दुनियाभर में खाद्य सम्प्रभुता और न्याय पर केन्द्रित हमारे 50 संगठन चाहते हैं कि आप जानें कि अफ्रीकी किसानों और संगठनों द्वारा व्यावहारिक समाधानों और नयी खोजों की कोई कमी नहीं है। हम आपको थोड़ा पीछे हटकर सोचने और जमीन पर मौजूद लोगों से सीखने के लिए आमन्त्रित करते हैं।

–– अफ्रीका में खाद्य सम्प्रभुता के लिए गठबन्धन

प्रिय बिल गेट्स,

हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स के डेविड वालेस–वेल्स के द्वारा लिखे सम्पादकीय में तथा एक अन्य सम्बन्धित अखबार के लेख में भी आपका कृषि और खाद्य असुरक्षा की वैश्विक स्थिति पर टिप्पणी करते हुए विशेष रूप से उल्लेख किया गया था।

दोनों लेखों में, आपने कई ऐसे दावे किये हैं जो गलत हैं और जिनको चुनौती देने की जरूरत है। दोनों जगह आपने स्वीकार किया है कि आज दुनिया, पृथ्वी के सभी निवासियों को भरपेट खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करती है, फिर भी आप मूलत: कम उत्पादकता से जुड़ी समस्या का गलत समाधान बताते हैं जबकि हमें उत्पादन बढ़ाने की उतनी आवश्यकता नहीं है जितनी भोजन को ज्यादा न्यायसंगत तरीके से सब के लिए उपलब्ध कराने की है। इसके अलावा, इन लेखों में चार अलग तरह की विकृतियाँ हैं जिन पर बात की जानी चाहिए–– (1) कृषि उत्पादकता सुनिश्वित करने के लिए “उर्वरक के लिए कर्ज, सस्ते उर्वरक” की कथित आवश्यकता, (2) यह विचार कि भुखमरी से निपटने के लिए 20 वीं सदी के मध्य में हुई हरित क्रान्ति को अब दोहराने की जरूरत है, (3) यह विचार कि “उन्नत” बीज, जो आमतौर पर बड़े निगमों द्वारा उत्पादित किये जाते हैं, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जरूरी हैं, और (4) आपका सुझाव है कि अगर लोगों के पास समाधान है “अगर वे वाकई कोई हरि कीर्तन नहीं कर रहे हैं” तो आप उनके लिए पैसा भी लगा देंगे।

                सबसे पहले, कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सिंथेटिक उर्वरक दो प्रतिशत का योगदान करते हैं और नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन के प्राथमिक स्रोत हैं। नाइट्रोजन उर्वरकों के उत्पादन के लिए दुनियाभर के जीवाश्म गैस के तीन से पाँच प्रतिशत की आवश्यकता होती है। वे किसानों को और आयातक देशों को अन्तरराष्ट्रीय बाजारों की अस्थिर कीमतों पर निर्भर बनाते हैं, और यह वैश्विक स्तर पर खाद्य कीमतों में बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण है। फिर भी आप दावा करते हैं कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने और भुखमरी को कम करने के लिए और ज्यादा उर्वरक की जरूरत है। जहरीले और हानिकारक कृत्रिम उर्वरक तरक्की का व्यवहारिक तरीका नहीं है। पहले से ही, अफ्रीका और अन्य जगहों पर कम्पनियाँ, संगठन और किसान राख और खाद से बने जैव उर्वरकों और नीम के पेड़ के तेल या लहसुन जैसे वनस्पति यौगिकों से बने जैव कीटनाशक तैयार कर रहे हैं। इन उत्पादों को स्थानीय स्तर पर बनाया जा सकता है (जिससे निर्भरता और कीमतों में अस्थिरता से बचा जा सकता है), और इसे तेजी से बढ़ाया जा सकता है और इसका व्यवसायीकरण किया जा सकता है।

