इन दिनों कट्टर हो रहा हूँ मैं–––
व्यंग्य–– अनूप मणि त्रिपाठी
आजकल मैं बहुत हीन भावना में जी रहा हूँ। सामान्य तौर पर मैं सामान्य मनुष्य के जैसा जीवन ही जीना चाहता रहा हूँ। मगर अब देख रहा हूँ कि ऐसा सोचना भी मेरा असामान्य है। आजकल ऐसे सोचने वालों को कायर कहा जाता है। कायर ही नहीं बहुत कुछ कहा जाता है, जो यहाँ लिखा नहीं जा सकता।
कट्टर शब्द को मैं नकारात्मक मानता हूँ। मुझे लगता है कोई एक बार कट्टर बन गया तो वह इनसान तो नहीं ही रहता! अब मुझे लगता है कि मुझे अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। पर मैं कट्टर जैसे भारी, महाप्रचलित और अतिआवश्यक शब्द को सिर्फ धर्म के साथ रखने का कट्टर विरोधी हूँ। कट्टर शब्द को सीमित न रखकर इसको व्यापक करने की जररूत है। जैसे कट्टर ईमानदार, कट्टर खूबसूरत, कट्टर ज्ञान, कट्टर दयालु, कट्टर भावुक, कट्टर मेहनती, कट्टर नेता, कट्टर प्रेमी वगैरह। वह कट्टर गोरे रंग पर मरता है। वह कट्टर बेरोजगार है। ऐसे वाक्य बोले और लिखे जाने चाहिए!
कल बाजार में एक पुराना मित्र मिला।
बोला, ‘यार तुम बहुत ढीले हो!’
मैंने उससे पूछा कि फिर मुझे क्या करना चाहिए।
वह बोला, ‘थोड़ा कट्टर बनो!’
मैंने उसे शुक्रिया कहा।
‘किस बात के लिए!’ उसने पूछा।
‘आपने थोड़ा कहकर बहुत रियायत दे दी!’
वह मुस्कुराया। बोला, ‘शुक्र है तुम जाग गए!’
‘क्या अब जागना भी होगा!’, मैंने पूछा।
वह हँसा और हाथों की उँगलियों को हिलाते हुए बोला, ‘बिना जागे कट्टर नहीं बन सकते––’
‘यह भी गजब है! बचपन में माँ जगाती थी, तो जवानी में घड़ी। सोचा था, अब आराम से सोऊँगा तो तुम जैसे चिंतक जागे रहे। ट्रेन में किसी सहयात्री की तरह घड़ी–घड़ी भाईसाहब कौन सा स्टेशन आया, पूछने वाले की तर्ज पर चैन से न रहने देना!’ मैंने उलाहना दिया।’
‘भइया अपने धर्म के हो तो जागना पड़ेगा!’ उसने सर हिलाया।
‘अगर मैं किसी और धर्म का होता तो!’
‘तब तो कोई जरूरत नहीं थी।’
‘क्यों!’
‘वह तो पहले से जागे हैं!’
‘अच्छा! तुम सारी खबर रखते हो! वैसे जागने का काम चैकीदार का होता है!’
‘जागते तो चोर भी हैं!’ उसने यह कर अपनी एक आँख दबायी।
‘फिर मुझे कैसे जागना होगा!’ मैंने पूछा।
‘जैसे मैं जागा हूँ!’ वह बोला।
अब जाकर मैंने उसे गौर से देखा। भरा हुआ चेहरा। चमकता हुआ। विज्ञापन वाली भाषा में कहूँ तो विटामिन ई, एलोविरा से युक्त खिला–खिला चेहरा। एक मैं हूँ कि जागने की वजह से मेरे आँखों के नीचे काले गड्ढे पड़ चुके हैं और यह–––
‘मैं काफी देर तक जागता हूँ मित्र!’
यह सुनकर वह हँसा।
‘नींद सेहत के लिए बहुत जरूरी है।’ उसने सुझाव दिया।
‘फिर जागने की बात क्यों करते हो!’
