24 जनवरी 2023 को अमरीका की हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी ने अडानी समूह की कम्पनियों पर एक रिपोर्ट जारी की। इसमें आरोप लगाया गया कि अडानी समूह शेल कम्पनियाँ बनाकर स्टॉक्स में हेरफेर, हिसाब–किताब में धोखाधड़ी और काले धन को वैध बनाने (मनी लौंड्रिंग) के गैर–कानूनी कामों में लिप्त है। इस रिपोर्ट से अडानी समूह के कारोबारी जगत में भूचाल आ गया और खुद अडानी के दुर्दिन शुरू हो गये। हमने अडानी के कारोबार को ऊँचाई पर पहुँचते हुए देखा, उनके कोयला कारोबार के बारे में अगले लेख में  जिक्र है। मौजूदा समय में उनके कारोबार को अर्श से फर्श पर लुढ़कते हुए देखकर यह टिप्पणी लिखनी पड़ी।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी समूह के शेयरों में गिरावट का दौर शुरू हुआ। समूह की सभी लिस्टेड कम्पनियों के शेयर भरभरा कर गिरने लगे। इसी दौरान अडानी ग्रुप ने हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए अपने फॉलो–ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) के खिलाफ उसे साजिश करार दिया। हालाँकि, इस सफाई का कोई असर नहीं हुआ और 27 जनवरी को एक बार फिर अडानी समूह के शेयर लुढ़कते नजर आये। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के तुरन्त बाद शेयर बाजार के दो कारोबारी दिनों में ही अडानी समूह की कम्पनियों की पूँजी 51 अरब डॉलर घट गयी। इसके चलते दुनिया के 10 सबसे अमीर अरबपतियों की सूची से गौतम अडानी बाहर हो गये। 7 फरवरी 2023 तक अडानी 22वें पायदान पर पहुँच गये। हमने देखा कि पिछले साल वे तीसरे पायदान पर थे। इस दौरान मुकेश अम्बानी की सम्पत्ति में भी गिरावट आयी, जिसके चलते वे 12वें पायदान पर पहुँच गये।

इसी दौरान स्विट्जरलैंड की क्रेडिट सुइस कम्पनी ने अडानी समूह के बॉण्ड स्वीकार करना बन्द कर दिया। जबकि सिटीग्रुप कम्पनी ने भी अडानी समूह की सिक्योरिटीज को अस्वीकार कर दिया। ‘एसएंडपी’ रेटिंग एजेंसी ने भी अडानी पोर्ट और अडानी इलेक्ट्रिसिटी के स्तर को गिरा दिया है। बाद में अमरीकी स्टॉक एक्सचेंज ने अडानी इन्टरप्राइजेज को डाउ जोन्स की स्थायी सूची से भी बाहर कर दिया। इन दबावों के चलते और अपनी रही–सही साख बचाने के लिए 1 फरवरी को अडानी ने अपने एफपीओ को रद्द कर दिया। लोगों के दबाव का ही परिणाम था कि भारतीय रिजर्व बैंक को बैंकों से अडानी समूह को दिये गये कर्ज और जोखिमों की रिपोर्ट माँगनी पड़ी। विपक्षी पार्टियों ने गोलबन्द होकर अडानी समूह के कारोबार पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जाँच बिठाने की सरकार से माँग कर डाली। हालाँकि सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया। शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी ने भी अडानी समूह पर कोई कार्रवाई नहीं की। उस पर भी अडानी से मिली–भगत का आरोप लग रहा है। सरकार और प्रशासन अडानी समूह को कानूनी शिकंजों में शायद ही फँसने दे। वे अडानी समूह को बचाते हुए नजर आ रहे हैं।

2017 में नैथन एण्डरसन ने हिंडनबर्ग फारेंसिक वित्तीय शोध कम्पनी की बुनियाद रखी थी। उस समय एण्डरसन ने वित्तीय जगत के काले कारनामों के खुलासे को इस कम्पनी का उद्देश्य घोषित किया था। यानी कम्पनियों में लेखांकन से जुड़ी गड़बड़ियों, प्रबन्धन में संदिग्ध पक्ष की मौजूदगी, सम्बन्धित पक्ष के अघोषित लेनदेन, गैरकानूनी या अनैतिक कारोबार और वित्तीय तौर–तरीकों के अलावा नियामकीय, उत्पाद या वित्तीय मसलों के बारे में जानकारी न देना जैसे पहलू इस कम्पनी के निशाने पर होते हैं। सितम्बर, 2020 में हिंडनबर्ग ने इलेक्ट्रिक ट्रक बनाने वाली कम्पनी निकोला कार्प के खिलाफ गम्भीर आरोप लगाये थे, जिसके बाद निकोला कार्प का बाजार पूँजीकरण 34 अरब डॉलर से घटकर मात्र 1–34 अरब डॉलर रह गया।

