चीनी ग्लोबल अखबार टाइम्स अमरीका को ‘कागजी वाध’ नहीं मानता बल्कि उसे ‘अल्फा–भेड़िया’ मानता है। यह अखबार कहता है कि अमरीका बाघ नहीं है–– न तो असली और न ही कागजी, क्योंकि बाघ अकेले शिकार करता है। यह एक भेड़िया है क्योंकि भेड़िये हमेशा झुण्ड में शिकार करते हैं और अमरीका भेड़ियों का नेता (अल्फा–भेड़िया) है।

पिछले कुछ सालों से अमरीका और चीन के बीच सम्बन्ध लगातार खराब हुए हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने चीन के खिलाफ लगातार भड़काऊ बयान दिये हैं। व्यापार युद्ध से दक्षिणी चीन सागर में दखलन्दाजी तक हर जगह अमरीका और चीन के बीच कोरोना महामारी के प्रसार ने इसे बहुत तेज कर दिया है। पेण्टागन की ताजा रिपोर्ट में चीनी सेना का वार्षिक आकलन किया गया है। उसके अनुसार विश्व स्तरीय सेना बनाने के लिए चीन पूरी दुनिया में संयुक्त अभियान चला सकता है और वह पहले से ही दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का दावा करता रहा है। अमरीका चीन के बढ़ते वैश्विक विस्तार और प्रभाव को किसी भी तरह से रोकना चाहता है लेकिन चीन के साथ उसके व्यापारिक हित भी गहराई तक जुड़े हुए हैं।

4 जुलाई, 2020 के बाद अमरीका ने दक्षिण चीन सागर में अपने दो विमान वाहक पोत रोनाल्ड रीगन और निमित्ज तैनात किये हैं, जो चीन की सीमा के अन्दर टोह में लगे हुए हैं और चीन पर दबाव बना रहे हैं।

भारत के सरकारी सूत्रों ने एएनआई न्यूज एजेंसी को बताया कि गालवान संघर्ष शुरू होने के तुरन्त बाद, जिसमें हमारे 20 सैनिक मारे गये थे, भारतीय नौसेना ने अपने मोर्चे के एक युद्धपोत को दक्षिण चीन सागर में तैनात कर दिया था, जबकि बहुत बड़े हिस्से पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी काबिज है। चीन ने भी इस तथ्य से इनकार नहीं किया है। चीन इस बात को नजरअन्दाज नहीं कर सकता कि भारत और अमरीका उसके प्रभाव क्षेत्र वाले सागर में अपने लडाकू पोत के साथ मौजूद रहें।

अमरीका कई सालों से इस इलाके में उकसावे का काम कर रहा है और आस–पास के देशों को चीन के खिलाफ लामबन्द करने की कोशिशों में लगा है।। चीन के खिलाफ जापान निर्णायक रूप से अमरीका के खेमें में शामिल होता प्रतीत हो रहा है। 9 जुलाई, 2020 को अमरीकी विदेश विभाग ने 63 एफ–35ए और 42 एफ–35बी सहित कुल 105 एफ–35 लड़ाकू विमान की जापान द्वारा खरीद की योजना को मंजूरी दे दी थी। ऐसा माना जा रहा है कि इन हथियारों को हासिल करके जापान एशिया–प्रशान्त क्षेत्र में चीन और रूस के दबाव का सामना कर सकेगा। अमरीका खुफिया तौर पर पूरे दक्षिण चीन सागर में अपनी रणनीति बनाने में लगा हुआ है। 11 जुलाई, 2020 को रूस ने इस इलाके में उड़ान भर रहे एक अमरीकी टोही जासूसी विमान को रोक लिया, जिसने जापानी समुद्री क्षेत्र से उड़ान भरी थी जो चीन की सीमा से लगते हैं और वह रूसी हवाई क्षेत्र की ओर बढ़ रहा था। इसी बीच अमरीकी चुनौती से निपटने के लिए चीन ने भी रूस के साथ संयुक्त रूप से काम करने की इच्छा जाहिर कर दी।

चीन ने भारत को आपूर्ति किये गये राफेल जेट का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान को अपने जे–31 लड़ाकू विमान की आपूर्ति का फैसला किया है। चीन का यह लड़ाकू विमान जे–31 अमरीका के एफ–35 और फ्रांस के राफेल की टक्कर का है। अमरीका ने चीन पर आरोप लगाया है कि उसने जे–31 में चोरी से अमरीकी तकनीक का इस्तेमाल किया है। जबकि रूसी मिग विमान डिजाइन ब्यूरो के प्रमुख व्लादिमीर बार्काेवस्की ने चीनी प्रयास की प्रशंसा की है।

