जादुई यथार्थवाद” महज कोई साहित्यिक स्कूल या शैली नहीं है, बल्कि दुनिया में होने का एक पूरा सलीका है। आप इसे कैसे देखते हैं?

एडुआर्डो गैलियानो–– सारा यथार्थ ही जादुई है–– दक्षिण में और उत्तर में, पूर्व और पश्चिम में और पूरे ग्रह में। यथार्थ हमेशा आश्चर्य और रहस्य से भरा होता है, हालाँकि हम अक्सर इसकी तरफ अन्धे और बहरे होते हैं। शायद लिखना इसे इसकी पूर्णता में उकेर पाने में थोड़ी मदद कर सकता है।

जोनाह रस्किन–– साहित्यिक आलोचक, ओरिएण्टलिज्म और कल्चर एण्ड इम्पीरियलिज्म के लेखक एडवर्ड सईद का मानना था कि हमारे युग की परिभाषा–– इतिहास में किसी दूसरे युग से ज्यादा–– निर्वासन, शरणार्थियों और विस्थापित लोगों से बनती है। इसके बारे में क्या खयाल है?

एडुआर्डो गैलियानो–– जिस संस्कृति का दुनिया में दबदबा है वह हमें सिखाती है कि दूसरा इनसान एक खतरा है, कि हमारे साथी इनसान एक खतरा हैं। हम सभी किसी न किसी रूप में निर्वासित बने रहेंगे, जब तक हम इस मिसाल को मानते रहेंगे कि दुनिया एक रेसट्रैक है या जंग का एक मैदान है। मेरा मानना है कि हम कई अलग–अलग तरह के लोगों के हमवतन हो सकते हैं, भले ही वे हमारी अपनी जमीन से दूर, दूसरी जगहों पर, किसी दूसरे वक्त में पैदा हुए हों।

जोनाह रस्किन–– क्या दुनिया का कोई मरकज है? क्या इसकी कोई धुरी है?

एडुआर्डो गैलियानो–– मैंने अपनी किताबें, खासकर मेरी पिछली किताब, मिरर्स, यह दिखाने की कोशिश करने के लिए लिखी है कि कोई भी जगह किसी भी दूसरी जगह से ज्यादा खास नहीं है, और कोई भी इनसान किसी दूसरे इनसान से ज्यादा खास नहीं है। दुनिया को काबू में करने वालों ने हमारी सामूहिक यादों को अपाहिज कर दिया है, वे दिन–ब–दिन हमारे मौजूदा यथार्थ को भी विकृत कर देते हैं। वर्चस्वशाली देशों को सीखना शुरू करना होगा कि “नेतृत्व” की जगह “दोस्ती” शब्द को कैसे अपनाया जाये।

जोनाह रस्किन–– आज इस वक्त पर अगर पीछे मुड़कर चे को देखें, चे की टी–शर्ट, फिल्में और बड़ी–बड़ी जीवनियों के बाद, और साथ ही जब पूरे लातिन अमरीका के लोगों में उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान है, अब आप उन्हें कैसे देखते हैं?

एडुआर्डो गैलियानो–– चे चे ही रहेगा। वह एक जिद्दी साथी है और बार–बार पैदा होता रहता है। वह मरने से इनकार कर देता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह एक गैर मामूली इनसान था। उसने वही किया जो उसने कहा था कि वह करेगा, और उसने वही कहा जो उसने सोचा था, और यह गैर मामूली बात है। हमारी दुनिया में शब्द और उन पर अमल शायद ही कभी खुद को एक साथ पाते हैंय जब वह ऐसा करते हैं तो शायद ही कभी वह एक दूसरे को पहचानते या सलाम दुआ करते हैं।

जोनाह रस्किन–– बतौर गल्प (फिक्सन) लेखक मार्क्सवाद ने किस तरह आपकी मदद की या आपको रोका है?