हिंडनबर्ग कम्पनी ने अपनी 108 पेज की रिपोर्ट में अडानी समूह पर कुल 88 सवाल उठाये हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी समूह की कम्पनियाँ सालों से ‘खुले तौर पर शेयरों में गड़बड़ी और लेखा धोखाधड़ी’ में लिप्त हैं। हालाँकि अडानी समूह ने इस रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया, लेकिन इसके बावजूद अडानी समूह निवेशकों को विश्वास दिलाने में कामयाब नहीं रहा। निवेशकों का विश्वास टूट गया और वे आनन–फानन में अडानी समूह के शेयर बेचने लगे। इससे भारतीय शेयर बाजार में कोहराम मच गया। समूह की ज्यादातर कम्पनियों के शेयर धड़ाम से नीचे गिर गये। इस समूह के शेयरों में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट हो चुकी है। इससे 5 फरवरी तक निवेशकों के 10 लाख करोड़ रुपये डूब चुके थे।

29 जनवरी को अडानी समूह ने 413 पन्नों का बयान जारी करके हिंडनबर्ग के सभी दावों का खण्डन किया। हालाँकि इसमें हिंडनबर्ग के अधिकांश सवालों का कोई जवाब नहीं था। पलटवार करते हुए अडानी समूह ने हिंडनबर्ग कम्पनी पर आरोप लगाया कि वह शेयरों की ‘शार्ट सेलिंग’ करती है। यानी शार्ट सेलिंग के तहत वह उधार लिये गये शेयरों को बेच रही है, ताकि बाद में उसे निचले स्तर पर खरीदकर जबरदस्त लाभ कमा ले। लेकिन अडानी समूह का यह आरोप भी उसे मुश्किल हालात से छुटकारा न दिला सका। 7 फरवरी तक समूह को कुल मिलाकर 117 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका था।

अडानी समूह हिंडनबर्ग पर शॉर्ट शेलिंग का आरोप लगाते–लगाते हद से आगे निकल गया और उसने दावा किया कि देश को पीछे धकेलने में जुटे भारत के दुश्मन इस कम्पनी के पीछे हैं। दरअसल हिंडनबर्ग रिपोर्ट को देश विरोधी करार देना अडानी के लिए अपने गुनाहों पर पर्दा डालना है, ताकि देश हित की आड़ में सालों से चल रहे सट्टेबाजी के गन्दे खेल को सामने आने से रोका जा सके। सवाल यह है कि साँच को आँच किस बात की। अगर अडानी समूह ने फर्जी तरीके से अपने शेयरों के दाम नहीं बढ़ाये थे तो एक “अदना–सी” रिपोर्ट से उसका कारोबार ताश के महल की तरह ढेर क्यों हो गया। हम सभी जानते हैं कि पिछले कुछ सालों में जब भी लोगों ने अडानी की कम्पनियों के घिनौने कारोबार और मोदी सरकार से उसके साँठ–गाँठ के बारे में खुलासा किया, तो उनकी आवाज को दबा दिया गया। इस बारे में हिंडनबर्ग से भी अधिक जानकारी भारत के जागरूक लोग रखते हैं। वे लोगों को सचेत भी करते रहे हैं। अडानी समूह की कम्पनियों के शेयरों की ‘फेस वैल्यू’ 10–20 रुपये से ज्यादा नहीं है, इसके बावजूद तीन–तिकड़म करके उसके दाम हजारों रुपये तक पहुँचा दिये गये, यह शुद्ध रूप से सट्टेबाजी नहीं तो और क्या है। 2022 में सबको अचरज में डालते हुए अडानी पावर के शेयर 200 प्रतिशत से अधिक बढ़ गये थे।

