बॉर्डर्स पर किसान और जवान
राजनीतियह अजब संयोग ही है कि अगस्त और सितम्बर महीने में महज 20–25 दिनों के अन्तराल में देश की ऐसे बॉर्डर्स पर जाने का सुअवसर मिला, जहाँ एक ओर देश के फौजी देश की सरहदों की निगेबानी कर रहे हैं। यह मौका मुझे 21 अगस्त से 28 अगस्त की जोखिम भरी लद्दाख यात्रा में मिला। देश की सेना में अधिकांश सैनिक किसानों और मेहनतकशों के ही बच्चे हैं। वहीं दूसरी ओर, गत 22 और 23 सितम्बर को दिल्ली में सिंघू, टिकारी और गाजीपुर बॉर्डर्स पर गये जहाँ मोदी सरकार द्वारा लाये गये किसान विरोधी तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ देश के पाँच सौ से अधिक संगठनों के किसान प्रतिरोध प्रदर्शित करते हुए दस महीने से दिल्ली का घेरा डाले हुए हैं। इन विगत दस महीनों में लगभग 700–800 किसानों ने शहादतें दी हैं जिनमें महिला किसान भी शामिल हैं।
किसान एमएसपी पर कानूनी गारन्टी और तीनों कृषि कानूनों की वापसी चाहते हैं। मोदी सरकार न तो एमएसपी पर गारन्टी कानून लाने के लिए तैयार है और ना ही कानून वापसी के लिए राजी है। इसके लिए केन्द्रीय कृषि मंत्री के साथ किसान संयुक्त मोर्चा के प्रतिनिधियों की आठ–नौ दौर की वार्ता भी हो चुकी है। पर नतीजा शून्य ही रहा क्योंकि सरकार कानून वापस लेने को तैयार नहीं है और संयुक्त किसान मोर्चा इससे कम पर तैयार नहीं है। सरकार कानूनों में कुछ संशोधन करने पर सहमत होने की बात करती है। सवाल है कि क्या जहर को संशोधित करने से वह जहर नहीं रहेगा?
किसानों ने गत दिनों दिल्ली के जन्तर–मन्तर पर सामानान्तर किसान संसद चला कर कृषि कानूनों का न सिर्फ देश के किसानों बल्कि देश के आम जनता पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को जितनी अच्छी तरह से व्याख्यायित किया है, उससे उनकी कृषि कानूनों की वास्तविक समझ पर सवाल उठाना कतई बेबुनियाद है। उन्हें खालिस्तानी और पाकिस्तानी कह कर बीजेपी द्वारा अपमानित किया जाना शर्मनाक है जिसकी विदेशों में भी आलोचना हुई है। संसद में शहीद किसानों के प्रति श्रद्धांजलि और शोक प्रस्ताव पर सरकार की असहमति घोर जनविरोधी भावना और संवेदनहीनता को दर्शाता है।
मैं जब गत 22 सितम्बर को सिंघू बॉर्डर दिल्ली में आन्दोलनरत किसान साथियों से मिलने गया तो वहाँ का परिदृश्य देख कर विस्मित होकर रह गया। सिंघू बॉर्डर दिल्ली करनाल हाइवे पर सिंघू गाँव के पास है। सिंघू हरियाणा का एक बड़ा गाँव है जिसके कारण ही इसे सिंघू बॉर्डर कहते हैं। इतने दिनों से सर्दी–गर्मी–बरसात हर मौसम की मार खाते किसान कैसे रह रहे होंगे देश के अन्नदाता? क्या कोई सरकार इतनी बेरहम हो सकती है, अपने ही देश के किसानों के प्रति? मैं फरीदाबाद में जहाँ रुका था, वहाँ से सिंघू बॉर्डर लगभग 50 किलोमीटर दूर है। रास्ते में जाम और सिंघू गाँव होकर सिंघू बॉर्डर पहुँचने में पूरे 4 घण्टे लगे। गाँव का रास्ता टूटी सड़क, कींचड, जल भराव से गुजरते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर साहब का हरियाणा भी देख लिया। दोपहर लगभग तीन बजे पहुँच कर सिंघू बॉर्डर के करनाल हाइवे पर किसानों के सैलाब और उनके तम्बुओं और झोपड़ेनुमा सड़क पर बनाये कैम्पों को देखकर लगा जैसे हम देश की किसी सरहद पर खड़े हैं। सरहदों पर भी जवान इसी तरह कैम्पों में ही रहते हैं।
मैं अकेला था और गले में कैमरा लटक रहा था। मैं बहुत देर तक घूम–घूम कर बहुत दूर तक यह नजारा देखता रहा और कैमरे में कैद करता रहा। कई किलोमीटर के दायरे में फैले देश के किसान किसी शरणार्थी कैम्प जैसा दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। सामान्य जनजीवन में गतिरोध पैदा किये बगैर देश के किसान दस महीने से डेरा डाले हुए हैं, अपने खाने–पीने की पूरी व्यवस्था के साथ। मैंने उन्हें टूटी हुई सड़क की मरम्मत करते भी देखा ताकि राहगीरों को असुविधा न हो।
अपरचित और अकेला अजब संकोच था कि कोई गलत न समझ बैठे। किसान आन्दोलन को बदनाम करने के षड्यंत्र भी रचे जा रहे हैं सत्ता पक्ष द्वारा। एक भले मानुस होने के सारे सबूत थे मेरे पास–– आधार कार्ड से लेकर प्रेस कार्ड तक। तभी एक नौजवान सिख दोस्त कैम्प से निकला और हाथ मिलाया। पूछा कहाँ से आये हो? मैंने कहा लखनऊ से सिर्फ आप लोगों से मिलने के लिए। बहुत दिनों से थी यह लालसा जो आज पूरी हुई। वह बहुत जोर से हँसा उसका नाम मोनू था सोनीपत का रहने वाला। बोला पत्रकार लगते हो।
वह मुझे कैम्प में ले गया, जहाँ और भी बहुत सारे लोग थे। हर कैम्प में गुड़, पानी और चाय के बगैर नहीं जाने दिया। एक जगह मैंने कहा इतना गुड़ मैं नहीं खा पाऊँगा। बोले जब खाने वाले नहीं होंगे तो हम पैदा किसके लिए करेंगे? उनकी सह्रदयता, सोच की विराटता और विनम्रता बेमिसाल है। मुझे आश्चर्य है प्रकाश झा से लेकर गुलजार साहब और परफेक्शनिस्ट आमिर खान की नजर इस ऐतिहासिक किसान आन्दोलन पर कब पड़ेगी और अब तक क्यों नहीं पड़ी? मशहूर डोकुमेण्टरी फिल्मकार आनन्द पटवर्धन जी का कैमरा इधर क्यों नहीं घूमा?
