मणिपुर हिंसा : हिन्दुत्व के प्रयोग का एक और दुष्परिणाम
राजनीति प्रवीण कुमारपूर्वाेत्तर का बेहद खुबसूरत राज्य–– मणिपुर पिछले एक महीने से मैतेई और कुकी जातीय समूहों के बीच हिंसा की आग में जल रहा है। वहाँ से आ रही तस्वीरें यूक्रेन युद्ध और अफ्रीकी देशों में चल रहे गृह युद्ध की तस्वीरों से भी भयावह हैं। इन तस्वीरों में घर, दुकानें, शोरूम के साथ ही पूरे के पूरे गाँव और मुहल्ले जलते हुए दिख रहे हैं। इनमें एके–47 और एम–16 जैसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस नौजवानों की टोलियाँ हैं। आक्रामक भीड़ है। जान बचाकर भागती औरतें और बच्चे हैं। उजड़े हुए परिवारों के हुजूम हैं। अनुमान है कि 35 लाख की छोटी आबादी वाले मणिपुर में 30 हजार लोगों के आशियाने उजाड़ दिये गये हैं। हजारों लोगों ने सुरक्षा की कोई गारण्टी न होने के चलते दूसरे जातीय समूह के वर्चस्व के क्षेत्र में पड़ने वाले अपने घरों को खाली कर दिया है। ये लोग अपने ही राज्य में शरणार्थी बन गये हैं। कुल कितने लोग इस हिंसा के शिकार हुए हैं, इसका कोई सटीक आँकड़ा अभी तक मौजूद नहीं है।
राज्य के बड़े हिस्से में कर्फ्यू लगा है जिसकी परवाह केवल खौफजदा आम लोग करते हैं। औरतें, बच्चे, बूढ़े, बीमार लोग भोजन, पानी और दवाई जैसी बुनियादी जरूरतों से महरूम हैं। स्कूल–कॉलेज, दफ्तर सब बन्द पड़े हैं, कानून का राज बेराज हो चुका है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर आग में घी डालने के आरोप लग रहे हैं। उसके बयानों में समुदाय विशेष के प्रति नफरत झलकती है। पुलिस–प्रशासन पर राज्य के बजाय अपने जातीय समूह के प्रति निष्ठा रखने के आरोप लग रहे हैं। आये दिन मंत्रियों, विधायकों को बंधक बना लिया जाता है। अधिकांश सडकें अलग–अलग समुदायों के हथियारबन्द समूहों के कब्जे में हैं। राज्य में सेना तैनात है, लेकिन हालात बेकाबू हैं। ‘देखते ही गोली मारने’ के आदेश सुरक्षाकर्मियों को दिये गये हैं। सर्वोच्च सैन्य अधिकारी राज्य में डेरा डाले हुए हैं। इसके बावजूद आम जनता की सुरक्षा की कोई गारण्टी नहीं है।
मणिपुर में दर्जनों गाँव, सैंकड़ों चर्च, स्कूल, सरकारी दफ्तर जला दिये गये हैं। गोलीबारी और बमबाजी लगातार चल रही है। घर, दुकान, गोदाम तो क्या, पुलिस थाने और हथियार गोदाम तक लूट लिये गये हैं। पुलिस, अर्धसैनिक बल और सेना से चार हजार हथियार छीने जा चुके हैं। छापेमारी में विदेशी बम बरामद हो रहे हैं। अर्ध–सैनिक बलों ने एक पूर्व भाजपा विधायक को गोला–बारूद ले जाते हुए पकड़ा है।
मैतेई और कुकी दोनों जातीय समूहों के लोग दिल्ली में भी बड़े–बड़े प्रदर्शन कर रहे हैं। जातीय आधार पर राज्य के बँटवारे की माँग जबरदस्त जोर पकड़ चुकी है। मणिपुर एक सीमावर्ती राज्य है। इससे लगता म्यामांर अशान्त है। चीन और हिन्द चीन के देश यहाँ से बेहद करीब हैं। दुनिया के लिए चिन्ता का सबब, ड्रग्स के ‘गोल्डन ट्रेंगल’ के तार मणिपुर से भी जुड़ने लगे हैं। यहाँ के जातीय समूहों में अलगाव की भावना का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा है।