चीन ने अमरीकी रक्षा कम्पनी लॉकहीड मार्टिन पर प्रतिबन्ध लगा दिया है जो ताइवान को अपनी एफ–16 लड़ाकू विमान बेच रही थी।

ऐसी खबरें हैं कि अमरीका ने भारत को अपने एफ–35 के लिए पेशकश की है, लेकिन उसकी शर्त है कि भारत सबसे पहले रूस के साथ अपने एस–400 रणनीतिक वायु–रक्षा प्रणाली के समझौते को रद्द कर दे। यह शर्त मानने से भारत इनकार कर चुका है।

अमरीका और चीन–रूस के बीच बढ़ते जा रहे टकराव में भारत दो पाटों के बीच फँस गया है। भारत लम्बे समय से चीन के खिलाफ दक्षिण चीन सागर के आस–पास अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान आदि के साथ नौसैनिक अभ्यास कर रहा है, जिससे भारत और चीन के बीच अविश्वास बढ़ गया है। गलवान घाटी की घटना ने दरार को और ज्यादा चैड़ा करने का काम किया है। इसका फायदा उठाकर अमरीका अब भारत को अपने हिसाब से ब्लैकमेल करने की स्थिति में आ गया है। गलवान की घटना से भी पहले 7 अप्रैल, 2020 को कोविड–19 के प्रकोप के दौरान अमरीका ने भारत को हाइड्रोक्सीकोलोरोक्वीन की आपूर्ति के मुद्दे पर धमकी दी थी, जब भारत ने अमरीका को आपूर्ति करने में कुछ टालमटोल किया था। यह छोटी सी घटना स्पष्ट कर देती है कि भारत पर अमरीका कितना ज्यादा हावी है।

16 जुलाई, 2020 को भारत के प्रमुख सुरक्षा विशेषज्ञ सुमित गांगुली ने एक प्रमुख अमरीकी पत्रिका ‘फॉरेन पोलिसी’ में लिखा है कि अमरीका चाहता है कि चीन से लड़ने के लिए भारत को रूस के बारे में भूल जाना चाहिए। इससे पहले 15 जून, 2020 को गलवान घाटी हमले के तत्काल बाद, जिसमें भारत ने अपने 20 सैनिकों को खो दिया था, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मास्को का दौरा किया था और रूस से 2.4 अरब डालर के हथियारों का सौदा किया था। इससे पहले भारत पिछले साल 15 नवम्बर, 2019 को रूस के साथ एस–400 रणनीतिक वायु–रक्षा प्रणाली खरीदने का समझौता कर चुका था। भारत के लिए रूस से दूरी बनाना आसान नहीं है, अगर उसे रूस से कम कीमत और आसान शर्तों पर विश्वस्तरीय अस्त्र–शस्त्र हासिल करना है, क्योंकि ऐसे हथियार अमरीका से खरीदने के लिए भारत को उसकी कठिन शर्तों को स्वीकार करना पड़ता और इसके साथ–साथ अमरीकी कांग्रेस की जटिल प्रक्रिया का सामना करके और उसकी स्वीकार्यता हासिल करने के बाद ही हथियार अमरीका से बाहर जा पाते। इसके अलावा, भारत लगभग 50 वर्षों से सोवियत संघ के साथ बना हुआ है। हालाँकि सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस ने भारत की ओर अधिक रुचि नहीं ली, लेकिन अब फिर से रूस का झुकाव भारत की ओर बढ़ रहा है। पिछले कुछ महीनों में रूस ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की कि भारत और चीन के बीच रिश्ता सामान्य हो जाये।

दक्षिण चीन सागर में अमरीका द्वारा सैन्य तैनाती और सैन्य अभ्यास भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है। भारत ने निश्चित रूप से अमरीका से बहुत उम्मीद पाल रखी है, कभी–कभी उसे लगता है कि पाकिस्तान और चीन के साथ दो–तरफा युद्ध के खौफ से छुटकारा दिलाने में अमरीका उसकी मदद करेगा, लेकिन इसके विपरीत अमरीका के पूर्व सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने पहले ही भारत को चेतावनी दी है कि चीन के साथ युद्ध के मामले में ट्रम्प भारत का साथ नहीं देंगे। ऐसी स्थिति में अगर भारत ने रूस का साथ छोड़ने की गलती की तो यह भी स्पष्ट है कि रूस पूरी तरह से पाकिस्तान की ओर चला जाएगा जो भारत के लिए आत्मघाती होगा। चीन पहले से ही पाकिस्तान की मदद करता रहा है। इस तरह भारत के खिलाफ पकिस्तान, चीन और रूस जैसी ताकतों को देखते हुए मुमकिन है कि अमरीका भारत की कमजोर नस को दबाना शुरू करे तथा देश पर और अधिक अपमानजनक शर्तें भी थोप सकता है।