डिजिटल कण्टेण्ट निर्माताओं के लिए लाइसेंस राज
राजनीति–– अपार गुप्ता
क्या ध्रुव राठी और रवीश कुमार के यूट्यूब वीडियो 2024 के आम चुनाव में मतदाताओं की प्राथमिकताओं को प्रभावित कर सकते थे? यह सवाल उस केन्द्र सरकार से सम्बन्धित है जिसने दावा किया था कि वह बढ़े हुए बहुमत के साथ सत्ता में लौटेगी, लेकिन कम जनादेश के साथ गठबन्धन के रूप में वापस आ गयी। अपनी शक्ति के लिए खतरे को पहचानते हुए, इसका लक्ष्य प्रसारण विनियमन विधेयक–2024 के तहत डिजिटल रचनाकारों को नपुंसक बनाना है।
आइए सबसे पहले डेटा पर नजर डालें। दो सीएसडीएस लोकनीति सर्वेक्षण 64–2 करोड़ मतदाताओं और 92–4 करोड़ ब्रॉडबैण्ड कनेक्शनों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। इन सर्वेक्षणों में हजारों उत्तरदाताओं को शामिल किया गया और महानगरों से हटकर डिजिटल मीडिया के बढ़ते महत्व को उजागर किया गया।
मतदान के बाद के सर्वेक्षण से पता चलता है कि 29 प्रतिशत उत्तरदाता हर दिन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक सामग्री का उपभोग करते हैं, जबकि 18 प्रतिशत कभी–कभार ऐसा करते हैं। हालाँकि यह टेलीविजन (42 प्रतिशत) से कम है, लेकिन यह अखबारों (16.7 प्रतिशत) और रेडियो (6.9 प्रतिशत) से आगे है। उत्तरदाताओं ने दिन में कई बार व्हाट्सएप (35.1 प्रतिशत), यूट्यूब (32.3 प्रतिशत), फेसबुक (24.7 प्रतिशत), इंस्टाग्राम (18.4 प्रतिशत) और ट्वीटर (6.5 प्रतिशत) का उपयोग किया।
यह डेटा “कण्टेण्ट इलेक्शन” या “प्रभावशाली चुनाव” का संकेत देता है, जिसमें प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाला डिजिटल मीडिया टेलीविजन समाचार के प्रभुत्व को चुनौती दे रहा है। प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाले डिजिटल मीडिया का व्यापक उपयोग टेलीविजन समाचार के प्रभुत्व को भी चुनौती देता है। इसके बारे में भारतीय मीडिया की विशेषज्ञ वनिता कोहली–खाण्डेकर का कहना है कि यह मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मतदाताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है और “एक ही समूह में समाहित” किया गया है।
इससे केन्द्र सरकार के खेल के बारे में एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है। डिजिटल कण्टेण्ट को जकड़ने के लिए वह मौजूदा और नये कानूनों का उपयोग कैसे करेगी?
