पिछले महीनों में पेरू की जनता शानदार ऐतिहासिक उथल–पुथल में व्यस्त रही। फिल्मी नायिकाओं की पोशाकों की तरह राष्ट्रपति बदले गये। नवम्बर महीने में तीन राष्ट्रपति बदले गये। जून से ही जनता और सेना आमने–सामने हैं। शासक भयभीत हैं, उनका राज बेराज हो चुका है। 19 नवम्बर को कांग्रेस ने फ्रंसिसकी सजस्ती को राष्ट्रपति का पद सौंप दिया है। देखते हैं, वे कितने दिन टिकते हैं।

व्यवस्था ने जनता का विश्वास खो दिया है लेकिन जनता के पास अभी इसका कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं जिसे जनता का विश्वास हासिल हो। त्रासदी यह है कि जनता के पास भी ऐसा कोई नेता नहीं जो सबको स्वीकार हो। भविष्य तो नजूमी ही जाने लेकिन पेरू की जनता ने अपने देश में लागू साम्राज्यवादी नव उदारवादी व्यवस्था को जबरदस्त चोट पहुँचायी है।

एक दशक तक पेरू की आर्थिक वृद्धि के चमत्कार का लातिन अमरीका में खूब डंका बजा, लेकिन कोरोना परिघटना ने इसके खोखलेपन को जगजाहिर कर दिया। पेरू के शासक कोरोना की आपदा को अवसर में बदलने के लिए बेताब थे और जनता पहले ही साम्राज्यवादी लूट से पस्त और गुस्से से भरी थी। मौजूदा राजनीतिक संकट इसी टकराव का परिणाम है।

पेरू में कोरोना का पहला मामला मार्च में सामने आया था। 3.2 करोड़ की आबादी वाले पेरू के पास उस समय केवल 100 आईसीयू बिस्तर थे और एक मृतप्राय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली। हाल यह था कि कोरोना का मुकाबला करने जा रहे डॉक्टरों और नर्सों को देने के लिए मास्क और दस्ताने भी स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं थे। सरकारी अस्पताल नाममात्र के बचे थे और निजी अस्पतालों ने संक्रमितों के लिए दरवाजे बन्द कर लिये। नतीजतन, बहुत जल्दी ही हालात भयावह हो गये। मजबूरी में स्वास्थ्य कर्मियों को सड़कों को ही अस्पताल बनाना पड़ा।

17 मार्च को सरकार ने जनता पर 90 दिन का सैन्य लॉकडाउन थोप दिया। लगे हाथ राष्ट्रपति विजकारा ने जनता को सामाजिक जिम्मेदारी निभाने की नसीहत भी दे दी। उस वक्त देश में कुल 71 लोग कोरोना से संक्रमित थे और एक भी मौत नहीं हुई थी। लॉकडाउन में मेहनतकश जनता का गुजारा कैसे होगा इसकी कोई चिन्ता सरकार ने नहीं की। जल्दी ही प्रवासी मजदूर अपने घरों को जाने के लिए लाखों की संख्या में सड़कों पर निकल पड़े। इनमे से बहुतों को पकड़कर शहर के बाहर बने शिविरों में कैद कर लिया गया। जो इन कैदखानों से बचने में कामयाब रहे वे अनगिनत मुसीबतें झेलते हुए अपने परिवारों तक पहुँचे।

जून में, जब लॉकडाउन हटा, संक्रमितों की संख्या बढ़कर लगभग तीन लाख हो गयी थी और 17619 लोगों की जान जा चुकी थी। सितम्बर में आठ लाख संक्रमित थे और 31 हजार मौतें हो चुकी थीं। आबादी के अनुपात में पेरू दुनिया का सबसे ज्यादा संक्रमितों और मौतों वाला देश बन गया था। हालाँकि, पैन अमरीकन हेल्थ ऑर्गेनाईजेशन का कहना था कि 27000 लोगों की मौतों को सरकार ने दर्ज ही नहीं किया।