इस सबके बावजूद दिल्ली में बैठी केन्द्र की मोदी सरकार ‘आजादी का अमृतकाल’ मनाने में मस्त है। प्रधानमंत्री मोदी पहले आस्ट्रेलिया में फोटो खिंचवाने में व्यस्त थे, बाद में पण्डे–पुरोहितों को साथ लेकर नयी संसद का उद्घाटन करने और राजदण्ड की नुमाइश करने में मशगूल हो गये। अभी तक उन्हें मणिपुर के हालात पर एक शब्द कहने का भी समय नहीं मिला है। मणिपुर की ओलम्पियन मुक्केबाज मैरी कोम समेत कई जाने–माने लोग प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर के हालात के बारे में चिट्ठियाँ भेजकर दखल देने की गुजारिश कर चुके हैं, लेकिन मोदी को फुर्सत ही नहीं है। केन्द्र और राज्य की सरकारों के रवैये से लगता है कि जैसे वे हिंसा के ज्यादा से ज्यादा बढ़ने का इन्तजार कर रहे हों।
हिंसा शुरू होने के एक महीने बाद गृह मन्त्री अमित शाह मणिपुर गये और कुछ रस्म अदायगी करके आ गये। यह काम तो हिंसा शुरू होने के अगले दिन ही हो सकता था। उन्होंने जो शान्ति समिति बनायी थी उसमें भी दरार पड़ गयी है। कुकी समुदाय के लोगों के साथ पिछले सालों और मौजूदा हिंसा के दौरान जो सलूक हुआ है, सत्ताधारियों और उनके करीबियों ने जिस तरह की बयानबाजी की है उससे कुकी लोगों में अलग राज्य की माँग गहराई तक जड़ जमा चुकी है। इससे भी बढ़कर मैतेई समुदाय के बड़े नेता कुकी लोगों को मणिपुर से निकल जाने की धमकियाँ दे रहे हैं।
हिंसा का तात्कालिक कारण
मणिपुर में जारी जातीय हिंसा की जमीन पिछले कई सालों से तैयार हो रही थी। इस तैयारी के एक हिस्से के तौर पर, पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने की माँग पर गोलबन्द किया जा रहा था। इस सम्बन्ध में मणिपुर उच्च न्यायालय में एक याचिका लम्बित थी। 27 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर आदेश दिया कि मणिपुर सरकार मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाकर केन्द्र को भेजे। मणिपुर के अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त कुकी, जोमी, नागा जैसे दूसरे जनजातीय समुदायों ने इस फैसले को अपने संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ मानकर इसका विरोध किया।
विरोध प्रदर्शन के रूप में 3 मई को ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेण्ट्स यूनियन ऑफ मणिपुर’ ने राजधानी इम्फाल में ट्राइबल सोलिडेरिटी मार्च का आयोजन किया। यह मार्च शुरू में शान्तिपूर्ण था। इस मार्च के विरोध में मैतेई समुदाय के एक उग्र जातीय युवा संगठन–– अर्मेम्बी तोंगोल ने भी इसी दिन अपना प्रदर्शन आयोजित किया। बताया जा रहा है कि इस संगठन के सदस्यों ने एंग्लो–कुकी वॉर मैमोरियल पर कुछ तोड़फोड़ की। थोड़ी ही देर में इस घटना के वीडियो वायरल हो गये। जबाबी कार्रवाई के तौर पर ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेण्ट्स यूनियन ऑफ मणिपुर’ के सदस्यों ने भी कुछ तोड़फोड़ की कार्रवाई की। इसके भी वीडियो वायरल हुए। इन घटनाओं ने बारूद के ढेर में चिंगारी का काम कर दिया और भयावह जातीय टकराव उभरकर सामने आ गया। वार–पलटवार की श्रंृखला शुरू हो गयी। कुछ ही घण्टों में राजधानी इम्फाल और उससे लगते हुए चुराचन्दपुर जिले में हिंसा फैल गयी। यह अभी तक जारी है और मणिपुर के बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले चुकी है।
