उत्तर प्रदेश के हाथरस स्थित सिकन्दराऊ थाना क्षेत्र के फुलरई गाँव में आयोजित भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ से 121 लोगों की मौत हो गयी, जिसके बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। मृतकों में ज्यादातर महिलाएँ और बच्चे थे। हालाँकि इस तरह के आयोजन में होने वाला यह पहला हादसा नहीं है। धार्मिक स्थलों पर पहले भी ऐसे हादसे होते रहे हैं जिसके बाद जाँच का सिलसिला शुरू होता है, कार्रवाई होती है लेकिन कोई सबक नहीं लिया जाता।

25 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा में मन्दार देवी के मंदिर में सालाना तीर्थ यात्रा के दौरान मची भगदड़ में 340 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। 3 अक्टूबर 2014 को पटना के गाँधी मैदान में दशहरा समारोह की भगदड़ में 32 लोगों की जान गयी थी। 4 मार्च 2010 को यूपी के प्रतापगढ़ जिले में स्थित मनगढ़ में कृपालु महाराज के राम जानकी मन्दिर में 63 लोगों की जान चली गयी थी। पटना में गंगा तट पर 19 नवम्बर 2012 को छठ पूजा के दौरान भगदड़ में 20 लोगों की जान गयी थी। 8 नवम्बर 2011 में हरिद्वार में गंगा किनारे हर की पौड़ी पर मची भगदड़ में 20 लोगों की जान चली गयी थी। ऐसी घटनाएँ रुकने का नाम नहीं ले रही हैं और अब उत्तर प्रदेश के हाथरस में ऐसी ही घटना घटी है।

हाथरस में सत्संग करने वाले भोले बाबा का असली नाम सूरजपाल है। वह उत्तर प्रदेश पुलिस में लोकल इंटेलीजेंस यूनिट (एलआईयू) में कार्यरत रह चुका है। नौकरी के दौरान उस पर यौन शोषण का आरोप लगा। उसे गिरफ्तार कर जेल में डाला गया, जिसके बाद उसकी नौकरी चली गयी। ऐसा नहीं है कि इस बाबा पर सिर्फ यही आरोप है, बल्कि उस पर पाँच मुकदमे दर्ज हो चुके हैं।

इस बाबा को जानने वाले बताते हैं कि जेल से बाहर आने के बाद उसने यह अन्धविश्वास फैलाना शुरू किया कि उसे भगवान का साक्षात्कार हो गया है और उनके आशीर्वाद से लोगों के दुख दूर हो सकते हैं। यह बाबा पारम्परिक बाबाओं से अलग है, वह भगवा वस्त्र नहीं पहनता और न ही बाल और दाढ़ी रखता है, बल्कि वह हमेशा सफेद सूट में ही नजर आता है और यही उसका यूनीक सेलिंग प्वाइंट (यूएसपी) भी है।

दूसरे बाबाओं की तरह ही इसके भक्तों में गरीब और कम पढ़े–लिखे लोगों की तादाद ज्यादा है। बाबा के घर के बाहर एक हैंडपम्प है, जिसके पानी को वह चमत्कारिक बताता है और लोग इस हैंडपम्प का पानी पीने दूर–दूर से आते हैं। इसके बाद बाबा ने जहाँ–जहाँ आश्रम बनाये या जहाँ–जहाँ भी उसका ठिकाना बनाता है, वहाँ हैंडपम्प जरूर लगा लेता है। ऐसे बाबाओं की देश में कोई कमी नहीं है जो अन्धविश्वास फैला कर अपना धन्धा चला रहे हैं और इनको शासन–प्रशासन का पूरा समर्थन है, क्योंकि इनके पास एक बड़ा वोट बैंक होता है।

भारत की अर्थव्यवस्था में ऐसे बाबाओं के बढ़ने और फलने–फूलने के लिए उपर्युक्त जमीन मौजूद रही है। जनविरोधी सरकारों द्वारा धार्मिक उपदेश देने वाले ऐसे बाबाओं को बढ़ावा दिया गया। इसका असर यह हुआ कि देश के कोने–कोने में बाबा, सन्त और उपदेशकों की दुकानें कुकुरमुत्ते की तरह उग आयीं।

भारत के गरीब लोग इन ढोंगियों के अन्धविश्वास के जाल में फँस जाते हैं। देश के शासक वर्ग ने भी इन धार्मिक कूपमण्डूकताओं को बढ़ावा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी भाजपा और प्रधानमंत्री तक ऐसे बाबाओं का समर्थन करते रहे हैं। हरियाणा के अपराधी और सजायाफ्ता बाबा राम रहीम को इतनी बार पैरोल पर जेल से बाहर निकाला गया कि लोग कहने लगे कि यह बाबा जेल में तो टूर करने जाता है।

जब पूरा शासन–प्रशासन और राजनेता इन बाबाओं और ऐसी घटनाओं के न केवल मूकदर्शक हैं, बल्कि इन्हें बढ़ावा देने वाले हैं तब इनसे सुधार की उम्मीद पालना बेमानी है। हालात को बदलने के लिए समाज द्वारा आत्म–चिन्तन जरूरी है। इसके साथ ही एक ऐसे व्यापक कार्यक्रम की जरूरत है, जो समाज को एक नयी दिशा दे सके और समाज का पुनर्निर्माण कर सके जिसकी बुनियाद विज्ञान और वैज्ञानिक नजरिये पर टिकी हो। वरना ऐसे बाबा पैदा होते रहेंगे और ऐसे हादसे होते रहेंगे।

–– मास्टर संजय