बडे़ कारनामे हैं बाबाओं के
व्यंग्य–– प्रमोद झा
बाबाई अपकर्म बल्कि यह कहिये कि बाबाओं की वास्निक कारगुजारियाँ समाज और देश में बाबा अपसंस्कृति भी उस कुत्सित राजनीति की मानिन्द है जिसके लपेटे में अब तक अनेकानेक स्त्रियाँ आ चुकी हैं। पहले के दौर में भी जो नामचीन बाबा और तथाकथित प्रवचनकार थे उनके चंगुल में भोले–भाले व्यक्ति फँसते थे और आज भी बडे़ पांखडी, लम्पट और ढपोरशंखी बाबाओं के चालाक जाल में लोग फँस रहे हैं। ताजा वारदात मध्यप्रदेश के रायसेन जनपद में मिरची बाबा की दरिन्दगी का है। सन्तान सुख देने के नाम पर इस नराधम ने जबरन नशा देकर एक औरत के साथ बलात्कार किया। पुलिस ने इस बाबा को अपनी गिरफ्त में ले लिया।
ध्यातव्य है कि आठवें दशक में भी बाल्टी बाबा बहुत बदनाम हुए थे जो सीधी औरतों को कथित अभिमन्त्रित जल बाल्टी में डाल देता था और स्नान के समय बाबा यौन शोषण करता था। 1988 में एक और इच्छाधारी बाबा प्रकट हुआ भीमानन्द। यह दिल्ली में सिक्योरिटी गार्ड का काम करता था और मीठी बातों से बेरोजगार युवाओं को नौकरी दिलाने के नाम पर फाँसता था। लाखों बटोरने के बाद दिल्ली के बदरपुर इलाके में अपना आश्रम खोला। साँपों का कारनामा दिखाने वाला बाबा दावा करते हुए कहता था कि वह किसी भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। भगवान का वरदान उसे प्राप्त है। यही नहीं, वह जवान लड़कियों को भी अपने रैकेट में लाने लगा।
भीमानन्द मूल रूप से यूपी के चित्रकूट क्षेत्र का है, जिसका अब चित्रकूट ही नहीं अन्य जगह भी आश्रम हैं। हैरत भरी बात तो यह है कि बदरपुर आश्रम में यह अय्याश बाबा 600 लड़कियों का रैकेट चलाने के आरोप में फँसा। जेल की हवा खाने के बाद फिर भीमानन्द सक्रिय हो गया। आश्रम अब भी चल रहे हैं और यह नराधम करोड़ों में खेल रहा है।
ऐसे लम्पट बाबाओं के बहुतेरे कारनामे यही सही से इंगित करते हैं कि चाँद पर विज्ञानियों के चढने और देश में उच्चतर टेक्नोलॉजी विकसित होने के बाद भी अन्धश्रद्धा, आस्था और विश्वास अपना अनुचित प्रभाव दिखाता रहता है। संकीर्णताओं के बीच धर्मभीरूता भी कोढ़ में खाज की तरह है। यहाँ सच पूछिए तो कोई यथार्थवादी सामाजिक चिन्तनधारा और मन्थनशीलता काम नहीं करती है।
कोई वैज्ञानिक विचारधारा भी व्यर्थ साबित होती है और उजाले में भी देवी देवताओं के नाम बडे़ जयकारे लगते हैं, भक्तगण गणेश जी के दूध पीने और बजरंग बली की देह में पसीने की धारियाँ देख प्रमुदित मन से मन्दिरों में चढ़ावा चढ़ाते हैं। इन्हीं भक्त समुदाय में से कुछ ऐसे अन्धभक्त निकलकर बाबा आश्रमों में न केवल मत्था टेकते हैं, प्रत्युत बाबा के वचनों के अनुकूल अपने आचार विचार प्रस्तुत कर आडम्बरी जाल में फँस जाते हैं। मीठे वचनों और सरस हथकण्डों से सम्मोहित होने वाली विशेषत: स्त्रियाँ अपने अस्तित्व के साथ अनर्थ कर बैठती हैं। केवल भोली–भाली औरतें ही नहीं पढ़े–लिखे किन्तु अन्धविश्वास से ओतप्रोत पुरुष भी बाबा की जय–जयकार करने लगते हैं।
खास बात तो यह कि कार्य व्यापार में असफल, परीक्षा और विवाह आदि की सफलता और तरक्की चाहने वाले लोग भी चालाक बाबा के बहकावे में आकर तबाह हो जाते हैं। बाबाओं के इतिहास को खंगालने पर पहले के दशकों में मशहूर हुए धीरेन्द्र और चन्द्रा स्वामी सरीखे बाबाओं के जाल में राजनीतिक लोग भी आये थे। चुनाव जीतने और भ्रष्ट हस्तलाघवी तरीकों के बारे में बाबा के परम आशीर्वाद और रामबाण जैसे मुखारविन्द से निकले सदवचनों को नेताओं ने डूबते हुए को तिनके का सहारा ही समझ लिया था। आपराधिक तत्वों और दुराचारियों के अलावा मुकदमेबाजी में फँसे लोगों ने बाबाई दामन थामने की कोशिश की। इनमें से जिन लोगों का काम नहीं बना उन लोगों ने बाबा सेवा पर हाथ खडे़ कर लिये। मोहभंग कितनों का हुआ। लेने के देने पड़ गये।