पेरू के अर्थशास्त्र संस्थान के अनुसार कोरोना काल में मार्च से अक्टूबर के बीच एक करोड़ लोगों की जीविका उजड़ गयी। हर छ: मजदूरों में से चार की आय के स्रोत पूरी तरह सूख गये। केन्द्रीय बैंक का अनुमान है कि साल के अन्त तक अर्थव्यवस्था 12.5 प्रतिशत सिकुड़ जाएगी।

प्राकृतिक संसाधनों के मामले में पेरू दुनिया के सबसे धनी देशों में है। इसकी एण्डीज पर्वत Üाृंखला की तलहटी में ताँबा, सोना, चाँदी, टिन, जस्ता जैसे बहुमूल्य खनिज भरे पड़े हैं। इसके अलावा अमेजन का विशाल बेसिन है, जिसकी सतह पर बेशकीमती वर्षा वन है और सतह के नीचे तेल और प्राकृतिक गैस का अकूत भण्डार।

पेरू के शासकों ने 1993 में आर्थिक उदारीकरण की साम्राज्यवादी नीतियों को स्वीकार किया था। ऐसे सभी देशों की तरह वहाँ भी डब्ल्यूटीओ, आईएमएफ की देखरेख में ढाँचागत समायोजन, सरकारी संस्थानों और प्राकृतिक संसाधनों का निजीकरण और आयात–निर्यात की नीतियों में बदलाव किये गये।

इन बदलावों के परिणाम के बारे में पेरू के प्रसिद्ध अखबार ला इज्क्विर्दा दिपरियो की सम्पादक सेसिलिया क्विरोज ने लिखा है कि एण्डीज के पहाड़ों में स्वचालित खानें फैली हुई हैं लेकिन उन्हीं के पास बसे गाँवों के लोगों को पीने का साफ पानी भी मयस्सर नहीं है। यहाँ परिष्कृत बैंकिंग व्यवस्था और संगठित वित्तीय पूँजी है लेकिन मजदूर कंगाल हैं। अमेजन के वर्षा वनों पर तेल, वानिकी, कृषि क्षेत्र की चोटी की बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कब्जा जमा चुकी हैं लेकिन इन इलाकों के मूल निवासी पूर्व पूँजीवादी अवस्थाओं में जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।  

पिछले दशक में पेरू की विकास दर रॉकेट की रफ्तार से बढ़ी। विदेशी निवेश की नदियाँ बहने लगी। खनन कम्पनियाँ टिड्डी दल की तरह पेरू के खनिजों पर टूट पड़ी। एक दशक में ही खनन में 87 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। दूसरी ओर सामाजिक सुरक्षा का ढाँचा तबाह हो गया। अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया। रोजगार में कमी और अनिश्चितता तेजी से बढ़ी और पेरू सबसे कम मजदूरी वाले देशों में शामिल हो गया। मूलनिवासियों को बड़ी संख्या में उजाड़ा गया। खनिजों के साथ–साथ जमीन और जंगल की भी भारी लूट हुई। अमेजन एटलस के मुताबिक पिछले दो दशकों में अमेजन का 5,13,016 वर्ग किलोमीटर वर्षा वन उजाड़ दिया गया। टोड़ गार्डन और जेफरे वेबर ने अपनी पुस्तक “ब्लड ऑफ एक्सट्रैक्शन” में इस लूट का वर्णन किया है।

कोरोना महामारी का फायदा उठाते हुए सरकार ने पूँजीपतियों को वे तमाम अधिकार दे दिये जिसकी वे कल्पना कर सकते थे। इसके खिलाफ उठनेवाले विरोध को तुरन्त दबाया जा सके इसके लिए पुलिस और सेना को भी असीमित अधिकार दिये गये। मार्च के अन्त में ही कांग्रेस ने सेना और पुलिस को क्वारनटाइन के नियम लागू करवाने के नाम पर किसी की हत्या तक करने का कानूनी अधिकार दे दिया था।

