औपनिवेशिक सोच के विरुद्ध खड़ी अफ्रीकी कविताएँ
साहित्य–– भगवान स्वरूप कटियार,
‘अफ्रीकी कविताएँ’ नाम से गार्गी प्रकाशन से प्रकाशित अफ्रीकी कविताओं की यह किताब कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पहली बात यह किताब मंगलेश डबराल जैसे बड़े और संवेदनशील कवि की अनुपस्थिति के सूनेपन को भरने की कोशिश करती है। इस किताब के प्रकाशन की योजना समकालीन तीसरी दुनिया के सम्पादक और अफ्रीकी विषयों के विशेषज्ञ आदरणीय आनन्द स्वरूप वर्मा की पहल पर लोकप्रिय–प्रगतिशील कवि मंगलेश डबराल और गार्गी प्रकाशन के कर्ता–धर्ता दिगम्बर के साथ बनायी गयी थी। जाहिर है अनुवाद का महत्वपूर्ण काम मंगलेश को ही करना था। अफ्रीकी देशों के कवियों का चयन आनन्द स्वरूप वर्मा, मंगलेश और दिगम्बर ने किया। मंगलेश ने चयन और अनुवाद का काम बड़ी मेहनत और लगन से किया। वह कविता के मर्मज्ञ थे ही। आनन्द जी ने न सिर्फ उन्हें इस काम के लिए प्रोत्साहित किया बल्कि यथासम्भव कविताओं के प्रसंगों और सन्दर्भों को लेकर भरपूर सहयोग भी किया। अफसोस इस बात का रहा कि यह किताब मंगलेश के जीवनकाल में प्रकाशित होकर नहीं आ सकी। उससे बड़ा अफसोस इस बात का है कि उनके साथी कवि मित्रों या सांगठनिक मित्रों ने भी उनकी इस किताब पर तवज्जो नहीं दिया जिससे यह किताब गुमनामी में चली गयी और एक महत्वपूर्ण किताब साहित्य जगत में चर्चा से बाहर रही। किसी बड़े कवि या लेखक का उसके निधन के बाद उसके अवदान के मूल्यांकन की दृष्टि से उसका महत्व और बढ़ जाता है। इस लिहाज से मंगलेश जी के इस महत्वपूर्ण काव्यात्मक कृत्य का मूल्यांकन निहायत जरूरी है खास कर औपनिवेशिक सोच से मुक्ति के लिए।
अफ्रीकी कविताओं के इस कविता संग्रह में अफ्रीका के जिन देशों के कवियों की कविताओं को सम्मिलित किया गया उनके नाम हैंय दक्षिण अफ्रीका, घाना, सिएरा लिओन, गैम्बिया, नाइजीरिया, अंगोला, सेनेगल, मलावी और गिनी बिसाऊ। दक्षिण अफ्रीका से सात कवियों को शामिल किया गया, जिनके नाम हैं डेनिस ब्रूटस, माजिसी कुनेन, एएनसी कुमालो, मोंगाने वाली सैरोटे, जेम्स मेथ्युज, मखोसोजाना खाबा, फिलिप्पा या दे विलियर्स, सिना म्हलोफे। घाना से शामिल किये गये कवियों के नाम हैं क्वेसी ब्रू, कोफी ओवीनूर, फ्रैंक कोबीना पारकस। सिएरा लिओन से अबिओसेह निकोल को शामिल किया गया है। गैम्बिया से लेनरी पीटर्स, अंगोला से अगोस्तिनो नेतो, सेनेगल से डेविड दियोप, मलावी से जैक मपान्जे, और गिनी बिसाऊ से अमिल्कर कबराल को शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त नाइजीरिया से चिनुआ अचेबे, ओडिया ओफेमन, नीयी ओसुन्दरो, गैब्रियल ओकरा और केन सारो वीवा को शामिल किया गया। ये सब अफ्रीका के बड़े और उल्लेखनीय कवि हैं जिनकी वैश्विक कविता कोष में अपनी एक पहचान है।
इस कविता संग्रह की शुरुआत में आनन्द स्वरूप वर्मा ने कविताओं के अनुवाद की रचना प्रक्रिया और मंगलेश के कोरोना में दिवंगत होने के दर्द का बहुत मार्मिक उल्लेख किया है। आनन्द स्वरूप वर्मा जी ने पाठकों को सम्बोधित करते हुए अपने आलेख में लिखा है कि अफ्रीकी गोरी सरकार ने रंगभेद नीति के तहत अफ्रीकी जनता पर जो जुल्म ढाये हैं और कदम–कदम पर अफ्रीकी जनता ने जो यातनाएँ और दुश्वारियाँ झेली हैं उसको समझने में ये कविताएँ एक सहायक की भूमिका निभाती हैं। उनका कहना है कि डेनिस ब्रूटस की कविताओं में सायरन एक खौफनाक प्रतीक के रूप आता है। इसका अर्थ है रात में 11 बजे जब सायरन बजता था तो काले लोग बदहवास होकर भागने लगते थे और छिपने लगते थे। वह बताते हैं कि अफ्रीका एक विशाल महाद्वीप है जिसमें 50 से ज्यादा देश हैं जिनकी संस्कृतियाँ एक दूसरे से काफी भिन्न हैं। इसके बावजूद अफ्रीका यूरोप के मुकाबले भारत के काफी निकट है। यहाँ के लोकजीवन, रहन–सहन, ग्रामीण परिवेश, इनकी लोकोत्तियाँ और मुहाविरे भारतीय जनमानस के साथ आसानी से रिश्ता जोड़ते दिखते हैं। हम दोनों महाद्वीप लम्बे समय तक उपनिवेश रहे हैं। पर भारत में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होने का प्रयास नहीं किया गया है। अफ्रीकी साहित्य को साजिशन दुनिया के देशों में पहुँचने से रोका गया। यह कविता संग्रह दोनों महाद्वीपों की औपनिवेशिक सोच से मुक्ति की दिशा में एक पहल है। वह उम्मीद करते हैं इसका दूसरा खण्ड भी मंगलेश की यादों के साथ जल्द आयेगा।
