अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है?
विचार-विमर्श–– इलीनोर रसेल, मार्टिन पार्कर
जून 1348 में, इग्लैण्ड में लोगों ने रहस्यमयी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में शिकायत कीं। उन्होंने सिरदर्द, बदन दर्द, और जी मिचलाने जैसे हलके और अस्पष्ट बीमारी के लक्षणों को महसूस किया। इसके बाद दर्दनाक काले रंग की गाँठ कमर और बगल में निकल आयी, जिसकी वजह से इस बीमारी का नाम पड़ा–– ब्यूबोनिक प्लेग। इसके अन्तिम चरण में तेज बुखार आता था और फिर मरीज की मौत हो जाती थी।
मध्य एशिया में पैदा होने वाला ब्यूबोनिक प्लेग सैनिकों और राहगीरों के जरिये काले सागर के बन्दरगाहों पर आया। येरसिना पेस्टिस, जीवाणु चूहों पर रहने वाली मक्खियों से फैला जो इस प्लेग की वजह होता है। भूमध्य सागर की अत्यधिक व्यावसायिक दुनिया ने व्यापारी जहाजों के जरिये पहले इटली और फिर पूरे यूरोप में प्लेग के तेजी से फैलने को सुनिश्चित किया। प्लेग ने यूरोप और आसपास के पूर्वी इलाके की एक तिहाई से लेकर आधी आबादी को मौत के मुँह में धकेल दिया।
इतनी बड़ी संख्या में मौत के साथ आर्थिक तबाही भी आयी। एक तिहाई श्रमशक्ति के मर जाने से फसलों की कटाई नहीं हो सकी और जन समुदाय बिखर गये। इग्लैण्ड (टस्कैनी और अन्य इलाकों के भी) के दस गाँवों में से एक लुप्त हो गया था और फिर कभी दोबारा स्थापित नहीं हुआ। मकान ढह गये, घास और मिट्टी ने उन्हें ढक लिया। केवल चर्च बचे रह गये। यदि आप कभी किसी वीरान इलाके में एक चर्च या चैपल देखते हैं, तो शायद आप यूरोप के लुप्त हुए गाँव में से किसी एक के अन्तिम अवशेष को देख रहे होते हैं।
प्लेग जैसी काली मौत के इस दर्दनाक अनुभव, जिसने सम्भवत: इसकी चपेट में आने वालों में से अस्सी प्रतिशत को मार दिया, इस घटना ने बहुत लोगों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया कि आखिर वे जिन्दा कैसे बच गये। एबरडीन में, कालक्रम का लेखा जोखा रखने वाले विद्वान जॉन ऑफ फार्डन ने लिखा कि इस बीमारी ने हर जगह विपत्ति ढा दी, लेकिन विशेष रूप से मध्यम और निम्न वर्ग के ऊपर बहुत अधिक विपत्ति आन पड़ीे। इसने ऐसी दहशत पैदा की कि बच्चे अपने मरने वाले माता–पिता से और माता–पिता अपने मरने वाले बच्चों से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाये। बल्कि छूत के डर से ऐसे भागे जैसे कुष्ठरोग या साँप के डर से भागते हैं।
लगभग यही पंक्तियाँ आज कोविड–19 की महामारी के लिए भी लिखी जा सकती हैं।
हालाँकि कोविड–19 से मृत्यु दर काली मौत की तुलना में बहुत कम है। वह तो आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के वैश्विक और अत्यधिक एकीकृत प्रकृति के चलते आर्थिक नुकसान भयावह हो रहे हैं। आज की आबादी भी बहुत ज्यादा घुमन्तू है जिसके चलते कोरोना वायरस को फैलने में प्लेग की तरह सालों नहीं लगे, बल्कि कुछ महीनों में वह दुनिया भर में फैल गया।
काली मौत की वजह से बहुत कम समय के लिए आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा, जबकि लम्बी अवधि के लिए परिणाम कम स्पष्ट थे। जब तमाम भूदास और मुक्त किसानों की मौत हो गयी तो प्लेग के विस्फोट से पहले कई शताब्दियों की जनसंख्या वृद्धि ने जिस श्रम अधिशेष को पैदा किया था, वह अचानक श्रम की कमी में बदल गया था। इतिहासकारों का मत है कि इस श्रम शक्ति की कमी ने महामारी से बच गये किसानों को बेहतर वेतन की माँग करने या रोजगार की तलाश करने का अवसर दिया। इसके चलते महामारी के बाद सम्पत्ति का बँटवारा अधिक समानतापूर्ण हो गया सरकार के प्रतिरोध के बावजूद भूदास प्रथा और सामन्ती व्यवस्था अन्तिम तौर पर खुद ही क्षरित हो गयी।