नियंत्रण के संकेत
भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों को पद की शपथ दिलाने से पहले ही, टीवी चैनलों ने इसे “मोदी 240” (आम चुनाव में भाजपा द्वारा जीती गयी सीटों की संख्या के लिए) कहने के बजाय इसे “मोदी 3–0” लेबल दिया। किसी नये संस्करण या सॉफ्टवेयर अपग्रेड की तरह, इस लेबल ने प्रधानमंत्री के नाम, छवि और आवाज में शक्ति को केन्द्रीकृत करने की परियोजना में सुधार के साथ निरन्तरता को चिन्हित किया।
नतीजतन, उनके मंत्रिमण्डल में बहुत कम बदलाव हुए हैं। अश्विनी वैष्णव इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री बने हुए हैं और उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय पोर्टफोलियो भी दिया गया है। यह डिजिटल सामग्री को नियंत्रित करने में इन मंत्रालयों की बढ़ती अभिसरण और रुचि को दर्शाता है। इस सेंसरशिप साझेदारी के लिए एक औपचारिक कानूनी आधार पहली बार 25 फरवरी, 2021 को आईटी नियम, 2021 के माध्यम से स्थापित किया गया था। इसने सिग्नल जैसी मैसेजिंग सेवाओं पर एण्ड–टू–एण्ड एन्क्रिप्शन से समझौता करने वाले ट्रेसेबिलिटी जनादेश सहित इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री की शक्तियों का विस्तार किया।
इसने सूचना और प्रसारण मंत्रालय को डिजिटल समाचार मीडिया और ऑनलाइन मनोरंजन स्ट्रीमिंग ऐप को पंजीकृत करने और ब्लॉक करने के लिए नयी शक्तियाँ भी प्रदान कीं।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अपनी प्रवर्तन कार्रवाई का सार्वजनिक रूप से खुलासा केवल तभी किया है जब वे आतंकवाद जैसे राष्ट्रवादी विषयों या आन्तरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों से जुड़े हों, जो इसके राजनीतिक हितों के अनुकूल हों। इस प्रकार, अब दोनों मंत्रालयों के कार्य एक दूसरे से हिल–मिल गये हैं और ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करने में दोनों का साझा हित है।
निरंकुश हथियार बनाना
आईटी नियम, 2021 के साथ भी, केन्द्र सरकार डिजिटल सामग्री के विस्तार को पूरी तरह से नियंत्रित करने में असमर्थ थी। इसलिए, इसने उन्हें दो बार विस्तारित किया। सबसे पहले, 28 जनवरी, 2023 को इसने गृह मंत्रालय, एमआईबी और एमईआईटीवाई के अधिकारियों की अध्यक्षता में तीन “शिकायत अपील समितियाँ” या जीएसी बनायीं। उन्होंने 1,216 अपीलों की सुनवाई की और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को सामग्री को हटाने या बहाल करने के लिए 1,089 गुप्त आदेश जारी किये।
फिर, 6 अप्रैल, 2023 को, आईटी नियमों में संशोधन किया गया ताकि केन्द्र सरकार को “नकली, झूठी और भ्रामक” समझी जाने वाली किसी भी डिजिटल सामग्री को हटाने का आदेश देने की शक्ति दी जा सके, जिसे “तथ्य जाँच संशोधन” होने का दावा किया गया था। इस पर भारत के सर्वाेच्च न्यायालय ने 21 मार्च, 2024 को रोक लगा दी है।