इस संग्रह के पहले कवि डेनिस ब्रूटस (1924–2009) संस्कृति कर्मी के साथ–साथ राजनीतिक कार्यकर्त्ता भी रहे हैं। उन्होंने बन्दी जीवन के बारे में काफी कुछ लिखा है। 1980 में वह भारत भी आये थे। उन्होंने इंग्लैंड में अध्यापन कार्य भी किया। उनके कविता संग्रह हैं सायरंस, नकल्स एण्ड बूट्स, लेटर टू मार्था एण्ड अदर्स पोएम्स। सायरन उनकी कविता में अफ्रीका की गोरी हुकूमत के दमन और खौफ का प्रतीक है। उनकी कविता की कुछ पंक्तियों में इसका प्रयोग गौरतलब हैय “मेरे हृदय में भरा है विलाप / और मेरे दिल में भी / अपनी खामोश आँखों के पीछे / मुझे सुनाई देते हैं रुदन और सायरन। इसके आगे अपनी एक कविता में वह फिर कहते हैंय आवाजें फिर से शुरू होती हैं / रात में सायरन / दरवाजे पर कड़कती बिजली / दर्द करती नसों की कराह। इस सारे दमन और यातनाओं भरे समय में भी ब्रूटस उम्मीद की लौ भी जलाते हैं। अपनी कविता की इन पंक्तियों में वह कहते हैंय हम जिन्दा हैं तो हर दिन को जिन्दगी से भरना होगा /हर रोज जितना कर सकते हैं, करना होगा। ब्रूटस के यह शब्द पूरी औपनिवेशिक दुनिया की यातनाओं की पीड़ा बयाँ करते हैं और औपनिवेशिक सोच से मुक्ति के लिए आह्वान करते हैं।
इस संग्रह के दूसरे कवि हैं माजिसी कुनेने (1930–2006)। रंगभेद नीति के मुखर आलोचक कुनेने को अधिकांश समय निर्वासन में जीना पड़ा। अफ्रीकी आजादी की मुक्तिदाता अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस से वह घनिष्ठता से जुड़े थे। वह जुलू भाषा में लिखते थे बाद में जिसका अनुवाद अंग्रेजी में होता था। अफ्रीका की गोरी हुकूमत ने उनके साहित्य को प्रतिबंधित कर दिया था। उनकी कालजयी रचना है इकोज फ्रॉम द माउंटेन। 1993 में वह अपने देश लौटे। अफ्रीका के शीर्ष लेखकों माजिसी कुनेने का नाम दर्ज है। उनकी कुछ कविताओं के अंश उनकी सोच और संवेदना का नमूना पेश करते हैंय क्या मेरा घुटन में हँसना गलत था? / क्या मैं गलत था कि मैंने धरती को सुलगाया / और सितारों पर नृत्य किया। एक दूसरी कविता में वह लिखते हैंय इस उमड़ते धुएँ से लम्बा है हमारा दिन / हम टिके रहेंगे, फिर से उठेंगे उजाड़ खेतों से / क्योंकि हम हैं अत्याचारियों की रात में उगी हुई जंगली घास। अपनी एक कविता में वह उम्मीद की लौ जगाते हुए लिखते हैंय ऐसा होगा हमारी बगावत का दिन / फिर से बँटेगी प्रेम की विशालता / हमारे घरों में भिखारियों की दुर्गन्ध नहीं होगी।
संग्रह के अगले कवि हैं जोहान्सबर्ग के एएनसी कुमालो। 1938 में जन्मे, इनका असली नाम रोनाल्ड कर्लिस है। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस से इनका गहरा जुड़ाव रहा। गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्हें भूमिगत भी होना पड़ा। एथलेटिक्स और इतिहास में उनकी गहरी रुचि रही। टेलीविजन और फिल्मों में पटकथा लेखन का काम भी किया। वह समर्पित राजनीतिक कार्यकर्त्ता और शानदार कवि हैं। उनकी कविताओं में क्रान्ति की आग हैय कविताएँ / जो नोचती हों आतातायी का चेहरा / और तोड़ देती हों उसकी जकड़बन्दी / कविताएँ जो जगाती हों इनसान को। उनकी एक और कविता का नमूना देखिएय मृत्यु नहीं, जीवन / रात नहीं, भोर / पुराना नहीं, नया / समर्पण नहीं, संघर्ष / कवि / लोगों को बतलाओ / कि सपने बन सकते हैं यथार्थ।
