हमें मासूम फिलिस्तीनियों के कत्ल का भागीदार मत बनाइये, मोदी जी
राजनीति प्रवीण कुमारहमास के हमले के बाद जब इजराइल फिलिस्तीन की जनता पर अँधाधुंध बम बरसा रहा था, हजारों आम नागरिकों और बच्चों का कत्ल कर रहा था, उस समय भारत के प्रधानमन्त्री मोदी ने इजराइल को शाबाशी देते हुए ट्वीट किया कि भारत के 130 करोड़ लोग इजराइल के साथ खड़े हैं। अपने इस बयान से मोदी ने 130 करोड़ भारतीयों को हजारों फिलिस्तीनियों के कत्ल को जायज ठहराने का भागीदार बना दिया। बयान का भाव था कि ‘नेतन्याहू फिलिस्तीनियों को मारो, भारत तुम्हारे साथ है।’ यह वही समय था जब खुद इजराइल के लोग नेतन्याहू को हत्यारा तक कहने लगे थे और पूरी दुनिया में फिलिस्तीन के पक्ष मे प्रदर्शन हो रहे थे। आज विश्वप्रसिद्ध हवार्ड विश्वविद्यालय के छात्र पिछले एक महीने में इसराइल द्वारा फिलिस्तीन में कत्ल किये गये चार हजार बच्चों की सूची को सारी दुनिया के सामने ल चुके हैं, इसके बाद भी मोदी को अपने बयान पर कोई अफसोस नहीं है।
दी के बयान से इजराइल–फिलिस्तीन की थोड़ी भी समझ रखने वाले भारतीय ही नहीं बल्कि सारी दुनिया भौचक रह गयी। इस बयान को पूरी दुनिया में हिन्दुत्ववाद, मुस्लिम विरोध, अमानवीयता समेत कई पहलुओं से देखा गया। यह भारत का अपनी विदेश नीति से ऐतिहासिक पलटाव भी है।
जैसा कि हमेशा होता है, मोदी के बयान के बाद हिन्दुत्ववादी गिरोह, भाजपा कि आईटी सेल के कारकून, गोदी मीडिया के जोकर पत्रकारों की फौज इजराइल की पैरोकारी और हौसला–अफजाई में जुट गयीं। गोदी मीडिया के कई पत्रकार तो सीधे इजराइल पहुँच गये। वहाँ बुलेट–प्रूफ जैकेट और हेलमेट लगाकर रिपोर्टिंग के नाम पर उनसे जितनी नौटंकी हो सकी, उन्होंने की। इस नौटंकी और मोदी के बयान का साझा असर यह हुआ कि गली–मुहल्ले के लम्पट भाजपाई, जिन्हें यह भी नहीं पता कि दुनिया के नक्शे पर इजराइल और गाजा पट्टी कहाँ हैं, वे भी ‘अन्तरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ’ बनकर इजराइल के सरकारी प्रवक्ताओं कि तरह बकवास करने लगे और बहुत से तो फिलिस्तीनियों के कत्लेआम का बाकायदा जश्न मनाने लगे। उसी समय इजराइल का हारेतज अखबार लिख रहा था कि हमें हर पीड़ित के लिए रोना चाहिए, भले ही वह फिलिस्तीन का हो। और यह भी कि इजराइल कि सरकारों ने फिलिस्तीन पर सालों–साल जो जुल्म किये हैं, हम उन्हीं का नतीजा झेल रहे हैं।
मोदी हरदम चुनावी मोड में रहते हैं, उन्हेंे हमेशा हिन्दू वोट के ध्रुवीकरण और अमरीका को खुश रखने की चिन्ता सताती रहती है। मोदी अपने इन दोनों मकसदों को पूरा करने में सफल रहे लेकिन उनकी कारगुजारी ने पूरी दुनिया में भारत की मिट्टी पलीत कर दी। इस तमाम गन्दगी पर 6 दिन बाद विदेश–मंत्रालय लीपापोती करने में जुट गया और मोदी के बयान से काफी अलग जाकर भारत सरकार का रुख जाहिर किया। बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में भारत फिर पलट गया। जिससे दुनिया में भारत अलग–थलग पड़ गया और उसकी छवि एक बेपेंदी के लोटे जैसी बन गयी।
मुस्लिम विरोध के जरिये हिन्दू वोटों को साधना और अमरीका परस्ती ने इस्लामोफोबिया को ही भारत की विदेश नीति बना दिया है। इसने भारत की कैसी दुर्गति कर दी है इसके उदाहरण अक्सर देखने को मिलते हैं, इसमें एक और जुड़ गया है। युद्ध विराम और गाजा पट्टी में मानवीय मदद पँहुचाने के लिए जार्डन ने संयुक्त राष्ट्र संघ मे एक प्रस्ताव पेश किया था। संयुक्त राष्ट्र की महासभा में 193 सदस्य हैं। अमरीका ने इस प्रस्ताव पर वीटो कर दिया लेकिन उसके पक्ष में केवल पापुआ न्यू गिनी जैसे बेहद छोटे कुल 14 देश आये। इस प्रस्ताव के पक्ष में 120 देश थे यहाँ तक कि फ्रांस और जर्मनी भी प्रस्ताव के पक्ष में थे। भारत के सारे पड़ोसी देश जिनके बारे में कहा जाता है कि भारत के सामने इनकी कोई हैसियत नहीं वे भी प्रस्ताव के पक्ष में थे।
दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र ऐसा देश था जो वोटिंग में गैरहाजिर रहा। पूरे एशिया में भारत एकमात्र ऐसा बड़ा देश था जिसने प्रस्ताव पर वोट देने से इनकार कर दिया। यह कैसी उलट बाँसी है कि भारत खुद फिलिस्तीनियों की मदद के लिए गाजा में राहत सामग्री भेज चुका है। भारत हमास को आतंकवादी संगठन नहीं मानता है और फिलिस्तीन देश कि माँग का समर्थन भी करता है। मोदी और उसके भक्त कहते हैं कि दुनिया में भारत का डंका बज रहा है लेकिन उन्हें कौन समझाये कि यह ‘डंका बजना’ नहीं ‘ढोल फटना’ है।
इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा के पूर्व शीर्ष नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी कट्टर हिन्दुत्ववादी थे। लेकिन हिन्दुत्ववाद के पोषण के लिए मुस्लिम विरोध और इस्लामोफोबिया भारत की विदेश नीति की जगह ले और दुनिया में भारत का तमाशा बना दे, इससे वे बचते थे। उन्होंने न केवल आजाद फिलिस्तीन देश का समर्थन किया था बल्कि यह भी कहा था कि ‘इजराइल ने फिलिस्तीन की जो जमीन कब्जा की है वह भी वापस लौटानी होगी। आक्रमणकारी आक्रमण के फलों का उपभोग करे यह हमें स्वीकार नहीं है।’
यह बहुत गम्भीर सवाल है कि आज भारत किन हाथों में पड़ गया है? पिछले सत्तर सालों में भारत ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जो साख बनायी थी मौजूदा शासकों ने उसे मिट्टी में मिला दिया है। आजादी के बाद भारत ने अपनी विदेश नीति का आधार इस सोच को बनाया था कि भारत की तरह जो भी देश साम्राज्यवादियों के गुलाम रहे हैं उन सबको एकजुट करेंगे, हर मुसीबत में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे और किसी साम्राज्यवादी की धौंसपट्टी नहीं सहेंगे। इसी का परिणाम था कि लम्बे समय तक भारत गुट निरपेक्ष देशों के समूह का नेता बना रहा, जिसमें सौ से ज्यादा देश शामिल थे। उस समय फिलिस्तीन के हक में भारत अपने तमाम सहयोगी देशों के साथ अमरीका के खिलाफ सीना तानकर खड़ा था। सारी दुनिया उस घटना की गवाह है जब भारत की दृढ़ता पर न्यौछावर होकर फिलिस्तीन के नेता यासिर अराफात ने इन्दिरा गाँधी को चूम लिया था।
मौजूदा शासकों ने भारत को साम्राज्यवादियों का, खासतौर से अमरीका का पिट्ठू बना दिया है। पिछले एक महीने से इजराइल के खिलाफ पूरी दुनिया में, खासतौर पर यूरोप और अमरीका में प्रदर्शन हो रहे हैं। जब अमरीका में कोई इजराइल के पक्ष मे बोलनेवाला नहीं मिला तो अमरीकी शासकों ने गूगल पर प्रचार करके, फार्म भरवाकर और प्रत्येक को 20 हजार रुपये देकर इजराइल के समर्थन में रैली करवायी। दुनिया के आधुनिक प्रचार साधनों में से अधिकतर पर अमरीका का कब्जा है। उसने अपने प्रचार साधनों के दम पर इजराइल का काफी बचाव किया है। फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत को अमरीका का दुमछल्ला बना देने के तमाम महत्वपूर्ण कारणों के अलावा यह तुच्छ सा कारण भी है कि आने वाले चुनाव में मोदी को अमरीकी प्रचार साधनों की मदद चाहिए। चुनाव जीतने का सवाल मोदी के लिए बहुत बड़ा है इसके लिए उसे दुनिया में भारत के मान–अपमान की कोई परवाह नहीं।
