हाल ही में ऑनलाइन फूड डिलीवरी कम्पनी जोमैटो के संस्थापक दीपिन्दर गोयल ने ‘इंस्टेण्ट डिलीवरी’ नामक योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत उन्होंने पहले चली आ रही 30 मिनट में खाना डिलीवर करने वाली सेवा को अब सिर्फ 10 मिनट में पूरा करने की गारण्टी दी है। यह सेवा सुनने में बहुत अच्छी लग सकती है क्योंकि ग्राहक अपना आर्डर जल्दी से जल्दी मँगाना चाहता है। लेकिन इतने कम समय में डिलीवरी करना कोई आसान काम नहीं है। इन गिग कर्मचारियों पर तय समय सीमा में डिलीवरी न करने पर आर्थिक दण्ड और नौकरी तक जाने का दबाव हमेशा बना रहेगा। इस मानसिक दबाव में कितने ही डिलीवरी करने वाले कर्मचारी हर रोज दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं।

आज ऑनलाइन फूड डिलीवरी के कारोबार में जोमैटो, स्विगी, ईस्टामार्ट, डुन्जो, जेप्टो आदि कम्पनियों में अकूत मुनाफा कमाने की होड़ लगी हुई है। इसी होड़ में आगे बढ़ने के लिए जोमैटो ने यह योजना शुरू की है जिसे देखकर अन्य कम्पनियों ने भी इसकी शुरआत कर दी है। रिसर्च फोरम रेडसीर के मुताबिक ‘क्विक कॉमर्स मार्केट’ यानी 10 से 12 मिनट में डिलीवरी करने का चलन तेजी से बढ़ा है। साल 2021 में यह कारोबार 0–3 अरब डॉलर का था जिसका 2025 तक बढ़कर 5 अरब डॉलर तक होने का अनुमान है। लेकिन कारोबारियों के इस मुनाफे की कीमत गिग मजदूर अपनी जान देकर चुका रहे हैं। ये गिग मजदूर रोज–ब–रोज सामाजिक भेदभाव का भी सामना करते हैं। कितनी ही बार इन्हें सही रेटिंग के दबाव में ग्राहकों के अमानवीय व्यवहार को भी सहना पड़ता है। हाल ही में लखनऊ के एक ग्राहक ने डिलीवरी ब्वॉय के सिर्फ दलित होने के कारण उससे खाना लेने से मना कर दिया था। डिलीवरी ब्वॉय ने जब उसे खाना देने की कोशिश की तो वहाँ मौजूद लोगों ने उसके साथ मारपीट तक की और उसका अपमान करते हुए उसके मुँह पर थूक दिया। यह अमानवीय व्यवहार किसी के लिए भी मानसिक तनाव पैदा करने वाला हो सकता है। इसी मानसिक तनाव में सुबह से शाम तक यह काम करते हैं। जिस कारण बड़ी संख्या में इनके दुर्घटनाग्रस्त होने की खबरें आ रही हैं।

डिलीवरी करने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले दोपहिया वाहन भी इन डिलीवरी ब्वॉयज के अपने निजी होते हैं। इनमें आधे से ज्यादा वाहन डिलीवरी करने की स्थिति में नहीं हैं। कम्पनियों ने ना तो अच्छे वाहन उपलब्ध कराये और न ही इन गिग वर्करों के लिए जीवन बीमा कराया। दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद इन्हें अपने पैसों से ही इलाज करवाना पड़ता है।

भारत में भयंकर बेरोजगारी के कारण नौजवान इन कम्पनियों में बेहद खराब शर्तों पर काम करने को मजबूर हो रहे हैं। इन गिग कर्मचारियों पर कोई श्रम कानून भी लागू नहीं होता, जिससे यह अपने ऊपर होने वाले शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी नहीं कर सकते हैं। इन्हीं चीजों का फायदा उठाकर एक तरफ कम्पनी करोड़ों की कमाई कर रही है, वहीं दूसरी ओर अपनी जान पर खेलकर काम करने वाले कर्मचारियों को सिर्फ 8–10 हजार रुपये का मासिक वेतन दिया जा रहा है। 

–– गौरव कुमार