राज्य और केन्द्र की सरकारों ने तुरन्त कोई सूझबूझ भरी ईमानदार कार्रवाई करने के बजाय सेना, पुलिस और लाठी–गोली के दम पर हिंसा दबाने को प्रमुखता दी। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर लगातार अपने पैतृक मैतेई समुदाय के पक्ष में बोलने और कार्रवाई करने के आरोप लगते रहे। वह कुकी समुदाय के लोगों को आतंकवादी कह चुका है। यह भी रिपोर्टें आयी हैं कि पुलिस के हथियार लूटे नहीं गये, बल्कि लुटवाये गये हैं। सरकार सैन्यबलों से हथियार लूटने वालों पर ईमानदारी से कठोर कार्रवाई करने के बजाय उनसे हथियार वापस जमा करने की बेअसर मिन्नतें कर रही है। सोचने वाली बात है कि अगर कश्मीर में ऐसा हुआ होता तो क्या वहाँ भी सरकार का ऐसा ही रवैया होता?
हिंसा के अगले ही दिन सेना उतारने के फैसले की भी आलोचना हुई है। मणिपुर में सेना को विशेष अधिकार देने वाला अफस्पा लम्बे समय तक लागू रहा है जिसका राज्य की जनता ने लगातार विरोध किया है। मनोरमा कांड और उसके विरोध में सेना के खिलाफ महिलाओं का नग्न होकर प्रदर्शन तथा इरोम शर्मिला का ऐतिहासिक अनशन अभी भी लोगों की यादों में मौजूद है। इसके अलावा सुरक्षाबलों और मणिपुर पुलिस के बीच टकराव के वीडियो भी सामने आ रहे हैं।
16 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर उच्च न्यायालय के 27 अप्रैल के फैसले को “तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत” बताकर इस पर रोक लगा दी और साथ ही मणिपुर उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की कठोर आलोचना भी की। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि यह फैसला सवैंधानिक पीठ के फैसलों के विपरीत है जो कहते हैं कि अनुसूचित जनजाति की सूचि को बदलने वाला कोई भी न्यायिक आदेश पारित नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला आने के बाद मणिपुर में नये सिरे से हिंसा शुरू हो गयी जो पहले से भी भयावह थी और आज तक जारी है।
मणिपुर की जातीय संरचना
मणिपुर लगभग 35 लाख की आबादी वाला एक पर्वतीय राज्य है। राज्य का 90 प्रतिशत क्षेत्रफल पर्वतीय और केवल 10 प्रतिशत इम्फाल घाटी का समतल इलाका है। मणिपुर की आबादी मैतेई, कुकी, नागा, मीजो जैसे बहुत से जातीय समुदायों से बनी है। मैतेई और कुकी राज्य के सबसे बड़े समुदाय हैं। मैतेई मणिपुर की कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत और कुकी लगभग 25 प्रतिशत हैं। मैतेई हिन्दू धर्म को मानते हैं और मुख्यत इम्फाल घाटी के इलाके में बसे हैं।
