मेरे कमरे की खिड़की एक चैराहे की ओर खुलती है, जिस पर पूरे दिन पाँच अलग–अलग सड़कों से आने वाले लोगों का ताँता लगा रहता है, बिलकुल वैसे ही जैसे बोरियों से आलू लुढ़क रहे हों। वे आवारागर्दी करते हैं और फिर भाग जाते हैं और फिर से सड़कें उन्हें अपनी ग्रासनली में गटक लेती हैं। वह चैराहा गोल और बहुत ही गन्दा है, बिलकुल एक कड़ाही की तरह जिसको लम्बे समय तक मांस तलने के लिए इस्तेमाल किया गया हो लेकिन कभी रगड़कर साफ नहीं किया गया हो। ट्राम की चार कतारें इस भीड़ भरे घेरे की ओर बढती हैं और लगभग हर मिनट पर ये ट्राम गाड़ियाँ लोगों की भीड़ में फँसी, सरकती हैं और अपनी बारी आने के लिए चीखती हैं। वे लोहे की झनझनाहट के साथ तेजी से भागती हैं, जबकि उनके ऊपर और उनके पहियों के नीचे बिजली की मनहूस मिनमिनाहट सुनाई देती है। धूलभरी हवा उनकी खिड़कियों के पल्लों की धीमी खड़खड़ाहट और पटरी से टकराती उनके पहियों की कर्कश आवाज से भरी होती है। शहर का नारकीय संगीत लगातार विलाप करता है–– कर्कश आवाजों का एक बर्बर युद्ध जो एक दूसरे को कोंचता और दम घोण्टता है और अनोखी और गन्दी कल्पनाओं को उकसाता है। 

बड़े–बड़े सण्डासी, चाकू, आरी और लोहे से बने तमाम हथियारों से लैस, उन्मादी राक्षसों की भीड़ आवेशित होकर, कीड़ों के झुण्ड की भाँति बेहद पागलपन के साथ एक औरत के शरीर पर लहराती है जिसको उसने अपने लोलुप हाथों से जकड़कर उसे जमीन पर धूल और गन्दगी में फेंक दिया है। भीड़ उसकी छातियों को नोच रही है, उसके मांस को काट रही है, उसका खून पी रही है, उसके साथ बलात्कार कर रही है और अंधे, भूखे और वहशी की तरह उस पर टूट पड़ी है।

ये औरत कौन है, जो दिख नहीं रही है। वह विशाल गन्दे पीले लोगों के झुण्ड के अन्दर दब गयी है जिन्होंने अपने हडियल शरीरों को एक दूसरे से उसके चारों ओर सटाकर, अपने घिनौने होठों को जहाँ जगह मिले वहाँ उसके जिस्म से चिपकाकर उसके शरीर के रोम–रोम से जीवन–रक्त को चूस रहे हैं। हवस भरी अमिट लालसा की तड़प में वे एक–दूसरे को अपने शिकार से दूर धकेल रहे हैं, एक–दूसरे को मार रहे हैं, कुचल रहे हैं, दबा रहे हैं और गिरा रहे हैं। हर व्यक्ति जितना अधिक पा सकता है, उतना पाना चाहता है और सभी उत्तेजित आवेग से इस डर से काँप रहे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि उनके लिए कुछ भी न बचे। वे अपने दाँतों को किटकिटा रहे हैं और अपने हाथों के हथियारों को बजा रहे हैं। पीड़ा की कराह, हवस का गर्जन, मायूसी का रुदन, भूख की दहाड़ और क्रोध–– ये सब मारे गये शिकार के शव पर होने वाले मातम में घुलमिल गये हैं जो हजारों बलात्कारों द्वारा चिथड़े–चिथड़े और लुटी हुई, और दुनिया की तमाम बहुरंगी गन्दगी में लिथड़ी हुई पड़ी है।

इस बर्बर विलाप का एक साथ घुल–मिल जाना उन हारे हुए लोगों की सबसे दुखदायी पीड़ा है जिनको हाशिये पर फेंक दिया गया है और वे भरे पेट का मजा लेने के लिए हवस की लालसा में नफरत से लार बहा रहे हैं, लेकिन अब ये कमजोर और कायर उसके लिए लड़ नहीं सकते हैं।