‘अरे यार जागने का मतलब वो नहीं है, जो तुम ले रहे हो!’
‘फिर मैं कैसे लूँ!’
‘जागने का मतलब जाग्रत अवस्था। अपनी संकृति से प्रेम। राष्ट्र के प्रति भक्ति–––’
‘मुझे लगता है यह सब मैं करता हूँ!’
‘जागने का मतलब देशद्रोहियों पर नजर भी! खतरा बढ़ता ही जा रहा!’ यह कह कर वह इधर–उधर देखने लगा।
‘ये काम तो सरकार, सेना, पुलिस लोगों का है!’
‘तुम हो बेवकूफ! अपने आस–पास पहचानो!’
‘जल सेना के ग्यारह जवान जासूसी करते हुए पकड़े गये, जब सेना ही नहीं पहचान पा रही तो हमारे जैसा साधारण इनसान क्या पहचानेगा!’
‘कपड़े से पहचानो!’
‘कपड़े से कैसे पहचान होगी! सेना के जवान सब वर्दी में ही थे! मुझे कोई और काम–धंधा नहीं है क्या!’ मैंने उसे झिड़का।
‘तुम्हें काम–धंधे की पड़ी है! चाहे देश जल जाये! हैएँ!!!’ उसने मुझे घूरा। मैं समझ चुका था यह अपनी टेक नहीं छोड़ेगा।
‘तुमने तो मेरी आँखें खोल दी मित्र। देश के लिए अब मैं जागूँगा! अगली बार जब तुमसे मिलूँगा तो मैं पूरा कट्टर बन कर मिलूँगा–– शायद तुमसे भी ज्यादा! क्योंकि मैं अपने देश को सच्चा नहीं–– नहीं––– कट्टर प्यार करता हूँ!!’
‘यह हुई न बात!’ उसने जोश में मेरे कंधे पर शाबाशी दी।
तभी उसके मोबाइल पर झम से एक संदेश आया। उसने वह संदेश दिखाया। संदेश कह रहा कि जो कट्टर है, इसे लाइक करें। उसने मोबाइल मेरी तरफ बढ़ा दिया।
‘लो तुम लाइक करो!’ बोला।
‘मैं अभी कट्टर कहाँ हुआ!’ मैं उससे बताता हूँ। उसने उसे झट से लाइक कर दिया। मैं मन मसोस कर उसके उत्साह को देखता रह गया।
‘अब तो अपनी सुरक्षा की व्यवस्था भी खुद ही करनी पड़ेगी!’ जाते–जाते बोला।
मैं देख रहा हूँ, जागने पर जोर कौन दे रहा! विधान सभा–संसद में जो नेता सोता है वो! मुझको अंधेरे में रखकर बीमा बेचने वाला परम मित्र ये! जाग जाऊँ पर सही रास्ता कौन बताएगा! मुझे जगाकर आराम से कौन सोएगा! अगर मैं वाकई जाग गया तो जगाने वालों के चेहरों जैसा मेरा भी चेहरा चमकदार होगा कि नहीं! पता नहीं इनको जागने पर क्या दीखता है। मुझे तो जागने पर संडास दीखता है––– और सबसे बड़ी बात जागने के बाद रोशनी तो होगी न!
मैं बाजार में घूम रहा हूँ। इधर–उधर नजर घुमा रहा हूँ। देखिए, फलाँ कह रहा कि इसमें इतने प्रतिशत एक्स्ट्रा है। अलाँ कह रहा कि यह बचत नहीं महाबचत है। आज सीधे–साधे से काम नहीं चलता! अपने बिकने को लेकर ये प्रोडक्ट भी कट्टर हो गये हैं। पर मैं तो मनुष्य हूँ। मैं सोचता हूँ। मुझे क्या बेचना है, क्या खरीदना है! मेरे कट्टर होने से क्या भला होना है! किसका भला होना है! अगर होना है तो कैसे भला होना है। हमने वोट देकर जिनको चुना था। आज वही हमसे कट्टर होने को कह रहा। मैं सोचता हूँ ,कट्टर हो कर मुझे क्या मिलेगा! हाँ मगर पीढ़ी दर पीढ़ी उसकी पार्टी को हमारे घर का वोट उसे जरूर मिलेगा! अर्थात कट्टर मतलब पुश्त दर पुश्त वोटर होने की गारंटी ––
घूमते–घूमते मैं केले के ठेले के पास आ गया हूँ।
‘कट्टर केले कैसे दिये!’ उधेड़बुन में मैं उससे पूछता हूँ।
‘ पचपन रुपये दर्जन!’