लेकिन काली मौत के परिणामस्वरूप एक और काम हुआ जिसे अक्सर कम करके आँका जाता है, धनी उद्यमियों और व्यापार के साथ सरकार के रिश्तों का उदय। यह स्पष्ट है कि 1350 से 1500 के बीच हुए सारे विकास को काली मौत के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता। लेकिन यह उन तमाम पहलुओं में से एक था जिसने नये तरह के उद्यम सम्बन्धी व्यवहार को जन्म दिया। हालाँकि काली मौत की वजह से यूरोप की सबसे बड़ी कम्पनियों को कुछ दिनों के लिए नुकसान हुआ, लेकिन दूरगामी तौर पर उन्होंने अपनी सम्पत्ति को संकेन्द्रित कर लिया, बाजार में हिस्सेदारी बढ़ा ली और सरकार पर प्रभाव भी बढ़ा लिया। दुनिया भर के कई देशों में मौजूदा हालात के साथ इसकी समानताएँ हैं। छोटी कम्पनियाँ खुद को तबाह होने से रोकने के लिए सरकारी सहायता पर निर्भर रहती हैं, जबकि कई दूसरी–– मुख्य रूप से होम डिलीवरी में शामिल बड़ी कम्पनियाँ नयी व्यापारिक दशाओं से बढ़िया मुनाफा कमा रही हैं।
ठीक–ठीक तुलना करने के लिए चैदहवीं शताब्दी के मध्य की अर्थव्यवस्था आधुनिक बाजार के आकार, गति और अन्तरसम्बन्धों से कोसों दूर थीं। लेकिन हम काली मौत के समय की तुलना में निश्चित रूप से कुछ समानताएँ देख सकते हैं–– काली मौत ने राज्य की ताकत बढ़ायी और मुठ्ठीभर बड़े निगमों का प्रमुख बाजारों पर वर्चस्व बढ़ गया।
काली मौत का कारोबार
यूरोप की आबादी के कम से कम एक तिहाई के अचानक नुकसान हो जाने से ऐसा नहीं हुआ कि धन सम्पदा का बचे हुए लोगों में पुनर्वितरण हो गया हो। इसके बजाय तबाही की प्रतिक्रया में लोगों ने पैसे अपने परिवार के पास ही रखे। विल्स सबसे विशिष्ट और धनी व्यापारी बन गये। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी पैतृक सम्पत्ति उनकी मौत के बाद बँट न जाये, उन्होंने अपनी सम्पत्ति के एक तिहाई को दान में देने की परम्परा को बदलने के लिए जान लगा दी। कम से कम हाथों में संकेन्द्रित पूँजी का लाभ उनके वंशजों ने लगातार उठाया।
उसी समय किसानों के लिए बेहतर मजदूरी की शर्तों की वजह से सामन्तवाद के पतन और वेतन आधारित अर्थव्यवस्था के उदय ने शहरी कुलीनों को लाभान्वित किया। किसी की दयालुता (जैसे जलावन की लकड़ी जुटाने का अधिकार देने) के बजाय नगद मजदूरी भुगतान किया जाने लगा। जिसका मतलब था किसानों के पास शहरों में खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा हो गया।
धन के इस संकेन्द्रण ने पहले से चले आ रहे तौर–तरीके को बढ़ावा दिया, यानी उन व्यापारी उद्यमियों के उदय को प्रोत्साहित किया जिन्होंने वस्तुओं के व्यापार और अपने उत्पादन को बड़े पैमाने पर पूँजी के साथ जोड़ दिया। उदाहरण के लिए रेशम, जिसे कभी एशिया और बैजन्तिया (इस्ताम्बुल) से आयात किया जाता था, अब यूरोप में उत्पादित किया जा रहा था। इटली के धनी व्यापारियों ने रेशम और वस्त्र की कार्यशालाएँ खोलना शुरू कर दिया।
काली मौत की वजह से हुई श्रम की भरपाई के लिए इन उद्यमियों ने विशेष रूप से स्थिति सम्भाल ली। स्वतंत्र बुनकर के बजाय, जिनके पास पूँजी की कमी थी, और अभिजात वर्ग के बजाय जिनका धन जमीन के रूप में बन्धक था, शहर के उद्यमी नयी तकनीक में निवेश करने के लिए अपनी जमा पूँजी का उपयोग करने में सक्षम थे। इस तरह से मशीनों से श्रम बल की कमी के नुकसान की भरपाई की गयी।
