–– अनूप मणि त्रिपाठी

रात को सुरक्षाकर्मी ने आकर बताया कि सर आजादी आयी हुर्इं हैं।

नेता कुछ सोच में पड़ गया।

पूछा, ‘आजादी!!! कौन आजादी!’

अब सुरक्षाकर्मी इसका क्या जवाब देता। वह हाथ बाँधे खड़ा रहा।

नेता फिर कुछ सोचते हुए बोला, ‘अच्छा भेजो! देखते हैं!’ सुरक्षाकर्मी जब जाने लगा तो नेता बोला, ‘सुनो!अच्छे से तलाशी ले लेना!’

‘जी सर’ कहकर वह चला गया। थोड़ी देर बाद आजादी उसके सामने थी।

नेता ने उसे देखा। उसने पहचानने की कोशिश की। कई बार आँखें चकमक चकमक कीं। फिर उसे ध्यानपूर्वक देखा।

‘इत्ती रात को!’, नेता की आँखें अभी तक आजादी के ऊपर से हटी नहीं थीं।

‘हाँ, इमरजेंसी थी!’ आजादी ने आने का औचित्य बताया।

‘हूँ––’ नेता ने बस इतना ही कहा।

‘मैं कब से खड़ी थी। आपसे मिलना चाह रही थी, मगर मुझे आने ही नहीं दे रहे थे सब!’ आजादी ने एक साँस में सब बताया।

‘आते ही शिकायत कर रही हैं आप!’ नेता ने बहुत प्यार से कहा।

‘ न–न––– अपना हाल बता रही हूँ!’ आजादी ने सफाई दी।

‘ऐसे थोड़े न कोई आ सकता!’ नेता मुस्कुराते हुए बोला।

आजादी ने नेता को हैरत से देखा।

‘देश अब आजाद है।’ आजादी ने जोर से कहा।

यह सुनते ही नेता उठा। अपना कुरता झाड़ा। टॉयलेट में घुसा। थोड़ी देर बाद आजादी के कानों में फ्लश करने की आवाज आयी। नेता बाहर आया। आजादी को कुर्सी पर अभी तक बैठे देख उसका मुँह बिचका। उसने भारी मन से फिर से औपचारिकता निभायी।

‘और बताएँ कैसे आना हुआ!’ यह पूछते हुए वह सोफे पर बैठ गया।

आजादी तो जैसे इस अवसर के लिए ही बैठी थी। आजादी ने बताना शुरु किया,

‘जब मैं यहाँ के लिए आ रही थी तो मैंने देखा कि एक गाँव में भीड़ लगी हुई है। कई बन्दूकें तनी हुर्इं हैं। कुछ लोग अपशब्दों की बौछार कर रहे हैं, तो कुछ लोग हाथ जोड़ कर विनती कर रहे हैं। जब मैंने मामला पता किया तो पता चला कि दूल्हे को घोड़ी पर कुछ लोग बैठने नहीं दे रहे। मैंने विरोध करने वालों से कहा कि बैठने दो भाई, अब काहे का टण्टा–––अब तो आजादी है। यह सुनते ही लोगों ने मुझे दौड़ा लिया–––बोले कि–––’

आजादी अभी बता ही रही थी कि बीच में नेता ने टोका, ‘फिर मैं क्या कर सकता हूँ! यह तो पुलिस का मामला है।’

‘आप आला कमान हैं। सारे निर्णय यहीं से लिए जाते हैं––– यहाँ आने से पहले मैंने पता कर लिया है। तभी तो आप के पास आई हूँ–––’

आला कमान शब्द सुनकर नेता को अच्छा लगा। कुरते के बटनों ने सहसा बहुत अधिक कसाव महसूस किया।

‘जिस वर्ग से दूल्हा आता है, वो हमारा वोट बैंक नहीं हैं।’ नेता ने दो टूक कहा।

‘वोट बैंक क्या होता है!’ आजादी को समझ में नहीं आया।

नेता ने आजादी को देखा। वह भोली दीख रही थी। उसने महसूस किया कि वह चाहे जितने साल की हो गयी हो, मगर मैच्योर तो बिल्कुल ही नहीं हुई।