‘‘आएँ!!’ दाम तो वाकई कट्टर हैं!’ मैं सोचता हूँ और आगे बढ़ लेता हूँ।
‘पचास लग जाएँगे!’ वह अपनी कट्टरता कुछ कम करता है। मेरे हिसाब से अभी भी बहुत ज्यादा थी। मैं यह जानता हूँ कि दाम की कट्टरता तय करने के पीछे इसका कोई हाथ नहीं। वह भी मेरी ही तरह है। ‘कवि कहना चाहता है कि––’ के जैसे हम वहीं रट कर चलने वाले लोग हैं, जिसे हमें रटा दिया जाता है।
‘नहीं नाश्ते में आज गर्व खाऊँगा!’ मैं उससे कहता हूँ
‘आज तो खा लेंगे सर! मगर कल!’ वह हँसता है।
‘आज जो गर्व खाया है। मैं जानता हूँ वो पचेगा नहीं। इसको पचाने के लिए मनुष्यता का त्याग करना पड़ता है। इतिहास बदलना होता है। कल उल्टी हो ही जाएगी। नाश्ते की नौबत और तबियत ही नहीं होगी!’
‘मगर परसों सर!’
‘हाँ मगर परसो क्या!’ मैं सोच में पड़ जाता हूँ।
परसों तुम्हारा ठेला लूट लूँगा!’ मैं मजाक करता हूँ। वह सहम जाता है। मुझे झेंप नहीं गुस्सा आता है। यह मजाक को इतनी गम्भीरता से क्यों ले रहा! मजाक को सच समझ रहा!
‘मजाक कर रहा हूँ!’ मैं स्पष्ट करता हूँ। वह इसके बाद एक फीकी मुस्कान देता है। कमबख्त अभी भी सच मान रहा!
कुछ दिन बाद मैं अपने जागे मित्र के घर पहुँचता हूँ। जिसे मेजबान आ धमकना कहते हैं।
काउच पर मेरे लिए सोफा ही है, उस पर बैठते ही मैंने कट्टा निकाल कर उनकी गोद मे रख दिया। वह उछल पड़ा। जैसे बचपन में किसी के ऊपर प्लास्टिक का साँप फेंक देते थे।
‘ये क्या है! उसने चैंकते हुए पूछा।
‘कट्टा है!’
‘हाँ वह तो मैं भी देख रहा हूँ!’
‘तुमने कहा था कि कट्टर बनो!’
‘तो!’
‘तुमसे ज्यादा कट्टर बन गया हूँ, जैसा तुम से कहा था। यह कट्टा तुम्हारे बेटे के लिए लाया हूँ!’
‘पागल हो! कैसे चाचा हो तुम! कलम की जगह कट्टा दे रहे हो!’ वह गुस्से से बोला। मैं उसके गुस्से को देख रहा था।
‘अपने बेटे को दो, जा के!’ वह फिर बोला।
‘दोस्त, मैं पूरी तरह से जाग चुका हूँ। इसलिए उसे पहले ही दे चुका हूँ!’
वह एक झटके से उठा। मेरा हाथ पकड़ कर उठाते हुए बोला,’ तुम्हें आराम की जरूरत है। लगता है तुम कई दिनों से ठीक से सोये नहीं हो! भरपूर नींद लो जा के!’