1944 में पैदा हुए एक अफ्रीकी कवि हैं मोंगाने वाली सेरोटे। प्रमुख कवियों में चर्चित कवि और राजनीतिक कर्मी सेरोटे को 1969 में बिना मुकदमा चलाये जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद बोत्सवाना और बाद में लन्दन में निर्वासित जीवन बिताया। वह अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में कला और संस्कृति विभाग के प्रभारी रहे। उन्हें 2018 में पोएट लौरिएट का सम्मान मिला। उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं, नो बेबी मस्ट वीप, बिहोल्ड मामा, फ्लावर्स, दि नाइट्स कीप्स विकिंग, कम एण्ड होप विद मी, फ्रीडम लैमेंट एण्ड सॉंग आदि। अपनी एक कविता में वह मनुष्य का दर्द इस तरह बयाँ करते हैंय घाव के निशान वे पल हैं जिन्हें हमने जिया है / वैसे ही जैसे एक पैर के आदमी को भी / चलना होता है, चलना ही होता है। एक कविता में वह लिखते हैंय तुम पीछे देखते रहो / अगर तुमने अतीत को साँस लेते नहीं सुना / तो वर्तमान तुम्हारे नाम को मिटा देगा/ वर्तमान हमारे गीतों पर हैरान है / इन गीतों में हमारी माँ का दमखम है और हमारी दादी की दूरन्देशी।
दक्षिण अफ्रीका के वरिष्ठतम साहित्यकार 93 वर्षीय जेम्स मैथ्यूज ने कविता, कहानी और उपन्यास कई विधाओं में लिखा है। गोरी हुकूमत में इनकी अधिकांश कृतियाँ प्रतिबंधित रहीं और 13 वर्षों तक इन्हें नजरबन्द रखा गया। इनके काव्य संग्रह हैं, क्राई रेज, नो टाइम फॉर ड्रीम्स, पोएम फ्रॉम ए प्रिजन सेल, जेंटली स्टर्स माई सोल। कहानी संग्रह हैं, दि पार्क एण्ड अदर स्टोरीज, उपन्यास है, दि पार्टी इज ओवर। जेम्स मैथ्यूज अपनी एक कविता में कहते हैं, कभी मेरे बारे में सोचो / जब तुम जिन्दगी के मजे लेते हो / और देखते हो फूलों को खिलते हुए / जिन्दगी हवा की तरह हल्की है / जबकि मेरी जिन्दगी मर चुकी है। अपनी जेल कोठरी से कविता लिखते हुए वह कहते हैंय तरोताजा मैं जारी रखता हूँ अपना सफर / स्वर्ग के विस्तारों के साथ–साथ / सुबह आती है तो मैं देखता हूँ / अपने को कम्बल में लिपटा हुआ / अपनी कोठरी में सीमेंट के फर्श पर।
दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में रहती 1957 में जन्मी एक कवयित्री हैं मखोसोजाना खाबा। वह कवयित्री होने के साथ–साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं जिन्होंने महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किया है। रंगभेद के खिलाफ लड़ाई में भागीदारी के कारण उन्हें कई वर्ष निर्वासन में बिताने पड़े। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैंय दीज हैंड्स, टंग ऑफ देयर मदर्स, दि आर्ट ऑफ वेटिंग फॉर टेल्स, रनिंग एण्ड अदर स्टोरीज। अपनी एक शिकंजे कविता में गोरी सरकार के दमन की तस्वीर पेश करते हुए वह लिखती हैं, शिक्षा संस्थाओं में गोरों के शिकंजे / गहराई तक गये हुए हैं / दूर तक फैले हुए हैं उलझे हुए हैं / समय के पार चले गये हैं /एक विद्वान अश्वेत स्त्री कहती है / इसका एक मात्र समाधान इन्तजार करना––– / उसके मरने का।
दक्षिण अफ्रीका की 1966 में जन्मी एक कवयित्री हैं फिलिप्पा या दे विलियर्स। कवयित्री होने के साथ–साथ अभिनय कला के क्षेत्र में उनकी राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान है। उनकी रचनाओं में लिंग भेद और रंगभेद की विद्रूपताओं का प्रभावी निरूपण देखने को मिलता है। गोरी सरकार के लोकतंत्र का वर्णन करते हुए वह अपनी कविता में लिखती हैंय दु:ख बर्फ की तरह सर्द है / राष्ट्रपति फरमान जारी करते हैं / लेकिन बारिश गला देती है, फाड़ देती है कागजी वादों को / जब सड़कों पर परेड कर रहा होता है लोकतंत्र।
साहित्य के क्षेत्र की एक बहुआयामी व्यक्तित्व की महिला सिना म्हलोफे हैं जो 1958 में जन्मी हैं। वह रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता, कवयित्री, नाट्य–निर्देशिका और अभिनेत्री हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैंय दि टायलेट (कहानियाँ), दि स्नेक्स विद सेवन हेड्स (बाल साहित्य), सांग्स एण्ड स्टोरीज ऑफ अफ्रीका आदि। अपनी एक कविता में वह लिखती हैंय कभी ऐसा कुछ हो जाता है / कि हर चीज थम जाती है / और मैं पाती हूँ कि अकेली बैठी सोच रही हूँ / अगर हमारे श्रीमान राष्ट्रपति के गर्भाशय होता / और दूध से भरे स्तन होते / तो क्या वे एक बेहतर इनसान हुए होते?
