अनियतकालीन बुलेटिन

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अंक 36, सितम्बर 2020

संपादकीय

नयी शिक्षा नीति 2020 : आपदा में विपदा

कोरोना महामारी के दौर में जनता की समाजिक दूरी और अपने–अपने घरों में बन्द होने का फायदा उठाकर केन्द्र की भाजपा सरकार ने कई जनविरोधी फैसले लिये। श्रम कानूनों में बदलाव, कृषि क्षेत्र को सटोरियों और कालाबाजारियों को सौंपने वाला अध्यादेश और सार्वजनिक क्षेत्र को कौड़ियों के मोल नीलामी सहित इन तमाम कारगुजारियों का मकसद...

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देश विदेश के इस अंक में

सामाजिक-सांस्कृतिक

एक आधुनिक कहानी एकलव्य की

–– सुन्दर सरुक्कई इन दिनों एक शिक्षक होना बहुत मुश्किल है। संस्थानों का विध्वंस, जो इस सरकार की प्रमुख चिन्ता प्रतीत होती है, उसकी शुरुआत शिक्षा से ही हुई। अस्थायी भर्ती, आरक्षण पर सवाल उठाने तथा भय और धमकी का माहौल बनाने के माध्यम से प्रमुख सार्वजनिक विश्वविद्यालयों… आगे पढ़ें

दिल्ली की सत्ता प्रायोजित हिंसा : नये तथ्यों की रोशनी में

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अब तक सामने आये तथ्यों से यह साफ हो चुका है कि फरवरी के अन्तिम सप्ताह में हुई हिंसा सत्ता द्वारा मुख्य रूप से केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा थी। दिल्ली विधानसभा चुनावा के समय से ही भाजपा नेताओं द्वारा भडकाऊ भाषण दिये गये और लगातार दंगों का माहौल तैयार किया गया। गृहमंत्री… आगे पढ़ें

हमारा जार्ज फ्लायड कहाँ है?

–– सुहास पालशीकर क्या भारत के सार्वजनिक जीवन में भी कोई जार्ज फ्लायड जैसी परिघटना होगी? निश्चय ही, यह महज अन्याय की एक घटना के खिलाफ फूट पड़ने वाले आक्रोश तक की ही बात नहीं है बल्कि एक प्रताड़ना के शिकार व्यक्ति के साथ खुद को खड़ा करने की तात्कालिक आवश्यकता को समझने,… आगे पढ़ें

राजनीतिक अर्थशास्त्र

घिसटती अर्थव्यवस्था की गाड़ी और बढ़ती बेरोजगारी

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पूरी दुनिया में आर्थिक महामन्दी की धमक सुनाई दे रही है। इसे लेकर अर्थशास्त्री लगातार चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन सरकारें मन्दी को स्वीकार करने या मन्दी दूर करने के लिए अपनी लुटेरी व्यवस्था में बदलाव करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं। हाल ही में कई राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं… आगे पढ़ें

राजनीति

लोकतंत्र की हत्या के बीच तानाशाही सत्ता का उल्लास

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देश में निर्दोष आन्दोलनकारियों पर सरकारी दमन की खबरें अखबारों की सुर्खियाँ बन गयी हैं। विरोध की उनकी आवाज को खामोश करने के लिए पुलिस उन्हें प्रताड़ित कर रही है और झूठे केस में फँसाकर जेल मे बन्द कर रही है। सदफ जफर ने कोर्ट से गुहार लगायी है कि उनके पूरे परिवार को उत्तर प्रदेश… आगे पढ़ें

साहित्य

मीर तकी मीर : ‘पर मुझे गुफ्तगू आवाम से है’

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(फरवरी 1723 – सितम्बर 1810) –– विजय गुप्त मीर की उस्तादी के बारे कोई लिखे भी तो कैसे लिखे? वहाँ तो जिन्दगी के कई रंग हैं। रंगों की कई छायाएँ हैं। युग का गर्दो–गुबार है, बवण्डर है। प्रकाश है, अन्धकार है। एक रंग पकड़ो तो दूसरा छूट जाता है। एक छाया के पीछे… आगे पढ़ें

कहानी

भीड़

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मेरे कमरे की खिड़की एक चैराहे की ओर खुलती है, जिस पर पूरे दिन पाँच अलग–अलग सड़कों से आने वाले लोगों का ताँता लगा रहता है, बिलकुल वैसे ही जैसे बोरियों से आलू लुढ़क रहे हों। वे आवारागर्दी करते हैं और फिर भाग जाते हैं और फिर से सड़कें उन्हें अपनी ग्रासनली में गटक लेती हैं। वह… आगे पढ़ें