यही है शहर के इस संगीत से उकेरी हुई तस्वीर।

रविवार है। लोग इस दिन काम नहीं करते। 

इसी वजह से बहुत से चेहरे खिन्नता, उलझन और चिन्ता का भाव ओढ़े हुए हैं। बीते कल का सरल और स्पष्ट मतलब होता है कि उन्हांेने सुबह से लेकर शाम तक काम किया। वे तय समय पर उठे, और दफ्तर या कारखाने या सड़क पर बाहर जाने के लिए चल पड़े। वे अपनी उन्हीं पुरानी, लेकिन आरामदायक जगहों पर बैठ गये या खड़े रहे। उन्होंने पैसे गिने, सामान बेचा, जमीन खोदी, लकड़ी काटी, पत्थर तोड़े, लोहा गलाकर सामान बनाया, उसमें छेद किये, पूरे दिन उन्होंने अपने हाथों से काम किया। वे जानी–पहचानी थकावट महसूस करते हुए सोने चले गये–– और आज उन्होंने जागने के बाद पाया कि बेकारी उनकी आँखों में सवाल बनकर घूर रही है और उनसे माँग कर रही है कि उनका यह खालीपन भरा जाना चाहिए–––

उनको काम करना सिखाया गया, लेकिन जीना नहीं और इसीलिए आराम का दिन उनके लिए एक मुश्किल दिन होता है। वे मशीनें, गिरजाघर, बड़े जहाज और सोने के आकर्षक छोटे–छोटे टीमटाम बनाने में पूरी तरह से माहिर हैं, लेकिन अपने रोजमर्रे के मशीनी काम के अलावा उस खाली दिन को भरने में वे खुद को असमर्थ महसूस करते हैं। फैक्ट्रियों, दफ्तरों और दुकानों में, ये दाँते और पहिये खुद को जीवित प्राणी महसूस करते हैंय वहाँ वे अपने ही जैसे दाँते और पहियों के साथ मिलकर उन्हीं की तरह एक सुसंगत जीव बना लेते हैं जो लगातार अपनी शिराओं और धमनियों के जीवनरस से मूल्य पैदा करते हैं, लेकिन अपने लिए नहीं।

सप्ताह के छह दिनों का जीवन आसान है। यह एक बड़ी मशीन है और वे सब उसके पुर्जे हैं, हर कोई इसमें अपनी जगह जानता है, और मानता है कि वह इसके अंधे और घिनौने चेहरे को अच्छी तरह जानता–समझता है। लेकिन सातवें यानी खालीपन और आराम वाले दिन जीवन एक अजीब छिन्न–भिन्न रूप बदलकर उनके सामने आता है। वह दिन विकृत और खोई हुई सूरत लिये हाजिर होता है।

वे सड़कों पर मटरगश्ती करते हैं, वे सैलून और पार्कों में बैठते हैं, वे गिरजाघर जाते हैं, वे नुक्कड़ों पर खड़े रहते हैं। सब हमेशा की तरह गतिमान है, लेकिन कोई सोचता है कि यह सब एक मिनट या शायद एक घण्टे में अचानक रुक जायेगा–– जीवन में किसी चीज का अभाव लग रहा है, जिसको भरने के लिए कोई नयी चीज प्रयासरत है। कोई भी इस अहसास को लेकर पूरी तरह से सचेत नहीं है, कोई भी इसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता, लेकिन कुछ गैर मामूली और परेशान करने वाला घटित होने की सम्भावना का सबको पता है। सभी छोटे और सहज अर्थ अचानक जीवन से बाहर हो गये हैं, जैसे मसूड़ों से दाँत अलग हो जाते हैं।

लोग सड़कों पर मटरगश्ती करते हैंय वे ट्राम गाड़ी में बैठते हैं, वे बातें करते हैंय बाहर से देखने में वे सहज लगते हैं–– एक साल में बावन रविवार होते हैं, और काफी अर्से से उन्होंने एक ही तरह से उन्हें बिताने की आदत डाल ली है। लेकिन हर कोई यही अनुभव करता है कि वह कल जैसा था उससे अलग है, और उसका साथी पहले जैसा नहीं है, या उनमें अन्दर कहीं एक तकलीफ और कँपकँपाता खालीपन है, जिसमें कुछ धुँधला–धुँधला और चिन्ताजनक या शायद डरावना है जो शायद अचानक उभर के सामने आ जाये–––