घाना के एक कवि हैं क्वेसी ब्रू (1928–2007)। वह कवि के साथ–साथ एक राजनयिक भी रहे हैं। अपनी कविताओं में उन्होंने घाना के ग्रामीण जीवन में व्याप्त दुश्वारियों का वर्णन किया है। उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं, रिटर्न ऑफ नो रिटर्न, दि शेडोज ऑफ लॉफ्टर और क्वेश्चन्स ऑफ अवर टाइम्स। वह अपनी एक कविता में लिखते हैं, वक्त के लुटेरो, कहाँ है हमारी स्वतंत्रता / लालच के शागिर्दों, कहाँ है तुम्हारा समृद्धि का स्वप्न / मौत के एजेंटों, कहाँ है तुम्हारा सुरक्षा का वादा / अपने असन्तोष पर यकीन के साथ / हम फिर से होंगे मुक्त / डर से मुक्त, उससे अधिक डर के डर से मुक्त / हमेशा के लिए।
घाना में जन्मे जार्ज कोफी आवूनोर (1935–2013) दुनिया के लेखकों में जाना–पहचाना नाम है। उन दिनों घाना ब्रिटिश उपनिवेश था और इसका नाम गोल्ड कोस्ट था। आवूनोर ने घाना विश्वविद्यालय से स्नातक किया। उनका पहला कविता संग्रह रिडिसकवरी 1964 में प्रकाशित हुआ। उन्होंने ट्रांसजिशन पत्रिका का सम्पादन किया। उन्होंने लन्दन से अपनी पढ़ाई कर घाना वापस आकर यूनिवर्सिटी ऑफ केप कोस्ट में अंग्रेजी विभाग का अध्यक्ष पद सम्भाला। सैनिक सरकार का तख्ता पलटने की कोशिश के आरोप में उन्हें जेल में डाल दिया गया। उनकी कृति ‘दि हॉउस बाई दि सी’ उनके जेल जीवन का वृतान्त है। वह अपनी कविता में जेल की यातना का दु:ख किस तरह व्यक्त करते हैंय दु:ख का सपाट अन्त / दो कौवे नव वर्ष की पार्टी के / बचे हुए खाने के लिए लड़ रहे हैं / जेल की कोठरी से दिखाई दे रही है / मुझे एक कठोर सर्द दुनिया /। इसी तरह वह आगे लिखते हैंय तो यही है वह फोड़ा / जो देश को तकलीफ देता है / जेल, यातना, खून और भूख / एक दिन फट जाएगा / फटना ही होगा इसे।
घाना के एक और कवि हैं फ्रैंक कोबिना पारकस (1932–2004)। पारकस ने पत्रकारिता के साथ–साथ घाना रेडियो में नौकरी की। उन्होंने घाना के प्रथम राष्ट्रपति क्वामे एन्क्रूमा के भाषण लिखने का भी काम किया। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं, एन अफ्रीकन ट्रेजरी, सोंग्स फ्रॉम दि विल्डरनेस, वायसेस ऑफ घाना। वह अपनी एक कविता में लिखते हैंय मुझे काली आत्माएँ दो / उन्हें काला होने दो / या चाकलेटी भूरा / या उन्हें धूसर रंग दो / धूल सरीखा / रेत से ज्यादा भूरा / लेकिन भरसक कोशिश करो / उन्हें काला ही रखो / काला।
अबिओसेह निकोल (1924–1994) 1970 में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष थे। सिएरा लिओन की राजधानी फ्री टाउन में जन्मे अबिओसेह निकोल का वास्तविक नाम डेविडसन सिल्वेस्टर निकोल है। कवि, एकेडमीशियन, राजनयिक और चिकित्सक। चिकित्सा के क्षेत्र में शोध के लिए कैम्ब्रिज चले गये और वहाँ उन्होंने इन्सुलिन की संरचना पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किया। साहित्य में उनका प्रवेश 1965 में कहानियों के साथ हुआ। उनकी मुख्य रचनाएँ हैं, टू अफ्रीकन टेल्स और दि टूली मैरेड ओमन। कविता के क्षेत्र में भी उनका उल्लेखनीय कार्य है। वह अपनी एक कविता में लिखते हैं, अफ्रीका, कभी तुम मेरे लिए सिर्फ एक नाम थे / लेकिन अब तुम एक गम्भीर हरा आह्वान हो / स्वाधीनता की प्रबल आस्था के लिए / तुम हमेशा ऐसे ही दिखाई देते हो / सुदूर देशों में अपने एकाकी बेटों को।
पश्चिमी अफ्रीकी देश गैम्बिया में जन्मे लेनरी पीटर्स (1952–2009) जानेमाने अफ्रीकी रचनाकार हैं। वह पेशे से चिकित्सक हैं। कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने एक आत्म–कथात्मक ‘दि सेकेण्ड राउण्ड’ उपन्यास भी लिखा। उन्होंने बीबीसी में भी काम किया और अफ्रीकी फोरम के अध्यक्ष भी रहे। उनकी कविताओं में आशावाद है और पश्चिमीकरण की गम्भीर आलोचना है। वह अपनी एक कविता में लिखते हैं, मैं वहाँ होता हूँ / जहाँ धुँधला अतीत और भविष्य होता है / उनकी अस्पष्ट आशाएँ और अरमान आपस में मिलते हैं / मैं वहाँ होता हूँ / जहाँ सत्य और असत्य का संघर्ष होता है / अन्तहीन और भयंकर मुठभेड़ में।
अफ्रीकी लेखकों में एक चर्चित नाम है चीनुआ अचेबे का। उनका पहला उपन्यास है थिंग्स फाल अपार्ट। उन्होंने नाइजीरिया रेडियो में नौकरी की। 1966–1972 के बीच देश में हुई उथल पुथल में उन्हें सत्ता की यातनाओं का शिकार होना पड़ा। देश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के बाद वह अमरीका चले गये और वहाँ साहित्य के प्रोफेसर हो गये। उनकी मुख्य रचनाएँ हैं, थिंग्स फाल अपार्ट, नो लांगर एट ईज, ऐरो ऑफ गॉड, दि मैन विद दि पीपुल, आंटहिल्स ऑफ सवन्ना। उनके काव्य संग्रह हैं, एनअदर अफ्रीका, क्रिसमिस इन बिआफ्रा। अपनी एक कविता में वह लिखते हैं, चीड़ का पेड़ / हरी स्मृति का परचम सा फहराता हुआ / वीरान वक्त की दरारों के पार।