राज्य विधानसभा की 60 में से 40 सीटें मैतेई लोगों के पास हैं। लगभग सभी सरकारी दफ्तर, रोजगार के साधन, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल यहीं केन्द्रित हैं। मैतेई लोगों को पर्वतीय क्षेत्र में भूमि खरीदने का अधिकार नहीं है। वे कुछ सीमित मामलों में और प्रशासनिक स्वीकृति से ही जमीन खरीद सकते हैं। आम मैतेई लोगों को समझाया गया है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाने से उन्हें पहाड़ों में जमीन मिल जायेगी और सरकारी नौकरियाँ भी मिलेंगी। यह ऐसा ही है जैसा कश्मीर से धारा 370 हटाते वक्त देश के आम हिन्दुओं को समझाया गया था।
कुकी जनजाति के लोग राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में खासतौर पर म्यांमार के साथ लगी सीमा पर फैले हैं। ये इसाई धर्म को मानते हैं और इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल है। कुकी समुदाय का बड़ा हिस्सा सीमा के उस पार म्यांमार में भी है। यहाँ नेपाल की तरह सीमा खुली हुई है और हालत यह है कि किसी का घर भारत में है तो ससुराल म्यांमार में। सीमा पर आवाजाही इतनी आम है कि आज तक भारत सरकार ने यहाँ एफआरआरओ का दफ्तर भी नहीं बनाया है। केवल स्थानीय स्तर पर इसे दर्ज किया जाता है।
कुकी समुदाय को बदनाम करने का अभियान
पिछले सालों में मैतेई लोगों में यह भाव भरा गया है कि कुकी अपराधों में, अफीम की खेती में और ड्रग्स की तस्करी में लिप्त हैं। वे सीमा पार से कुकी घुसपैठियों को मणिपुर में भरते जा रहे हैं और एक दिन सारे राज्य पर कब्जा कर लेंगे। यह ठीक वैसे ही है जैसे मुस्लिमों के बारे में यह झूठ फैलाया जाता है कि वे जन्मजात अपराधी हैं और वे एक दिन पूरे भारत पर कब्जा कर लेंगे। यह सच है कि मणिपुर आज भारत में ड्रग्स तस्करी का केन्द्र बन चुका है। पिछले 10 सालों में भारत में ड्रग्स के अवैध कारोबार में 270 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन क्या इसके लिए कुकी समुदाय को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
मणिपुर के गैर–हिन्दू समुदायों के खिलाफ और उग्र हिन्दू–मैतेई राष्ट्रवाद के पक्ष में प्रचार अभियान और कार्रवाइयाँ करने के लिए पिछले सालों में कई संगठन तैयार हो चुके हैं। भाजपा शासित दूसरे राज्यों की तरह मणिपुर में भी ये संगठन सत्ता के करीबी हैं। इन्होंने मैतेई धर्म, मैतेई पहचान और मैतेई संस्कृति को उभारने की सोची–समझी साजिश से एक उग्र मैतेई राष्ट्रवाद को जन्म दिया है। यह सोच उन्हें हिन्दुत्ववाद से जोड़ती है और उन्हें ऐसा नजरिया देती है जिसमें मैतेई ही मणिपुर के मूल निवासी हैं बाकी सब बाहरी हैं। जिस युवा संगठन अर्मेम्बी तोंगोल पर प्रतिबन्ध लगाया गया है उसे मणिपुर का बजरंग दल कहा जाता है। हालाँकि यह कहीं ज्यादा खतरनाक है, इसके सदस्य फासीवाद की प्रतीक काली कमीज पहनते हैं और सैंकड़ों की संख्या में मोटरसाइकिलों पर सवार होकर आतंक फैलाते हुए घूमते हैं। जब दूसरे समुदाय के लोग इनकी शिकायत करते हैं तो अकसर शिकायतकर्ता को ही दोषी ठहरा दिया जाता है। हिन्दू–मैतेई राष्ट्रवाद का जहर पूरे शासन–प्रशासन में फैल चुका है।