‘वोट बैंक एक ऐसा बैंक होता है, जहाँ संविधान को लॉकर में बन्द करके रख दिया जाता है।’ नेता ने मन ही मन में इस बात को दो–तीन बार बोला। जैसे वह कोई संकल्प दोहरा रहा हो। फिर आगे मन में उसने यह भी कहा। ‘और जब कभी सत्ता का मन होता है, तो सत्ता द्वारा लॉकर खोलकर उस पर एक नजर मार ली जाती है।’ और अब जाकर उसके मन की बात पूरी हुई।

आजादी के सवाल को टालते हुए वह बोला, आपका पर्सनल कोई काम हो तो बोलिए!’

आजादी झट से बोली,’ कल एक होटल में जाते समय उसके बाहर मुझे एक अर्ध नग्न मिला। मैंने निगाहें नीची कर लीं–––जैसे–––’

‘अब लोग उलजुलूल फैशन करने लगे हैं ’ नेता बीच में बोल दिया।

‘पहले मुझे भी ऐसा लगा। जब तक उस होटल में मैं नहीं घुसी थी। खाना खाने के बाद मैंने खाने का बिल देखा, तो मामला समझ में आया। बिल चुकाने में ही उसके कपड़े उतर गये होंगे। किसी तरह से मेरी इज्जत बची! आजकल घूमते वक्त मुझे कई लोग ऐसे ही दिख रहे हैं। महँगाई ने दो जून की रोटी मुहाल कर दी है–––मैंने खुद जाकर दुकानों में रेट लिस्ट चेक की है। और तो और बेरोजगारी कोढ़ में खाज वाला काम कर रही है–––’ यह कहकर आजादी चुप हो गयी। अब वह कुछ हल्का महसूस कर रही थी। इस बार नेता जी ने उसे नहीं टोका। आजादी को हैरत हुई।

‘देखो रही बात बेरोजगारी की––– तो युवाओं को हमने दूसरे काम दे रखे हैं और वह उसी में खुश हैं––– तुम्हें इसकी चिन्ता करने की जरूर नहीं है–––’

आजादी वह दूसरे काम समझना चाहती थी, मगर उसने अपना सारा ध्यान महँगाई पर केंद्रित किया, ‘और महँगाई!!! मैंने खुद देखा है कि इधर दाम में काफी बढ़ोतरी हुई है–––’

‘स्याला वाकई! दाम काफी बढ़ गये हैं!’ नेता आजादी से न बोलकर खुद से बोला।

मगर आजादी ने सुन लिया। वह खुशी से फूली नहीं समायी। वह चहकते हुए बोली,

‘मेरी किसी बात से तो सहमत हुए––– अच्छा लगा कि आप को आटे दाल का भाव पता है!’

नेता ने आजादी को देखा। वह उस पर मोहित हुआ। मुस्कुराते हुए बोला, ‘मैं विधायक की बात कर रहा हूँ आंटी जी––– और आप आटे दाल जैसी तुच्छ बातों को लेकर बैठी हैं!’

आजादी सकपका गयी। 

नेता आगे बोला, ‘पता है,सरकार गिराना–बनाना कितना महंगा हो चला है आजकल! पहले विधायक एक दो करोड़ में मान जाते थे, अब स्याला पचास करोड़ से कम पे कोई राजी ही नहीं होता!’ नेता थूक घोटते हुए बोला।

‘हाँ तो आपको क्या कमी है! आपका कोठार तो भरा हुआ है!’ कमरे में चारो ओर अपनी आँखों को घूमाते हुए आजादी बोली।

‘पन मार्जिन कम होता है न! यह सब धंधे की बात है, आप नहीं समझोगी!’ नेता थोड़ा झुँझलाया।

