अनियतकालीन बुलेटिन

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अंक 37, जनवरी 2021

संपादकीय

जन विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का अभूतपूर्व देशव्यापी संघर्ष

किसान विरोधी, जन विरोधी तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का अभूतपूर्व ऐतिहासिक आन्दोलन, जो 26 नवम्बर को दिल्ली के सिंघू बॉर्डर से शुरू हुआ, अब गाजीपुर, टीकरी, शाहजहाँपुर और पलवल तक फैल गया है और उसे शुरू हुए डेढ़ महीने से ज्यादा समय बीत चुका है। आजादी के बाद की यह सबसे...

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देश विदेश के इस अंक में

सामाजिक-सांस्कृतिक

अप्रवासी कामगार और उनके बच्चों का असुरक्षित भविष्य

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एक ओर तो अप्रवासी मजदूरी का काम उनके परिवार के लिए जीवन निर्वाह के साधन मुहैया करता है, वहीं उनके लिए भारी जोखिम भी पैदा कर देता है। इस जोखिम का सबसे अधिक असर अप्रवासी मजदूरों के बच्चों को ही झेलना पड़ता है। ये बच्चे अक्सर अपने माँ–बाप के साथ उनकी मजदूरी के ठिकानों पर जाने… आगे पढ़ें

हाथरस गैंगरेप की पाशविक बर्बरता को सत्ता का साथ

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उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए बलात्कार और हत्या के मामले में सीबीआई ने चार्जशीट दायर कर दी है। सीबीआई ने चारों आरोपियों पर सामूहिक बलात्कार और हत्या की धाराएँ लगायी हैं। इससे उत्तर प्रदेश प्रशासन का सच दबाने और आरोपियों को बचाने का प्रयास असफल हो गया है। 14 सितम्बर की सुबह हाथरस… आगे पढ़ें

जीवन और कर्म

रामवृक्ष बेनीपुरी का बाल साहित्य : मनुष्य की अपराजेय शक्ति में आस्था

–– सुधीर सुमन बेनीपुरी की लेखनी को जादू की छड़ी कहा जाता रहा है। अपने प्रवाहपूर्ण लालित्य से युक्त गद्यशिल्प के कारण वे हिन्दी साहित्य में बेहद चर्चित रहे। लेकिन अपने अद्भुत शिल्प के साथ ही अपने साहित्य के वैचारिक उद्देश्य के कारण भी वे उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने… आगे पढ़ें

राजनीतिक अर्थशास्त्र

गिग अर्थव्यवस्था का बढ़ता दबदबा

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अर्थव्यवस्था का एक नया रूप है–– गिग अर्थव्यवस्था। यह शब्द भले ही नया है, पर इस तरह की अर्थव्यवस्था से हम सब किसी न किसी रूप में परिचित हैं। आज गिग अर्थव्यवस्था दुनियाभर में तेजी से पैर पसार रही है। कम्पनियों की पहली चाहत गिग मजदूर बन गये हैं। आज बढ़ती तकनीक और कम्युनिकेशन… आगे पढ़ें

छोटे दुकानदारों की बदहाली के दम पर उछाल मारती ऑनलाइन खुदरा कम्पनियाँ

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गिरती अर्थव्यवस्था और कंगालीकरण के दौर में भी ऑनलाइन माफिया खूब कमाई कूट रहे हैं जबकि साधारण दुकानदार या रेड़ी–खोमचे और सब्जी बेचने वालों की चिन्ता यह है कि कौन–सा सामान, फल और सब्जी लायी जाये, जिससे ग्राहक के जेब पर बोझ कम पड़े और उनकी आजीविका भी चलती रहे। दूसरी तरफ… आगे पढ़ें

नोबेल पुरस्कार : नीलामी का सिद्धान्त या सिद्धान्त का दिवाला ?