मैंने उनसे कहा कि मैं यहाँ की रिपोर्ट अखबारों में दूँगा और छपने पर आपको भी भेजूँगा। फिर खूब बातें हुर्इं। और तमाम कैम्पों में गया। लोगों से मिला। उनके फोटो लिये और उनके फोन नम्बर भी। मैं जिन लोगों से मिला, उनमें पंजाब के दो सगे भाई भीमसेन शर्मा और राजकुमार शर्मा थे जो रिटायर फौजी थे। इन्होंने सरहद पर दुश्मन से मोर्चा लिया था और अब सरकार से मोर्चा ले रहे हैं। इस आन्दोलन में रिटायर फौजी किसानों की तादाद अच्छी खासी है। मैं विक्की पंजाब, नरम सिंह रोहतक, तीरथ सिंह पंजाब (मोगा), करमजीत सिंह पंजाब, अजीत सिंह, सन्तोष सिंह, पल सिंह (पंजाब), केर सिंह, बट्टी (पंजाब), बाबा प्रकृति सिंह, अमर सिंह, बलबीर सिंह, गुरुचरन सिंह, परिन्दर सिंह, अवतारसिंह, गुरमेल सिंह, जगदीप सिंह, गुरचरन सिंह पंजाब (हुसेनपुर, संगरू) आदि किसानों से मिला। किसी के चेहरे पर तनाव नहीं था। लम्बे संघर्ष की तैयारी का धैर्य और पारस्परिक एकता उनका अमोघ हथियार ही उनकी असल ताकत है। देश की जनता की भावनाओं का उनके साथ जुड़ाव उनकी दूसरी ताकत थी जिनके बल पर दस महीने से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। कई कैम्पों में स्टील की कटोरी और गिलास में चाय पीने को मिली और भोजन के लिए भी आमंत्रित किया गया। उनके अपनत्व भरे आतिथ्य ने मेरा मन मोह लिया।
मैंने उनसे कहा कि दस महीनों से सर्दी–गर्मी–बरसात झेलते हुए आप लोग अपनी माँगो को लेकर आन्दोलन में है। यह एक ऐतिहासिक आन्दोलन है जिसकी गूँज पूरी दुनियाँ में है। अमृतसर के सुखदेव सिंह और गब्बरसिंह बोले कि यह सरकार तो बहरी–गूँगी है उसे कहाँ सुनाई देती हमारी दर्द भरी चीखें। मैंने कहा कि अब यह किसान आन्दोलन देश का बड़ा जनान्दोलन बन गया है जिससे देश का जनमानस भी जुड़ गया है। सरकार को झुकना तो पड़ेगा ही। सबने कहा झुका कर ही दम लेंगे। हम किसान हैं देश पालते हैं तो देश बचायेंगे भी। मैंने कहा देश को कार्पोरेट अडानी–अम्बानी के हाथों बेचने से यह आन्दोलन ही बचा सकता है। सरकार बुरी तरह बेनकाब हो चुकी है। पर बहुमत का नाजायाज फायदा उठाकर दमन के रास्ते विपक्ष के विरोध को दबाना चाहती है जो बहुत दिन चलने वाला नहीं है। जब अंग्रेज को भागना पड़ा तो ये भूरे अंग्रेज भी भागेंगे। मैंने कहा कि धरती के असल भगवान तो आप हीं हैं। मन्दिर का भगवान तो कभी बोलता नहीं। आप बोल रहे हैं। बातें कर रहे हैं। बोलने वाले दोस्त भगवान। सबने जोर का ठहाका लगाया। उनमें एक बोला आप तो भक्त हैं, भक्त तो भगवान से बड़ा होता है। उनका नहले पर दहला वाला यह जबाब अच्छा लगा और मैं भी हँस पड़ा। तीनों बॉर्डर्स सिंघू, टिकरी और गाजीपुर पर किसान भाइयों, बहनों और बच्चों से मिलकर बेहद खुशी हुई। एक ख्वाहिश जो मन में थी वह पूरी हुई। हम किसी के संघर्ष में थोड़ी दूर भी चल सकें तो वह उन्हें ताकत देता है और हमें सुकून।
–– भगवान स्वरूप कटियार
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