दक्षिणी जर्मनी में, जो चैदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यूरोप का सबसे अधिक व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया था, वेलसर जैसी कम्पनियों (जो बाद में वेनेजुएला को एक निजी उपनिवेश के तौर पर चलाती थी) ने बढ़ते पटसन को अपने मालिकाने वाले करघों से जोड़ दिया, जिन पर श्रमिक पटसन से कपडे़ की चादर बनाते थे, जिसे बाद में वेल्सर कम्पनी बेच देती थी। काली मौत के बाद के दौर में चैदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी में संसाधनों के संकेन्द्रण का रुझान था–– पूँजी, कौशल और इंफ्रास्ट्रक्चर का बहुत थोड़ी सी बड़ी कम्पनियों के हाथ में संकेन्द्रण होता जा रहा था।
अमेजन का दौर
प्लेग महामारी के समय से आज के दौर की कुछ स्पष्ट समानताएँ हैं। कुछ बड़े संगठनों ने कोविड–19 की वजह से पैदा हुए अवसरों की ओर कदम बढ़ाया है। दुनिया भर के कई देशों में छोटे रेस्तराँ, पब और दुकानों का पूरा तंत्र अचानक ठप हो गया है। भोजन, सामान्य खुदरा और मनोरंजन सब के लिए बाजार ऑनलाइन हो गया है, और नकद लेन–देन ज्यादातर गायब हो गया है।
रेस्तराँ द्वारा उपलब्ध करायी जाने वाली कैलोरी की मात्रा को सुपर मार्केट के माध्यम वितरित किया जाना था, इस आपूर्ति का अधिकांश हिस्सा अब सुपरमार्केट चेन द्वारा जोड़ लिया गया है। उनके पास बहुत अधिक सम्पत्ति और बहुत सारे कर्मचारी हैं। उनकी मानव संसाधन क्षमता भी ज्यादा है, भर्ती करने की क्षमता भी ज्यादा है और तमाम बेरोजगार लोग हैं जो अब नौकरी चाहते हैं। उनके पास गोदाम, ट्रक और चुस्त–दुरुस्त रसद क्षमता भी है।
बड़ी विजेता कम्पनियाँ ऑनलाइन रिटेल की दूसरी विराट खिलाड़ी हैं–– जैसे कि अमेजन जो अमरीका, भारत और कई यूरोपीय देशों में “प्राइम पेण्ट्री“ सेवा चलाता है। वर्षों से सड़क किनारे की दुकानें इण्टरनेट बाजार से कीमत और सुविधा सम्बन्धी प्रतियोगिता से परेशान हैं और उनके दिवालिया होने की लगातार खबर है। अब ज्यादातर “गैर जरूरी“ खुदरा बाजार बन्द हो गये हैं और हमारी जरूरतों की आपूर्ति अमेजन, ईबे, आरगोस, स्क्रू फिक्स और अन्य ऑनलाइन कम्पनियों के जरिये होने लगी। ऑनलाइन शॉपिंग में स्पष्ट रूप से बढ़ोत्तरी हुई है और खुदरा विश्लेषक अचरज में हैं कि क्या यह आभासी दुनिया और फिर से बड़े निगमों के प्रभुत्व की ओर एक निर्णायक कदम है।
अपने पार्सल के लिए घर पर इन्तजार करते समय हमारा ध्यान भटकाने के लिए दिन–रात सक्रिय मनोरंजन उद्योग है–– यह बाजार का वह क्षेत्र है जिसमें नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, डिजनी और दूसरे बड़े निगमों का वर्चस्व है। अन्य ऑनलाइन दिग्गज जैसे कि गूगल (जो यूट्यूब का मालिक है), फेसबुक (जो इंस्टाग्राम का मालिक है) और ट्विटर दूसरे प्लेटफार्म उपलब्ध कराकर ऑनलाइन ट्रैफिक को नियंत्रित करते हैं।
इस पूरी श्रृंखला की अन्तिम कड़ी खुद वितरण कम्पनियाँ हैं–– जिनमें यूपीएस, फेडेक्स, अमेजन लॉजिस्टिक्स (फिर वही) के साथ–साथ खाना वितरण करने वाली जस्ट ईट और डेलीवरू शामिल हैं। उनके व्यवसाय मॉडल अलग–अलग हैं पर उनके प्लेटफॉर्म अब सभी प्रकार के उत्पादों पर हावी हैं, चाहे आपका नया तोशिबा ब्राण्डेड, अमेजन फायर टीवी या आपका भरवा सामग्री वाला पिज्जा हट (यम! ब्राण्ड्स की सहायक कम्पनी जो केएफसी, टेको बेल और अन्य कम्पनियों की भी मालिक है)।