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पॉल मिल्ग्रोम और रॉजर विल्सन को इस साल के अर्थशास्त्र के नोबेल स्मारक पुरस्कार से नवाजा गया है। अर्थशास्त्र के जिस खास धारा में इन्हें महारत हासिल है वह है “ऑक्शन थ्योरी” यानी नीलामी का सिद्धान्त। इससे पहले विलियम विकेरी, गणितज्ञ जॉन नैश आदि को भी इस क्षेत्र के शुरुआती… आगे पढ़ें

लक्ष्मी विलास बैंक की बर्बादी : बीमार बैंकिंग व्यवस्था की अगली कड़ी

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पीएमसी (पंजाब एण्ड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव) और यश बैंक के बाद अब बर्बाद होने वाले बैंकों की सूची में लक्ष्मी विलास बैंक का नया नाम जुड़ गया है। 94 साल पुराना यह प्राइवेट बैंक अब अपने अन्त की ओर है। पिछले 9 दशकों से यह बैंक छोटे कर्ज बाँटकर और खुदरा व्यापार को प्रोत्साहित करके फल–फूल… आगे पढ़ें

राजनीति

कृषि कानून के चाहे–अनचाहे दुष्परिणाम

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  –– अमित भादुड़ी प्लासी की निर्णायक लड़ाई जिसमें ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में अपना पैर जमाया और अपनी कम्पनी के शासन को स्थापित किया, उसमें हमारी हार युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि एक सेनापति के विश्वासघात के कारण हुई थी। एक अफ्रीकी कहावत ऐसी ही मनोवृति की चेतावनी… आगे पढ़ें

नये श्रम कानून मजदूरों को ज्यादा अनिश्चित भविष्य में धकेल देंगे

–– माया जॉन संसद में तीन नये श्रम कानून पारित किये गये हैं जो पहले से चले आ रहे 25 श्रम कानूनों की जगह लेंगे। इन तीनों कानूनों का मेल आधिकारिक तौर पर उन श्रम कानूनों के अन्त का प्रतीक है जो हमने बीसवीं सदी के ज्यादातर हिस्से में देखे हैं। ये कानून पहले से मौजूद उन… आगे पढ़ें

मोदी के शासनकाल में बढ़ती इजारेदारी

–– रविकान्त मुकेश अम्बानी और कुछ मुट्ठीभर अरबपतियों ने राजनीतिक साँठ–गाँठ से चलने वाले इस पूँजीवाद को मोदी शासन के दम पर अपने हाथों का खिलौना बना लिया है। एक बार जॉन डी रॉकफेलर ने कहा था, “खुद कुछ न होते हुए भी सब कुछ नियंत्रित किया जा सकता है।”… आगे पढ़ें

साहित्य

केन सारो–वीवा : संघर्ष और बलिदान गाथा

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रंगभेद और उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ने वाले दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीकी महाद्वीप के नेता, नेल्सन मण्डेला जेल से रिहा होने के बाद पहली बार 1995 में न्यूजीलैण्ड के ऑकलैण्ड शहर में राष्ट्रमण्डल देशों के सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे। ठीक उसी समय अफ्रीका के ही सुदूर–पश्चिम के प्राकृतिक… आगे पढ़ें

फिराक गोरखपुरी : जिन्दा अल्फाजों का शायर

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(28 अगस्त 1896 – 3 मार्च 1982) फिराक गोरखपुरी जिन्दा अल्फाजों के महान शायर हैं। अल्फाज उन्हें रचते हैं और वह अल्फाजों को गढ़ते हैं। रचने और गढ़ने की अद्भुत जादूगरी ही कविता है। कविता या शायरी बैठे–ठाले का खेल नहीं, न ही जोड़–घटाव, गुणा–भाग का बहीखाता। कविता… आगे पढ़ें

श्रद्धांजलि

माराडोना ने एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया, जो हमें कानून की बेड़ियों से गुलाम बनाती है

–– पीटर रोनाल्ड डिसूजा (यह लेख महान फुटबाल खिलाड़ी माराडोना की मौत पर द इण्डियन एक्सप्रेस में श्रद्धांजलि के रूप में प्रकाशित किया गया था। इसमें माराडोना के व्यक्तित्व के जुझारूपन के बारे में उन्हीं के एक मशहूर गोल के जरिये बात की गयी है। शासकों द्वारा स्थापित की… आगे पढ़ें

अन्तरराष्ट्रीय

पेरू का संकट : साम्राज्यवादी नव उदारवादी नीतियों का अनिवार्य परिणाम

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पिछले महीनों में पेरू की जनता शानदार ऐतिहासिक उथल–पुथल में व्यस्त रही। फिल्मी नायिकाओं की पोशाकों की तरह राष्ट्रपति बदले गये। नवम्बर महीने में तीन राष्ट्रपति बदले गये। जून से ही जनता और सेना आमने–सामने हैं। शासक भयभीत हैं, उनका राज बेराज हो चुका है। 19 नवम्बर को… आगे पढ़ें

बहुत हो चुका ओली जी! अब विश्राम कीजिए….