‘आपके दुख के आगे तो उन लोगों का दुख कुछ भी नहीं!’ आजादी जब यह सब कह रही थी तो उसकी आँखें जगमगाते झूमर को देख रही थीं।

नेता चुप रहा। वह जानता था कि आजादी उस पर तंज कस रही है।

‘कहाँ आप विधायक खरीद रहे हैं और कहाँ जनता रोटी नहीं खरीद पा रही!’ आजादी तुरन्त ही मुद्दे की बात पर आ गयी।

‘झूठ बात, ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। सब प्रोपेगेंडा है।’ नेता गुस्से से बोला। कुछ सेकेंड रुक कर आगे बोला, ‘राष्ट्र निर्माण में कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है!’

‘सरकार बनाने को आप राष्ट्र निर्माण कहते हैं! भूल गये आप इस राष्ट्र के लिए कितनी कुर्बानी दी गयी है!’ न चाहते हुए भी आजादी का दर्द छलछला गया।

नेता चुप रहा। उसका मन ही नहीं हुआ कि इस बात की कोई सफाई दी जाए।

‘वैसे राष्ट्र निर्माण का कोई खाका है!’ आजादी ने पूछा।

‘खाका नहीं खाकी है!’ यह कहकर नेता हँस पड़ा।

‘अरे महाराज! राष्ट्र निर्माण कैसे करेंगे!’  आजादी ने खीजते हुए पूछा।

‘ठोक–बजा कर’

‘मैं समझी नहीं!’

‘जो गद्दार हैं उनको ठोका जाएगा और जो राष्ट्र निर्माण में रोड़े अटकाएँगे उनको बजाया जाएगा!’ नेता जोश में बोला। उसके चहेरे पर चमक आ गयी। आँखें लाल हो गयीं। सीना फूल गया। वह सोफे से पाँच–छ: फीट उठा हुआ महसूस हो रहा था।

ये सब देख–सुन आजादी घबरा गयी। उसकी सासें तेज हो गयीं।

आजादी की ऐसी हालत देख नेता मुस्कुराया। बोला ‘अरे मैं तो मजाक कर रहा हूँ!’

आजादी को यकीन न हुआ। वह अब भी घबराई हुई थी।

नेता आजादी को दुलारते हुए बोला, ‘ये तो मुहावरा है। एक जुमला है बस! ठोक–बजा कर मतलब देख–परख कर! अपन कहते नहीं है कि कोई भी चीज लेने से पहले ठोक–बजा कर देख लेना चाहिए! है कि नहीं!’

आजादी ने सामान्य होने की कोशिश की।

‘कुछ रचनात्मक भी होना चाहिए!’ आजादी ने गम्भीर होकर कहा।

‘वैसे इससे ज्यादा रचनात्मक क्या होगा, पर आपकी तसल्ली के लिए बता दूँ कि इसके अलावा भी हम बहुत कुछ रचनात्मक कर रहे हैं!’ नेता ने सगर्व बताया।

‘मसलन’

‘हम इतिहास को दुरुस्त कर रहे हैं!’ नेता ने अपना हाथ मसलते हुए कहा।

‘इतिहास को कोई कैसे बदल सकता है!’ आजादी को हैरत हुई।

‘लिख के!’

‘लिख के!’

‘हाँ अपने आदमी से लिखवाकर!’

‘यह तो झूठ होगा! मक्कारी होगी!’ आजादी ने विरोध किया।

‘अगर इसके आगे आपने एक लफ्ज भी कहा तो गद्दारी होगी!’ नेता की आवाज भारी हो गई।

आजादी सहम गयी। उसकी हालत देख नेता को हँसी आ गयी।

आजादी को घुटन महसूस होने लगी। उसे लगा कि अगर यहाँ कुछ देर और रही तो उसका दम निकल जाएगा! वह नेता से बोली, ‘अच्छा तो मैं चलूँ!’

‘अरे ऐसे कैसे! आपके आने की खुशी में तो हम अभियान चला रहे हैं!’

