इतिहास में दर्ज सभ्यताएँ सबसे पहले नदियोंे के किनारे विकसित हुर्इं। अगर वहाँ साफ पानी न होता तो शायद यह सभ्यताएँ कभी वहाँ पैदा ही न होती। हमारी पृथ्वी को नीले ग्रह के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहाँ जल का विशाल भण्डार है। इसके चलते ही यहाँ जीवन सम्भव हो पाया है और इनसानी शरीर में भी 71 प्रतिशत हिस्सा पानी है।

आप सोच रहे होंगे कि इन सब बातों का यहाँ क्या मतलब है तो मैं बता दूँ कि यही पानी जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती आज बेहद तेजी से अपनी गुणवत्ता और स्तर खो रहा है।

यह बात आज किसी न्यूज चैनल या अखबार द्वारा पुख्ता होने का इन्तजार नहीं करती कि हमारे जलस्रोत संकट में है। पानी हद से ज्यादा दूषित हो गया है। पानी रखे–रखे पीला हो जा रहा है और उसे जमीन से निकालने के लिए भी ज्यादा गहराई तक जाना पड़ रहा है। लेकिन जनता को इसकी असली वजह पता नहीं है और वह अनजाने ही मल्टीनेशनल कम्पनियों के झूठे प्रचार तंत्र में फँस रही है।

1980 के दशक में एक्वागार्ड और 1990 में केंट ने अपने वाटर प्यूरीफायर को बाजार में उतारा गया। तब यह अमीरों के लिए माना जाता था और साधारण पानी भी इतना साफ था कि उसका इस्तेमाल बीमारी को बढ़ावा नहीं देता था। लेकिन आज पानी के प्रदूषण से फिल्टर कम्पनियों की पौ बारह हो रही है। वे अपने यूवी रेडिएशन, कार्बन फिल्टर, बिजली से चलने वाले और साधारण फिल्टर वाले वॉटर प्यूरीफायर बाजार में उतारकर अकूत मुनाफा काट रही हैं। वे शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण पानी के वादे के साथ फिल्म सितारों से अपने वॉटर प्यूरीफायर का खूब प्रचार प्रसार करावा रही हैं।

आज रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) वॉटर प्यूरीफायर का बाजार 2013 से दोगुना हो गया है। ‘इंडिया वॉटर प्यूरीफायर मार्केट रिपोर्ट’ बताती है कि यह बाजार आज की तुलना में 2032 तक दोगुने से अधिक हो जाएगा। लोगों को उनकी सेहत और सुरक्षा का डर दिखाकर विज्ञापनों के जरिये इसकी ग्रोथ रेट में 9–1 फीसदी तक की बढ़ोतरी की गयी।

आरओ का पानी हमारी सेहत के लिए पूरी तरह फायदेमन्द नहीं है क्योंकि यह पानी में घुली अशुद्धियों के साथ–साथ अनेक पोषक तत्वों को भी निकाल बाहर कर देता है जो हमारे शारीरिक विकास के लिए बेहद जरूरी है। भारत मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने 30 से 35 तत्वों की मानकता तय करते हुए स्वच्छ और सेहतमन्द पानी के बारे में बताया। उसके अनुसार, 1 लीटर पानी में कुल घुलित ठोस (टीडीएस) 500 मिलीग्राम, पीएच मान 6–5 से 8–5, कैल्शियम 75 से 200 मिलीग्राम, मैग्नीशियम 30 से 100 मिलीग्राम, सल्फेट 200 से 400 मिलीग्राम और नाइट्रोजन 4 मिलीग्राम होने चहिए। 8 अगस्त 2023 को ‘जनरल ऑफ द इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ ने बताया कि 90 से 92 फीसदी फायदेमन्द कैल्शियम और मैग्नीशियम रिवर्स ऑस्मोसिस सिस्टम द्वारा निकाल दिये जाते हैं। इसकी कमी से शरीर में ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का कमजोर होना) और हाइपरटेंशन के साथ–साथ अन्य गम्भीर समस्याएँ पैदा हो सकती है। उत्तराखण्ड की ‘नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलॉजी’ ने भी इसी तरह के शोध नतीजे निकाले हैं। उसने बताया कि पानी में कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी से ब्लड प्रेशर, अनियमित हार्टबीट, डायबिटीज टाइप टू, ऑस्टियोपोरोसिस, रक्त नली में खराबी और गर्भवती महिलाओं में होने वाला उच्च रक्तताप आदि शारीरिक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2019 में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को भूजल संसाधनों पर आरओ के प्रभाव का अध्ययन करके एक रिपोर्ट बनाने को कहा। सीपीसीबी ने बताया कि आरओ फिल्टर शोधन प्रक्रिया के दौरान एक लीटर पानी को तैयार करने के लिए तीन लीटर से ज्यादा पानी बर्बाद करता है और प्यूरीफायर से उत्पन्न कचरा भी पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है।

आज देश के हर हिस्से का पानी दूषित हो गया है। इसका कारण यह है कि मल्टीनेशनल कम्पनियों के द्वारा फैक्टरियों और सीवर का गन्दा पानी सीधे नदियों में या रिवर्स बोरिंग के जरिये भूमि में छोड़ा जा रहा है। भूमिगत जल को बड़े पैमाने पर जहरीला किया जा रहा है और उसका अन्धाधुन्ध दोहन भी किया जा रहा है। हालात यहाँ तक बिगड़ चुके हैं कि भूमिगत जल बहुत तेजी से खत्म हो रहा है, जैसे हाल ही में बेंगलुरु का भूमिगत जल समाप्त हो गया। इससे वहाँ लोगों को पानी के लिए मुसीबतें उठानी पड़ रही हैं।

इन बातों का आरओ फिल्टर कम्पनियों पर कोई असर नहीं। वे तो इस समस्या में अपने बाजार का विस्तार देख रही हैं। उन्होंने समस्या हल करने के बजाय दूसरी नयी समस्याएँ पैदा कर दी हैं जो इनसान और पर्यावरण दोनों के लिए ही घातक हैं।