बाबा के कारनामे बिना ढूँढे हजार हैं। दशकों बाद फिर भक्त गणों को अपनी वास्निक कारगुजारियों से शर्मसार करने वाला बाबा आशाराम बापू अखबारी सुर्खियों में आ गया। संगीन आरोप यह चस्पा हुआ कि प्रवचन के दौरान ही यह बाबा स्त्री भक्तिनों को चुन–चुन कर एकान्त में आकर मिलने का संकेत छोड़ता था। कई औरतों के साथ व्यभिचार किया और अन्तत: बाबा कानून की मजबूत गिरफ्त में आया। बहुत बडा़ साम्राज्य खड़ा करने वाला राम रहीम की अय्याशी और पापों का घडा़ भी फूटा जबकि राजनेताओं ने उसकी अपार सम्पति को देखते हुए संरक्षण दिया। ऐसे और भी पाखण्डी बाबा और कथावाचक आज सियासी संरक्षण के बल पर अपनी ज्ञान गंगा बहा रहे हैं। बडी़ वाली चालाकी, घृण्य राजनीति और धन की बारिश ऐसी तिकड़ी है जो आज समाज और देश में बाबागिरी को आँख मूँदकर प्रश्रय दे रही है।
सियासी पैरोकारी और प्रभाव के चलते रामदेव बाबा ने जड़ी बूटियों, औषधियों को बेच–बेच कर फैक्ट्री खडी़ की और अच्छा खासा प्रभुत्व जमाया है। बहुत सारे उत्पादों पर अनेक बार सवालिया निशान लगने के बावजूद इस बाबा के आलीशान आश्रम और फैक्ट्री आदि पर छापे नहीं पड़े हैं। बाबा आज की तारीख में अरबपति है। सियासी ताकत जो न कर दे थोडा़।
और भी लाखों बटोरने वाले कथावाचक और प्रवचनकारों की जमात है जिसने शानदार आश्रमों और गौशाला आदि के प्रदर्शनपरक तरीके अपनाते हुए भक्त मण्डलियों को रिझाया है। कोई कथावाचक बीस लाख तो कोई पन्द्रह लाख रुपये ले रहा है। शहरी यजमान और स्पान्सर इस ताक में लगे रहते हैं कि मोरारजी बापू का नम्बर उन्हीं के शहर में लगे। बापू ब्रिटेन और अमरीका के शहरों में रामकथा बाँचते हैं। छोटे, मंझोले दरजे वाले शहरों में वह आते ही नहीं। कथावाचक देवकीनदंन, जया किशोरी और अनिरुद्ध आचार्य के अलावा और भी ऐसे हैं जो मौजूदा डिजिटल दौर में कथा कम उपदेश और सलाह ही अधिक दे रहे हैं। इनकी भी सदवचनों की फीस लाखों में है। फेसबुक और यूट्यूब पर भी इनके बहुतेरे वीडियो वायरल हैं।
अनिरुद्ध आचार्य अपने भक्तों को बताते हैं कि द्रोपदी अति सुन्दर थी इसलिए व्यभिचारी दु:शासन और दुर्याेधन ने उस पर आक्रमण किया। सीता भी सुन्दर थी, सो रावण ने अपहरण किया। इसी तरह के भ्रामक और अनर्गल बाते करते हुए ऐसे प्रवचनकार भक्तों को रिझाते हैं। अन्धविश्वास और संकीर्णताओं में फँसे हुए भक्त सच्चाई को सही से समझ नहीं पाते।
इन भक्तों की स्थिति बच्चों जैसी है। एक प्रवचनकार ने कह दिया कि बाथरूम में नंगा होकर नहीं नहाना चाहिए, जल देवता रुष्ट होते हैं। इस प्रवचनकार को पत्रकारों ने कोसा और कहा कि नवजात शिशु अनावृत्त ही होता है। सीता और द्रौपदी के सौन्दर्य को लेकर भी प्रवचनकारों की खासी निन्दा की गयी। दरअसल, कथावाचक और प्रवचनकारों के अनुचित उपदेश पर कोई पाबन्दी तो लगती नहीं, अत: इनकी धार्मिक दुकानदारी बेरोक–टोक चल रही है। जन कल्याण और कल्याणकारी चेतना ही सही मायने में सतह से गायब है। भक्तों के पैसों से अपने लिए सुख–सुविधाओं को जुटाने वाले ऐसे कथावाचक भीतर से संवेदनशील इतने नहीं कि वे गरीब और साधनहीन बच्चों के लिए स्कूल खुलवा दें या धर्मशाला ही बनवा दें। कथनी और करनी में आत्यन्तिक असांमन्जस्य दुखदायी है। धार्मिक धारणा और गहरी चेतना के नहीं फैलने के जो भी ऐसे कारक हैं उनकी सही से पड़ताल और निरीक्षण की बातें ही बेमानी हैं। व्यभिचारी बाबा और अकल्याणकारी कथावाचकों की भोगवादी सोच और विचारों पर अंकुश लगाने की जरूरत है।
आज लूट संस्कृति अबाध चल रही है उसकी ढेरों कहानियाँ हैं। घर परिवारों में लूट का शिकार होने वाली स्त्रियों का एक दुखान्त पक्ष है तो पेशेवर बाबाओं की भी बेहद अवांछित गतिविधियों की रोकथाम के लिए पुलिस और कानून की ताकतें भी तभी वास्तविक धरातल पर उभरती हैं जब भक्त लाखों रुपये लुटा चुके होते हैं। ये भी उस शायर की एक मिसरे की तरह ही है –– सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या।
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