श्रद्धांजलि

सियासी कुटिलताओं के बीच एक सदाशय ‘योद्धा सन्त’ स्वामी अग्निवेश

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स्वामी अग्निवेश के निधन से देश की जनतांत्रिक शक्तियों ने एक ऐसे मित्र को खो दिया जिसने समाज में व्याप्त हर तरह की बुराइयों, धार्मिक पाखण्ड, अन्धविश्वास और वैज्ञानिक सोच और हाशिये पर पड़े लोगों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द की। वैसे तो स्वामी अग्निवेश की पहचान बन्धुआ… आगे पढ़ें

व्यंग्य

हिन्दू–हृदय सम्राट राज कर रहे हैं कृपया बाधा उत्पन्न न करें

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दिवाली का त्यौहार आने वाला है। लेकिन देशवासियों को इस दुख भरे साल में दो बार दिवाली मनाने का मौका मिला। घरों की साफ–सफाई और कार्तिक माह की फसल आने की खुशी में मनाया जाने वाला यह त्यौहार अब महज त्योहार नहीं रहा, बल्कि धर्म विशेष की पहचान से जोड़ा जाता है। इसकी टेस्टिंग लॉकडाउन… आगे पढ़ें

साक्षात्कार

क्या हमारे समाज में भाईचारे और एकजुटता की भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं?

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(विश्व–प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति राय ने दलित कैमरा पोर्टल को एक लम्बा साक्षात्कार दिया है। इसमें उन्होंने अमरीका और यूरोप में चल रहे नस्लवाद विरोधी आन्दोलन से लेकर भारत में कोरोना की स्थित तक पर अपने विचार जाहिर किये हैं। उनका कहना है कि अमरीका और यूरोप के मुकाबले भारत में… आगे पढ़ें

विचार-विमर्श

अतीत और वर्तमान में महामारियों ने बड़े निगमों के उदय को कैसे बढ़ावा दिया है?

–– इलीनोर रसेल, मार्टिन पार्कर जून 1348 में, इग्लैण्ड में लोगों ने रहस्यमयी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में शिकायत कीं। उन्होंने सिरदर्द, बदन दर्द, और जी मिचलाने जैसे हलके और अस्पष्ट बीमारी के लक्षणों को महसूस किया। इसके बाद दर्दनाक काले रंग की गाँठ कमर और बगल में… आगे पढ़ें

क्या है जो सभी मेहनतकशों में एक समान है?

––चूक चर्चिल सभी मेहनतकश लोगों में कौन–सी चीज समान है, भले ही उनके तथाकथित नस्ल या चमड़ी के रंग अलग–अलग हों? एक ऐसी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के वर्चस्व के मातहत उनका एक अनिश्चित अस्तित्व, जहाँ सारी सत्ता राष्ट्र के (और दुनिया के) मुट्ठीभर लोगों––… आगे पढ़ें

बुनियादी बदलाव के लिए जन–संघर्षों का दामन थामना होगा

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भारतीय राजनीति आज एक संकट से गुजर रही है। संसद से सड़क तक भविष्य को लेकर एक बेचैनी मौजूद है। उदारवादी और संसदीय राजनीति के जरिये जनता में छोटे–मोटे सुधार की गुंजाइश खत्म होती जा रही है। संसदीय वामपंथ जाति आधारित मण्डल राजनीति, दलित राजनीति करने वाली बहुजन पार्टियाँ और वामपंथी… आगे पढ़ें

लोकतंत्र के पुरोधाओं ने लोकतंत्र के बारे में क्या कहा था?

आज जब लोकतंत्र का पतन अपने चरम पर है, हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इसके पुरोधाओं ने इसकी क्या व्याख्या की थी? हम जानते हैं कि उनके विचारों के प्रसार से सदियों से चली आ रही गैर–बराबरी पर आधारित सामन्ती व्यवस्था की जगह समाज में स्वतंत्रता और समानता के बीज पैदा हुए।… आगे पढ़ें

अन्तरराष्ट्रीय

अमरीका और चीन–रूस टकराव के बीच भारत की स्थिति

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चीनी ग्लोबल अखबार टाइम्स अमरीका को ‘कागजी वाध’ नहीं मानता बल्कि उसे ‘अल्फा–भेड़िया’ मानता है। यह अखबार कहता है कि अमरीका बाघ नहीं है–– न तो असली और न ही कागजी, क्योंकि बाघ अकेले शिकार करता है। यह एक भेड़िया है क्योंकि भेड़िये हमेशा झुण्ड… आगे पढ़ें

अमरीका बनाम चीन : क्या यह एक नये शीत युद्ध की शुरुआत है

–– पैट्रिक विण्टौर शीत युद्ध के बौद्धिक लेखक के रूप में विख्यात जॉर्ज केनन ने याद किया कि सोवियत खतरे की प्रकृति पर अगर उसने अपना तार छह महीने पहले भेजा होता तो उसके सन्देश पर “शायद विदेश मंत्रालय में होंठ भींच लिए जाते और भवें चढ़ जाती। छह महीने बाद, यह शायद… आगे पढ़ें