निगमों के वर्चस्व के दूसरे रुझान राज्य–समर्थित लेन–देन से सम्पर्क रहित भुगतान सेवाओं की तरफ बढ़ रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से ऑनलाइन बाजारीकरण का स्वाभाविक परिणाम है, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि पैसा बड़े निगमों से होते हुए स्थानान्तरित हो रहा है, इसके लिए वे मुनाफे में अपना हिस्सा लेते हैं। वीजा और मास्टरकार्ड सबसे बड़े खिलाड़ी हैं। लेकिन एप्पल पे, पे–पाल, और अमेजन पे (फिर वही) सभी केे लेन–देन में वृद्धि हो रही है। क्योंकि लोगों के पर्स (ऑनलाइन) में फिजूल नकदी पड़ी रहती है। और यदि नकद लेनदेन महामारी फैलाने वाला कारक माना जाता हो तो खुदरा विक्रेता नकद लेनदेन नहीं करेंगे और ग्राहक भी इसे इस्तेमाल नहीं करेंगे।
वास्तव में काली मौत की तरह कोविड–19 से भी छोटे व्यवसाय तमाम क्षेत्रों में बुरी तरह पिट गये हैं, जिसके परिणामस्वरुप बड़ी कम्पनियों की बाजार में हिस्सेदारी बढ़ रही है। यहाँ तक कि इस तरह की बातें लिखने के लिए भी घर से काम करने वाले स्काइप (माइक्रोसॉफ्ट के स्वामित्व में) जूम और ब्लूजीन पर काम कर रहे हैं, साथ ही ईमेल क्लाइण्ट और लैपटॉप का इस्तेमाल कर रहे हैं जो महज कुछ एक वैश्विक संस्थानों द्वारा बनाये गये हैं। अमीर लोग और अमीर हो रहे हैं जबकि आम लोग अपनी नौकरी से हाथ धो रहे हैं। अमेजन के सीईओ जेफ बेजोस ने इस वर्ष की शुरुआत से जून तक अपनी सम्पत्ति में पच्चीस अरब डॉलर की बढ़ोत्तरी कर ली है।
लेकिन कहानी यहीं पर खत्म नहीं हो जाती। कोरोना वायरस के चलते एक और बड़ा रुझान राज्य की शक्ति का मजबूत होना है।
महामारी का शासन
राज्य के स्तर पर काली मौत ने केन्द्रीकरण को बढ़ाया, टैक्स में बढ़ोत्तरी की और बड़ी कम्पनियों पर सरकार की निर्भरता के रुझान में बढ़ोत्तरी की।
इग्लैण्ड में जमीन की घटती कीमत और फलस्वरूप राजस्व में गिरावट ने शासक जो देश के सबसे बड़े भूस्वामी थे, उनको 1351 के अध्यादेश के जरिये प्लेग से पहले के स्तर पर मजदूरी और जनता पर अतिरिक्त कर लगाने के लिए प्रेरित किया। पहले सरकार से उम्मीद थी कि वह केवल युद्ध जैसे असाधारण खर्चों के लिए कर लगाएगी। प्लेग के बाद के करों ने अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप की एक महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम की।
इन सरकारी प्रयासों ने लोगों के रोजमर्रा के जीवन में शासक की दखलंदाजी में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी की। प्लेग के बाद के प्रकोपों में, जो हर बीस साल बाद होने लगे, कर्फ्यू, यात्रा प्रतिबन्ध और क्वेरेन्टीन के जरिये आवाजाही को नियंत्रित किया जाने लगा। यह राज्य शक्ति पुराने इलाकाई आधार पर बँटे नौकरशाही अधिकारों की जगह सामान्य केन्द्रीकरण स्थापित करने का हिस्सा था। प्लेग से पहले प्रशासनिक सेवाओं में लगे तमाम लोग–– जैसे कवि ज्योफ्रे चैसर, वह अंग्रेज व्यापारी परिवार से आये थे, जिनमें से कुछ एक ने महत्त्वपूर्ण राजनीतिक ताकत हासिल की।
इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण डे ला पोल परिवार था, जो दो पीढ़ियों में भेड़ के ऊन के व्यापारी से सुफोल्क के झुमके के व्यापार तक पहुँच गया। काली मौत के बाद अन्तरराष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय व्यवस्था के अस्थायी पतन के साथ ही रिचर्ड डी ला पोल राजा के लिए सबसे बड़ा ऋणदाता और रिचर्ड द्वितीय का अन्तरंग सम्बन्धी बन गया। जब चैदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त में इतालवी बड़ी कम्पनियाँ फिर से उभरीं तो उन्हें राजा की इन व्यापारी कम्पनियों पर बढ़ती निर्भरता का भी फायदा मिला। इसका सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण है मेडिसी परिवार, जिसने अन्तत: फ्लोरेंस पर शासन किया।