हर अहसास में छिपा कोई शक–सुबहा उसमें खलबली मचाता है, और सहज ही वह उसका सामना करने से बचता है–––

वे तेजी से एक दूसरे के करीब जमा होकर एक समूह बन जाते हैंय वे सड़क के कोने पर चुपचाप खड़े रहते हैं और उनके करीब जो हो रहा है उसे टकटकी लगाये देखते रहते हैंय अधिक से अधिक जीवित समूह उनके पास आते हैं, और उन हिस्सों को मिलाकर एक भीड़ बनाने की कोशिश करते हैं।

आहिस्ता–आहिस्ता लोग एक दूसरे के पास आते हैं। एक समान अनुभूति, छाती के भीतर एक परेशान करने वाला खालीपन उनको इस झुण्ड में खींचता है जैसे चुम्बक लोहे के बुरादे को खींचता है। लगभग एक दूसरे को देखे बिना वे कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े होते हैं और एक दूसरे को करीब खींचते हैं और चैराहे के एक कोने में अनगिनत सिरों के साथ एक मोटे काले शरीर जैसी आकृति बन जाती है। चुपचाप इन्तजार करती हुई, उदास और तनावग्रस्त, लगभग गतिहीन शरीर आकार ले चुका है और उसके बाद जल्दी ही आत्मा भी प्रकट होती हैय एक चैड़ा और सुस्त चेहरा बनता है और सैकड़ों खाली आँखें एक जैसी अभिव्यक्ति और एक समान टकटकी हासिल कर लेती हैं। एक ऐसी चैकन्नी और संदिग्ध टकटकी जो किसी ऐसी चीज की तलाश करती है जिसका आभास उन्हें भयपूर्वक उससे अवगत कराता है।

इस प्रकार उस भयानक दानव का जन्म होता है जिसे भीड़ का नाम दे दिया जाता है।

जब सड़क पर कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई देता है जो बाकी लोगों से अलग दिखता हो, क्योंकि उसका पहनावा औरों से अलग हो या वह बाकियों की तुलना में तेज चलता हो, तो भीड़ उसकी तरफ देखती है और अपने सैंकड़ों सिरों को उसकी ओर मोड़ लेती है और अपनी भेदती आँखों से उसकी छानबीन करती है।

उसका पहनावा बाकी सब लोगों की तरह क्यों नहीं है? सन्देहास्पद। और जिस दिन सड़क पर सब धीरे चलते हैं, तो किस वजह से वह तेज चल रहा है? विचित्र–––

दो नौजवान आदमी जोर से हँसते हुए जा रहे हैं। भीड़ सावधान हो जाती है। ऐसी जिन्दगी में हँसने के लिए क्या है, जहाँ सब कुछ इतना धुँधला है, जब करने के लिए कोई काम नहीं है? हँसी उस दानव रुपी भीड़ में एक हल्की कुढ़न पैदा करती है, जो हँसी–खुशी के खिलाफ है। अनेक सिर क्रोध में उनकी तरफ मुड़ते हैं और अपनी आँखों से उन लड़कों की जोड़ी का पीछा करते हुए बड़बड़ाते हैं–––

लेकिन भीड़ खुद ठठाकर हँस पड़ती है जब वह अखबार बेचने वाले एक लड़के को उन ट्रामों से बचकर निकलते हुए देखती है जो चैराहे के तीन तरफ से उसके करीब आती जा रही हैं और कुचलने का डर दिखा रही हैं। मौत से डरे हुए व्यक्ति का डर कोई ऐसी चीज है जिसे भीड़ समझती है, और जीवन के रहस्यमयी दौड़–धूप में जो कोई चीज उसे आनन्द दे, उसे वह समझती है–––