आईटी नियम, 2021 के तहत पिछले प्रयासों के अप्रभावी और विफल होने के बाद, केन्द्र सरकार ने 3 नवम्बर, 2023 को प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 का पहला मसौदा जारी किया, जिसमें डिजिटल सेंसरशिप के लिए एक निरंकुश तेज–तर्रार हथियार पेश किया गया। सरल शब्दों में, यदि यह कानून बन जाता है, तो आपके पसन्दीदा यूट्यूब या इंस्टाग्राम क्रिएटर जो राजनीति पर टिप्पणी करते हैं और समाचार रिपोर्ट करते हैं, उन्हें पंजीकरण कराना होगा और सूचना प्रसारण मंत्रालय के विवेक (यानी इशारे) पर काम करना होगा।
इस प्रस्तावित कानून के पहले संस्करण पर ‘द हिन्दू’ में लिखते हुए (“नये माध्यम पर पुरानी सेंसरशिप”, 27 नवम्बर, 2023), इस लेखक ने तर्क दिया कि यह “सरकारी शक्तियों को बढ़ाएगा, पारदर्शिता और जवाबदेही प्रक्रियाओं को कम करेगा और मौलिक अधिकारों को खत्म करेगा।–––”
चुनाव के महीनों के दौरान प्रसारण विधेयक–2023 पर काम रुक गया, जबकि ऑनलाइन क्रिएटर्स ने भाजपा के अभियान सन्देश और उसके 10 साल के कार्यकाल पर अपनी जाँच बढ़ा दी। ऑनलाइन क्रिएटर्स की सक्रियता बढ़ी हुई और उनकी पहुँच में वृद्धि देखी गयी।
4 जून, 2024 को चुनाव परिणामों के बाद अपने पहले सम्बोधन में, प्रधानमंत्री ने विशेष रूप से, “देशवासियों–––प्रभावशाली लोगों और–––राय निर्माताओं–––” का उल्लेख किया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बिना समय गँवाये, सूचना प्रसारण मंत्रालय ने 9 जुलाई को “हितधारकों” के हित में “प्रस्तुति” के लिए एक बैठक बुलाई। 26 जुलाई को एक अन्य मीडिया रिपोर्ट में “हितधारकों” के लिए एक नया मसौदा जारी करने का उल्लेख किया गया, जिसे प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक–2024 का नाम दिया गया।
इस नवीनतम संस्करण को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। न ही उन “हितधारकों” की पूरी सूची है जिनकी इस तक पहुँच है। एमआईबी की बैठकों में भाग लेने वाले कई सूत्रों के अनुसार, प्रसारण विधेयक–2024 को व्यक्तिगत रूप से वॉटरमार्क किया गया है और इसे केवल अण्डरटेकिंग पर हस्ताक्षर करने के बाद ही प्रदान किया जाता है। 10 जनवरी, 2014 की केन्द्र सरकार की अपनी पूर्व–विधायी परामर्श नीति की इन प्रतिगामी प्रथाओं के बावजूद, प्रसारण विधेयक–2024 की एक प्रति मीडिया, राजनीति, नीति और कानून के गलियारों में घूम रही है।
विधेयक की मुख्य बातें
विश्लेषण करने पर, प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक–2024 को सार्वजनिक करने में न केवल “हितधारकों” की बल्कि स्वयं एमआईबी की भी घबराहट समझ में आती है। संवैधानिक सीमाओं को मान्यता देने के बजाय, विधेयक डिजिटल मीडिया पर केन्द्र सरकार की कमान और नियंत्रण को बढ़ाता है। जबकि इसकी छोटी–छोटी बातें लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के लिए बहुत नुकसानदेह हैं, आइए हम तीन मुख्य बातों पर ध्यान दें।
सबसे पहले, विधेयक व्यक्तिगत टिप्पणीकारों को “डिजिटल समाचार प्रसारकों” और सामग्री निर्माताओं को “ओटीटी प्रसारकों” के रूप में वर्गीकृत करने के लिए अपने दायरे का विस्तार करता है। एमआईबी ग्राहकों या उपयोगकर्ताओं के लिए सीमा निर्धारित और बदल सकता है, जिसे पूरा करने पर पंजीकरण की आवश्यकता होती है।