व्यापारियों ने जमीन खरीदकर, जिसकी कीमत काली मौत के बाद गिर गयी थी, राजनीतिक प्रभाव हासिल किये। जमीन के मालिकाने ने व्यापारियों को जमीन पर आधारित शरीफजादों में या कहिये अभिजात वर्ग में शामिल होने का रास्ता साफ कर दिया। व्यापारियों ने अपने बच्चों की शादी धन की कमी से जूझ रहे राजा–महाराजाओं के बेटों और बेटियों से की। अपनी नयी हैसियत के हिसाब से और प्रभावशाली सगे–सम्बन्धियों की मदद से शहरी अभिजात वर्ग ने संसद में राजनीतिक प्रतिनिधित्व हासिल कर लिया।
चैदहवीं शताब्दी के अन्त तक सरकार के राज्य नियंत्रण और व्यापारी कम्पनियों के साथ रिचर्ड द्वितीय के सम्बन्धों ने उसके खिलाफ कई रईसों को खड़ा कर दिया। उन्होंने अपनी वफादारी रिचर्ड द्वितीय के भतीजे हेनरी चतुर्थ के लिए इस उम्मीद में शुरू कर दी कि वह रिचर्ड की नीतियों का अनुसरण नहीं करेगा।
यह और इसके बाद का गृह युद्ध आमतौर पर यार्किस्ट और लंकास्ट्रियंस के बीच टकराव के रूप में वर्णित किया गया जबकि वास्तव में यह कुलीनों द्वारा सरकार की ताकत के केन्द्रीकरण के विरोध से प्रेरित था। हेनरी ट्यूडर से रिचर्ड तृतीय की हार ने न केवल युद्ध को खत्म कर दिया बल्कि भविष्य में अंग्रेज धनाढ््यों द्वारा क्षेत्रीय प्राधिकरण और निगमों को फिर से हासिल करने के सभी रास्ते बन्द कर दिये। साथ ही निगमों और केन्द्र सरकार के निरन्तर उत्थान के लिए पथ प्रदर्शित किया।
जिस राज्य में हम हैं
राज्य की ताकत कुछ ऐसी चीज है जिसे हम इक्कीसवीं सदी में काफी हद तक मानकर चलते हैं। दुनिया भर में, पिछली कुछ सदियों से सम्प्रभु राष्ट्र का विचार शाही राजनीति और अर्थव्यवस्था का केन्द्र–बिन्दु रहा है।
लेकिन 1970 के दशक के बाद से, बुद्धिजीवियों के बीच यह सुझाव देना आम बात हो गयी है कि राज्य उतना महत्त्वपूर्ण नहीं था, इसलिए एक विशेष क्षेत्र के भीतर बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा नियंत्रण का एकाधिकार हथिया लिया गया है। 2016 में सबसे बड़ी 100 आर्थिक संस्थाओं में, 31 देश थे और 69 कम्पनियाँ थीं। वालमार्ट स्पेन की अर्थव्यवस्था से बड़ी थी और टोयटा भारत की अर्थव्यवस्था से भी बड़ी। राजनेताओं और नियामकों को प्रभावित करने के लिए इन बड़ी कम्पनियों की क्षमता जग जाहिर है। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन से इनकार करने वाली तेल कम्पनियों के प्रभावों को याद करिये।
और 1979 से 1990 तक ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रही मार्गरेट थैचर ने स्पष्ट किया कि वह “राज्य की खोयी हुई ताकत की वापसी“ का इरादा रखती हैं। पहले राज्य की परिसम्पत्ति रही ज्यादातर चीजें आज कम्पनियों की तरह या राज्य द्वारा निर्मित आभासी बाजार के खिलाड़ी की तरह संचालित होती हैं। मोटे–तौर पर उदाहरण के लिए ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा का पच्चीस फीसदी हिस्सा निजी क्षेत्र के साथ अनुबन्ध के जरिये दिया जाता है।
दुनिया भर में परिवहन, सेवाएँ, दूरसंचार, दन्तचिकित्सक, नेत्र चिकित्सक, डाकघर और कई अन्य सेवाएँ राज्य का एकाधिकार हुआ करती थीं और अब मुनाफा कमाने वाली कम्पनियों द्वारा चलाई जाती हैं। राष्ट्रीयकृत या राज्य के स्वामित्व वाले उद्योगों को अक्सर काहिल कहा जाता है जबकि बाजार अनुशासन के हिसाब से इन सेवाओं के लिए ज्यादा आधुनिकता और दक्षता की माँग होती है।