यहाँ, अपनी कार में एक आदमी सवार है जिसे शहर में, यहाँ तक कि पूरे देश में मालिक समझा जाता है। भीड़ उसे बड़ी गहरी दिलचस्पी से देखती है। वह अपनी ढेर सारी आँखों की एकटक निगाहों को एक ही नजर में घुला–मिला लेती है और उसे मालिक के मुरझाये, हड्डीदार और सूखे चेहरे पर डालते हुए धुँधले सम्मान से उसे निहारती है। यह कुछ इस तरह है जैसे बूढ़े भालू, जिन्हें छोटेपन से पाला गया हो, अपने मालिक को देखते हैं। भीड़ मालिक को जानती है कि वह एक शक्ति है। वह एक महान व्यक्ति है, जिसने हजारों तरह की कड़ी मेहनत की है इसलिए उसे हजारों वर्ष जीना चाहिए! भीड़ मालिक का बिलकुल स्पष्ट अर्थ जानती है कि मालिक काम देता है। लेकिन वहाँ ट्राम में एक भूरे सिर वाला आदमी बैठा है, जिसका चेहरा भद्दा और आँखें कठोर हैं। वह कौन है यह भी भीड़ जानती है। उसका नाम अक्सर एक सनकी के रूप में अखबारों में छपता है जो राज्य को तबाह करना चाहता है, सभी कारखानों, रेलमार्गों, जहाजों और बाकी सब कुछ छीन लेना चाहता है––– अखबार उसे एक पागल मजाकिया मंसूबा बताते हैं। भीड़ तिरस्कार, ठण्डे अपमान और नफरत भरी जिज्ञासा के साथ उस बूढ़े आदमी को देखती है। एक पागल आदमी हमेशा दिलचस्प होता है।

भीड़ केवल महसूस करती है, केवल देखती है। वह अपनी धारणा को विचारों में नहीं बदलती, उसकी भावना सुन्न होती है और उसका दिल अन्धा होता है।

लोग एक के पीछे एक, साथ–साथ चलते हैं और यह अजीब, समझ से परे और बयान से बाहर है कि वे कहाँ जा रहे हैं और क्यांे? वे बड़ी संख्या में हैं और वे धातु, लकड़ी और पत्थर के टुकड़ों की तुलना में सिक्कों, कपड़ों और उन तमाम औजारों से कुछ अधिक अलग नहीं हैं जिसके जरिये कल उस दानव ने काम किया था। भीड़ को इससे चिढ़ है। वह अस्पष्ट रूप से यह महसूस करती है कि जो जिन्दगी वह जी रही है, उससे अलग तरीकों और आदतों वाला, अजीब लुभावनेपन से भरा, एक और जीवन है–––

खतरे का सन्देह और चिढ़ की इस भावना से धीरे–धीरे भरते जाने से बनी बारीक सुइयाँ उस दानव के अन्धे दिल को खरोंचती हैं। दानव की आँखें गहरी काली हो जाती हैं, अचेत कोतूहल में जकड़ा उसका मोटा और बेडौल दिखता कसा शरीर बढ़ने लगता है और वह पूरी तरह से थर्राने लगता है–––

लोग, ट्राम और सभी मोटर–वाहन चमकने लगते हैं––– दुकान की खिड़कियों की चमकदार चीजें आँखों को चिढ़ाने लगती हैं। उनका उपयोग क्या है यह साफ नहीं, लेकिन वे ध्यान खींचती हैं और उन्हें हासिल करने की इच्छा जगाती हैं–––

भीड़ व्याकुल हो उठी है–––    

वह इस जीवन में कमोबेश अकेला, असहाय और अच्छे पहनावे वाले लोगों द्वारा नकार दिया गया महसूस करती है। ये देखती है कि उनकी गर्दनें कितनी साफ हैं, उनके हाथ कितने सुडौल और गोरे हैं, उनके निश्चिन्त और खाये–पीये चेहरे कितने चिकने और चमकदार हैं। यह उनके खानपान को बिलकुल हूबहू चित्रित करता है, जो ये लोग रोज पेट भरकर खाते हैं। चेहरों को इतना आकर्षक बनाने वाला और पेट को इस तरह गोलमटोल भव्यता से भर देने वाला उनका भोजन गजब स्वादिष्ट होता होगा––––––

भीड़ अपने भीतर ईर्ष्या की हलचल महसूस करती है, और इसके पेट में जोर–जोर से कुलबुलाहट होने लगती है–––