आज दुनिया की बागडोर चरम प्रतिक्रियावादियों के हाथ में है। इजराइल–फिलिस्तीन विवाद ने दुनिया के तमाम शासकों के चमकते चेहरों के पीछे छिपे शैतान को सामने ला दिया है, साथ ही तमाम अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के खोखलेपन को भी साबित कर दिया है। कौन नहीं जानता कि हमास को इजराइल ने ही खड़ा किया है। खुद नेतन्याहू हमास को मजबूत करने की बात इजरायली संसद में कह चुका है।
आज इजराइल की गद्दी पर बैठा एक बदकार हजारों मासूम फिलिस्तीनियों का कत्ल कर चुका है और लगातार करता जा रहा है। बिजली, पानी, भोजन, दवाइयाँ सब कुछ पर रोक लगाकर 23 लाख फिलिस्तीनियों को तड़पा–तड़पा कर मारने पर आमादा है। लेकिन दुनिया का कोई शासक या संस्था उसे रोकने की हिम्मत नहीं दिखा रही है, सारे अपने आना–पाई के हिसाब जोड़ रहे हैं। केवल दुनिया की इंसाफ पसन्द जनता है जो दुनिया के हर कोने से उस बदकार पर थूक रही है। हमास के हमले का शिकार बनी इजराइल की जनता खुद अपने शासक को लम्पट, हत्यारा कह रही है। निश्चय ही दुनिया के शासक इस जनता के लायक नहीं हैं। उन्हें जल्द से जल्द सत्ता से बेदखल करके एक नयी दुनिया बनाने की जरूरत है।
रोशनी में सुलगता गाज़ा देख
ये धुआँ ये ग़ुबार, अम्मा देख
इसमें दिखता है मेरा चेहरा देख
जल रहा है अँधेरा दोनों तरफ़
रोशनी में सुलगता गाज़ा देख
असलहों की तवील दुनिया में
दिल बराबर का एक रक्बा देख
धूप ख़़ूँरेज़ी पर उतर आयी
छाँव का छोटा एक टुकड़ा देख
एक रोटी के बदले सौ–सौ बम
ज़िन्दगी हो गयी खिलौना, देख
अपने अब्बा की क़ब्र ढूँढ रहा
कितना मासूम है वो बच्चा, देख
उनके इतने हमारे इतने गये
ख़ूनआलूदा प्यार अम्मा देख
ज़िन्दगी का न देखा होगा कभी
देख, ये मौत का फ़रिश्ता देख
रोता होगा नबी किसी कोने
घिस गया अम्न का मुलम्मा देख
–– देवेन्द्र आर्य, 25 अक्टूबर 2023
लेखक की अन्य रचनाएं/लेख
समाचार-विचार
- बोल्सोनारो की नयी मुसीबत 10 Jun, 2020
- भूख सूचकांक में भारत अव्वल 17 Nov, 2023
- रत्नागिरी रिफाइनरी परियोजना का जोरदार विरोध 15 Aug, 2018
- “तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया”–– बम्बई उच्च न्यायालय 23 Sep, 2020
राजनीति
- मणिपुर हिंसा : हिन्दुत्व के प्रयोग का एक और दुष्परिणाम 19 Jun, 2023
- सीबीआई विवाद : तोता से कारिन्दा बनाने की कथा 14 Mar, 2019
- हमें मासूम फिलिस्तीनियों के कत्ल का भागीदार मत बनाइये, मोदी जी 17 Nov, 2023
राजनीतिक अर्थशास्त्र
- डॉलर महाप्रभु का दुनिया पर वर्चस्व 17 Feb, 2023
अन्तरराष्ट्रीय
- अफगानिस्तान : साम्राज्यवादी तबाही की मिसाल 16 Nov, 2021
- अमरीका–ईरान टकराव की दिशा 15 Jul, 2019
- अमरीकी धमकियों के प्रति भारत का रूख, क्या विश्व व्यवस्था में बदलाव का संकेत है? 3 Dec, 2018
- कोरोना काल में दक्षिण चीन सागर का गहराता विवाद 23 Sep, 2020
- पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने यूक्रेन युद्ध को अपरिहार्य बना दिया 13 Apr, 2022
- पेरू का संकट : साम्राज्यवादी नव उदारवादी नीतियों का अनिवार्य परिणाम 14 Jan, 2021
- बर्मा में सत्ता संघर्ष और अन्तरराष्ट्रीय खेमेबन्दी 21 Jun, 2021
- बोलीविया में नस्लवादी तख्तापलट 8 Feb, 2020
- भारत–अमरीका 2–2 वार्ता के निहितार्थ 14 Jan, 2021
- सऊदी अरब के तेल संस्थानों पर हमला: पश्चिमी एशिया में अमरीकी साम्राज्यवाद के पतन का संकेत 15 Oct, 2019