कोरोना काल में दक्षिण चीन सागर का गहराता विवाद

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कोरोना महामारी के वैश्विक प्रसार के बाद दो महत्त्वपूर्ण चीजें एक समानुपात में बढ़ी हैं–– कोरोना महामारी से निपटने में अमरीका की असफलता और चीन के खिलाफ अमरीका की उग्रता। दक्षिणी चीन सागर विवाद इसी एकतरफा उग्रता का परिणाम है और लगता है कि जैसे यह दूसरे शीत युद्ध का… आगे पढ़ें

रूस का बढ़ता वैश्विक प्रभाव और टकराव की नयी सम्भावना

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आज रूस एक वैश्विक ताकत है, इस बात से इनकार करना मुश्किल है और इस बात पर भी यकीन नहीं आता कि 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद वह एक कमजोर देश में तब्दील हो गया था। उस दौर में उसकी अर्थव्यवस्था की हालत डावाँडोल थी। नये शासक वर्ग ने सोवियत दौर के राजनीतिक सिद्धान्त को… आगे पढ़ें

समाचार-विचार

आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किसके हित में

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5 जून को सरकार एक पुराने कानून ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन सहित दो नये कानून लेकर आयी है। दो नये कानूनों–– फार्मर एम्पावरमेण्ट एण्ड प्रोटेक्शन एग्रीमेण्ट ऑन प्राइस एश्युरेंस एण्ड फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस (एफएपीएएफएस–2020) और द फार्मर्स प्रोड्यूस… आगे पढ़ें

इजराइल–अरब समझौता : डायन और भूत का गठबन्धन

13 अगस्त 2020 को इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने एक शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किया। मिस्र और जॉर्डन के बाद यह तीसरा ऐसा देश है जो औपचारिक रूप से इजराइल के साथ अपने राजनयिक रिश्ते कायम करने के लिए तैयार हो गया है। यूएई ऐसा करने वाला अरब जगत का पहला देश है। इस समझौते में… आगे पढ़ें

एटलस साइकिल की फैक्ट्री में तालाबन्दी : मसला घाटे का नहीं जमीन का है

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कोरोना महामारी के दौर में चारों तरफ से कम्पनियों के बन्द होने की खबरें लगातार आ रही हैं। कई उद्योगों के मालिकों ने घाटे का हवाला देकर अपनी कम्पनियाँ ही बन्द कर दी हैं। एटलस साइकिल कम्पनी ने पिछले दिनों साइकिल दिवस के अवसर पर ही अपना आखिरी बचा साहिबाबाद प्लाण्ट भी बन्द कर दिया।… आगे पढ़ें

कोयला खदानों के लिए भारत के सबसे पुराने जंगलों की बलि!

पूरी दुनिया जलवायु आपातकाल में पहुँच चुकी है। उसके बावजूद सरकारें इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं। पिछले कई दशकों से पर्यावरण कानूनों की धज्जियाँ उड़ायी गयीं। और तो और तबाह करने वाले नये–नये फरमान जारी किये गये। पर्यावरण मंत्रालय की ‘फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी’… आगे पढ़ें

क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमान होना ही गुनाह है?

पिछले तीन सालों में जब से योगी सरकार सत्ता में आयी है, उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की हालत खास से आम वाली बन गयी हैं। इतना आम कि अब इसे खबरों के बीच जगह भी नहीं मिलती। इताना आम कि पुलिस के लिए भी किसी का मुसलमान होना अपराधी होने के बराबर है। मुस्लिमों पर फिर्जी मुकदमें लगा कर… आगे पढ़ें

खाली जेब, खाली पेट, सर पर कर्ज लेकर मजदूर कहाँ जायें

कोरोना महामारी के दौरान शहरों से वापस अपने गाँव लौट रहे मजदूरों के सैलाब को अपनी आँखों से नहीं भी, तो मीडिया के मार्फत हम सब ने देखा। कोई इनकी संख्या तीन करोड़ बताता है, कोई 13 करोड़। सही संख्या चाहे जो हो लेकिन यह तय है कि ये सभी लोग मेहनत–मजदूरी करके कमाने वाले लोग हैं।… आगे पढ़ें

खिलौना व्यापारियों के साथ खिलवाड़

30 अगस्त को मन की बात में प्रधानमंत्री ने खिलौना उद्योग के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में खिलौना उद्योग का कारोबार सात लाख करोड़ से भी अधिक है जिसमें भारत का हिस्सा बेहद कम है, आगे उन्होंने कहा कि खलौना उद्योग में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए छोटे और बड़े व्यापरियों… आगे पढ़ें

दिल्ली उच्च न्यायलय ने केन्द्र सरकार को केवल पाखण्डी ही नहीं कहा

27 अगस्त को दिल्ली उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार के सबसे खास कार्यक्रमों–– मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को ढोंग करार दिया। यानी केन्द्र सरकार के जो दावे अब तक जुमलों में तब्दील हुए हैं उसमें दो का इजाफा हो गया है। उच्च न्यायालय के अनुसार केन्द्र की मोदी सरकार… आगे पढ़ें

निजीकरण : बेच रहे हैं मोदी दुख तुम्हें क्यों?