अफ्रीका के बौद्धिक जगत में 1950 में जन्मे ओडिया ओफेमन एक जाना–पहचाना नाम है। वह कवि, पत्रकार, चिन्तक और राजनीतिक विश्लेषक हैं। वह नाइजीरियाई लेखकों के संगठन के महासचिव रहे हैं। उन्होंने अब तक 40 से अधिक किताबें लिखी हैं जिनमें अधिकांश कविता संग्रह हैं। उनके मुख्य कविता संग्रह हैं, दि पोएट लाइड, ड्रीम्स एट वर्क्स, ए हैंडल फॉर द फ्लुटिस्ट, अण्डर अफ्रीकन स्काइज आदि। उनका ‘टेकिंग नाइजीरिया सीरयसली’ एक लम्बा लेख है। वह अपनी एक कविता में लिखते हैं, कोई भूख इतनी ढलान भरी होती है / कि सूरज को रोक देती है / और हमारी आँखें छीन लेती है / जब तक हम डूब नहीं जाते / नदी तल की पुकारों के बोझ से।
1947 में जन्मे नाइजीरिया के विख्यात कवि नीयी ओसुन्दरे अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिलिएन्स में प्रोफेसर रहे। इसके पहले वह अफ्रीकन विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे। जिस ग्रामीण परिवेश में उनका जीवन बीता उनके लेखन पर उसका गहरा असर देखने को मिलता है। नये स्वाधीन नाइजीरिया में एक के बाद एक सैनिक तख्ता पलट की घटनाओं के वह साक्षी रहे हैं और जनतंत्र की तड़प को गहराई से महसूस किया है। उनकी कविताएँ राजनीतिक हैं और निरंकुश सत्ता की तीखी आलोचना उनकी रचनाओं का मुख्य मुद्दा है। वह अपनी कविता में लिखते हैं, कुछ दिन होते हैं / जो कोमल होने से परहेज नहीं करते / कुछ दिन होते हैं / जो मनुष्य होने से नहीं डरते /। वह आगे लिखते हैं, शुरुआत में शब्द नहीं था / शब्द में थी शुरुआत।
1953 में गैब्रियल ओकरा (1921–2019) की कविता दि काल ऑफ रिवर नन बहुत चर्चित हुई। इनकी कविताओं में नाइजीरिया की लोक संस्कृति और इससे जुड़े बिम्बों की झलक मिलती है। नाइजीरिया गृह युद्ध में ओकारा की कई पाण्डुलिपियाँ जल गयीं। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं, दि वायस, एज आई सी इट, दि फिशरमैन इनवोकेशन, दि ड्रीमर आदि। वह अपनी एक कविता में लिखते हैं, स्वप्न दर स्वप्न / घंटियों की मरती हुई आवाजों में / घुलती हुई स्मृतियों में / विलीन होती हुई / जैसे बारिश की बूँदें / गिरती हों एक नदी पर।
एक अन्य नाइजीरियाई लेखक की चर्चा करना जरूरी है जिनका नाम है केन सारो वीवा (1941–1995)। केन सारो वीवा प्रसिद्ध कवि, कथाकार, नाटककार और पर्यावरणविद रहे हैं। उनका जीवन अत्यन्त संघर्षपूर्ण रहा है। उन्होंने तेल का कारोबार करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनी शेल के खिलाफ अभियान चलाया जो नाइजीरिया के पर्यावरण को बर्बाद कर रही थी। इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। रायल डच शेल कम्पनी की साजिश के शिकार इस महान लेखक को नाइजीरिया के सैनिक तानाशाह सानी अबाचा की सरकार ने 10 नवम्बर 1995 को फाँसी दे दी। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं, सांग इन ए टाइम ऑफ वार, ए फारेस्ट ऑफ फ्लावर्स, बासी एण्ड कम्पनी, ए डिटेन्सन डायरी, साइलेंस वुड बी ट्रीजन आदि। वह अपनी ‘आवाजें’ कविता में लिखते हैंय वे बाते करते है तेल पर टैक्स की / और ताकत के बारे में / वे बातें करते हैं कबीले की इज्जत और स्वाभिमान के बारे में / वे बातें करते हैं युद्ध की / धनुष और तीरों के साथ / वे बातें करते हैं टैंकों और सड़े हुए इनसानी गोश्त की / मैं गाता हूँ अपना प्रेम मरिया के लिए/।
अंगोला के क्रान्तिकारी कवि अगोस्तिनों नेतो (922–1979) ने पुर्तगाली उपनिवेशवादियों से अपने देश को मुक्त कराने के लिए एमपीएलए नाम से संगठन बनाया और सशस्त्र संघर्ष का संचालन किया। पुर्तगाली शासकों ने जब उन्हें 1960 में गिरफ्तार किया तो आम जनता ने जबरदस्त आन्दोलन छेड़ दिया। 1975 में अंगोला को आजादी मिली और आगोस्तिनो नेतो देश के पहले राष्ट्रपति बने। नेतो का स्थान अंगोला के प्रमुख शीर्ष कवियों में है। वह अपनी एक कविता में लिखते हैं, मरता है / धीरे–धीरे भूख से। अपनी एक अन्य कविता में देशवासियों में उम्मीद की लौ जगाते हुए लिखते हैंय हम लौटेंगे / अपने घरों में, अपनी फसलों में / समुद्र तटों पर, अपने खेतों तक / हम लौटेंगे / अंगोला की सुन्दर मातृभूमि तक / हमारी धरती, हमारी माँ तक / हम लौटेगें।
पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल के महान रचनाकार डेविड डियोप (1927–1960) का बचपन फ्रांस में बीता। नेग्रीच्युड नामक बहुचर्चित साहित्यिक आन्दोलन से उनका गहरा सम्बन्ध रहा। उनका देश सेनेगल उपनिवेश था फ्रांस का और उनकी कविताओं में एकीकृत अफ्रीका की चाहत दिखाई देती है। एक विमान दुर्घटना में मात्र 33 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनका एक मात्र कविता संग्रह ‘हैमर ब्लोज’ उनकी मृत्यु के बाद 1956 में प्रकाशित हुआ। अपनी एक कविता ‘यकीन’ में वह अपना पूरा दिल उड़ेलते हुए लिखते हैं, जो हत्याएँ करके मुटाते जाते हैं / और लाशों से नापते हैं अपने शासन के विभिन्न चरण / मैं उनसे कहता हूँ कि एक दिन और लोग / कि सूर्य और तारे / गढ़ रहे हैं तमाम लोगों की एक लयबद्ध बिरादरी / मैं कहता हूँ कि एक दिल और एक दिमाग / एक साथ तैनात है युद्ध के मोर्चे पर / और लोगों के समूह से जुड़ा हुआ समय देखेगा / विजयी कारनामों का साकार होना।
अफ्रीकी देश मलावी में 1944 में जन्मे कवि हैं जैक मपांजे। 1987 में जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तब वह मलावी यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष थे। उन पर आरोप था कि अपनी कविताओं में उन्होंने राष्ट्रपति हेस्टिंग बाण्डा की आलोचना की है। उन्हें 1991 तक जेल में रहना पड़ा। रिहा होने के बाद वह लन्दन चले गये। मानवाधिकारों में सक्रिय मपांजे की प्रमुख कृतियाँ हैंय चेमिलियंस एण्ड गॉड्स, दि चैटेरिंग वैगटेल्स ऑफ मिक्यु प्रिजन, स्किप्पिंग विदाउट रोप्स, समर फायर्स आदि। अपनी एक कविता में उनका दर्द किस तरह फूटता है जरा देखें और महसूस करें, मैं रुका था / सिर्फ भरपूर पेशाब करने के लिए / जैसा कि मैंने वादा किया था उस वक्त / जब उन्होंने तुम्हारी हत्या की / हाँ आज मुझे खयाल आया कि / हम क्यों नहीं रख पाते हैं इसे बचा कर।
पश्चिम अफ्रीकी देश गिनी बसाऊ और केपवार्ड के एक रचनाकार हैं अमिल्कर कबराल(1924–1973)। वह एक लेखक, कवि, कृषि इंजीनियर, विचारक और मुक्ति योद्धा थे। उन्होंने न सिर्फ अपने देश को आजाद कराया बल्कि अंगोला और मोजाम्बिक को आजादी दिलाने में अपना भरपूर योगदान दिया। वह राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष को एक सांस्कृतिक कर्म मानते थे। उनका मानना था कि जनता के सांस्कृतिक कर्म से प्रतिरोध की भावना जिन्दा रह सकती है। वह अपनी कविता को किस तरह अभिव्यक्त करते हैं, नहीं, कविता / छिपो नहीं मेरी आत्मा की अभेद्य गहराई में / भागो नहीं जीवन से / तोड़ डालो, मेरे कैद की अदृश्य शलाखें / खोल दो मेरे अस्तित्व के दरवाजे / बाहर आओ संघर्ष के बीच / कविता तुम भी एक मनुष्य हो / प्यार करो मनुष्य से।
इस अफ्रीकी कविता संग्रह में गिनी बिसाऊ के लेखक अमिल्कर काबराल का राष्ट्रीय मुक्ति और संस्कृति पर एक विस्तृत लेख है जो राष्ट्रवाद और संस्कृति पर हमारी समझ को समृद्ध करता है। वह लिखते हैं यदि किसी देश में सांस्कृतिक जीवन शक्तिशाली रूप में मौजूद है तो विदेशी प्रभुत्व कभी भी निश्चिन्त होकर अपना शासन स्थायी नहीं बना सकता। इसीलिए विदेशी आक्रान्ता कब्जा करने वाले देश की संस्कृति को या तो लकवाग्रस्त कर देते हैं या उसे खत्म करने कोशिश करते हैं। औपनिवेशिक देशों का आधुनिक इतिहास इस बात का साक्षी है।
अफ्रीकी कविताओं का यह संग्रह अफ्रीकी साहित्य श्रृंखला का एक विनम्र प्रयास है जिसमें मंगलेश डबराल की अहम भूमिका रही है। यह संग्रह औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति दिलाने के लिए काव्य प्रेमियों को सोचने को विवश करता है। अफ्रीकी परिवेश भारत से बहुत मेल खाता है इसलिए यह संग्रह हमारे लिए प्रेरणास्रोत भी है।
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- नया वन कानून: वन संसाधनों की लूट और हिमालय में आपदाओं को न्यौता 17 Nov, 2023
- नये श्रम कानून मजदूरों को ज्यादा अनिश्चित भविष्य में धकेल देंगे 14 Jan, 2021
- बेरोजगार भारत का युग 20 Aug, 2022
- बॉर्डर्स पर किसान और जवान 16 Nov, 2021
- मोदी के शासनकाल में बढ़ती इजारेदारी 14 Jan, 2021
- सत्ता के नशे में चूर भाजपाई कारकूनों ने लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से रौंदा 23 Nov, 2021
- हरियाणा किसान आन्दोलन की समीक्षा 20 Jun, 2021
सामाजिक-सांस्कृतिक
- एक आधुनिक कहानी एकलव्य की 23 Sep, 2020
- किसान आन्दोलन के आह्वान पर मिट्टी सत्याग्रह यात्रा 20 Jun, 2021
- गैर बराबरी की महामारी 20 Aug, 2022
- घोस्ट विलेज : पहाड़ी क्षेत्रों में राज्यप्रेरित पलायन –– मनीषा मीनू 19 Jun, 2023