एडुआर्डो गैलियानो–– मेरा बचपन कैथोलिक और जवानी मार्क्सवादी रही। शायद मैं उन चन्द लोगों में से हूँ जिन्होंने दास कैपिटल और बाइबल को बहुत बारीकी से पढ़ा है। लोगों ने चाहा कि वे मुझे एंथ्रोपोलॉजी के अजायबघर में रखवा दें। बेशक, दोनों का असर मुझमें अभी भी है, लेकिन मैं उनसे बँधा नहीं हूँ।

जोनाह रस्किन–– कई समकालीन लेखकों ने कहा है कि गैर–गल्प की तुलना में गल्प में सच बता पाना आसान है। क्या आप सहमत हैं?

एडुआर्डो गैलियानो–– मैं निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकता। मैं बस इतना कह सकता हूँ पागलपन, सुन्दरता और डरवानी कविताएँ लिखने वाले सभी कवियों पर सच्चाई भारी पड़ती है।

जोनाह रस्किन–– क्या आपने कभी खुद को ऐसी जगह पाया है जहाँ आपने सोचा हो कि “यह एक बहुत ज्यादा विकसित संस्कृति है?” क्या ज्यादा उन्नत और कम उन्नत संस्कृतियाँ हैं?

एडुआर्डो गैलियानो–– सभी संस्कृतियों में खूबियाँ होती हैं, जिन्हें जाना जाना चाहिए। सभी आवाजों में खूबियाँ होती हैं कि उन्हें सुना जाना चाहिए। मैं लिबरेशन थियोलॉजी (मुक्तिकामी धर्मशास्त्र) के अपने जिगरी दोस्तों की उस प्रसिद्ध कहावत को नहीं बताना चाहता जो कहते हैं, “हम उन लोगों की आवाज बनना चाहते हैं जिनके पास आवाज नहीं है।” नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं। हम सबके पास आवाज है। हम सभी के पास दूसरों से कहने के लिए कुछ है जो इस काबिल है कि उसका जश्न मनाया जाये, या कम से कम जिसे माफ किया जा सके। होता बस यह है कि ज्यादातर इनसानियत का गला घोंट दिया जाता है और बात कहने की मनाही कर दी जाती है।

जोनाह रस्किन–– नयी–नयी तकनीक के बारे में आपका क्या कहना है?

एडुआर्डो गैलियानो–– मशीनों को दोष नहीं दिया जा सकता। हम अपनी मशीनों के गुलाम बन गये हैं। हम अपनी मशीनों की मशीन हैं। इसमें कोई शक नहीं कि संचार के नये उपकरण बहुत काम के हो सकते हैं अगर वे हमारी सेवा में हों–– लेकिन इससे उलट नहीं। कारें हमें चलाती हैं। कम्प्यूटर हमें प्रोग्राम करते हैं। सुपरमार्केट हमें खरीदते हैं।

जोनाह रस्किन–– अखबार की दुनिया में आपने अपनी जिन्दगी का ज्यादातर वक्त गुजारा। एक संस्था के रूप में अखबार की मौत को आप कैसे देखते हैं?

एडुआर्डो गैलियानो–– पत्रकारिता ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी है। मैं पत्रकारिता की पैदाइश हूँ, हालाँकि अब मैं लेखों से ज्यादा किताबें लिखने लगा हूँ। मुझे यह भी मानना चाहिए कि मैं गुटेनबर्ग युग से आया हूँ। स्क्रीन पर कोई लेख या किताब पढ़ना मेरे लिए लगभग नामुमकिन है। मैं कागज पर पढ़ना पसन्द करता हूँ जिसे मैं छूता हूँ और जो मुझे छूता है।

जोनाह रस्किन–– उम्र के साथ क्या आपको यह महसूस हुआ है कि आपने जो कुछ अपनी जवानी में किया उसकी तुलना में इनसानी जिन्दगी में जीव विज्ञान ज्यादा बड़ी भूमिका निभाता है?

एडुआर्डो गैलियानो–– आइंस्टाइन ने कहा है कि नौजवान होना सीखने में कई साल लग जाते हैं। मैं अब यही करने जा रहा हूँ।

(अक्टूबर 01, 2009)

अनुवाद–– पारिजात