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(नेपाल में गहराता राजनीतिक संकट) (नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली द्वारा संसद भंग करने की सिफारिश से उत्पन्न राजनीतिक संकट अभी बरकरार है। इस संकट को हल करने में न्यायपालिका की भूमिका भी संदिग्ध है। अब वहाँ के जनगण की एक मात्र उम्मीद जनान्दोलन से ही रह गयी है। जनयुद्ध से हासिल… आगे पढ़ें

भारत–अमरीका 2–2 वार्ता के निहितार्थ

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27 अक्टूबर को भारत–अमरीका के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिए मंत्रीस्तरीय वार्ता सम्पन्न हुई। यह 2–2 वार्ता की अगली कड़ी थी। वार्ता में भारत की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर तथा अमरीका की ओर से माइक पोम्पियो और मार्क एस्पर ने हिस्सा लिया।… आगे पढ़ें

समाचार-विचार

अफगानिस्तान में तैनात और ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों की आत्महत्या

ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा बल ने अफगानिस्तान में चार साल की कार्रवाई के बारे में अपनी बेहद संशोधित और काट–छाँट कर तैयार की गयी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने अफगानिस्तान के 39 कैदियों, किसानों, और नागरिकों की हत्या की। यह भी सुनने को मिला… आगे पढ़ें

अम्बानी–अडानी का पर्दाफाश करने वाले पत्रकारों पर जानलेवा हमला

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अगर किसी देश में पत्रकारों को डराया–धमकाया जाता है, सच को सामने लाने के कारण उन पर जानलेवा हमला होता है, तो यह कैसा लोकतंत्र है ? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले देश में ऐसी ही दो घटनाएँ हाल ही में सामने आयी हैं। एक आईबीएन–24 के पत्रकार आकर्षण उप्पल पर… आगे पढ़ें

उत्तर प्रदेश : लव जेहाद की आड़ में धर्मान्तरण के खिलाफ अध्यादेश

25 नवम्बर को टाइम्स ऑफ इण्डिया के पहले पन्ने पर ‘जबरदस्ती धर्मान्तरण’ और ‘लव जेहाद’ से सम्बन्धित तीन खबरें हैं। पहली खबर विधायिका, दूसरी कार्यपालिका और तीसरी न्यायपालिका की कार्यवाही से सम्बन्धित है। जो हमारे देश में लोकतन्त्र को संचालित करने वाली शासन… आगे पढ़ें

उत्तराखण्ड : थानो जंगल कटान, विकास के नाम पर विनाश

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 उत्तराखण्ड का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले जो तस्वीर बनती है वह है हरे–भरे जंगल, पहाड़, जंगली जानवर, बर्फ, ठंडा मौसम और हर वह चीज जो रूह को सुकून दे सके। जहाँ एक तरफ हमारी सरकार हरा–भरा राज्य होने की डींगें हाँकती है, वहीं दूसरी ओर राजधानी से 20 किलोमीटर… आगे पढ़ें

उनके प्रभु और स्वामी

राजनीति विज्ञान के साहित्य में एक परिचित शब्द है–– लोकतांत्रिक बर्बरता। लोकतांत्रिक बर्बरता अक्सर एक न्यायिक बर्बरता द्वारा कायम होती है। “बर्बर” शब्द के कई रूप हैं। अदालती फैसले लेने में मनमानी इसका पहला रूप है। कानून को लागू करना न्यायाधीशों की मनमानी… आगे पढ़ें

किसान आन्दोलन : लीक से हटकर एक विमर्श

–– सुरेन्द्र पाल सिंह  वर्तमान किसान आन्दोलन प्रकट रूप से तीन नये कानूनों के विरोध में हैं। लेकिन कोई भी मुहिम या आन्दोलन का सिलसिला तभी तक ऊर्जापूर्ण रह सकता है जब तक उसके पीछे अव्यक्त कारक सक्रिय हों। समाजशास्त्रीय भाषा में इसे लैटेण्ट फंक्शन कहा जाता है।… आगे पढ़ें