सुन्दर और आकर्षक महिलाएँ चमकती महँगी गाड़ियों में सवारी करती हैं। अपने छोटे–छोटे पैरों को दिखाने के लिए टाँगों को बाहर की ओर फैलाती हुई, वे उत्तेजक तरीके से अपनी–अपनी गद्दियों पर आराम करती हैं। उनके चेहरे सितारों की तरह हैं और उनकी खूबसूरत आँखें लोगों की मुस्कान का स्वागत करती हैं।

“देखो हम कितनी प्यारी हैं!”, औरतें बिना बोले ही कहती हैं।

भीड़ ध्यानपूर्वक इन महिलाओं को परखती है और उनकी तुलना अपनी पत्नियों से करती है। बहुत दुबली या बेहद मोटी पत्नियाँ हमेशा लालची और अक्सर बीमार होती हैं। किसी भी अंग से ज्यादा उनके दाँत उन्हें तकलीफ देते हैं और उनका पेट खराब रहता है। और वे हमेशा आपस में चिक–चिक करती रहती हैं।

भीड़ मन ही मन गाड़ियों में बैठी महिलाओं के कपड़े उतारती है, उनकी छातियों और टाँगों पर अपने पंजे मारती है। और महिलाओं के खाये–पीये, नंगे, सुडौल और चमकदार शरीर की कल्पना करती है, भीड़ अपनी खुशी को रोक नहीं पाती और वासना भरे शब्दों में आवाज देती है जो गर्म और तैलीय पसीने जैसी बदबू मारते हैं, ऐसे शब्द जो एक भारी–भरकम और गन्दे हाथ के थप्पड़ की तरह झन्नाटेदार और तीखे हैं–––

भीड़ एक औरत चाहती है, दीप्तिमान सुन्दर स्त्रियों के पतले–दुबले लेकिन गठीले शरीर को लोलुपता से दबोचती इसकी आँखें चमकती हैं।

उनके बच्चे भी बहुत सुन्दर दिखते हैं। उनकी हँसी और रुदन हवा में गूँजती है। साफ सुथरे कपड़े पहने, सीधे और छरहरे पैरों वाले स्वस्थ बच्चे, गुलाबी गालों वाले और निर्भीक–––

भीड़ के बच्चे बीमार और पीले चेहरे वाले होते हैं और उनके पैर किसी न किसी वजह से मुड़े हुए होते हैं। मुड़े पैरों वाले बच्चे होना आम बात है। यह जरूर माँ का दोष होगा, शायद उन्होंने उनको जन्म देते वक्त ऐसा कुछ किया होगा जो उन्हें नहीं करना चाहिए था–––

ये तुलनाएँ भीड़ के कलुषित दिल में ईर्ष्या पैदा करती हैं।

उसके क्रोध में शत्रुता और जुड़ जाती है, जो ईर्ष्या की उपजाऊ जमीन पर हमेशा ही भरपूर तरीके से फलती–फूलती है। विशाल काला शरीर फूहड़ता से अपने अंगों को फैलाता है, उसकी सैकड़ों आँखें जिस किसी को विचित्र और अबूझ पाती हैं, उससे एक इरादे के साथ मिलती हैं और चुभन भरी नजर से उन्हें घूरती हैं।

भीड़ को लगता है कि उसका एक चालाक और शक्तिशाली शत्रु है जो हर जगह मौजूद है और इसलिए कपटी है। वह कहीं निकट ही है और फिर भी कहीं नहीं है। उसने अपने लिए सभी स्वादिष्ट व्यंजन, खूबसूरत महिलाएँ, गुलाबी बच्चे, गाड़ियाँ, चमकीले रेशमी कपड़े हथिया लिये हैं और ये सब वह उन लोगों को बाँट देता है, जिनको वह चुनता है–– लेकिन भीड़ को नहीं देता। वह भीड़ से घृणा करता है, नकारता है और उसकी परवाह नहीं करता है, उसी तरह भीड़ भी उसकी परवाह नहीं करती है–––

भीड़ ढूँढती है, सूँघती हैय यह सब कुछ देखती है। लेकिन सब कुछ सामान्य है। हालाँकि सड़कों के जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जो नया और अजीब है, ये चलती रहती हैं, भीड़ की शत्रुता के सख्त ताने–बाने और किसी को पकड़ने और कुचल देने की धुँधली इच्छा को छुये बिना, यें उसे पीछे छोड़ देती हैं।

