गिरती अर्थव्यवस्था और कंगालीकरण के दौर में भी ऑनलाइन माफिया खूब कमाई कूट रहे हैं जबकि साधारण दुकानदार या रेड़ी–खोमचे और सब्जी बेचने वालों की चिन्ता यह है कि कौन–सा सामान, फल और सब्जी लायी जाये, जिससे ग्राहक के जेब पर बोझ कम पड़े और उनकी आजीविका भी चलती रहे। दूसरी तरफ ऑनलाइन बाजार के माफिया इन दुकानदारों को बाजार से उखाड़कर उनके बचे–खुचे बाजार पर भी कब्जा कर लेने की साजिश रच रहे हैं। सरकार की भूमिका इन ई–कॉमर्स माफियाओं के लिए बाजार की हिस्सेदारी बढ़ाने और इनके मुनाफे की गारन्टी के लिए सुविधा प्रदान करने तक सीमित रह गयी है।

नोटबन्दी के बाद से ही देश में ई–कॉमर्स कम्पनियों की तादात बढ़ने लगी थी। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर ये कम्पनियाँ तरह–तरह के सामान बेचने का काम कर रही थी। देश की दो बड़ी ई–कॉमर्स कम्पनियों जेफ बेजोस की अमेजन और वालमार्ट की फ्लिपकार्ट का भारतीय ई–कॉमर्स के बाजार पर 60 से 70 प्रतिशत कब्जा हो गया है। ये बड़ी पूँजी और राजनीति समर्थित कम्पनियाँ हैं जिसके चलते ही ये भारतीय बाजार में पैठ जमाने में सफल हो सकी हैं। लेकिन ऑनलाइन कारोबार में मुकेश अम्बानी के जियोमार्ट के दखल के चलते भारतीय ई–कामर्स बाजार का समीकरण अब तेजी से बदल रहा है जिसको समझने के लिए इसके विभिन्न पहलुओं पर गौर करना जरूरी है।

स्थानीय दुकानदारों और देशी–विदेशी पूँजीपतियों की टकराहट

ई–कॉमर्स बाजार में जियोमार्ट के आने से एकाधिकारी पूँजी के बीच बाजार को लेकर प्रतिस्पर्धा में देश के खुदरा व्यापारियों के लिए ही नहीं, बल्कि छोटी–बड़ी ई–कामर्स कम्पनियों के लिए भी अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई होगी। हालाँकि खुदरा व्यापारी पहले से ही ऑनलाइन कम्पनियों के कारोबार के तरीकों को लेकर समय–समय पर आन्दोलन और धरना–प्रदर्शन करते रहे हैं। खुदरा व्यवसायी सरकार से बार–बार इस पर नियामक बनाने की अपील करते रहे हैं। यह वर्ग भाजपा सरकार के लिए बहुत बड़ा और पुराना वोट बैंक है, लेकिन अडानी–अम्बानी जैसे एकाधिकारी पूँजी के मालिक ही देश की राजनीति तय करते हैं। हालत तो यह है कि सरकार बनाने का काम भी यही वर्ग करता है। ऐसे में इन आकाओं के खिलाफ सरकार नियामक कैसे बनाये ?

ऑनलाइन किराना बाजार

बिग बास्केट और ग्रोफर्स की ऑनलाइन किराना बाजार में 80 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, लेकिन जियोमार्ट के किराना बाजार में उतरने से किराना खुदरा व्यापारी तो तबाह होेंगे ही साथ ही बाजार में पहले से लगी हुई ऑनलाइन कम्पनी बिग बास्केट और ग्रोफर्स के लिए अपना बाजार सम्भालना मुश्किल हो जाएगा।

•             बढ़ते ऑनलाइन कारोबार की वजह से खुदरा कारोबारियों की खराब हालत किसी से छुपी नहीं है। खुदरा कारोबारी पहले से ऑनलाइन कारोबार के बढ़ते ढाँचे के खिलाफ रोष प्रकट करते आ रहे हैं। जियोमार्ट के खुदरा व्यापार में उतरने से देश के कुल 3 करोड़ रजिस्टर्ड कारोबारियों में से एक बड़ी संख्या बाजार से बाहर धकेल दी जाएगी। साथ ही इनसे जुड़े छोटे कारोबारी, छोटे–मझोले निर्माता और उनके साथ मिलकर काम करने वाले लाखों कर्मचारी भी दर–बदर ठोकर खाने को मजबूर हो जाएँगे।

 देश आज कोरोना महामारी का दंश झेल रहा है, लोगों की नौकरियाँ छिन चुकी हैं और लगातार छिनती जा रही है। आमदनी का जरिया सिमट चुका है और उपभोग करने वालों की हालत बेहद खराब है। फिर भी दैत्याकार ऑनलाइन कम्पनियाँ अपना इनफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ रही हैं और महामारी से उबरने के बाद लाखों लोगों की बेरोजगारी की कीमत पर बाजार पर अधिकार जमाने के लिए कमर कस चुकी हैं।  

देशी–विदेशी पूँजीपतियों की आपसी टकराहट

देशी–विदेशी पूँजी के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा का एक नमूना हम वोडाफोन–एयरटेल और जियो टेलिकॉम के बीच प्रतिस्पर्धा और परिणामों के रूप में देख चुके हैं। जियो की हिस्सेदारी राष्ट्रीय बाजार में शून्य से बढ़कर 34 प्रतिशत तक हो चुकी है जबकि पहले से अव्वल टेलिकॉम कम्पनी एयरटेल की बाजार पर हिस्सेदारी सिमट कर 28 प्रतिशत हो गयी है। जाहिर है कि मुकेश अम्बानी की पकड़ राष्ट्रीय राजनीति में किसी भी अन्य कम्पनी या व्यक्ति से ज्यादा है जिसके चलते उनके आगे किसी भी कम्पनी को बैकफुट पर लाकर खड़ाकर दिया जाता है।

