अगर किसी देश में पत्रकारों को डराया–धमकाया जाता है, सच को सामने लाने के कारण उन पर जानलेवा हमला होता है, तो यह कैसा लोकतंत्र है ? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले देश में ऐसी ही दो घटनाएँ हाल ही में सामने आयी हैं। एक आईबीएन–24 के पत्रकार आकर्षण उप्पल पर जानलेवा हमला और दूसरा, गाजियाबाद के पत्रकार रविकुमार की बेदर्दी से पिटायी का मामला। दोनों ही पत्रकार किसान आन्दोलन का कवरेज कर रहे थे और संघर्ष के इस दौर में जनता के सम्मुख सच को उजागर करने का काम कर रहे थे। इन्होंने अपनी खबरों के माध्यम से किसान आन्दोलन में जनता का भारी समर्थन और कार्पाेरेट घरानों के साथ सरकार के गठजोड़ को बेनकाब किया।

आकर्षण उप्पल ने अपनी रिपोर्ट में दिखाया था कि एक तरफ हरियाणा के पानीपत जिले में अडानी ग्रुप द्वारा किसानों से अनाज खरीदकर स्टोर करने के लिए सौ एकड़ जमीन पर बड़े–बड़े गौदामों, निजी रेल लाइन और अन्य निर्माण किये जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ लाखों किसान सरकार द्वारा थोपे जा रहे नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं।

ऐसा भी नहीं कि अडानी ग्रुप द्वारा गोदामों का निर्माण सिर्फ हरियाणा और पंजाब में ही किया जा रहा है। फाइनेन्शियल एक्सप्रेस, मीडिया विजिल और अन्य समाचार माध्यमों की 2008 से 2017 की विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार अडानी ग्रुप की एक संस्था अडानी एग्री लॉजिस्टिक लिमिटेड (एएएलएल) व एफसीआई के बीच वेयरहाउस (गोदाम) निर्माण का समझौता हुआ है। इस समझौते में प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशीप (पीपीपी) मॉडल के तहत 13 राज्यों में 100 लाख टन स्टोरेज क्षमता वाले वेयरहाउस/साइलो तैयार करने की योजना है। मार्च 2018 में छपी राजस्थान पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार अडानी ग्रुप का उत्तर प्रदेश सरकार के साथ समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत सरकार अडानी ग्रुप यमुना प्राधिकरण क्षेत्र की 1400 एकड़ जमीन अडानी के हवाले करेगी, जिस पर अडानी ग्रुप 2500 करोड़ रुपये का निवेश करके फूड पार्क, वेयरहाउस और साईलो बनायेगा।

बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती। सरकार का दूसरा चहेता कॉर्पाेरेट घराना रिलायंस ग्रुप है। जिसने 2006 से अब तक 621 रिलायंस फ्रैश खुदरा दुकान खोले हैं जिनसे प्रतिदिन 200 मेट्रिक टन फल और 300 मेट्रिक टन सब्जियाँ बेची जाती हैं। इस ग्रुप के पूरे देश में 420 से ज्यादा शहरों में बिग बाजार चल रहे हैं और अब तक 1000 से ज्यादा अन्य स्टोरों का अधिग्रहण कर चुका है।

गजब यह है कि नये कृषि कानून बनने के पहले से ही कॉर्पाेरेट घरानों ने कृषि उपज की खरीद, भण्डारण और उनकी बिक्री से अकूत मुनाफा कमाने की तैयारी शुरू कर दी थी। जाहिर है कि उनको सरकार के भावी कदमों की जानकारी पहले से ही थी।

सभी तथ्यों और आँकड़ों से यह साबित होता है कि पिछले कुछ वर्षों से भाजपा सरकार ने प्रत्येक क्षेत्र में निजी निवेश के लिए लाल कालीन बिछाने का काम किया है। सरकार देशी–विदेशी मुनाफाखोर पूँजीपतियों जैसे–– अडानी, अम्बानी, मोन्सेण्टो और कारगिल के हाथों देश की सार्वजनिक सम्पत्ति को कौड़ियों के दाम बेच रही है। सरकार नये कृषि कानून लाकर कॉर्पाेरेट घरानों को मेहनतकश किसानों की खून–पसीने से पैदा की गयी दौलत पर दिन–दहाड़े डकैती डालने का परमिट दे रही है।

इन सब के इतर गोदी मीडिया लगातार प्रधानमंत्री की छवि को मसीहा के रूप में स्थापित करने में लगा है, क्योंकि वे जानते हैं कि जो नंगा नाच पर्दे के पीछे चल रहा है वह धीरे–धीरे जनता के सामने आता जा रहा है। नये कृषि कानून के चलते देश की कृषि व्यवस्था को मुनाफाखोर कम्पनियों के हवाले कर दिया गया है, जिसके चलते हमारे देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ गयी है।

जनविरोधी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आन्दोलन ने मेहनत करने वालों और उनकी मेहनत को लूटने वाले लोगों के बीच के टकराव को सतह पर ला दिया है। अब स्पष्ट तौर पर एक तरफ लूटने वाले कॉर्पाेरट घरानों के भाड़े के बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार, टीवी चैनल और स्वघोषित नेता हैं, जो लूट को बरकरार रखने के लिए हर सम्भव षडयंत्र और कार्रवाई करते हैं। दूसरी तरफ मेहनत करने वालों के बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार और जनता के नेता हैं, जो इस लूट को खत्म कर अपने लोगों के हक के लिए एक शानदार जुझारू मुहीम छेड़े हुए हैं। सरकार और कॉर्पाेरेट घरानों का गठजोड़ योजनाबद्ध तरीके से मेहनतकश जनता के प्रतिनिधियों को फर्जी मुकदमों में जेल भेजते हैं, डराते–धमकाते हैं। जो इन दमनकारी तरीकों से नहीं डरते, उन पर सरकार और कॉर्पाेरेट घराने जानलेवा हमले करवाते हैं। पत्रकारों पर होनेवाले हमलों की यही वजह है। लेकिन जैसे–जैसे दमन बढ़ रहा है, वैसे–वैसे लोगों का प्रतिरोध भी बढ़ रहा है।