लेकिन कोरोना वायरस की बदौलत राज्य की भूमिका फिर से सुनामी की तरह लौट आयी है। कुछ महीने पहले एक स्तर तक खर्च करने को जिसे “पैसे का जादुई पेड़” अर्थव्यवस्था कहकर मजाक उड़ाया जाता था (इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमारे पास कोई जादुई पेड़ नहीं है कि उसे हिला दें और सबको पैसे बाँट दें)। कुछ महीने पहले अर्थशास्त्र्ी राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था, बेघर लोगों की समस्याओं को उठाने, लाखों लोगों के लिए सार्वभौमिक मूलभूत आय की व्यवस्था करने और कर्ज की गारण्टी लेने या बिजनेस मैन को सीधे भुगतान करने के काम पर निशाना साध रहे थे।
कीन्सवादी अर्थशास्त्र में व्यापक पैमाने पर करदाताओं से भविष्य में आय के आधार पर पैसे उधार लेने के लिए राष्ट्रीय बाण्ड का प्रयोग किया जाता है। बजट को संतुलित करने का विचार अब बीते दिनों की बात हो गयी है। अब सभी उद्योग राष्ट्रीय खजाने से मिलने वाले खैरात पर निर्भर हैं। दुनिया भर के राजनेता अचानक बिचैलिए बन गये हैं। अन्धाधुन्ध खर्च को सही ठहराने के लिए युद्ध काल के रूपक और अलंकारों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
जिसकी ओर कम ध्यान दिया गया है–– वह है व्यक्तिगत आजादी पर आश्चर्यजनक प्रतिबन्ध। व्यक्ति की स्वायत्तता नवउदारवादी विचारों के केन्द्र में है। “आजादी पसन्द लोग” उन लोगों से अलग होते हैं जो किसी अत्याचारी जुए के अधीन जीते हैं। उन अत्याचारी राज्यों से भी जो अपने नागरिकों के व्यवहार पर निगरानी के लिए बिग ब्रदर की निगरानी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।
फिर भी पिछले कुछ महीनों में, दुनिया भर की सरकारों ने जनता के व्यापक समूह की आवाजाही को प्रतिबन्धित किया है और सार्वजनिक और निजी स्थानों में इकट्ठा होने से रोकने के लिए पुलिस और सशस्त्र बालों का इस्तेमाल कर रही हैं। थियेटर, पब और रेस्तराँ को बन्द करने के आदेश हैं, पार्क बन्द कर दिये गये हैं और बेंचों पर बैठने पर जुर्माना लग सकता है। किसी के बहुत नजदीक जाने पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा आपके ऊपर चिल्लाया जाएगा। एक मध्ययुगीन राजा इस तरह की तानाशाही से मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहता।
लगता है महामारी ने सरकारों को राजकोषीय और प्रशासनिक ताकतों का इस्तेमाल करके समझदारी और स्वतंत्रता के तर्क को कुचलने की अनुमति दे दी है। राज्य की ताकत का अब उन रूपों में प्रयोग किया जा रहा है जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद से कहीं नहीं दिखे और ताज्जुब की बात यह है कि इसे व्यापक जनसमर्थन मिला है।
लोकप्रिय प्रतिरोध
काली मौत पर वापस लौटते हैंैं। व्यापारियों और बड़े व्यवसाय के धन और प्रभाव में वृद्धि ने उस समय मौजूद व्यापार विरोधी भावना को गम्भीर रूप से भड़काया। बौद्धिक और लोकप्रिय दोनों मध्ययुगीन विचारों के हिसाब से व्यापार नैतिक रूप से सन्देह के घेरे में था और व्यापारी, विशेष रूप से धनी व्यक्ति सन्दिग्ध थे। यूरोप के पापों के लिए ईश्वर की ओर से दी गयी सजा के रूप में काली मौत की व्यापक रूप से व्याख्या की गयी थी। और प्लेग महामारी के बाद कई लेखकों ने चर्च, सरकारों और धनी कम्पनियों को ईसाई जगत के नैतिक पतन के लिए दोषी ठहराया था।