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जब से केन्द्र सरकार ने निजीकरण की रफ्तार को तेज की है, देश भर में इसके समर्थन और विरोध में बहसें जारी हैं। इन बहसों के बीच आज शायद ही कोई यह बता सके कि तेजी से दौड़ती हुई निजीकरण की गाड़ी कब और किस स्टेशन पर रुकेगी। सवाल यह भी है कि प्रधनमंत्री ने कुछ साल पहले बड़े भावनात्मक अन्दाज… आगे पढ़ें

महाराष्ट्र के कपास किसानों की दुर्दशा उन्हीं की जबानी

(महाराष्ट्र किसानों का हाल जानने के लिए लेखक ने नागपुर जिले के अलग–अलग गाँव के किसानों से बात की, जिसे यहाँ साझा किया जा रहा है। इन किसानों की आप–बीती सुनने के बाद सचमुच बहुत हैरानी होती है। यह एहसास होता है कि किसानों की परेशानी कम होने के बजाय दिन दूनी रात चैगुनी… आगे पढ़ें

रेलवे का निजीकरण : आपदा को अवसर में बदलने की कला

कोरोना महामारी के समय लाखों मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल अपने घरों की ओर चल पड़े। खाने के लिए दो जून की रोटी क्या दाने–दाने को मोहताज हुए। बेरोजगारी का आलम यह है कि नयी नौकरियाँ मिलना तो दूर छँटनी की तलवार पर जैसे धार लग गयी है। पढ़े–लिखे लोग आजीविका चलाने के लिए ठेले–खोमचे… आगे पढ़ें

वाल स्ट्रीट जर्नल ने फेसबुक और सरकार के बीच गठजोड़ का खुलासा किया

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14 अगस्त को अमरीका के ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की। उस रिपोर्ट में फेसबुक द्वारा दोहरा रवैय्या अपनाने की तथ्यात्मक पुष्टि की गयी थी, जिसमें भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के तीन नेताओं के बेहद घृणास्पद और विवादित बयानों को फेसबुक से नहीं हटाने पर सवाल किये… आगे पढ़ें

“तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया”–– बम्बई उच्च न्यायालय

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22 अगस्त को बम्बई उच्च न्यायालय के औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन में मरकज में शामिल हुए तबलीगी जमात के 29 सदस्यों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को खारिज कर दिया। लॉकडाउन से ठीक पहले मार्च के पहले और दूसरे सप्ताह में निजामुद्दीन मरकज में हजारों देशी–विदेशी नागरिक शामिल… आगे पढ़ें

अवर्गीकृत

भाषा और साहित्य के क्षेत्र में भारत को मुसलमानों का महान स्थायी योगदान

भारत को मुसलमानों का एक महान स्थायी योगदान भाषा और साहित्य के क्षेत्र में भी मिला। इसी योगदान ने उर्दू भाषा को जन्म दिया और हिन्दी भाषा तथा साहित्य को विकसित और समृद्ध किया। हिन्दी खड़ी बोली का गद्य अधिकांशत: और पद्य प्राय: पूरी तरह मुस्लिम सृजन है। 13वीं सदी से पहले या अमीर… आगे पढ़ें

कविता

कितने और ल्हासा होंगे

कितने और ल्हासा होंगे मैक्लॉड गंज की रिज पर साथ बैठा एक रमण बात करते–करते अचानक बेचेन हो उठता है।। अनखनें लगता है दूर–दूर सीमाओं पार से आती आवाजें जो अक्सर यहाँ आती जाती रहती हैं।। जानना मुश्किल है इसका मन इस वक्त धर्म चक्र के व्रत में घूम रहा है या ल्हासा की गलियों… आगे पढ़ें

चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह

शाम का रंग फिर पुराना है जा रहे हैं बस्तियों की ओर फुटपाथ जा रही झील कोई दफ्तर से नौकरी से लेकर जवाब पी रही है झील कोई जल की प्यास चल पड़ा है शहर कुछ गाँवों की राह फेंक कर कोई जा रहा है सारी कमाई   पोंछता आ रहा कोई धोती से खून कमजोर पशुओं के शरीर से आरे का खून   शाम… आगे पढ़ें