दूसरा, यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए अतिरिक्त अनुपालन बनाता है और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम–2000 से स्वतंत्र एक नयी सुरक्षित बन्दरगाह व्यवस्था स्थापित करता है। आईटी नियम–2021 के अलावा, यह पंजीकरण की माँग कर सकता है, सेंसरशिप लागू कर सकता है और यहाँ तक कि यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म को न केवल समाचार चैनलों के लिए बल्कि निशा मधुलिका जैसे क्रिएटर्स के लिए भी विशेष अनुपालन तैयार करने की आवश्यकता होती है, जिनका नवीनतम वीडियो नारियल के लड्डू की रेसिपी के बारे में है।
यह कानून एमआईबी को बलपूर्वक और पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए डिजाइन किया गया है, जबकि रोजमर्रा की सेंसरशिप को एक निजी तंत्र को अनुपालन के रूप में आउटसोर्स किया जाता है। अन्त में, सेंसरशिप के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया बोझिल है तथा यह सक्रिय अनुपालन, पंजीकरण और निजी स्व–सेंसरशिप की एक प्रणाली भी है जो विफलता या सनक पर, एमआईबी द्वारा लगाये गये सेंसरशिप और जुर्माने पर निर्भर करती है।
यदि यह पर्याप्त नहीं था, तो प्रसारण विधेयक–2024 में अधिकांश प्रावधान पर्याप्त रूप से अस्पष्ट हैं, जो उन्हें मनमाने ढंग से लागू करने की छूट देते हैं।
इसमें जगदीश भगवती द्वारा कहे गये “काफ्काएस्क नियंत्रणों की भूलभुलैया” के सभी लक्षण मौजूद हैं, जो एक अत्यधिक नौकरशाही और राजनीतिक प्रणाली–– एक डिजिटल लाइसेंस राज का निर्माण करता है।
इस पूर्व–पूर्व विनियमन मॉडल का उद्देश्य ‘नोटिस एण्ड टेकडाउन’ दृष्टिकोण के प्रशासनिक बोझ को दूर करना है, जहाँ सरकार प्रत्येक क्रिएटर और ऑनलाइन टेक्स्ट या वीडियो को एक ही बार में किसी पोस्ट को सेंसर करने के लिए संघर्ष करती है। मोदी के तीसरे कार्यकाल की निरन्तरता की मृगतृष्णा में, प्रसारण विधेयक–2024 एक डिजिटल अधिनायकवादी परियोजना है, जो सेंसरशिप लागू करने के लिए सार्वजनिक–निजी क्षेत्र की एक मिलीजुली भूलभुलैया का तानाबाना बुन रही है।
प्रसारण विधेयक–2024 में ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करने की एक डिजिटल अधिनायकवादी परियोजना के सभी लक्षण मौजूद हैं।
(‘द हिन्दू’ से साभार)
लेखक की अन्य रचनाएं/लेख
राजनीति
- 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय के प्रति बिहार सरकार का शत्रुवत व्यवहार –– पुष्पराज 19 Jun, 2023
- इलेक्टोरल बॉण्ड घोटाले पर जानेमाने अर्थशास्त्री डॉक्टर प्रभाकर का सनसनीखेज खुलासा 6 May, 2024
- कोरोना वायरस, सर्विलांस राज और राष्ट्रवादी अलगाव के खतरे 10 Jun, 2020
- जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का तर्कहीन मसौदा 21 Nov, 2021
- डिजिटल कण्टेण्ट निर्माताओं के लिए लाइसेंस राज 13 Sep, 2024
- नया वन कानून: वन संसाधनों की लूट और हिमालय में आपदाओं को न्यौता 17 Nov, 2023
- नये श्रम कानून मजदूरों को ज्यादा अनिश्चित भविष्य में धकेल देंगे 14 Jan, 2021
- बेरोजगार भारत का युग 20 Aug, 2022
- बॉर्डर्स पर किसान और जवान 16 Nov, 2021
- मोदी के शासनकाल में बढ़ती इजारेदारी 14 Jan, 2021
- सत्ता के नशे में चूर भाजपाई कारकूनों ने लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से रौंदा 23 Nov, 2021