पहले से छिन्न–भिन्न ढाँचे के साथ चल रही कम्पनी एयरटेल पर पिछले दिनों कोर्ट ने 3 अरब डॉलर का हर्जाना लगाया है। वोडाफोन कर्ज में डूबी हुई है और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत है। टेलिकॉम की बची हुई कम्पनियाँ अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती नजर आ रही हैं। जियो को आबाद करने की शर्त पर ही सरकारी कम्पनी बीएसएनएल को भी बर्बाद कर दिया गया है जबकि कई दूसरी कम्पनियों का नाम तक बाजार से गायब हो चुका है।

 हाल ही में फर्जी कॉल और मैसेज पर रोक न लगाने के लिए ट्राई ने बीएसएनएल, जियो, एयरटेल, वोडाफोन–आइडिया सहित अन्य कम्पनियों पर कुल 35 करोड़ का जुर्माना लगाया है। इसमें से अकेले सरकारी कम्पनी बीएसएनएल पर 30.1 करोड़ का जुर्माना है।

ई–कॉमर्स बाजार में जियोमार्ट आने से हूबहू यही समीकरण उस क्षेत्र में भी बनता दिख रहा है। ई–कॉमर्स बाजार में यह और भी भयावह साबित होने वाला है। अम्बानी के जियोमार्ट की घोषणा करने के बाद ही देश में पहले से चल रही ऑनलाइन कम्पनियों अमेजन, फ्लिपकार्ट, एमवे सहित अन्य कम्पनियाँ अपने ढाँचे को मजबूत करने के लिए भारी निवेश की घोषणा कर चुकी हैं।

विदेशी निवेशकांे को डर है कि कहीं उनका हाल एयरटेल और वोडाफोन जैसी न हो जाये। दूसरी ओर, सरकार विदेशी निवेशकों को बुलाने के लिए एड़ी–चोटी का जोर लगा रही है। ऐसे माहौल में नये निवेशक कैसे आएँगे ? जबकि पहले से ही जो निवेशक बाजार में हैं उन्हे सिकोड़ा जा रहा है।

देशी–विदेशी पूँजीपतियों की मुनाफे की हवस उस भूखे भेड़ियों जैसी है जो पहले तो साथ मिलकर शिकार को नोचते हैं। लेकिन मांस खत्म हो जाने और भूख बढ़ने पर एक–दूसरे को अपना शिकार बनाकर हजम कर लेते हैं।

फार्मेसी बाजार पर गिद्ध दृष्टि

ई–फार्मेसी के क्षेत्र में अभी तक गिनी–चुनी देशी कम्पनियाँ नेट्मेड्स, वन एमजी, फार्मईजी, मेडलाइफ आदि ही क्षेत्रीय स्तर पर कुछ बड़े शहरों के आस–पास कार्यरत थीं। खुदरा दवा बाजार पर अब बड़ी ऑनलाइन कम्पनियों की गिद्ध दृष्टि गड़ गयी हैं। इसके चलते ही पिछले दिनों रिलायंस ने नेटमेड्स की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली है जबकि अमेजन इस कारोबार में पहले ही उतर चुकी है और फ्लिपकार्ट भी ई–फार्मेसी बाजार में उतरने की घोषणा कर चुकी है। कुछ दिनों में खुदरा दवा बाजार की हालत भी खुदरा व्यापारियों जैसी होने वाली है, जैसे–– ऑनलाइन मोबाइल कम्पनियों के बाजार में आने के बाद मोबाइल दुकानदारों की हुई है।

ऑनलाइन मार्केटिंग की दैत्याकार कम्पनियाँ पहले किसी एक भारी मुनाफे वाले बाजार में पैर पसारती हैं, फिर उस बाजार को तहस–नहस करके नये शिकार की तरफ बढ़ती हैं क्योंकि इनकी मुनाफे की भूख कभी शान्त नहीं होती। भारतीय बाजार में ही देखा जाये तो सबसे पहला शिकार मोबाइल बाजार बना, फिर दूसरे इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, फिर खुदरा किराना और अब खुदरा दवा बाजार पर इनकी नजर है।  

शुरू में व्यापार करने, सुविधा देने और नौकरी देने का दावा करने वाली ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ धीरे–धीरे वहाँ के क्षेत्रीय बाजार की संरचना को छिन्न–भिन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ती और न ही छोड़ा है। बड़ी पूँजी के साथ ही इन बहुआयामी मुनाफाखोर कम्पनियों की मुनाफाखोरी का कोई उसूल नहीं होता। ये कम्पनियाँ पहले भी कई देशों के स्थानीय बाजार को जड़ से उखाड़ कर अपना एकाधिकार जमा चुकी हैं। अमेजन, फ्लिपकार्ट और जियो भारतीय ऑनलाइन कारोबार के माफिया बन चुके हैं। सरकार ने इन ऑनलाइन माफियाओं को भेंट में देशी बाजार अर्पित कर दिया है। इससे देशी बाजार में कारोबार करनेवाले करोड़ों छोटे और मझोले दुकानदारों की रोजी–रोटी खतरे में है।