हाल ही में जारी वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति और ज्यादा बदतर नजर आयी है। भूख के मामले में 115 देशों में भारत चार अंक नीचे खिसकर 111 वें स्थान पर पहुँच गया है। भूख के मामले में बहुत से अफ्रीकी देश भी भारत से बेहतर स्थिति में हैं।

जैसे शैतान रोशनी से डरता है उसी तरह भारत की सरकार भी सच्चाई से डरती है। सच को दबाने या उस पर कीचड़ उछालने की कोशिश करती है। भूख सूचकांक की रिपोर्ट के प्रति भी भारत सरकार ने यही रुख अपनाया है। सरकार परस्त मीडिया संस्थानों ने इसे चर्चा से गायब कर दिया है और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भूख सूचकांक तैयार करने के तौर–तरीके पर कुछ वाहियात सवाल उठाकर इस पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है। हालाँकि, उनकी इस हरकत से भारत सरकार पूरी दुनिया में मजाक का पात्र बन रही है।

भूख सूचकांक पिछले कई दशकों से अपनी सालाना रिपोर्ट जारी करता आ रहा है। भारत समेत दुनिया के तमाम देश आज तक इसकी कार्यप्रणाली को सही मानते रहे हैं। यहाँ तक कि मोदी सरकार ने भी पिछली रिपोर्टों को स्वीकार किया है। वैश्विक भूख सूचकांक तैयार करने वाली संस्था अपनी तरफ से कोई सर्वे या जाँच–पड़ताल नहीं करती है बल्कि हर देश की सरकार द्वारा दिये गये तथ्यों के आधार पर ही सूचकांक तैयार करती हैं। हमेशा की तरह इस बार भी यही तरीका अपनाया गया है। सन 2021 में भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ सर्वेक्षण में भी सामने आया था कि भारत में बीमारियाँ और भुखमरी बढ़ती जा रही है।

भारत भयावह भुखमरी की चपेट में आ चुका है। भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है लेकिन दुनिया के 43 प्रतिशत भूखे लोग भारत के हैं। इनसान के जीवन से जुड़ा कोई भी पैमाना उठा लीजिये दुनिया में सबसे बुरी दशा भारतीयों की मिलेगी मसलन, सबसे नाटे बच्चे–– भारत में, सबसे दुबले बच्चे–– भारत में, सबसे कुपोषित बच्चे–– भारत में, सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर–– भारत में, सबसे ज्यादा कुपोषित मर्द और औरतें–– भारत में।

कई तरह की रिपोर्टों में सामने आ चुका है कि भारत के लोग इतने कंगाल हो गये हैं कि लगभग दो तिहाई लोग अच्छी पौष्टिक खुराक का खर्च ही नहीं उठा सकते। कुल मिलाकर आज भारत को दुनिया का नर्क कहा जाये तो कुछ गलत नहीं होगा।

2021 की संयुक्त राष्ट्र संघ की (यूएन आईजीएमआई –2021) रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दिन 5 साल से कम उम्र के 1900 बच्चों की मौत हो जाती है, यानी सालाना लगभग 7 लाख बाल–मृत्यु। इनमें से दो तिहाई बच्चों की मौत खराब स्वास्थ्य सेवाओं और भुखमरी से होती है। क्या हमें देश के शासकों पर थू–थू नहीं करनी चाहिए?

भूख सूचकांक की रिपोर्ट पर सवाल उठाकर अपना मजाक बनवाने से पहले स्मृति ईरानी को एक बार भारत के लोगों की आमदनी के बारे में भी सोच लेना चाहिए था। भारत के जाने–माने वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो सन्तोष मेहरोत्रा ने हाल ही में, अपने इंटरव्यू में बताया था कि भारत के 33 प्रतिशत लोगों की आमदनी सौ रूपये रोजाना से कम है और इनसे अगले 34 प्रतिशत लोगों की आमदनी दो सौ रूपये रोजाना से कम है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि अगर कोई रोजाना पकौड़े तलकर दो सौ रुपये भी कमाता है तो वह भी रोजगार है। लेकिन इस कमाई से एक दिन का अच्छा पौष्टिक खाना भी नहीं खा सकते। निश्चय ही मोदी भी यह बात जानते हैं। सन 2021 में भारत में एक अच्छी पौष्टिक खुराक की कीमत 293 रुपये आँकी गयी थी। स्मृति ईरानी को भी ये सारे तथ्य पता होंगे, इसके बावजूद वह अपने गिरेबान में झाँकने के बजाय भूख सूचकांक पर कीचड़ उछाल रही हैं।

ऐसा नहीं है कि भारत में यह भयावह भुखमरी अचानक पैदा हो गयी। भुखमरी की समस्या पहले से मौजूद थी लेकिन किसी भी पार्टी की सरकार ने इस पर गम्भीरता से काम नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि समस्या लगातार भयावह होती चली गयी। 1990 के बाद लागू हुई उदरवादी नीतियाँ तो मानो मुट्ठी भर लोगों को अरबपति, करोड़पति बनाने और बाकी जनता को भूखा मारने के लिए ही बनायी गयी थीं। आजादी के बाद जनता के फायदे की जो थोड़ी बहुत नीतियाँ बनायी गयी थीं उदारवादी मॉडल में उन्हें भी खत्म कर दिया गया।

आजादी के ठीक बाद की स्थिति अलग थी उस वक्त वास्तव में भारत की खेती इतनी पैदावार नहीं देती थी कि सभी को पौष्टिक भोजन मुहैया करवाया जा सके। लेकिन आज स्थिति एकदम उलट है। आज सबको बहुत आराम से भरपेट पौष्टिक भोजन दिया जा सकता है। आज तो किसान अपनी फसलें सड़कों पर फेंकने के लिए मजबूर होते हैं, और यह आम घटना हो गयी है सरकारें भी किसानों को खाद्यान्न उगाने के बजाय फूल और शक्तिवर्धक जड़ी बूटियाँ उगाने के लिए कहती हैं।

आज भोजन और भूखी जनता के बीच नवउदारवादी नीतियों की लौह दीवार खड़ी है। यह किसानों को अपनी फसलें सड़कों पर फेंकने और कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने के लिए मजबूर करती है, दूसरी तरफ सुरक्षित और सम्मानजनक रोजगार और जन हितैषी नीतियों को खत्म करके जनता को भूख से मरने के लिए मजबूर करती है। मोदी सरकार कि खासियत यही है कि उसने नव उदरवादी नीतियों को पूरी बेशर्मी और क्रूरता से लागू किया, विरोधियों को कुचला, जनता कोई विरोध न कर सके इसके लिए लोगों में धर्मांधता और फूट–परस्ती भर दी।

स्मृति ईरानी के जरिये मोदी सरकार ने साफ तौर पर कह दिया है कि जनता की भूख, गरीबी चाहे कितनी भी भयावह हो जाये सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। अब भुखमरी की शिकार जनता के जवाब का इन्तजार है, वह कब कहेगी कि भाड़ में जाये सरकार और उसकी उदारवादी नीतियाँ “रोटी दे हरामी–––”