दूसरा, हरित क्रान्ति किसी शानदार सफलता से कोसों दूर थी। हालाँकि इसने अनाज की फसलों की पैदावार बढ़ाने में 1940 से 1960 के दशक में मैक्सिको, भारत और अन्य जगहों पर थोड़ी भूमिका निभायी, पर इसने दुनिया में भूखे लोगों की संख्या को कम करने या भोजन तक समान और पर्याप्त पहुँच सुनिश्वित करने के लिए न के बराबर काम किया है। इसके साथ कई अन्य समस्याएँ भी आयीं, पारिस्थितिक मुद्दों से लेकर मिट्टी के दीर्घकालिक क्षरण और सामाजिक–आर्थिक मुद्दों जैसे बढ़ती असमानता और कर्ज के जाल में फँसना (जो भारत में किसान आत्महत्याओं की महामारी में एक प्रमुख वजह रहा है)। एक “नयी” हरित क्रान्ति के लिए आपका निर्विवाद समर्थन इतिहास के बारे में और भुखमरी के मूल कारणों के बारे में जानबूझकर अज्ञानता को प्रदर्शित करता है (जिसकी वजह राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाएँ हैं, जिसके बारे में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने बताया है कि दुनिया में भोजन की कमी नहीं है, बल्कि हक न देने की कमी है।)

                तीसरा, जलवायु–प्रतिरोधी बीज पहले से ही मौजूद हैं और किसानों द्वारा विकसित किये जा रहे हैं और जिनका ‘अनौपचारिक बीज बाजारों’ के जरिये व्यापार किये जा रहे हैं। ज्वार पहले से ही जलवायु–अनुकूल स्थापित फसलों में से एक है, जिसे आप अपने साक्षात्कार में तथाकथित “अनाथ फसल” कहते हैं। आप गौर करें कि स्थानीय रूप से अनुकूलित और पौष्टिक अनाज जैसे ज्वार में ज्यादातर निवेश करने के बजाय मक्का और चावल में किया गया है। फिर भी एजीआरए (अफ्रीका में हरित क्रान्ति के लिए एक गठबन्धन) उन संस्थाओं में से एक रहा है जिसे आपकी फाउण्डेशन (बिल एण्ड मेलिण्डा गेट्स फाउण्डेशन) ने बनाया और आर्थिक सहयोग किया, इसने मक्का और चावल पर ध्यान केन्द्रित किया है। दूसरे शब्दों में, आप जिस समस्या का रोना रो रहे हैं, आप उसे पैदा करने में शामिल हैं। एजीआरए पहल, जिसे आपका फाउण्डेशन फण्ड देता है, उसने प्रतिबन्धात्मक बीज कानून को भी आगे बढ़ाया है जो बेहतर संसाधनों वाली प्रयोगशालाओं और कम्पनियों के लिए फसल शोध को सीमित और प्रतिबन्धित करता है। यह पहल व्यापक शोध में बढ़ोत्तरी नहीं करती हैं, बल्कि बीज के विकास और बीज के बाजारों पर कोर्पाेरेट एकाधिकार के निजीकरण और सुद्रणीकरण में योगदान करती हैं।

अन्त में, आपका दावा कि आपके नजरिये के आलोचक कोई सार्थक (और लागू करने योग्य) समाधान विकसित करने के बजाय केवल “हरि कीर्तन कर रहे हैं”। यह टिपण्णी बेहद अपमानजनक और खारिज करने वाली है। पहले से ही कई ठोस प्रस्ताव और परियोजनाएँ चल रही हैं जो उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करती हैं–– जैव उर्वरक और जैव कीटनाशक निर्माण सुविधाओं से लेकर नयी जल और मिट्टी प्रबन्धन तकनीकों के साथ प्रयोग करने के लिए, कम लागत वाली कृषि प्रणालियों और कीट निवारक–– पौधों की प्रजातियों कृषि पारिस्थितिक किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक कई परियोजनाएँ चल रही हैं। आप यहाँ जो कर रहे हैं वह जान–बूझकर मुद्दे से भटकाना है, जैसे– किसान–नेतृत्व वाले चल रहे व्यावहारिक समाधानों को किसी तरह काल्पनिक या हास्यास्पद के रूप में पेश करना, जबकि अपने स्वयं के पसन्दीदा नजरिये को व्यावहारिक समाधान के रूप में पेश करना। फिर भी यह आपके पसन्दीदा उच्च–तकनीकीयुक्त समाधान हैं, जिनमें जेनेटिक इंजीनियरिंग, नयी प्रजनन तकनीकें और अब डिजिटल कृषि शामिल हैं, जो असल में वादे के अनुसार भूख को कम करने या भोजन की पहुँच बढ़ाने में लगातार विफल रहे हैं। और कुछ मामलों में, जलवायु परिवर्तन को सुधारने के लिए आप जिन “समाधानों” को उजागर करते हैं, वे वास्तव में समस्या को बढ़ाने वाली जैव–भौतिक प्रक्रियाओं में योगदान करते हैं (उदाहरण के लिए अधिक जीवाश्म–र्इंधन आधारित उर्वरक, और उनके परिवहन के लिए अधिक जीवाश्म–र्इंधन पर निर्भर बुनियादी ढाँचा) या ऐसी राजनीतिक परिस्थितियों को बढ़ा देते हैं जो भोजन की पहुँच में असमानता की ओर ले जाती हैं (उदाहरण के लिए तमाम नीतियाँ और बीज प्रजनन पहल बड़े निगमों और प्रयोगशालाओं को लाभ पहुँचाती हैं, न कि खुद किसानों को)।