- दिल्ली के सरकारी स्कूल : नवउदारवाद की प्रयोगशाला 14 Mar, 2019
- पहाड़ में नफरत की खेती –– अखर शेरविन्द 19 Jun, 2023
- सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर राजनीति 14 Dec, 2018
- साम्प्रदायिकता और संस्कृति 20 Aug, 2022
- हमारा जार्ज फ्लायड कहाँ है? 23 Sep, 2020
- ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ पर केन्द्रित ‘कथान्तर’ का विशेषांक 13 Sep, 2024
व्यंग्य
- अगला आधार पाठ्यपुस्तक पुनर्लेखन –– जी सम्पत 19 Jun, 2023
- आजादी को आपने कहीं देखा है!!! 20 Aug, 2022
- इन दिनों कट्टर हो रहा हूँ मैं––– 20 Aug, 2022
- नुसरत जहाँ : फिर तेरी कहानी याद आयी 15 Jul, 2019
- बडे़ कारनामे हैं बाबाओं के 13 Sep, 2024
साहित्य
- अव्यवसायिक अभिनय पर दो निबन्ध –– बर्तोल्त ब्रेख्त 17 Feb, 2023
- औपनिवेशिक सोच के विरुद्ध खड़ी अफ्रीकी कविताएँ 6 May, 2024
- किसान आन्दोलन : समसामयिक परिदृश्य 20 Jun, 2021
- खामोश हो रहे अफगानी सुर 20 Aug, 2022
- जनतांत्रिक समालोचना की जरूरी पहल – कविता का जनपक्ष (पुस्तक समीक्षा) 20 Aug, 2022
- निशरीन जाफरी हुसैन का श्वेता भट्ट को एक पत्र 15 Jul, 2019
- फासीवाद के खतरे : गोरी हिरणी के बहाने एक बहस 13 Sep, 2024
- फैज : अँधेरे के विरुद्ध उजाले की कविता 15 Jul, 2019
- “मैं” और “हम” 14 Dec, 2018
समाचार-विचार
- स्विस बैंक में जमा भारतीय कालेधन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी 20 Aug, 2022
- अगले दशक में विश्व युद्ध की आहट 6 May, 2024
- अफगानिस्तान में तैनात और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की आत्महत्या 14 Jan, 2021
- आरओ जल–फिल्टर कम्पनियों का बढ़ता बाजार 6 May, 2024
- इजराइल–अरब समझौता : डायन और भूत का गठबन्धन 23 Sep, 2020
- उत्तर प्रदेश : लव जेहाद की आड़ में धर्मान्तरण के खिलाफ अध्यादेश 14 Jan, 2021
- उत्तर प्रदेश में मीडिया की घेराबन्दी 13 Apr, 2022
- उनके प्रभु और स्वामी 14 Jan, 2021
- एआई : तकनीकी विकास या आजीविका का विनाश 17 Nov, 2023
- काँवड़ के बहाने ढाबों–ढेलों पर नाम लिखाने का साम्प्रदायिक फरमान 13 Sep, 2024
- किसान आन्दोलन : लीक से हटकर एक विमर्श 14 Jan, 2021
- कोयला खदानों के लिए भारत के सबसे पुराने जंगलों की बलि! 23 Sep, 2020
- कोरोना जाँच और इलाज में निजी लैब–अस्पताल फिसड्डी 10 Jun, 2020
- कोरोना ने सबको रुलाया 20 Jun, 2021
- क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमान होना ही गुनाह है? 23 Sep, 2020
- क्यूबा तुम्हारे आगे घुटने नहीं टेकेगा, बाइडेन 16 Nov, 2021
- खाली जेब, खाली पेट, सर पर कर्ज लेकर मजदूर कहाँ जायें 23 Sep, 2020
- खिलौना व्यापारियों के साथ खिलवाड़ 23 Sep, 2020
- छल से वन अधिकारों का दमन 15 Jul, 2019
- छात्रों को शोध कार्य के साथ आन्दोलन भी करना होगा 19 Jun, 2023
- त्रिपुरा हिंसा की वह घटना जब तस्वीर लेना ही देशद्रोह बन गया! 13 Apr, 2022
- दिल्ली उच्च न्यायलय ने केन्द्र सरकार को केवल पाखण्डी ही नहीं कहा 23 Sep, 2020
- दिल्ली दंगे का सबक 11 Jun, 2020
- देश के बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में 14 Dec, 2018
- न्यूज चैनल : जनता को गुमराह करने का हथियार 14 Dec, 2018
- बच्चों का बचपन और बड़ों की जवानी छीन रहा है मोबाइल 16 Nov, 2021
- बीमारी से मौत या सामाजिक स्वीकार्यता के साथ व्यवस्था द्वारा की गयी हत्या? 13 Sep, 2024
- बुद्धिजीवियों से नफरत क्यों करते हैं दक्षिणपंथी? 15 Jul, 2019
- बैंकों की बिगड़ती हालत 15 Aug, 2018
- बढ़ते विदेशी मरीज, घटते डॉक्टर 15 Oct, 2019
- भारत देश बना कुष्ठ रोग की राजधानी 20 Aug, 2022
- भारत ने पीओके पर किया हमला : एक और फर्जी खबर 14 Jan, 2021
- भीड़ का हमला या संगठित हिंसा? 15 Aug, 2018
- मजदूरों–कर्मचारियों के हितों पर हमले के खिलाफ नये संघर्षों के लिए कमर कस लें! 10 Jun, 2020
- महाराष्ट्र के कपास किसानों की दुर्दशा उन्हीं की जबानी 23 Sep, 2020
- महाराष्ट्र में कर्मचारी भर्ती का ठेका निजी कम्पनियों के हवाले 17 Nov, 2023
- महाराष्ट्र में चार सालों में 12 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की 15 Jul, 2019
- मानव अंगों की तस्करी का घिनौना व्यापार 13 Sep, 2024
- मौत के घाट उतारती जोमैटो की 10 मिनट ‘इंस्टेण्ट डिलीवरी’ योजना 20 Aug, 2022
- यूपीएससी की तैयारी में लगे छात्रों की दुर्दशा, जिम्मेदार कौन? 13 Sep, 2024