विलियम लैंगलैण्ड की प्रसिद्ध प्रतिरोध कविता ‘पियर्स प्लोमैन’ पूरी तरह व्यापार विरोधी थी। दूसरी–पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य की कविता अंगेलसचे पोलीकाई के शब्द व्यापार के प्रति सहिष्णु थे लेकिन ये व्यापार को इटली के उन व्यापारियों के हाथों से छीनकर अंग्रेज व्यापारियों के हाथों में लाना चाहते थे जिनके बारे में लेखक ने कहा कि इन्होंने देश को कंगाल कर दिया है।
चैदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दियों में प्रगति हुई और निगमों ने बाजार के एक बड़े हिस्से को हासिल कर लिया, लोकप्रिय और बौद्धिक विरोधाभास भी बढे़। लम्बे समय में इसका परिणाम भड़काने वाला था। सोलहवीं शताब्दी तक, निगमों के हाथ में व्यापार और वित्त का केन्द्रीकरण हो गया। थोड़ी सी कम्पनियों ने कुलीन और कैथोलिक बैंकिंग पर एकाधिकार कर लिया, जिसमें बहुत सी कम्पनियों का यूरोप की प्रमुख वस्तुओं पर एकाधिकार था, जैसे कि चाँदी, ताम्बा और पारा तथा विशेष रूप से एशिया और अमरीका से आयातित मसाले पर।
मार्टिन लूथर इस केन्द्रीकरण से, विशेष रूप से कैथोलिक चर्च द्वारा भोग–विलास के लिए एकाधिकारी फर्मों के उपयोग से चिढ़ा हुआ था। 1524 में लूथर ने एक निबन्ध प्रकाशित करवाया कि व्यापार सबके (जर्मन) भले के लिए होना चाहिए और व्यापारियों को ऊँची कीमतें नहीं वसूलनी चाहिए। अन्य प्रोटेस्टेण्ट लेखकों के साथ फिलिप मेलनेक्टहोन और उलरिच वान हट्टेन जैसे लेखकों की तत्कालीन व्यापार विरोधी भावना का इस्तेमाल लूथर ने सरकार के ऊपर व्यापार के वर्चस्व की आलोचना करने के लिए किया। उसने वित्तीय अन्याय को धार्मिक सुधारों के अपने आह्वान के साथ जोड़ दिया।
समाजशास्त्री मैक्स वेबर ने पूँजीवाद के उदय और आधुनिक आर्थिक विचार को प्रोटेस्टेण्टवाद के साथ जोड़ने का बहुचर्चित काम किया। लेकिन शुरुआती प्रोटेस्टेण्ट लेखकों ने एकाधिकारी कम्पनियों और रोजमर्रा की जिन्दगी के व्यवसायीकरण का विरोध किया, जो व्यापार विरोधी भावना पर आधारित था, जिसकी जड़ें प्लेग में थीं। इस लोकप्रिय और धार्मिक खिलाफत ने अन्तत: रोम के साथ सम्बन्ध–विच्छेद और यूरोप के बदलाव को जन्म दिया।
क्या छोटा हमेशा सुन्दर होता है?
21 वीं सदी तक हम इस विचार के अभ्यस्त हो गये हैं कि पूँजीवादी कम्पनियाँ धन का संकेन्द्रण करती हैं। चाहे विक्टोरियन उद्योगपति हों, अमरीका के लुटेरे व्यापारी हों या डॉट–कॉम अरबपति हों, व्यापार और सरकारों पर उसके भ्रष्ट प्रभाव से पैदा हुई असमानताओं ने ही औद्योगिक क्रान्ति के बाद से व्यापार के विमर्श को आकार दिया। आलोचकों के लिए, बड़े व्यवसाय को अक्सर हृदयहीन कहा जाता है–– एक ऐसा विशाल जानवर जो अपने पैरों से आम लोगों को कुचल देता है, या मजदूर वर्ग से श्रम का मुनाफा निचोड़ता है।
जैसा कि हमने देखा, छोटे स्थानीय व्यवसायी और बड़े निगमों तथा राज्य की सत्ता के समर्थकों के बीच कई शताब्दियों से बहस चली आ रही है। रोमांटिक कवियों और सुधारवादियों ने इस तरह से दु:ख प्रकट किया कि “काली शैतानी मिलें” ग्रामीण इलाकों को नष्ट कर रही थीं और उन लोगों को पैदा कर रहीं थीं जो मशीनों के पिछलग्गू के अलावा कुछ नहीं थे। यह विचार कि ईमानदार कारीगर को अलगावग्रस्त कर्मचारी द्वारा विस्थापित किया जा रहा था, जो एक उजरती गुलाम था, प्रारम्भिक पूँजीवाद के अतीतग्रस्त और प्रगतिशील दोनों तरह के आलोचकों में एक समान है।
छोटे और बड़े व्यापार के बीच कुछ बुनियादी अन्तर था, 1960 के दशक तक इस विचार ने अपने दीर्घकालिक तर्कों में पर्यावरणवाद को शामिल कर लिया। गगनचुम्बी इमारत में रहने वाला “द मैन” अधिक विश्वसनीय कारीगर के विपरीत था।