ऐसा ही एक संगठन है–– दी पीपुल्स एलाइन्स फॉर पीस एण्ड प्रोग्रेस ऑफ मणिपुर (पीएपीपीएम)। यह तथाकथित प्रबुद्ध मैतेई लोगों का नागरिक संगठन है। यह आरएसएस स्टाइल के ‘षडयंत्र के सिद्धान्त’ को लागू करते हुए अस्पष्ट और आधे–अँधूरे तथ्यों के आधार पर कुकी समुदाय के खिलाफ नफरती प्रचार अभियान चलाता है। यह प्रचार करता है कि कुकी घुसपैठिये भारत सरकार में संवेदनशील पदों तक पहुँच चुके हैं और वे म्यांमार से कुकी घुसपैठियों के आने को रुकने नहीं देते। कमाल का रहस्यमयी दावा है, भारत सरकार ने आज तक अपने किसी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ ऐसा दावा नहीं किया है, लेकिन यह संगठन करता है और सरकार इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती।
एक बेहद भ्रामक तर्क कुकी लोगों के गाँव की संख्या में बढ़ोतरी का फैलाया गया है। कहा जाता है कि 1969 के बाद कुकी गाँव की संख्या बढ़कर लगभग दो गुणी हो गयी है। दरअसल, कुकी जनजाति झूम खेती करती है। इसी से उनकी संस्कृति विकसित हुई है। झूम खेती प्रकृति के अनुकूल है और इसका ढाँचा बड़े गाँव की इजाजत नहीं देता। भाजपा के ही विधायक पी हाओकिप का कहना है कि जब गाँव बड़ा हो जाता है तो कुछ लोगों को अलग करके नया गाँव बसाया जाता है। जो लोग गाँव के बढ़ने की बात करते हैं उन्हें कुकी परम्पराओं का ज्ञान नहीं है। म्यांमार से आये लोगों की संख्या बस कुछ सौ ही होगी। कोई गाँव तो उन्होंने बिलकुल भी नहीं बसाया है।
कुकी लोगों की जनसंख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी का कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है, क्योंकि 2021 की जनगणना अभी नहीं हुई है और राज्य सरकार ने भी कोई गणना नहीं करवायी है। उत्तर–पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय के मुताबिक मणिपुर की जनजातीय आबादी में केवल 0–91 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है जो पिछली राष्ट्रीय जनगणना की औसत राष्ट्रीय जनसंख्या वृद्धि दर से काफी कम है। जर्मन नाजियों का यह दावा कि एक झूठ को सौ बार कहने से वह सच लगने लगता है, वास्तव में आज मणिपुर में सही साबित हो रहा है।
क्या मणिपुर हिंसा “ड्रग्स के खिलाफ युद्ध” का परिणाम है
पीएपीपीएम ने 9 मई को दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस करके दावा किया कि मणिपुर में हो रही हिंसा की वजह सरकार का “ड्रग्स के खिलाफ युद्ध” है जिसका कुकी विरोध कर रहे हैं, ताकि कुकी ड्रग्स का व्यापार जारी रख सकें। इस झूठे दावे को सत्तापक्षीय मीडिया ने लगभग स्थापित कर दिया है। सच तो यह है कि ड्रग्स के खिलाफ अभियान पिछले 6 सालों से चल रहा है, जबकि मीडिया कह रहा है कि कुकी आज प्रतिक्रिया कर रहे हैं, कमाल है। असल मामला है कि जब बीरेन सरकार “ड्रग्स के खिलाफ युद्ध” के नाम पर जंगलों से कुकी गाँवों को उजाड़ती है तो वे विरोध करते हैं। ड्रग्स तस्करी के आरोपी आज मणिपुर सरकार में शामिल हैं और खुद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर ड्रग्स तस्करों को बचाने के आरोप लग चुके हैं।