मैं जाने लगा तो वह पीछे से टोका, ‘और ये लेते जाओ!’ यह कह कर उसने कट्टा मेरे हाथ में पकड़ा दिया।
सड़क पर आकर मैं हँसा। खूब हँसा।
उसी केले वाले के पास दुबारा पहुँचा। वह मुझे देखकर कुछ घबरा सा गया।
‘ये क्या है सर!’ वह डरते हुए पूछता है।
‘कट्टा!’ वह जड़ हो गया।
‘अरे, बच्चों का खिलौना है ये!’
इस बात पर वह और डर जाता है। ऐसा क्या गलत बोल दिया मैंने! थोड़ी देर के लिए मैं सोचने लगता हूँ।
‘अरे यह प्लास्टिक का खिलौना है! नकली! नकली है पूरी तरह!’ मैं उसे तसल्ली देता हूँ।
‘बिल्कुल असली लग रहा था सर!’
‘यही तो दिक्कत है आजकल। लोग नकली को असली समझने लगे हैं!’
वह मुस्कुराता है।
‘केले तो कट्टर है न!’
‘बहुत! चखिए तो सर!’
‘अभी एक को चखा कर आया हूँ!’
‘जी!!!’ वह मुझे गौर स देखता है।
‘कुछ नहीं, तुम नहीं समझोगे!’ मैं हँसता हूँ।
‘क्यों नहीं समझेंगे सर! केले के साथ हमको भी कट्टर समझ रहे हैं क्या!’
मैं उसे देखता रह जाता हूँ। इस बात पर मैं तो आज कट्टर केला खा कर रहूँगा। मैं केला खरीद लेता हूँ। मैं केला खाता हूँ।’
‘केला कट्टर हो न हो पर मीठा है!’
‘कट्टर मीठा सर–––’ वह बोलता है।
हम दोनों हँस देते हैं–––
लेखक की अन्य रचनाएं/लेख
राजनीति
- 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय के प्रति बिहार सरकार का शत्रुवत व्यवहार –– पुष्पराज 19 Jun, 2023
- इलेक्टोरल बॉण्ड घोटाले पर जानेमाने अर्थशास्त्री डॉक्टर प्रभाकर का सनसनीखेज खुलासा 6 May, 2024
- कोरोना वायरस, सर्विलांस राज और राष्ट्रवादी अलगाव के खतरे 10 Jun, 2020
- जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का तर्कहीन मसौदा 21 Nov, 2021
- डिजिटल कण्टेण्ट निर्माताओं के लिए लाइसेंस राज 13 Sep, 2024
- नया वन कानून: वन संसाधनों की लूट और हिमालय में आपदाओं को न्यौता 17 Nov, 2023
- नये श्रम कानून मजदूरों को ज्यादा अनिश्चित भविष्य में धकेल देंगे 14 Jan, 2021
- बेरोजगार भारत का युग 20 Aug, 2022
- बॉर्डर्स पर किसान और जवान 16 Nov, 2021
- मोदी के शासनकाल में बढ़ती इजारेदारी 14 Jan, 2021
- सत्ता के नशे में चूर भाजपाई कारकूनों ने लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से रौंदा 23 Nov, 2021
- हरियाणा किसान आन्दोलन की समीक्षा 20 Jun, 2021
सामाजिक-सांस्कृतिक
- एक आधुनिक कहानी एकलव्य की 23 Sep, 2020
- किसान आन्दोलन के आह्वान पर मिट्टी सत्याग्रह यात्रा 20 Jun, 2021
- गैर बराबरी की महामारी 20 Aug, 2022
- घोस्ट विलेज : पहाड़ी क्षेत्रों में राज्यप्रेरित पलायन –– मनीषा मीनू 19 Jun, 2023
- दिल्ली के सरकारी स्कूल : नवउदारवाद की प्रयोगशाला 14 Mar, 2019
- पहाड़ में नफरत की खेती –– अखर शेरविन्द 19 Jun, 2023
- सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर राजनीति 14 Dec, 2018
- साम्प्रदायिकता और संस्कृति 20 Aug, 2022
- हमारा जार्ज फ्लायड कहाँ है? 23 Sep, 2020
- ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ पर केन्द्रित ‘कथान्तर’ का विशेषांक 13 Sep, 2024
व्यंग्य
- अगला आधार पाठ्यपुस्तक पुनर्लेखन –– जी सम्पत 19 Jun, 2023
- आजादी को आपने कहीं देखा है!!! 20 Aug, 2022
- इन दिनों कट्टर हो रहा हूँ मैं––– 20 Aug, 2022
- नुसरत जहाँ : फिर तेरी कहानी याद आयी 15 Jul, 2019
- बडे़ कारनामे हैं बाबाओं के 13 Sep, 2024
साहित्य
- अव्यवसायिक अभिनय पर दो निबन्ध –– बर्तोल्त ब्रेख्त 17 Feb, 2023
- औपनिवेशिक सोच के विरुद्ध खड़ी अफ्रीकी कविताएँ 6 May, 2024
- किसान आन्दोलन : समसामयिक परिदृश्य 20 Jun, 2021
- खामोश हो रहे अफगानी सुर 20 Aug, 2022
- जनतांत्रिक समालोचना की जरूरी पहल – कविता का जनपक्ष (पुस्तक समीक्षा) 20 Aug, 2022
- निशरीन जाफरी हुसैन का श्वेता भट्ट को एक पत्र 15 Jul, 2019
- फासीवाद के खतरे : गोरी हिरणी के बहाने एक बहस 13 Sep, 2024
- फैज : अँधेरे के विरुद्ध उजाले की कविता 15 Jul, 2019
- “मैं” और “हम” 14 Dec, 2018
समाचार-विचार
- स्विस बैंक में जमा भारतीय कालेधन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी 20 Aug, 2022
- अगले दशक में विश्व युद्ध की आहट 6 May, 2024
- अफगानिस्तान में तैनात और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की आत्महत्या 14 Jan, 2021
- आरओ जल–फिल्टर कम्पनियों का बढ़ता बाजार 6 May, 2024
- इजराइल–अरब समझौता : डायन और भूत का गठबन्धन 23 Sep, 2020
- उत्तर प्रदेश : लव जेहाद की आड़ में धर्मान्तरण के खिलाफ अध्यादेश 14 Jan, 2021
- उत्तर प्रदेश में मीडिया की घेराबन्दी 13 Apr, 2022
- उनके प्रभु और स्वामी 14 Jan, 2021
- एआई : तकनीकी विकास या आजीविका का विनाश 17 Nov, 2023
- काँवड़ के बहाने ढाबों–ढेलों पर नाम लिखाने का साम्प्रदायिक फरमान 13 Sep, 2024
- किसान आन्दोलन : लीक से हटकर एक विमर्श 14 Jan, 2021
- कोयला खदानों के लिए भारत के सबसे पुराने जंगलों की बलि! 23 Sep, 2020
- कोरोना जाँच और इलाज में निजी लैब–अस्पताल फिसड्डी 10 Jun, 2020
- कोरोना ने सबको रुलाया 20 Jun, 2021
- क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमान होना ही गुनाह है? 23 Sep, 2020
- क्यूबा तुम्हारे आगे घुटने नहीं टेकेगा, बाइडेन 16 Nov, 2021
- खाली जेब, खाली पेट, सर पर कर्ज लेकर मजदूर कहाँ जायें 23 Sep, 2020
- खिलौना व्यापारियों के साथ खिलवाड़ 23 Sep, 2020
- छल से वन अधिकारों का दमन 15 Jul, 2019
- छात्रों को शोध कार्य के साथ आन्दोलन भी करना होगा 19 Jun, 2023
- त्रिपुरा हिंसा की वह घटना जब तस्वीर लेना ही देशद्रोह बन गया! 13 Apr, 2022
- दिल्ली उच्च न्यायलय ने केन्द्र सरकार को केवल पाखण्डी ही नहीं कहा 23 Sep, 2020
- दिल्ली दंगे का सबक 11 Jun, 2020
- देश के बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में 14 Dec, 2018
