कोरोना महामारी के दौर में चारों तरफ से कम्पनियों के बन्द होने की खबरें लगातार आ रही हैं। कई उद्योगों के मालिकों ने घाटे का हवाला देकर अपनी कम्पनियाँ ही बन्द कर दी हैं। एटलस साइकिल कम्पनी ने पिछले दिनों साइकिल दिवस के अवसर पर ही अपना आखिरी बचा साहिबाबाद प्लाण्ट भी बन्द कर दिया। आचनक कम्पनी बन्द हो जाने की घोषणा से काम कर रहे मजदूरों की जिन्दगी में भूचाल आ गया। भविष्य की चिन्ताओं में सभी कर्मचारियों की जीवन धारा विपरीत दिशा में मोड़ दी गयी है, पहले ही टेढ़े–मेढ़े और कठिन रास्तों से गुजर रही थी।

एटलस कम्पनी 60 साल से भारत में काम कर रही है। बाकी प्लाण्ट तो कम्पनी ने पहले ही बन्द कर दिये थे। साहिबाबाद का प्लाण्ट आखिरी था जो चल रहा था। इस प्लाण्ट में बहुत से मजदूर 20–25 साल से कम्पनी के लिए काम करते आ रहे थे। इन्होंने अपनी जिन्दगी के अनमोल दिन और अपनी शारीरिक ताकत एटलस कम्पनी को दिया हैं। कम्पनी को अनवरत मुनाफा दिया है। इन्हीं मजदूरों की वजह से आज एटलस भारत की नामी कम्पनी है। लेकिन आज एटलस और अन्य कम्पनियों ने मजदूरों को क्या दिया? मजदूर भले ही हर संकट के समय अपने मालिक के साथ खड़े रहे हों, लेकिन मालिक हमेशा इसके उलट ही करता रहा है।

“कम्पनी मालिकों की सरकार में इतनी गहरी पैठ होती है कि कम्पनी बन्द करने की इन्हें सरकार से अनुमति लेने या मजदूरों की रोजगार गारण्टी देने की कोई जरूरत नहीं होती और न ही किसी पूर्व नोटिस की”। श्रमिक संघ के हस्तक्षेप के बाद कम्पनी के सीईओ ने आश्वासन दिया कि कम्पनी को कुछ समय के लिए बन्द किया जा रहा है, हम जल्द ही काम शुरू करेंगे और तब तक के लिए कर्मचारियों को “ले–ऑफ मजदूरी” दी जाएगी। लेकिन कम्पनी ने ले ऑफ मजदूरी के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी। समान्यत: ले ऑफ मजदूरी कुल मजदूरी का आधा हिस्सा होती है।

एटलस कम्पनी में न्यूनतम मजदूरी लगभग 13,600 मासिक है। ले–ऑफ मजदूरी 6800 मासिक होनी चाहिए, पर मिलती नहीं है। इसमें से श्रमिकों के पीएफ और अन्य योगदानों के लिए 2000 रुपये काट लिए जाएँगे। यानी कुल मिलाकर चार हजार आठ सौ से भी कम बैठेगा। इस राशि को भी पाने के लिए मजदूरों को रोज कम्पनी रजिस्टर पर अपने हस्ताक्षर करने पड़ेंगे। इतनी कम राशि में मजदूर मकान का किराया दें या फिर अपने परिवार का भरण पोषण करें।   

एटलस कम्पनी के अनुसार कारखाने में कुल 431 श्रमिक हैं जबकि श्रमिक संघ के मुताबिक कम्पनी में लगभग पाँच सौ अन्य मजदूर अस्थायी तौर पर काम करते हैं। इन मजदूरों का कम्पनी ने कहीं जिक्र तक नहीं किया है। इन्हें न कोई वेतन मिलेगा और न ही काम शुरू होने पर इन्हें बुलाया जाएगा।

एटलस कम्पनी की बन्दी से प्रभावित होने वाले मजदूरों की संख्या कम नहीं है। एटलस के उत्पादन में जो भी सहयोगी इकाइयाँ रही हैं जहाँ से कारखाने के कल–पुर्जे और अन्य माल खरीदा और बेचा जाता रहा है, उन इकाइयों में काम करने वाले हजारों मजदूरों की हालत भी इस फैसले से सीधे प्रभावित होगी। यानी मजदूरों की एक बड़ी संख्या को एटलस कम्पनी ने अचानक एक फैसला लेकर बेरोजगार कर दिया। अब मजदूर खाना खर्चा, बच्चों की पढ़ाई, इलाज के खर्च और मकान के किराये को ले कर दिन–रात परेशान हैं। परेशानी का एक कारण यह भी है कि इन्हें महामारी के समय अब कहीं और नौकरी मिलना भी मुश्किल है।   

साहिबबाद प्लाण्ट बन्द करने का असल कारण जमीन का मसला है। कम्पनी जमीन बेचने के लिए बहाने के तौर पर घाटे का रोना रो रही है। एटलस का यह मामला राष्ट्रीय कम्पनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में चल रहा है। एनसीएलटी अपना फैसला सुनाती, उससे पहले ही कम्पनी मैनेजमेण्ट ने नाटकीय तरीके से कम्पनी के गेट पर तालाबन्दी का नोटिस रातों–रात चास्पा कर दिया जाता है। वह भी विश्व साइकिल दिवस के अवसर पर। सबकी नजरों में आने के लिए। यह दिन एटलस के मैनेजमेण्ट ने जान–बूझकर चुना था। क्या यह अब भी अबूझ पहेली है कि एटलस मैनेजमेण्ट क्या चाहता है? कम्पनी का यह खेल मजदूरों को समझ जाना चाहिए और सतर्क रहते हुए एकजुटता कायम कर संघर्ष चलाना चाहिए।

तालाबन्दी एनसीएलटी पर दबाव बनाने के लिए किया गया है। जमीन न बिकने पर भी कम्पनी को फायदा ही है। साहिबाबाद के प्लाण्ट को कम्पनी जमीन बेचकर खोलने की बात कर रही है। अगर जमीन बेचने की अनुमति नहीं मिलती है, तो प्लाण्ट तो पहले से ही बन्द है। इससे उसका कुछ नुकसान भी नहीं होगा। अगर एनसीएलटी दबाव में जमीन बेचने की अनुमति दे देता है तो कम्पनी की पाँचों उँगलियाँ घी में होंगी।

कारण यह कि आज के परजीवी पूँजीवाद के दौर में उत्पादक इकाइयाँ से कहीं ज्यादा कमाई रीयल स्टेट और सट्टेबाजी के धन्धे में हैं। दूसरे, विदेशों से आयातित साइकिलों को बेचकर खुद उत्पादन करने से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।