‘कैसा अभियान!’

‘डी पी बदलो महाउत्सव अभियान!’ नेता ने खुश होते हुए यह बात बतायी।

‘जी, डीपी बदलो अभियान! इसमें क्या होगा जी!’ आजादी अब कुछ नरम पड़ी।

‘इसमें लोग अपने मोबाइल की डीपी बदल कर तिरंगा लगाएँगे! और हाँ एक बात और–––जीडीपी नहीं डीपी अभियान!’ नेता ने समझाया।।

‘जी, मैंने भी तो वही कहा जी, डी पी बदलो अभियान!’ आजादी ने विनम्रतापूर्वक कहा।

नेता ने आजादी को घूरा। अचानक उसका चेहरा सख्त होने लगा। उसके शरीर में कुछ परिवर्तन होने लगे।

‘यहाँ आने से पहले तुम किससे मिली थी!’ नेता अचानक आप से तुम पर आ गया। आजादी के बोलने से पहले वह बोला, ‘गैंग से मिल कर आयी हो न!’ नेता सोफे से उछल कर खड़ा हो गया।

‘कौन सा गैंग!’ आजादी ने डरते–डरते पूछा।

‘तुम्हारे तेवर देखकर शक तो मुझे पहले ही हो गया था––– तब से तुमको बर्दाश्त कर रहा हूँ! सवाल पे सवाल पूछे जा रही है! अरे वो ढपली बजाने वाले लौंडे–लफाड़ियों की टोली से मिली हो न तुम!’ नेता आजादी के हाथ उमेठते हुए बोला।

आजादी जोर से चीखी।

काँपते हुए बोली, ‘मिली नहीं हूँ, हाँ पर वे मिले थे!’

‘हमें चाहिए आजादी!’, नेता दाँत पीसते हुए अजब ढंग से बोला।

‘यहाँ तो बहुत पड़पड़ बोल रही हो! वहाँ तुमसे कहा नहीं गया कि मैं तो तुम्हारे सामने हूँ और तुम स्यालों को अब कौन–सी आजादी लेनी है!’ नेता ने अपने होठों को चबाया। नेता की भाव भंगिमा देख आजादी की जान सूख गयी।

‘बोल न!’, नेता चीखा।

‘वे कह रहे थे कि मैं अधूरी है। उन्हें पूरी आजादी चाहिए!’ यह कहकर आजादी चुप हो गयी।

‘चुप क्यों हो गयी! आगे बोल!’ नेता ने आजादी के कान पकड़े।

‘वे कह रहे थे कि जहाँ बोलने तक की आजादी न हो, उसे क्या आजाद मुल्क कहेंगे!’ आजादी सिसकियाँ लेती हुई बोली।

‘बोलने की आजादी नहीं हैं! झूठ बोलते हैं वे सब! लोग बोल रहे हैं! खुले आम बोल रहे हैं! और खूब बोल रहे हैं! रुक तुझे मैं सबूत देता हूँ!’

नेता ने अपने मोबाइल पर कुछ सर्च किया और एक वीडियो उसके सामने कर दिया।आजादी ने देखा कि मोबाइल में एक लड़की कह रही थी कि आजादी तो अंग्रेजों से हमें लीज पर मिली है।

इसी क्रम में नेता ने झट दूसरा वीडियो भी दिखाया।

जिसमें एक बहुचर्चित अभिनेत्री कह रही थी कि आजादी तो हमें भीख में मिली थी। असली आजादी तो हमें कुछ वर्षों पहले मिली है।

यह सब देख आजादी स्तब्ध थी।

उसने हिम्मत कर नेता से पूछा, ‘फिर मैं कौन हूँ!!!’

‘फिलहाल तुम मेरी बंधक हो!’ नेता ने स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट कर दी।

 

उस रात आजादी को नेता के बंगले में घुसते हुए तो लोगों ने देखा, मगर बाहर निकलते हुए उसे किसी ने नहीं देखा!