- हरियाणा किसान आन्दोलन की समीक्षा 20 Jun, 2021
सामाजिक-सांस्कृतिक
- एक आधुनिक कहानी एकलव्य की 23 Sep, 2020
- किसान आन्दोलन के आह्वान पर मिट्टी सत्याग्रह यात्रा 20 Jun, 2021
- गैर बराबरी की महामारी 20 Aug, 2022
- घोस्ट विलेज : पहाड़ी क्षेत्रों में राज्यप्रेरित पलायन –– मनीषा मीनू 19 Jun, 2023
- दिल्ली के सरकारी स्कूल : नवउदारवाद की प्रयोगशाला 14 Mar, 2019
- पहाड़ में नफरत की खेती –– अखर शेरविन्द 19 Jun, 2023
- सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर राजनीति 14 Dec, 2018
- साम्प्रदायिकता और संस्कृति 20 Aug, 2022
- हमारा जार्ज फ्लायड कहाँ है? 23 Sep, 2020
- ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ पर केन्द्रित ‘कथान्तर’ का विशेषांक 13 Sep, 2024
व्यंग्य
- अगला आधार पाठ्यपुस्तक पुनर्लेखन –– जी सम्पत 19 Jun, 2023
- आजादी को आपने कहीं देखा है!!! 20 Aug, 2022
- इन दिनों कट्टर हो रहा हूँ मैं––– 20 Aug, 2022
- नुसरत जहाँ : फिर तेरी कहानी याद आयी 15 Jul, 2019
- बडे़ कारनामे हैं बाबाओं के 13 Sep, 2024
साहित्य
- अव्यवसायिक अभिनय पर दो निबन्ध –– बर्तोल्त ब्रेख्त 17 Feb, 2023
- औपनिवेशिक सोच के विरुद्ध खड़ी अफ्रीकी कविताएँ 6 May, 2024
- किसान आन्दोलन : समसामयिक परिदृश्य 20 Jun, 2021
- खामोश हो रहे अफगानी सुर 20 Aug, 2022
- जनतांत्रिक समालोचना की जरूरी पहल – कविता का जनपक्ष (पुस्तक समीक्षा) 20 Aug, 2022
- निशरीन जाफरी हुसैन का श्वेता भट्ट को एक पत्र 15 Jul, 2019
- फासीवाद के खतरे : गोरी हिरणी के बहाने एक बहस 13 Sep, 2024
- फैज : अँधेरे के विरुद्ध उजाले की कविता 15 Jul, 2019
- “मैं” और “हम” 14 Dec, 2018
समाचार-विचार
- स्विस बैंक में जमा भारतीय कालेधन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी 20 Aug, 2022
- अगले दशक में विश्व युद्ध की आहट 6 May, 2024
- अफगानिस्तान में तैनात और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की आत्महत्या 14 Jan, 2021
- आरओ जल–फिल्टर कम्पनियों का बढ़ता बाजार 6 May, 2024
- इजराइल–अरब समझौता : डायन और भूत का गठबन्धन 23 Sep, 2020
- उत्तर प्रदेश : लव जेहाद की आड़ में धर्मान्तरण के खिलाफ अध्यादेश 14 Jan, 2021
- उत्तर प्रदेश में मीडिया की घेराबन्दी 13 Apr, 2022
- उनके प्रभु और स्वामी 14 Jan, 2021
- एआई : तकनीकी विकास या आजीविका का विनाश 17 Nov, 2023
- काँवड़ के बहाने ढाबों–ढेलों पर नाम लिखाने का साम्प्रदायिक फरमान 13 Sep, 2024
- किसान आन्दोलन : लीक से हटकर एक विमर्श 14 Jan, 2021
- कोयला खदानों के लिए भारत के सबसे पुराने जंगलों की बलि! 23 Sep, 2020
- कोरोना जाँच और इलाज में निजी लैब–अस्पताल फिसड्डी 10 Jun, 2020
- कोरोना ने सबको रुलाया 20 Jun, 2021
- क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमान होना ही गुनाह है? 23 Sep, 2020
- क्यूबा तुम्हारे आगे घुटने नहीं टेकेगा, बाइडेन 16 Nov, 2021
- खाली जेब, खाली पेट, सर पर कर्ज लेकर मजदूर कहाँ जायें 23 Sep, 2020
- खिलौना व्यापारियों के साथ खिलवाड़ 23 Sep, 2020