जून में लॉकडाउन खुलते ही सरकार और कम्पनियों के खिलाफ प्रदर्शनों की बाढ़ आ गयी। जून और जुलाई में ही 162 प्रदर्शन हुए। आर्थिक सहायता और इलाज की गारन्टी इनकी मूल माँग थी। अगस्त और सितम्बर में हालात और बिगड़ गये। मूल निवासी जनता, मजदूर, किसान और स्वास्थ्यकर्मी सरकारी इमारतों, कम्पनियों के दफ्तरों, खनन परियोजनाओं का घेराव करने लगे। 26–27 अगस्त को पेरू के डॉक्टरों और नर्सों ने लातिन अमरीका के इतिहास की सबसे बड़ी हड़ताल की।

पेरू की जीड़ीपी का 10 प्रतिशत खनिजों से आता है। इस क्षेत्र में 15 लाख मजदूर कम करते हैं। साल के शुरू में ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया की कम्पनियों ने खनन में 58 अरब डॉलर का निवेश किया था। इनकी मुनाफा वसूली में देर ना हो इसके लिए सरकार ने खनन को आवश्यक सेवा का दर्जा देकर कम्पनियों को लॉकडाउन में भी उत्पादन जारी रखने का अधिकार दे दिया। नतीजतन खदानें कोरोना का केन्द्र बन गयी।

विरोध की बिगुल सबसे पहले मूल निवासियों ने बजाया। एण्डीज की तम्बो घाटी में 2011 में मूल निवासियों ने संघर्ष करके सदर्न कॉपर के तिय मारिया प्रोजेक्ट को बन्द करवाया था। कोरोना काल में सरकार ने पर्यावरण सम्बन्धी नियमों में छूट दे दी जिसके आधार पर जुलाई में कम्पनी ने इस प्रोजेक्ट को फिर से चालू कर दिया। इसका भारी विरोध हुआ और प्रोजेक्ट को फिर से बन्द करना पड़ा।

जुलाई में एस्पेनार में किसानों ने इस क्षेत्र में कोरोना के प्रसार के लिए ग्लेंकोरे कम्पनी को जिम्मेदार ठहराया। इसकी एक ताँबा खानों को घेर लिया और लॉस बम्बास खान के वाहनों को जला दिया। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस और सेना का डटकर मुकाबला किया। इन्होंने कम्पनी से क्षेत्र में हुए आर्थिक और स्वस्थ्य सम्बन्धी नुकसान की भरपाई करने की माँग की। जिसे कम्पनी को मानना पड़ा।

अमेजन के लोरेटो क्षेत्र की आबादी 3.30 लाख है। अगस्त के शुरू में ही यहाँ कोरोना के एक लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके थे और तीन हजार मौतें हो गयी थीं। क्षेत्र के मूल निवासियों ने इसके लिए पेट्रो ताल नाम की तेल कम्पनी को जिम्मेदार ठहराया और इसकी आयल रिफाइनरी पर कब्जा कर लिया। कब्जे के संघर्ष में चार मूल निवासी शहीद और 17 गम्भीर रूप से घायल हुए। इनकी भी वही माँग थी, कम्पनी क्षेत्र की जनता के इलाज और नुकसान की जिम्मेदारी ले।

नेशनल फेडरेशन ऑफ माइनिंग, मेटेलर्जिकल एण्ड स्टील वर्क्स ऑफ पेरू का कहना है कि अगस्त में एण्डीज पर्वत तलहटी में फैले विशाल खनन क्षेत्र में दर्जनों हड़तालें हुर्इं जिनकी साझी माँग थी कि कम्पनियाँ और सरकार जनता को हुए आर्थिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी नुकसान की जिम्मेदारी लंे। पर्यावरण के विनाश के खिलाफ सालों से चल रहा आन्दोलन भी मानवीय विनाश के खिलाफ उठ खड़े हुए इस आन्दोलन के साथ आकर जुड़ गया।