- राजस्थान में परमाणु पावर प्लाण्ट का भारी विरोध 13 Sep, 2024
- रेलवे का निजीकरण : आपदा को अवसर में बदलने की कला 23 Sep, 2020
- लोग पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए क्यों लड़ रहे हैं 17 Nov, 2023
- विधायिका में महिला आरक्षण की असलियत 17 Nov, 2023
- वैश्विक लिंग असमानता रिपोर्ट 20 Aug, 2022
- श्रीलंका पर दबाव बनाते पकड़े गये अडानी के “मैनेजर” प्रधानमंत्री जी 20 Aug, 2022
- संस्कार भारती, सेवा भारती––– प्रसार भारती 14 Jan, 2021
- सत्ता–सुख भोगने की कला 15 Oct, 2019
- सरकार द्वारा लक्ष्यद्वीप की जनता की संस्कृति पर हमला और दमन 20 Jun, 2021
- सरकार बहादुर कोरोना आपके लिए अवसर लाया है! 10 Jun, 2020
- सरकार, न्यायपालिका, सेना की आलोचना करना राजद्रोह नहीं 15 Oct, 2019
- सरकारी विभागों में ठेका कर्मियों का उत्पीड़न 15 Aug, 2018
- हम इस फर्जी राष्ट्रवाद के सामने नहीं झुकेंगे 13 Apr, 2022
- हाथरस की भगदड़ में मौत का जिम्मेदार कौन 13 Sep, 2024
- हुकुम, बताओ क्या कहूँ जो आपको चोट न लगे। 13 Apr, 2022
कहानी
- जामुन का पेड़ 8 Feb, 2020
- पानीपत की चैथी लड़ाई 16 Nov, 2021
- माटी वाली 17 Feb, 2023
- समझौता 13 Sep, 2024
विचार-विमर्श
- अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है? 23 Sep, 2020
- अस्तित्व बनाम अस्मिता 14 Mar, 2019
- क्या है जो सभी मेहनतकशों में एक समान है? 23 Sep, 2020
- क्रान्तिकारी विरासत और हमारा समय 13 Sep, 2024
- दिल्ली सरकार की ‘स्कूल्स ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सलेंस’ की योजना : एक रिपोर्ट! 16 Nov, 2021
- धर्म की आड़ 17 Nov, 2023
- पलायन मजा या सजा 20 Aug, 2022
- राजनीति में आँधियाँ और लोकतंत्र 14 Jun, 2019
- लीबिया की सच्चाई छिपाता मीडिया 17 Nov, 2023
- लोकतंत्र के पुरोधाओं ने लोकतंत्र के बारे में क्या कहा था? 23 Sep, 2020
- विकास की निरन्तरता में–– गुरबख्श सिंह मोंगा 19 Jun, 2023
- विश्व चैम्पियनशिप में पदक विजेता महिला पहलवान विनेश फोगाट से बातचीत 19 Jun, 2023
- सरकार और न्यायपालिका : सम्बन्धों की प्रकृति क्या है और इसे कैसे विकसित होना चाहिए 15 Aug, 2018
श्रद्धांजलि
कविता
- अपने लोगों के लिए 6 May, 2024
- कितने और ल्हासा होंगे 23 Sep, 2020
- चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह 23 Sep, 2020
- बच्चे काम पर जा रहे हैं 19 Jun, 2023
अन्तरराष्ट्रीय
- अमरीका बनाम चीन : क्या यह एक नये शीत युद्ध की शुरुआत है 23 Sep, 2020
- इजराइल का क्रिस्टालनाख्त नरसंहार 17 Nov, 2023
- क्या लोकतन्त्र का लबादा ओढ़े अमरीका तानाशाही में बदल गया है? 14 Dec, 2018
- पश्चिम एशिया में निर्णायक मोड़ 15 Aug, 2018
- प्रतिबन्धों का मास्को पर कुछ असर नहीं पड़ा है, जबकि यूरोप 4 सरकारें गँवा चुका है: ओरबान 20 Aug, 2022
- बोलीविया में तख्तापलट : एक परिप्रेक्ष्य 8 Feb, 2020
- भारत–इजराइल साझेदारी को मिली एक वैचारिक कड़ी 15 Oct, 2019
- भोजन, खेती और अफ्रीका : बिल गेट्स को एक खुला खत 17 Feb, 2023
- महामारी के बावजूद 2020 में वैश्विक सामरिक खर्च में भारी उछाल 21 Jun, 2021
- लातिन अमरीका के मूलनिवासियों, अफ्रीकी मूल के लोगों और लातिन अमरीकी संगठनों का आह्वान 10 Jun, 2020
- सउ़दी अरब की साम्राज्यवादी विरासत 16 Nov, 2021
- ‘जल नस्लभेद’ : इजराइल कैसे गाजा पट्टी में पानी को हथियार बनाता है 17 Nov, 2023
राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
- कम कहना ही बहुत ज्यादा है : एडुआर्डो गैलियानो 20 Aug, 2022
- चे ग्वेरा की बेटी अलेदा ग्वेरा का साक्षात्कार 14 Dec, 2018
- फैज अहमद फैज के नजरिये से कश्मीर समस्या का हल 15 Oct, 2019
- भारत के एक बड़े हिस्से में मर्दवादी विचार हावी 15 Jul, 2019
अवर्गीकृत
- एक अकादमिक अवधारणा 20 Aug, 2022
- डीएचएफएल घोटाला : नवउदारवाद की एक और झलक 14 Mar, 2019
- फिदेल कास्त्रो सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के हिमायती 10 Jun, 2020
- बायोमेडिकल रिसर्च 14 Jan, 2021
- भाषा और साहित्य के क्षेत्र में भारत को मुसलमानों का महान स्थायी योगदान 23 Sep, 2020
- सर्वोच्च न्यायलय द्वारा याचिकाकर्ता को दण्डित करना, अन्यायपूर्ण है. यह राज्य पर सवाल उठाने वालों के लिए भयावह संकेत है 20 Aug, 2022
जीवन और कर्म
मीडिया
- मीडिया का असली चेहरा 15 Mar, 2019
फिल्म समीक्षा
- समाज की परतें उघाड़ने वाली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ 15 Jul, 2019