- छल से वन अधिकारों का दमन 15 Jul, 2019
- छात्रों को शोध कार्य के साथ आन्दोलन भी करना होगा 19 Jun, 2023
- त्रिपुरा हिंसा की वह घटना जब तस्वीर लेना ही देशद्रोह बन गया! 13 Apr, 2022
- दिल्ली उच्च न्यायलय ने केन्द्र सरकार को केवल पाखण्डी ही नहीं कहा 23 Sep, 2020
- दिल्ली दंगे का सबक 11 Jun, 2020
- देश के बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में 14 Dec, 2018
- न्यूज चैनल : जनता को गुमराह करने का हथियार 14 Dec, 2018
- बच्चों का बचपन और बड़ों की जवानी छीन रहा है मोबाइल 16 Nov, 2021
- बीमारी से मौत या सामाजिक स्वीकार्यता के साथ व्यवस्था द्वारा की गयी हत्या? 13 Sep, 2024
- बुद्धिजीवियों से नफरत क्यों करते हैं दक्षिणपंथी? 15 Jul, 2019
- बैंकों की बिगड़ती हालत 15 Aug, 2018
- बढ़ते विदेशी मरीज, घटते डॉक्टर 15 Oct, 2019
- भारत देश बना कुष्ठ रोग की राजधानी 20 Aug, 2022
- भारत ने पीओके पर किया हमला : एक और फर्जी खबर 14 Jan, 2021
- भीड़ का हमला या संगठित हिंसा? 15 Aug, 2018
- मजदूरों–कर्मचारियों के हितों पर हमले के खिलाफ नये संघर्षों के लिए कमर कस लें! 10 Jun, 2020
- महाराष्ट्र के कपास किसानों की दुर्दशा उन्हीं की जबानी 23 Sep, 2020
- महाराष्ट्र में कर्मचारी भर्ती का ठेका निजी कम्पनियों के हवाले 17 Nov, 2023
- महाराष्ट्र में चार सालों में 12 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की 15 Jul, 2019
- मानव अंगों की तस्करी का घिनौना व्यापार 13 Sep, 2024
- मौत के घाट उतारती जोमैटो की 10 मिनट ‘इंस्टेण्ट डिलीवरी’ योजना 20 Aug, 2022
- यूपीएससी की तैयारी में लगे छात्रों की दुर्दशा, जिम्मेदार कौन? 13 Sep, 2024
- राजस्थान में परमाणु पावर प्लाण्ट का भारी विरोध 13 Sep, 2024
- रेलवे का निजीकरण : आपदा को अवसर में बदलने की कला 23 Sep, 2020
- लोग पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए क्यों लड़ रहे हैं 17 Nov, 2023
- विधायिका में महिला आरक्षण की असलियत 17 Nov, 2023
- वैश्विक लिंग असमानता रिपोर्ट 20 Aug, 2022
- श्रीलंका पर दबाव बनाते पकड़े गये अडानी के “मैनेजर” प्रधानमंत्री जी 20 Aug, 2022
- संस्कार भारती, सेवा भारती––– प्रसार भारती 14 Jan, 2021
- सत्ता–सुख भोगने की कला 15 Oct, 2019
- सरकार द्वारा लक्ष्यद्वीप की जनता की संस्कृति पर हमला और दमन 20 Jun, 2021
- सरकार बहादुर कोरोना आपके लिए अवसर लाया है! 10 Jun, 2020
- सरकार, न्यायपालिका, सेना की आलोचना करना राजद्रोह नहीं 15 Oct, 2019
- सरकारी विभागों में ठेका कर्मियों का उत्पीड़न 15 Aug, 2018
- हम इस फर्जी राष्ट्रवाद के सामने नहीं झुकेंगे 13 Apr, 2022
- हाथरस की भगदड़ में मौत का जिम्मेदार कौन 13 Sep, 2024
- हुकुम, बताओ क्या कहूँ जो आपको चोट न लगे। 13 Apr, 2022
कहानी
- जामुन का पेड़ 8 Feb, 2020
- पानीपत की चैथी लड़ाई 16 Nov, 2021
- माटी वाली 17 Feb, 2023
- समझौता 13 Sep, 2024
विचार-विमर्श
- अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है? 23 Sep, 2020
- अस्तित्व बनाम अस्मिता 14 Mar, 2019