- न्यूज चैनल : जनता को गुमराह करने का हथियार 14 Dec, 2018
- बच्चों का बचपन और बड़ों की जवानी छीन रहा है मोबाइल 16 Nov, 2021
- बीमारी से मौत या सामाजिक स्वीकार्यता के साथ व्यवस्था द्वारा की गयी हत्या? 13 Sep, 2024
- बुद्धिजीवियों से नफरत क्यों करते हैं दक्षिणपंथी? 15 Jul, 2019
- बैंकों की बिगड़ती हालत 15 Aug, 2018
- बढ़ते विदेशी मरीज, घटते डॉक्टर 15 Oct, 2019
- भारत देश बना कुष्ठ रोग की राजधानी 20 Aug, 2022
- भारत ने पीओके पर किया हमला : एक और फर्जी खबर 14 Jan, 2021
- भीड़ का हमला या संगठित हिंसा? 15 Aug, 2018
- मजदूरों–कर्मचारियों के हितों पर हमले के खिलाफ नये संघर्षों के लिए कमर कस लें! 10 Jun, 2020
- महाराष्ट्र के कपास किसानों की दुर्दशा उन्हीं की जबानी 23 Sep, 2020
- महाराष्ट्र में कर्मचारी भर्ती का ठेका निजी कम्पनियों के हवाले 17 Nov, 2023
- महाराष्ट्र में चार सालों में 12 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की 15 Jul, 2019
- मानव अंगों की तस्करी का घिनौना व्यापार 13 Sep, 2024
- मौत के घाट उतारती जोमैटो की 10 मिनट ‘इंस्टेण्ट डिलीवरी’ योजना 20 Aug, 2022
- यूपीएससी की तैयारी में लगे छात्रों की दुर्दशा, जिम्मेदार कौन? 13 Sep, 2024
- राजस्थान में परमाणु पावर प्लाण्ट का भारी विरोध 13 Sep, 2024
- रेलवे का निजीकरण : आपदा को अवसर में बदलने की कला 23 Sep, 2020
- लोग पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए क्यों लड़ रहे हैं 17 Nov, 2023
- विधायिका में महिला आरक्षण की असलियत 17 Nov, 2023
- वैश्विक लिंग असमानता रिपोर्ट 20 Aug, 2022
- श्रीलंका पर दबाव बनाते पकड़े गये अडानी के “मैनेजर” प्रधानमंत्री जी 20 Aug, 2022
- संस्कार भारती, सेवा भारती––– प्रसार भारती 14 Jan, 2021
- सत्ता–सुख भोगने की कला 15 Oct, 2019
- सरकार द्वारा लक्ष्यद्वीप की जनता की संस्कृति पर हमला और दमन 20 Jun, 2021
- सरकार बहादुर कोरोना आपके लिए अवसर लाया है! 10 Jun, 2020
- सरकार, न्यायपालिका, सेना की आलोचना करना राजद्रोह नहीं 15 Oct, 2019
- सरकारी विभागों में ठेका कर्मियों का उत्पीड़न 15 Aug, 2018
- हम इस फर्जी राष्ट्रवाद के सामने नहीं झुकेंगे 13 Apr, 2022
- हाथरस की भगदड़ में मौत का जिम्मेदार कौन 13 Sep, 2024
- हुकुम, बताओ क्या कहूँ जो आपको चोट न लगे। 13 Apr, 2022
कहानी
- जामुन का पेड़ 8 Feb, 2020
- पानीपत की चैथी लड़ाई 16 Nov, 2021
- माटी वाली 17 Feb, 2023
- समझौता 13 Sep, 2024
विचार-विमर्श
- अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है? 23 Sep, 2020
- अस्तित्व बनाम अस्मिता 14 Mar, 2019
- क्या है जो सभी मेहनतकशों में एक समान है? 23 Sep, 2020
- क्रान्तिकारी विरासत और हमारा समय 13 Sep, 2024
- दिल्ली सरकार की ‘स्कूल्स ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सलेंस’ की योजना : एक रिपोर्ट! 16 Nov, 2021