दोनों लेखों में, आप मूलत: कठिन मुद्दों को ऐसे सरल तरीके से पेश करते हैं जो आपके अपने दृष्टिकोण और हस्तक्षेपों को ठीक ठहराते हैं। आप न्यूयॉर्क टाइम्स के सम्पादकीय पर ध्यान दें, आपने लिखा है कि अफ्रीका, श्रम और भूमि की सबसे कम लागत की वजह से, कृषि उत्पादों का निर्यातक होना चाहिए। आप बताते हैं कि ऐसा नहीं है क्योंकि “अफ्रीका की उत्पादकता अमीर देशों की तुलना में बहुत कम है और इनके पास बुनियादी ढाँचा नहीं है।” हालाँकि, भूमि और श्रम की लागत, साथ ही बुनियादी ढाँचे, सामाजिक और राजनीतिक रूप से तय होते हैं। अफ्रीका वास्तव में अत्यधिक उत्पादक महाद्वीप है–– बात सिर्फ इतनी है कि मुनाफा कहीं और चला जा रहा है। अफ्रीकी जीवन, पर्यावरण और निकायों का अवमूल्यन किया गया है, इन्हें उपनिवेशवाद, नवउदारवाद, कर्ज के जाल और कानूनी रूप से लूट के अन्य माध्यमों से, दूसरों के लिए लाभकारी और मुनाफाप्रद वस्तु बना दिया गया है। कृषि उत्पादों को इस महाद्वीप से बाहर ले जाने के अवरचनागत ढाँचे का विकास किया गया है। अफ्रीका अनाज में आत्मनिर्भर नहीं है क्योंकि इसके कृषि, खनन और अन्य संसाधन–गहन क्षेत्रों को इस तरह से बना दिया गया है जो खुद अफ्रीकी लोगों के बजाय औपनिवेशिक और फिर अन्तरराष्ट्रीय बाजारों की सेवा करने के लिए तैयार हैं। फिर भी, श्रीमान बिल गेट्स आप निश्वित रूप से इन सब के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, आप और आपकी फाउण्डेशन कृषि के बारे में बहुत ही निजीकृत, मुनाफा–आधारित और कोर्पाेरेट दृष्टिकोण के जरिये इनमें से कुछ समस्याओं को बढ़ा रहे हैं।

अफ्रीकी किसानों और संगठनों द्वारा व्यावहारिक समाधानों और नयी खोजों की कोई कमी नहीं है। हम आपको थोड़ा पीछे हटकर सोचने और जमीन पर मौजूद लोगों से सीखने के लिए आमन्त्रित करते हैं। साथ ही, जो सच्चाइयाँ हमने बतायीं, उनको जीने वाले तथा लागू करने वाले लोगों और समुदायों की ओर से हम उच्च स्तरीय समाचार पत्रों को एक अमीर श्वेत व्यक्ति की त्रुटिपूर्ण धारणाओं, अभिमान और अज्ञानता के प्रसार से बचने और सतर्क रहने के लिए आगाह करते हैं।

हस्ताक्षर करने वाले 50 संगठन

अनुवाद –राजेश कुमार