चैराहे के बीचोंबीच सलेटी हैलमेट में एक पुलिस वाला खड़ा है। अच्छे से हजामत किया हुआ उसका चेहरा, ताँबे की तरह चमकता है। यह व्यक्ति अदम्य रूप से मजबूत है–– यह गोलियों से भरी हुई एक छोटी और भारी बन्दूक रखता है।

भीड़ अपनी कनखी से बन्दूक को देखती है। वह बन्दूकों से परिचित है, भीड़ ने उनमें से सैंकड़ों और हजारों को देखा है और वे सभी बस धातु या लकड़ी की बनी होती हैं।

लेकिन इस छोटी और बेडौल बन्दूक में एक ऐसी राक्षसी ताकत छिपी है जिसका सामना कोई आदमी नहीं कर सकता।

भीड़ आँख मूँदे हर चीज से धुँधली–धुँधली सी शत्रुता रखती है। यह उत्तेजित और किसी भयावह घटना के लिए तैयार रहती है। ये अपनी आँखों से लालसापूर्वक छोटी, बेडौल बन्दूक को तोलती है–––

अचेतन मन के गहरे कूड़े में, भय सदैव ही भीतर–भीतर सुलगता है–––

जीवन अपनी गति में अथक, लगातार दहाड़ता है। जब भीड़ काम पर नहीं होती है, उस दिन उसे यह ऊर्जा कहाँ से मिलती है?

अधिक से अधिक स्पष्टता के साथ भीड़ महसूस करती है कि वह कितनी अकेली है, कुछ ठगी सी अनुभव करती है और इसकी झल्लाहट बढ़ती जाती है, इन्तजार करती है कि अब किस पर हाथ डालना है।

यह अब नयी धारणाओं के प्रति संवेदनशील और ग्रहणशील हो गयी है–– कोई भी नयी चीज इसकी नजरों से नहीं बचती है। इसकी हँसी अधिक तीखी और ईर्ष्या से भरी है, और इसकी हँसी–ठिठोली करती निगाह की चुभन और टिप्पणियों की तीखी फटकार के कारण, उस चैड़े किनारों वाले सलेटी हैट पहने आदमी को अपने कदमों को तेज कर लेना जरूरी हो जाता है। एक औरत, जैसे ही मैदान पार करती है, अपनी स्कर्ट को थोड़ा ऊँचा उठाती है, लेकिन जैसे ही वह देखती है कि भीड़ उसकी टाँगों को घूर रही है, उसकी उँगलियाँ अचानक काँपने लगती हैं, जैसे किसी ने उसके हाथ पर जोर से चोट की हो, और वह अपनी स्कर्ट नीचे कर लेती है–––

कहीं से एक शराबी चैराहे पर आ जाता है। उसका सिर उसके सीने पर झूल रहा है, वह कुछ बुदबुदाता हुआ चलता है। शराब में धुत उसका शरीर कमजोरी से हिलता–डुलता है और किसी भी क्षण वह फुटपाथ या रेल की पटरी से टकरा सकता है–––

एक हाथ उसकी जेब के अन्दर है। दूसरे में उसने एक तुड़ा–मुड़ा सा धूल भरा टोप पकड़ा है। वह इसे अपने सिर के ऊपर लहराता है, और कुछ नहीं देखता।

झनझनाती आवाजों के जंगली भँवर में बहता वह थोडा होश में आता है, रुकता है और धुँधली आँखों से अपने चारों ओर देखता है। गाडियाँ और कारें चारों तरफ से उसकी ओर तेजी से बढ़ रही हैं–– एक ऐसा लम्बा, हिलता–डुलता धागा जिस पर काले मोती जड़े हुए हों। क्रोध भरी चेतावनी के साथ गाड़ियों से घण्टों की आवाजें आती हैं, घोड़े की नाल की खट–खट होती है, सब कुछ गूँजता है, खड़खड़ाता है और खुद को उसकी तरफ ठेलता है।

भीड़ कुछ मनोरंजक होने की उम्मीद करती है। फिर से यह अपनी सैंकड़ों निगाहें एक में घुला–मिला लेती है और उम्मीद से टकटकी लगाती है–––