- धर्म की आड़ 17 Nov, 2023
- पलायन मजा या सजा 20 Aug, 2022
- राजनीति में आँधियाँ और लोकतंत्र 14 Jun, 2019
- लीबिया की सच्चाई छिपाता मीडिया 17 Nov, 2023
- लोकतंत्र के पुरोधाओं ने लोकतंत्र के बारे में क्या कहा था? 23 Sep, 2020
- विकास की निरन्तरता में–– गुरबख्श सिंह मोंगा 19 Jun, 2023
- विश्व चैम्पियनशिप में पदक विजेता महिला पहलवान विनेश फोगाट से बातचीत 19 Jun, 2023
- सरकार और न्यायपालिका : सम्बन्धों की प्रकृति क्या है और इसे कैसे विकसित होना चाहिए 15 Aug, 2018
श्रद्धांजलि
कविता
- अपने लोगों के लिए 6 May, 2024
- कितने और ल्हासा होंगे 23 Sep, 2020
- चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह 23 Sep, 2020
- बच्चे काम पर जा रहे हैं 19 Jun, 2023
अन्तरराष्ट्रीय
- अमरीका बनाम चीन : क्या यह एक नये शीत युद्ध की शुरुआत है 23 Sep, 2020
- इजराइल का क्रिस्टालनाख्त नरसंहार 17 Nov, 2023
- क्या लोकतन्त्र का लबादा ओढ़े अमरीका तानाशाही में बदल गया है? 14 Dec, 2018
- पश्चिम एशिया में निर्णायक मोड़ 15 Aug, 2018
- प्रतिबन्धों का मास्को पर कुछ असर नहीं पड़ा है, जबकि यूरोप 4 सरकारें गँवा चुका है: ओरबान 20 Aug, 2022
- बोलीविया में तख्तापलट : एक परिप्रेक्ष्य 8 Feb, 2020
- भारत–इजराइल साझेदारी को मिली एक वैचारिक कड़ी 15 Oct, 2019
- भोजन, खेती और अफ्रीका : बिल गेट्स को एक खुला खत 17 Feb, 2023
- महामारी के बावजूद 2020 में वैश्विक सामरिक खर्च में भारी उछाल 21 Jun, 2021
- लातिन अमरीका के मूलनिवासियों, अफ्रीकी मूल के लोगों और लातिन अमरीकी संगठनों का आह्वान 10 Jun, 2020
- सउ़दी अरब की साम्राज्यवादी विरासत 16 Nov, 2021
- ‘जल नस्लभेद’ : इजराइल कैसे गाजा पट्टी में पानी को हथियार बनाता है 17 Nov, 2023
राजनीतिक अर्थशास्त्र
साक्षात्कार
- कम कहना ही बहुत ज्यादा है : एडुआर्डो गैलियानो 20 Aug, 2022
- चे ग्वेरा की बेटी अलेदा ग्वेरा का साक्षात्कार 14 Dec, 2018
- फैज अहमद फैज के नजरिये से कश्मीर समस्या का हल 15 Oct, 2019
- भारत के एक बड़े हिस्से में मर्दवादी विचार हावी 15 Jul, 2019
अवर्गीकृत
- एक अकादमिक अवधारणा 20 Aug, 2022
- डीएचएफएल घोटाला : नवउदारवाद की एक और झलक 14 Mar, 2019
- फिदेल कास्त्रो सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के हिमायती 10 Jun, 2020
- बायोमेडिकल रिसर्च 14 Jan, 2021
- भाषा और साहित्य के क्षेत्र में भारत को मुसलमानों का महान स्थायी योगदान 23 Sep, 2020
- सर्वोच्च न्यायलय द्वारा याचिकाकर्ता को दण्डित करना, अन्यायपूर्ण है. यह राज्य पर सवाल उठाने वालों के लिए भयावह संकेत है 20 Aug, 2022
जीवन और कर्म
मीडिया
- मीडिया का असली चेहरा 15 Mar, 2019
फिल्म समीक्षा
- समाज की परतें उघाड़ने वाली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ 15 Jul, 2019