भाजपा विधायक हाओकिप कहते हैं कि आज तक किसी भी कुकी संगठन या चर्च ने ड्रग्स की तस्करी या अफीम की खेती को बढ़ाने वाला बयान नहीं दिया है और असल में घाटी के रईस निवेशक इस धन्दे की ‘किंग–पिन’ हैं।
11 जनवरी 2013 को इम्फाल एयरपोर्ट पर ड्रग्स की एक बड़ी खेप पकड़ी गयी थी। इसका मुख्य आरोपी ओकारम हेनरी सिंह, तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री का भतीजा था। भाजपा ने 2017 के चुनाव में इसे मुद्दा बनाया था। हेनरी सिंह ने विधायक का चुनाव जीता और बीरेन सिंह की तरह वह भी भाजपा में जाकर ‘पवित्र’ हो गया। इस मामले का दूसरा आरोपी भी आज भाजपा में शामिल है और ‘ड्रग्स के खिलाफ युद्ध’ चला रहा है।
लेतखोसे जोऊ को मणिपुर का ड्रग–किंग कहा जाता है। यह भी कांग्रेस के टिकट पर डिस्ट्रिक्ट काउन्सिल चेयरमैन का चुनाव जीतकर बाद में भाजपा में शामिल हो गया था। 20 जून 2018 को मणिपुर की दबंग पुलिस अधिकारी थोंगजुम वृन्दा ने लेतखोसे के घर पर छापा मारकर उसे 27 करोड़ की ड्रग्स के साथ गिरफ्तार किया था। इससे मणिपुर के शासक वर्ग में हड़कम्प मच गया। वृन्दा का जीना दूभर हो गया। सत्ता के दबाव से आजिज आयी वृन्दा ने मणिपुर उच्च न्यायालय में लिखित बयान दिया कि खुद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पहले दिन से ही इस मामले में लेतखोसे को बचाने के लिए उस पर दबाव बना रहा है। 16 अप्रैल 2020 को दी वायर ने इस पर विस्तृत रिपोर्ट छाप दी थी जिस पर काफी हंगामा मचा था। आखिरकार, सत्ता और ड्रग्स–किंग के गठजोड़ के आगे खुद को बेबस पाकर वृन्दा ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
कुकी दीवार से सटा दिये गये
2017 में भाजपा कुकी समुदाय के हथियारबन्द संगठनों की पीठ पर सवार होकर ही मणिपुर की सत्ता में आयी थी। 10 कुकी विधायकों में से 7 भाजपा से जीते थे। केन्द्र सरकार ने तमाम राजकीय तौर–तरीकों को ताक पर रखकर इन संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक का समझौता किया था। यहाँ तक कि उनके सारे हथियार भी जमा नहीं करवाये गये थे और उन्हें धन भी दिया गया था। बदले में इन संगठनों ने भाजपा को ही वोट देने के फरमान जारी किये और कुकी इलाकों में भाजपा की जबरदस्त जीत हुई।
सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर आये बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया जो पहले से ही कुकी विरोधी माने जाते थे। खुद भाजपा में मौजूद कुकी विधायक और बहुत से मैतेई भी मानते हैं कि शुरू से ही बीरेन सिंह की भाषा कुकी विरोधी और विघटनकारी है। मैतेई प्रभुत्व की उनकी सरकार ने कुकी लोगों को बाहरी, घुसपैठिया, तस्कर, अफीम की खेती करनेवाला बता दिया। ड्रग्स के खिलाफ युद्ध के नाम पर कुकी लोगों को लगातार परेशान किया गया, उनके गाँव उजाड़े गये और उनकी शिकायतों को अनसुना किया गया। हथियारबन्द संगठनों से समझौता करके केन्द्र सरकार ने उन्हें अपने पाले में ले लिया और शान्तिवादी कुकी संगठनों को किनारे कर दिया था। विधायक सरकार की चाटुकारिता कर रहे थे। कुल मिलाकर कोई नहीं था जो रोज उत्पीड़न झेलती आम कुकी जनता के लिए आवाज उठाये। साथ ही देश की बाकी आम जनता की तरह वे भी महँगाई–बेरोजगारी की मार झेल रहे थे।