मोटर गाड़ी वाला आदमी घण्टी बजाता है और बाहर झुककर शराबी पर चिल्लाता है, उसका चेहरा परेशानी से लाल है। शराबी स्नेहपूर्वक उसके सामने अपना टोप हिलाता है और उसके बिल्कुल सामने वाली रेल की पटरी पर कदम रखता है। उसका पूरा शरीर पीछे की ओर झटका खाता है, उसकी आँखें बन्द हो जाती हैं, मोटर वाला आदमी तेजी से गाड़ी के हैण्डल को इधर–उधर झटकता है। कार झटका खाती है और रुक जाती है–––

शराबी धीरे–धीरे साथ चलता है–– उसने अपना टोप पहन लिया है और उसका सिर फिर से उसके सीने पर लटक गया है।

लेकिन पीछे से पहली, फिर दूसरी गाड़ी धीरे–धीरे निकलती है और शराबी के पैरों पर उसके नीचे से ठोकर मारती है। वह जोर से मडगार्ड पर गिर जाता है, फिर धीरे से रेल की पटरी की तरफ गिरता है, और मडगार्ड उसे धक्का देता है और उसके तुड़े–मुड़े शरीर को जमीन पर घसीटता है––––––

शराबी के हाथ और पाँव जमीन के ऊपर पटके जाते देखे जा सकते हैं। एक संकेत और फिर खून की पतली लाल रेखा बहने लगती है–––

कार में बैठी महिलाएँ कर्कश आवाज में चीखती–चिल्लाती हैं, लेकिन सभी आवाजें भीड़ की गहरी और उल्लसित गर्जन में दब जाती हैं–– यह ऐसा है जैसे एक गीली और भारी, बड़ी चादर अचानक उन पर फेंक दी गयी हो। कर्कश घंटियों की आवाज, जानवरों के खुरों की टाप, बिजली की मिनमिनाहत ये सब भीड़ के डर से दब गयी हैं, एक काली लहर जो एक दानव की तरह आगे की तरफ बढ़ती है, दहाड़ती है, गाड़ियों के सामने टकराती है, उन सब के ऊपर अपनी काली बौछारों को छोड़ती है और अपना काम शुरू करती है।

डर से हाँफते–काँपते, कार की खिड़की का शीशा टुकड़ों–टुकड़ों में बिखर गया। भीड़ के अनगिनत छटपटाते और काँपते शरीर के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता है, और इसकी चीख और उल्लसित चिल्लाहट के अतिरिक्त कुछ सुनाई नहीं देता है जिसके जरिये यह अपनी ताकत का दावा करती है और यह घोषणा करती है कि उसने आखिरकार करने के लिए कुछ पा लिया है।

सैंकड़ों बड़े हाथ हवा में लहराते हैंय बहुत सी आँखें एक अजीब, तीखी भूख की लोलुप चमक के साथ जगमगाती हैं।

अन्धी भीड़ किसी को मुक्के से मारती हैय यह उसको नोचती–खसोटती है, यह प्रतिशोध की भावना में बदला लेती है–––

इस मिलीजुली चीख की आँधी से, एक बेहद जोरदार फुसफुसाती आवाज आती है जो तेज धार वाले लम्बे चाकू की तरह चमकती है–––

“मार डालो!”

इस शब्द में भीड़ की सभी अस्पष्ट इच्छाओं को इकट्ठा करने की और इसकी चीख को एक तीखी दहाड़ में बदलने की जादुई शक्ति है–––

“मार डालो!”

भीड़ का एक हिस्सा गाड़ियों की छतों पर कूदने लगता है और वहाँ से भी हवा में लहराते और चाबुक की तरह सरसराते हुए एक शब्द आता है–––

“मार डालो!”