भारत के सबसे बड़े पोर्ट ऑपरेटर समूह के मालिक गौतम अडानी ने अपना कारोबारी सफर गुजरात से शुरू किया था जहाँ उन्हें पग–पग पर नरेन्द्र मोदी की सरकार का साथ मिला। बदले में मोदी और भारतीय जनता पार्टी को लक्ष्मी जी की कृपा हासिल हुई। क्रोनी कैपिटलिज्म का ज्वलन्त उदाहरण बन चुके सत्ता और पूँजीपति घराने के इस नापाक गठजोड़ ने दो दशकों की भारतीय राजनीति पर अपना शिकंजा कस लिया। इस गठजोड़ से जहाँ एक ओर मोदी सत्ता के शीर्ष पर पहुँच गये, वहीं अडानी ने अपना विशाल आर्थिक साम्राज्य कायम किया। अडानी समूह में इंफ्रास्ट्रक्चर, कमोडिटीज, बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन, रियल एस्टेट, सीमेंट उत्पादन तथा कोयला खनन और व्यापार से जुड़ी कम्पनियाँ शामिल कर ली गयीं। अडानी ने मीडिया को भी अपने शिंकजे में जकड़ लिया। इस सिलसिले में पिछले दिनों एनडीटीवी चैनल का अधिग्रहण काफी चर्चित रहा। इस अधिग्रहण ने मीडिया को पूँजी के शिकंजे में और कसने का काम किया। इतना ही नहीं, अडानी ने जबसे अपने उद्योगों और आर्थिक गतिविधियों को शेयर मार्केट से भी जोड़ा तभी से सट्टेबाजी और काले धन को सफेद बनाने का खेल शुरू हुआ।

अडानी समूह ने मॉरीशस, साइप्रस, सिंगापुर, यूएई और  कैरेबियन द्वीप समूह जैसे सुरक्षित टैक्स हेवन में कई शेल कम्पनियों का निर्माण किया है। उनमें से कुछ को सीधे गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी चलाते हैं। शेल कम्पनियों के जरिये स्टॉक में हेरफेर और काले धन को सफेद बनाने का काम किया जाता है। कई शेल कम्पनियों में न तो कोई कर्मचारी है, न ही कोई फोन नम्बर या वेबसाइट है। इन शेल कम्पनियों के जरिये अडानी की निजी कम्पनियों से पैसा सूचीबद्ध कम्पनियों में लगाया गया, जिससे फर्जी तरीके से कम्पनियों को फायदे में और टैक्स चुकाने की क्षमता से लैश दर्शाया जा सके। इन कम्पनियों की मदद से अपने ही शेयर खरीदकर अडानी समूह उनके दामों में फर्जी बढ़ोतरी कर देता था।

इसी का नतीजा था कि जहाँ एक ओर देश कोरोना महामारी की मार झेल रहा था और जनता कड़ी मेहनत करके रोजी–रोटी भी नहीं जुटा पा रही थी, वहीं दूसरी ओर अडानी के शेयरों के दाम आसमान छू रहे थे। बीते 5 साल के दौरान गौतम अडानी की दौलत में 15 गुना से ज्यादा इजाफा हुआ। उनकी कुल सम्पत्ति 71,200 करोड़ से बढ़कर 10,94,400 करोड़ रुपये हो गयी। इस दौरान उनके भाई विनोद अडानी की सम्पत्ति 17,800 करोड़ से बढ़कर 1,69,000 करोड़ रुपये हो गयी और वह सबसे अमीर एनआरआई बन गये। यह शोषण, सार्वजनिक सम्पत्ति की लूट, सट्टेबाजी और मनी लौंडरिंग की बेमिसाल ऊँचाई है। लेकिन पाप का घड़ा फूटता जरूर है और हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने यह काम कर दिया।

हालाँकि अडानी समूह के बुरे दिन शुरू हो गये हैं, लेकिन लूट का यह कारोबार अडानी परिवार तक सीमित नहीं है। इसमें प्रशासन के अधिकारी, बैंक के मैनेजर, राजनीतिक नेता और खुद मोदी सरकार तथा कई राज्य सरकारें भी शामिल है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने सुप्रीम कोर्ट में कस्टम एक्साइज एंड सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (सीएएसटीएटी) के एक आदेश को चुनौती दी है। ट्रिब्यूनल ने यह आदेश (सन 2014 में) अडानी पावर महाराष्ट्र और अडानी पावर राजस्थान के पक्ष में दिया था। डीआरआई ने आरोप लगाया है कि ट्रिब्यूनल ने इन कम्पनियों के मूल्यांकन और बिल को बढ़ा–चढ़ाकर पेश किया था। उसने अडानी की कम्पनियों पर विदेशी मुद्रा में हेराफेरी का आरोप भी लगाया था। 2017 में न्याय निर्णयन प्राधिकरण ने एकतरफा इन आरोपों को खारिज कर दिया था। इससे साफ पता चलता है कि समय–समय पर सरकारी एजेंसियाँ किस तरह अडानी के कुकर्मों पर पर्दा डालती रही हैं।

क्या आनेवाले समय में अडानी के सारे काले कारनामें उजागर होंगे या उनके गलत कामों की सजा दूसरे लोग भुगतते रहेंगे ? इसका फैसला भविष्य के गर्भ में है।