अगस्त के शुरू में 700 खनिकों के कोरोना संक्रमित हो जाने पर ला लिब्रेतिद क्षेत्र की सोने और चाँदी की खानों में हड़ताल हो गयी, जो आसपास की सभी खानों में फैल गयी। माँग वही थी कि सरकार और कम्पनियाँ मजदूरों समेत क्षेत्र की जनता के स्वास्थ्य की पूरी गारन्टी लें, खतरनाक हालात में काम के लिए अलग से भुगतान करें, बीमार होने पर सवैतनिक अवकाश दें, इलाज का पूरा खर्च वहन करें आदि। दोए रन कम्पनी के कॉब्रिजा परियोजना में 1500 मजदूरों को निकाले जाने के खिलाफ हड़तालियों ने परियोजना पर कब्जा कर लिया और माँगंे मान लेने के बाद ही खान कम्पनी को सौंपी।

एण्डीज और अमेजन के सभी क्षेत्रों में मजदूरों की एक आज्ञप्ति बहुत मशहूर हुई है ” प्राकृतिक संसाधन हमारे हैं लेकिन पूँजी ने उन्हें हमसे छीन लिया है। हम इन्हें वापस लेने की लड़ाई लड़ रहे हैं ताकि इनका इस्तेमाल लोगों और पर्यावरण की दशा सुधारने के लिए किया जा सके।“

मेहनतकशों और मूल निवासियों के आन्दोलन को कुचलने के लिए राष्ट्रपति विजकारा ने तीन सैन्य अधिकारियों को मंत्रिमण्डल में शामिल करके उन्हें खुद ही फैसला लेने का अधिकार दे दिया। इस पूरे संकट काल में पेरू के राजनेता सेना को महिमामंडित करके उसे राजनीति से ऊपर स्थापित करने में लगे रहे क्योंकि राजनेताओं से जनता का विश्वास उठ चुका था। वह इन्हें कम्पनियों के एजेण्ट से ज्यादा कुछ नहीं मानती। इससे पहले पेरू के चार राष्ट्रपतियों को भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार किया जा चुका था। कांग्रेस के लगभग दो तिहाई लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं। खुद विजकारा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले लम्बित हैं। भ्रष्टाचार के इन मामलों में किसी ना किसी रूप में कोई कम्पनी जुड़ी है। सरकार की यह कोशिश नाकाम रही और एण्डीज की तलहटी से शुरू हुआ आन्दोलन पूरे देश में फैल गया।

जनता पूरी व्यवस्था को ही निशाने पर ना ले, इससे बचने के लिए शासक वर्ग ने विजकारा की कुर्बानी देने का फैसला किया। 11 सितम्बर को विजकारा के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में कांग्रेस ने जाँच शुरू कर दी। हालाँकि, पिछले साल जब कांग्रेस ने उनके खिलाफ जाँच की कोशिश की थी तो विजकारा ने सेना और पुलिस के दम पर कांग्रेस को ही बर्खास्त कर दिया था। सत्ता पर विजकारा की पकड़ पिछले साल से ज्यादा मजबूत होने के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें 10 नवम्बर को बर्खास्त कर दिया। कमाल की बात यह है कि विजकारा ने इस फैसले को खुशी–खुशी स्वीकार भी कर लिया मानो उनके मन की मुराद पूरी हो गयी हो। गौरतलब है कि पेरू में जुलाई 2021 में फिर चुनाव होने हैं।

जून से ही पेरू की जनता नव उदारवादी मॉडल में कम्पनियों को मिली लूट की खुली छूट के खिलाफ शानदार संघर्ष कर रही थी लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया इससे मुँह फेरे हुए था। 10 नवम्बर को विजकारा की बर्खास्तगी के बाद ही अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया ने पेरू पर नजरेइनायत की और साम्राज्यवादी नव उदारवाद के खिलाफ पेरू की जनता के आन्दोलन को विजकारा की बर्खास्तगी के खिलाफ उनके समर्थकों के आन्दोलन का रूप दिया, लेकिन यह खेल कितने दिनों तक चलेगा!