किसान आन्दोलन के खिलाफ फेसबुक का सरकारपरस्त रवैया

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फेसबुक पर पिछले कई हफ़्तों से जारी किसान आन्दोलन के मामले में सरकारपरस्त होने का आरोप लग रहा है। किसान एकता मोर्चा ने अपनी बात ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए फेसबुक पर अपना खाता खोला और लोगों को उससे जुड़ने की अपील की। 20 दिसम्बर को जब इस पेज पर किसानों के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण… आगे पढ़ें

किसान आन्दोलन को तोड़ने का कुचक्र

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13 दिसम्बर 2020 की टाइम्स ऑफ इण्डिया की एक खबर के अनुसार आईआरसीटीसी और अन्य सरकारी विभाग उन लोगों को इमेल भेज रहे हैं जो “पंजाब” से हों और उनके नाम के साथ “सिंह” आता हो। इस इमेल में 47 पेज की एक पीडीएफ फाइल है जो हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेजी भाषा में है।… आगे पढ़ें

कृषि कानून खेत मजदूरों के हितों के भी खिलाफ हैं

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पंजाब में 32 प्रतिशत आबादी मजहबी या रामदासिया समुदाय से आनेवाले दलितों की है, लेकिन उनके पास सिर्फ 3 प्रतिशत जमीन का ही मालिकाना है। इतनी बड़ी आबादी के लिए यह जमीन खेती करने के लिए अपर्याप्त है। इसलिए इस समुदाय की बड़ी आबादी बड़े किसानों के खेतों में 350 रुपये दिहाड़ी पर खेती का… आगे पढ़ें

द सोशल डिलेमा : सोशल मीडिया के स्याह पहलू से रूबरू कराती फिल्म

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फर्ज कीजिये कि आप कोई काम कर रहे हैं और उसे कोई काले शीशे के पीछे से देख रहा हो और आपको इसकी कोई भनक भी न हो, तो क्या होगा। सूचना युग में आज हम अपने को बहुत खुशनसीब समझ सकते हैं कि हमारे पास स्मार्ट फोन है, उस पर एक क्लिक करते ही ढेरों सुविधाएँ उपलब्ध हैं। एक क्लिक करने पर रेस्टोरेण्ट… आगे पढ़ें

भारत ने पीओके पर किया हमला : एक और फर्जी खबर

बीते 19 नवम्बर को शाम 7 बजे, गोदी मीडिया ने एक खबर बड़े शोर–शराबे से ब्रेकिंग न्यूज बनाकर प्रसारित करना शुरू किया। यह खबर थी–– भारतीय सेना की पाक ओकुपायेड कश्मीर (पीओके) में हवाई हमले (एयर स्ट्राइक) की। इस खबर का स्रोत पीटीआई का 13 नवम्बर को एलओसी पर हुए युद्ध… आगे पढ़ें

मानवाधिकार उल्लंघन

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इसी वर्ष 14 जनवरी को अमरीका की एक मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने न्यूयॉर्क में अपनी 652 पन्नों की विश्व रिपोर्ट 2020 में, जो कि इसका 30वाँ संस्करण है, लगभग 100 देशों में मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा की है। अपने परिचयात्मक आलेख में, कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ ने… आगे पढ़ें

संस्कार भारती, सेवा भारती––– प्रसार भारती

आज अधिकांश लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) हमारे देश और समाज की जमीन पर लगातार बढ़ने और फैलने वाला एक बेहद जहरीला पेड़ है। क्या यह सच है ? आज संघ के लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति बनाकर अपना देश प्रेम का दिखावा कर रहे हैं, जबकि सरदार पटेल ने गृहमंत्री… आगे पढ़ें

अवर्गीकृत

बायोमेडिकल रिसर्च

–– डॉ. पी के राजगोपालन (भारत के स्वास्थ्य विज्ञान में अनुसन्धान की खामियों पर एक वैज्ञानिक का तथ्यपरक लेख) भारत में स्वास्थ्य विज्ञान में अनुसन्धान वर्षों के जमीनी काम पर आधारित समस्या–समाधान की दिशा में नहीं किये जा रहे हैं, यही मुख्य वजह है कि तमाम पुरानी… आगे पढ़ें