स्थानीय व्यापार में यह भरोसा निगमों में अविश्वास के साथ जुड़ गया और पर्यावरण, ऑक्युपाई वाल स्ट्रीट और एक्टिन्क्शन रिबेलियन आन्दोलन में राज्य बह गया। स्थानीय भोजन करना, स्थानीय धन का इस्तेमाल करना और अस्पताल और विश्वविद्यालयों जैसे– परोपकारी संस्थाओं की क्रयशक्ति को छोटे सामाजिक उद्यमों की ओर मोड़ देने की कोशिश बहुत सारे समकालीन आर्थिक कार्यकर्ताओं के लिए सामान्य बात बन गयी है।
लेकिन कोविड–19 संकट अगर छोटा है वह अच्छा है और बड़ा है वह बुरा है, इस विरोधाभास ने बहुत मौलिक सवाल खड़ा किया है। वायरस ने जिस तरह की तमाम समस्याएँ खड़ी की हैं उनसे पार पाने के लिए बड़े पैमाने पर संगठित होना जरूरी लगने लगा है। वे सरकारें ज्यादा सफल नजर आती हैं, जिन्होंने निगरानी और नियंत्रण के लिए सबसे ज्यादा हस्तक्षेपकारी तरीके अपनायी। यहाँ तक कि सबसे कट्टर पूँजीवाद विरोधी को भी यह स्वीकार करना होगा कि छोटे सामाजिक उद्यम कुछ हफ्तों में एक विशाल अस्पताल तैयार नहीं कर सकते हैं।
यहाँ तक कि खाद्य आपूर्ति में लगे स्थानीय व्यवसायियों के बहुत सारे उदाहरण हैं, और एक–दूसरे के मदद की सराहनीय कोशिशें हो रही हैं। पर धरती के उत्तरी गोलार्द्ध की आबादी को आमतौर पर सुपर मार्केट की बड़ी श्रृंखलाओं के जरिये संचालित जटिल रसद आपूर्ति से खिलाया–पिलाया जा रहा है।
कोरोना वायरस के बाद
दूरगामी तौर पर काली मौत से बड़े व्यवसाय और राज्य की ताकत को मजबूती मिली। कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान बहुत तेजी से यही सब हो रहा है।
लेकिन, हमें आसान ऐतिहासिक सबक से सतर्क रहना चाहिए। इतिहास कभी भी खुद को दोहराता नहीं है। हर एक समय की परिस्थितियाँ अलग होती हैं, और सामान्य रूप से इस ‘सबक’ को इतिहास सम्मत मानना ठीक नहीं है जैसे कि यह कुछ सामान्य नियमों को स्थापित करने वाले प्रयोगों से पैदा हुआ हो। और कोविड–19 किसी भी आबादी के एक तिहाई हिस्से को नहीं मारेगा, इसलिए हालाँकि इसके प्रभाव गम्भीर हैं, लेकिन इनके परिणाम उसी तरह श्रम शक्ति को घटा देने के रूप में नहीं निकलेंगे। हुआ यह कि इससे काम देने वालों की ताकत वास्तव में बढ़ी है।
सबसे गम्भीर अन्तर यह है कि यह एक और संकट जलवायु परिवर्तन के बीच आया है। एक वास्तविक खतरा यह है कि विकास अर्थव्यवस्था की दुबारा उछाल की नीति कार्बन उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता को दबा देगी। यह बुरा सपना है, इस मामले में कोविड–19 ज्यादा ही बदतर है।
लेकिन व्यक्ति और सम्पत्ति की भारी लामबन्दी, जिन्हें सरकारों और निगमों ने तैनात किया है, यह भी दर्शाता है कि यदि वे चाहें तो बड़े संगठन स्वयं और दुनिया को असाधारण रूप से तेजी से पुनर्व्यवस्थित कर सकते हैं। यह ऊर्जा उत्पादन, परिवहन, खाद्य प्रणाली और ढेर सारी चीजों को फिर से योजना–बद्ध करने की हमारी सामूहिक क्षमता से सम्बन्धित आशावाद के लिए वास्तविक आधार प्रदान करता है। ग्रीन न्यूडील जिसे तमाम नीति निर्माता आर्थिक सहयोग दे रहे हैं।
लगता है कि काली मौत और कोविड–19 व्यापार और राज्य सत्ता दोनों के संकेन्द्रण और केन्द्रीकरण का कारण हैं। यह नोट करना दिलचस्प है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन शक्तिशाली ताकतों को आने वाले संकटों के समय निशाना बनाया जा सकता है।
(द कनर्वसेशन डॉट कॉम से साभार)
अनुवाद–– राजेश कुमार
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