भीड़ के बीचोंबीच, एक कसा हुआ गोला बन गया हैय इसने कुछ निगल लिया है, अपने अन्दर कुछ सोख लिया है और खुले में बाहर बहता हुआ हलचल कर रहा है। भीड़ के मोटे शरीर पर सहज ही, बीच से एक दबाव पड़ता है और छिटकते हुए भीड़ के फूले हुए काले पिण्ड अपनी आँतें, अपने सिर और अपने जबड़ों को बाहर निकालते हैं।

इसके दाँतों में एक फटी हुई, रक्तरंजित आकृति झूलती है–– वही मोटरगाड़ी वाला आदमी जिसे उसके कपड़ों के बचे हुए टुकड़ों की धारियों के कारण कोई भी पहचान सकता है।

अब यह केवल चबाया गया मांस का एक टुकड़ा है, ताजा मांस जो भूख बढ़ाने वाले चमकीले लाल खून में सराबोर है।

भीड़ के काले जबड़े उसे अब भी, कुचलते हुए साथ–साथ घसीटते हैं और इसके हाथ बिना चेहरे वाले ऑक्टोपस की भुजाओं की तरह उसके शरीर से लिपटे हैं।

भीड़ चिघाड़ती है–––

“मार डालो!”

और यह अपने सिर के पीछे की ओर बढ़ती है, एक लम्बे, मोटे शरीर का आकार लेती है जो भारी मात्रा में ताजा मांस निगलने के लिए तैयार है।

लेकिन अचानक हजामत किये, ताँबे जैसे चेहरे वाला एक आदमी उसके सामने आता है। उसने अपने सलेटी हैलमेट को अपनी आँखों के नीचे खींच लिया है और वह भीड़ के आगे एक भूरी चट्टान की तरह खड़ा है, उसकी बन्दूक हवा में चुपचाप लहराती है।

बन्दूक से बचकर निकलने के लिए भीड़ का सिर कभी दायीं तो कभी बायीं ओर घूमता है।

पुलिसकर्मी डटकर खड़ा है, बन्दूक उसके हाथ में डगमगाती नहीं और उसकी कठोर आँखें एकटक और चैकस हैं।

पुलिसकर्मी के आत्मविश्वास की ताकत भीड़ के दहकते चेहरे को ठण्डा कर देती है।

अपनी भारी–भरकम, शक्तिशाली, ज्वालामुखी जैसी इच्छाशक्ति के बदले कोई आदर–सम्मान मिले बिना भी, यदि कोई व्यक्ति अकेले, इतने पास खड़ा रह सकता है, यदि वह इतनी दृढ़ता से खड़ा रह सकता है–– तो वह निश्चित ही अजेय होगा!–––

भीड़ उसके सामने कुछ चिल्लाती है, यह अपनी भुजाओं को ऐसे लहराती है जैसे उन्हें पुलिसकर्मी के चैड़े कन्धों के चारों ओर लपेट लेगी, फिर भी इसकी चीख में क्रोध के बावजूद एक दर्दनाक स्वर है। और जब पुलिसकर्मी का ताम्बे जैसा चेहरा कठोरता से काला होने लगता है, जब वह छोटी, बेडौल बन्दूक लिए हाथों को ऊपर उठाता है–– भीड़ की दहाड़ती हुई आवाज अजीब ढंग से थम जाती है और उसका धड़ आहिस्ता–आहिस्ता बिखरने लगता हैय लेकिन सिर अब भी बड़बड़ाता है, यहाँ–वहाँ मुड़ता हैय यह रेंगना चाहता है।

बन्दूक लिए दो और आदमी धीरे–धीरे पास आते हैं। भीड़ की भुजाओं का फैलना अचानक धीमा हो जाता है और वे अपने शरीर को उनकी चपेट में आ जाने देते हैंय शरीर घुटनों के बल झुक जाता है, खुद को कानून के रखवालों के कदमों पर झुका देता है, और वह अपने अधिकार के छोटे और बेडौल प्रतीक चिन्ह को उसके ऊपर उठाता है–––

भीड़ का सिर भी अब धीरे–धीरे टुकड़े–टुकडे़ होने लगता है। अब इसका कोई धड़ नही है, मैदान पर सब जगह थके और हारे हुए आदमी रेंगने लगते हैं, उनकी काली आकृतियाँ मैली सतह पर एक बड़े माले के काले मोतियों की भाँति बिखरने लगती हैं।

नालों जैसी सड़कों के भीतर, लोग डरे हुए और चुपचाप घूमते हैं। टूटे हुए लोग, बिखरे हुए लोग––––––

अनुवाद–– रुचि मित्तल