जिस तरह का कुकी विरोधी नैरेटिव चलाया जा रहा था, उन्हें उत्पीड़ित किया जा रहा था, इस सब ने कुकी समुदाय को बहुत संवेदनशील बना दिया। मार्च के महीने में राज्य सरकार ने कुकी संगठनों पर कार्रवाई रोकने के समझौते को भी खत्म कर दिया था। ऐसी स्थिति में मैतेई, जो राज्य की 60 फीसदी आबादी हैं उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने सम्बन्धी अदालती फैसले ने कुकी समुदाय को एहसास करा दिया कि अब उनकी खेती की जमीनें भी सुरक्षित नहीं हैं। यही सच्चाई थी। इस फैसले से पहाड़ी क्षेत्र की जनजातियों के लिए आरक्षित जमीन देश और इम्फाल घाटी के धन्नासेठों के लिए खुल जानी थीं। इस फैसले का जब विधान सभा की हिल एरिया कमिटी ने विरोध किया तो उच्च न्यायालय ने उसे कारण बताओ नोटिस थमा दिया। अब कोई रास्ता बाकी नहीं था, कुकी समुदाय को दीवार से सटाकर उसकी गर्दन दबा दी गयी थी। ऐसी स्थिति में कोई भी अपनी पूरी ताकत से प्रतिक्रिया करता है। कुकी समुदाय ने यही किया।
मैतेई समुदाय निश्चय ही ताकतवर है, उसके अन्दर राष्ट्रवादी उन्माद का जहर भरा गया है, सत्ता उसे उकसा रही है। ऐसी हालत में जिससे वह नफरत करता है, वह कमजोर दुश्मन उस पर हाथ उठा दे वह कैसे सह सकता है। मणिपुर को इसी नफरत की आग ने तबाह कर दिया। पूर्वाेत्तर का बेहद खुबसूरत राज्य मणिपुर आज भी जल रहा है और खण्ड–खण्ड होने के कगार पर है।
लेखक की अन्य रचनाएं/लेख
समाचार-विचार
- बोल्सोनारो की नयी मुसीबत 10 Jun, 2020
- भूख सूचकांक में भारत अव्वल 17 Nov, 2023
- रत्नागिरी रिफाइनरी परियोजना का जोरदार विरोध 15 Aug, 2018
- “तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया”–– बम्बई उच्च न्यायालय 23 Sep, 2020
राजनीति
- मणिपुर हिंसा : हिन्दुत्व के प्रयोग का एक और दुष्परिणाम 19 Jun, 2023
- सीबीआई विवाद : तोता से कारिन्दा बनाने की कथा 14 Mar, 2019
- हमें मासूम फिलिस्तीनियों के कत्ल का भागीदार मत बनाइये, मोदी जी 17 Nov, 2023
राजनीतिक अर्थशास्त्र
- डॉलर महाप्रभु का दुनिया पर वर्चस्व 17 Feb, 2023
अन्तरराष्ट्रीय
- अफगानिस्तान : साम्राज्यवादी तबाही की मिसाल 16 Nov, 2021
- अमरीका–ईरान टकराव की दिशा 15 Jul, 2019
- अमरीकी धमकियों के प्रति भारत का रूख, क्या विश्व व्यवस्था में बदलाव का संकेत है? 3 Dec, 2018
- कोरोना काल में दक्षिण चीन सागर का गहराता विवाद 23 Sep, 2020
- पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने यूक्रेन युद्ध को अपरिहार्य बना दिया 13 Apr, 2022
- पेरू का संकट : साम्राज्यवादी नव उदारवादी नीतियों का अनिवार्य परिणाम 14 Jan, 2021
- बर्मा में सत्ता संघर्ष और अन्तरराष्ट्रीय खेमेबन्दी 21 Jun, 2021
- बोलीविया में नस्लवादी तख्तापलट 8 Feb, 2020
- भारत–अमरीका 2–2 वार्ता के निहितार्थ 14 Jan, 2021
- सऊदी अरब के तेल संस्थानों पर हमला: पश्चिमी एशिया में अमरीकी साम्राज्यवाद के पतन का संकेत 15 Oct, 2019