- क्या है जो सभी मेहनतकशों में एक समान है? 23 Sep, 2020
- क्रान्तिकारी विरासत और हमारा समय 13 Sep, 2024
- दिल्ली सरकार की ‘स्कूल्स ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सलेंस’ की योजना : एक रिपोर्ट! 16 Nov, 2021
- धर्म की आड़ 17 Nov, 2023
- पलायन मजा या सजा 20 Aug, 2022
- राजनीति में आँधियाँ और लोकतंत्र 14 Jun, 2019
- लीबिया की सच्चाई छिपाता मीडिया 17 Nov, 2023
- लोकतंत्र के पुरोधाओं ने लोकतंत्र के बारे में क्या कहा था? 23 Sep, 2020
- विकास की निरन्तरता में–– गुरबख्श सिंह मोंगा 19 Jun, 2023
- विश्व चैम्पियनशिप में पदक विजेता महिला पहलवान विनेश फोगाट से बातचीत 19 Jun, 2023
- सरकार और न्यायपालिका : सम्बन्धों की प्रकृति क्या है और इसे कैसे विकसित होना चाहिए 15 Aug, 2018
श्रद्धांजलि
कविता
- अपने लोगों के लिए 6 May, 2024
- कितने और ल्हासा होंगे 23 Sep, 2020
- चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह 23 Sep, 2020
- बच्चे काम पर जा रहे हैं 19 Jun, 2023
अन्तरराष्ट्रीय
- अमरीका बनाम चीन : क्या यह एक नये शीत युद्ध की शुरुआत है 23 Sep, 2020
- इजराइल का क्रिस्टालनाख्त नरसंहार 17 Nov, 2023
- क्या लोकतन्त्र का लबादा ओढ़े अमरीका तानाशाही में बदल गया है? 14 Dec, 2018
- पश्चिम एशिया में निर्णायक मोड़ 15 Aug, 2018
- प्रतिबन्धों का मास्को पर कुछ असर नहीं पड़ा है, जबकि यूरोप 4 सरकारें गँवा चुका है: ओरबान 20 Aug, 2022
- बोलीविया में तख्तापलट : एक परिप्रेक्ष्य 8 Feb, 2020
- भारत–इजराइल साझेदारी को मिली एक वैचारिक कड़ी 15 Oct, 2019
- भोजन, खेती और अफ्रीका : बिल गेट्स को एक खुला खत 17 Feb, 2023
- महामारी के बावजूद 2020 में वैश्विक सामरिक खर्च में भारी उछाल 21 Jun, 2021
- लातिन अमरीका के मूलनिवासियों, अफ्रीकी मूल के लोगों और लातिन अमरीकी संगठनों का आह्वान 10 Jun, 2020
- सउ़दी अरब की साम्राज्यवादी विरासत 16 Nov, 2021
- ‘जल नस्लभेद’ : इजराइल कैसे गाजा पट्टी में पानी को हथियार बनाता है 17 Nov, 2023
राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
- कम कहना ही बहुत ज्यादा है : एडुआर्डो गैलियानो 20 Aug, 2022
- चे ग्वेरा की बेटी अलेदा ग्वेरा का साक्षात्कार 14 Dec, 2018
- फैज अहमद फैज के नजरिये से कश्मीर समस्या का हल 15 Oct, 2019
- भारत के एक बड़े हिस्से में मर्दवादी विचार हावी 15 Jul, 2019
अवर्गीकृत
- एक अकादमिक अवधारणा 20 Aug, 2022
- डीएचएफएल घोटाला : नवउदारवाद की एक और झलक 14 Mar, 2019
- फिदेल कास्त्रो सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के हिमायती 10 Jun, 2020
- बायोमेडिकल रिसर्च 14 Jan, 2021
- भाषा और साहित्य के क्षेत्र में भारत को मुसलमानों का महान स्थायी योगदान 23 Sep, 2020
- सर्वोच्च न्यायलय द्वारा याचिकाकर्ता को दण्डित करना, अन्यायपूर्ण है. यह राज्य पर सवाल उठाने वालों के लिए भयावह संकेत है 20 Aug, 2022
जीवन और कर्म
मीडिया
- मीडिया का असली चेहरा 15 Mar, 2019
फिल्म समीक्षा
- समाज की परतें उघाड़ने वाली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ 15 Jul, 2019