अमरीका आर्थिक, तकनीकी और सामरिक मामले में दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है। उसे धरती का स्वर्ग माना जाता है और वह ऐसा दावा भी करता है। लेकिन अब इस दावे की हवा निकलती दिख रही है। किसने यह सोचा था कि वहाँ कोरोना के मरीजों की संख्या 15 लाख से ऊपर पहुँच जायेगी और 90 हजार से ज्यादा मौतें होंगी। उसके हर अस्पताल के सामने मृतकों का ढेर लग जायेगा। कोरोना महामारी के आगे अमरीका की ऐसी दुर्दशा हो रही है कि दुनिया भर के लोग दाँतों तले ऊँगली दबा ले रहे हैं। यह ट्रम्प प्रशासन की असफलता नहीं है, बल्कि अमरीकी पूँजीवादी मॉडल की असफलता है, जिसे इस तरह विकसित किया गया है कि वह महामारी की इस समस्या के आगे लाचार नजर आ रहा है। मुनाफे पर केन्द्रित अमरीकी पूँजीवादी व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है, जो इनसानियत के हर रिश्ते को नकारकर रुपये–पैसे के सम्बन्धों पर टिकी है। यहाँ तक कि अमरीका पूरी तरह बीमार लोगों की कोरोना जाँच भी नहीं कर पा रहा है।

यह स्पष्ट है कि कोरोना को रोकने के लिए व्यापक पैमाने पर लोगों की जाँच आवश्यक है। लेकिन दुनिया भर में जाँच के लिए परीक्षण किट की अनुपलब्धता एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। मार्च, 2020 को सीएनएन में लेखिका जूलिया हॉलिंग्सवर्थ का एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक है–– “24 घंटे में कोरोना वायरस टेस्ट विकसित किया जा सकता है। तो कुछ देश अभी भी निदान के लिए संघर्ष क्यों कर रहे हैं?” इस लेख में हम यह स्पष्ट तौर पर देख सकते हैं कि “बौधिक सम्पदा अधिकार कानून” जो बड़ी दवा कम्पनियों को फायदा पहुँचाने वाले और आम जनता के खिलाफ होते हैं, यहाँ भी जरूरी परीक्षण किट को विकसित करने और इस दिशा में शोध में एक बड़ी बाधा खड़ी करते हैं। सवाल है कि अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन और मानवतावादी वैज्ञानिकों ने ‘वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम और परीक्षण से जुड़ी शोधपरक जानकारियों’ को लोगों के सामने मुफ्त में उपलब्ध न कराया होता और वे भी यही सोचते कि मुफ्त में लोगों को क्यों जानकारी दी जाये?? तो यह महामारी कितना विध्वंशक रूप ले लेती, आज कहा नहीं जा सकता।

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टेस्ट किट का प्रारूप तैयार करते समय वायरोलॉजिस्ट आमतौर पर तब तक इन्तजार करते हैं जब तक कि नये वायरस की आनुवंशिक सामग्री के अनुक्रम (सीक्वेंस) का पता न चल जाये। वायरोलॉजिस्ट लैण्ड्ट और उनकी कम्पनी टीआईबी मोलबोल ने जल्दी ही यह काम शुरू कर दिया था। 9 जनवरी तक उन्होंने अपने पहले टेस्ट किट को सार्स (एसएआरएस) और अन्य ज्ञात कोरोना वायरस के सन्दर्भ में इस्तेमाल किया था। एक स्थानीय चिकित्सा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर उन्होंने तीन किट डिजाइन किये, जिसका अर्थ था कि एक बार अनुक्रम सामने आ जाने के बाद, वे उस किट को चुन सकते हैं जो सबसे अच्छा काम करती हो।

11 जनवरी को लैण्ड्ट ने अपनी किट को ताइवान की कम्पनी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एण्ड डायग्नोस्टिक, रोशे के पास हाँगकांग भेज दिया। वे निश्चित रूप से नहीं जानते थे कि वह काम करेगी या नहीं और उन्होंने निर्देश भी तैयार नहीं किये थे।

सप्ताह के अन्त में, उन्होंने एक मैनुअल बनाया और इसे ईमेल किया। “हमने कहा, सुनो, तुम्हारे पास बिना किसी निर्देश के छह ट्यूब हैं,” वे याद करते हुए कहते हैं। “उन्हें परीक्षण प्रयोगशाला को दें, आप इससे रोगियों का परीक्षण कर सकते हैं।”

अन्त में, उन्होंने जो परीक्षण भेजा वह सही था, उन्होंने बताया। 17 जनवरी को, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने लैण्ड्ट के प्रोटोकॉल को ऑनलाइन प्रकाशित किया जिससे यह संगठन द्वारा स्वीकार किया जाने वाला पहला परीक्षण बन गया।

लैण्ड्ट का अनुमान है कि उन्होंने फरवरी के अन्त तक 40 लाख परीक्षण किये हैं और तब से हर सप्ताह 15 लाख। हर किट–– जिसमें 100 परीक्षण की क्षमता होती है–– सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप में ग्राहकों को कम से कम 13 हजार रुपये में बेची गयी। उन्होंने अपने दो बच्चों को लेबल लगाने और किट पैक करने के काम पर लगा दिया। उनकी पत्नी, जिन्होंने 15 वर्षों तक कम्पनी के लिए काम किया है, उन्हें भी इसमें शामिल कर लिया।

“मैं पैसे के लिए काम नहीं कर रहा हूँ। मैं पैसे लेता हूँ, हाँ, यह उचित है, हम सही करते हैं,” उन्होंने कहा। “लेकिन अन्त में, हमें पैसे की जरूरत नहीं है।”

महामारी के प्रसार को रोकने के लिए परीक्षण बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। किसी व्यक्ति का परीक्षण यदि पोजीटिव पाया जाये और उसको निदान की जरूरत है, तो उसे दूसरों से अलग किया जा सकता है और उचित उपचार किया जा सकता है। जैसा कि डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेबियस ने इस महीने की शुरुआत में कहा था, “हमारे पास सभी देशों के लिए एक सरल सन्देश है–– परीक्षण, परीक्षण, परीक्षण।”

लेकिन लैण्ड्ट की सफलता के लगभग तीन महीने बाद भी, जब पहली बार इस रहस्यमयी बीमारी की खबरें आयी, दुनिया के अधिकांश देश अभी भी कोरोना वायरस के कारण होने वाली संक्रामक बीमारी कोविड–19 के परीक्षण के लिए जूझ रहे हैं। कुछ देशों के परीक्षण गलत हैं, दूसरे देशों को इसे बनाने में एक लम्बा समय लग रहा है और अब परीक्षण किट तैयार करने वाली कम्पनियाँ चेतावनी दे रही हैं कि उनके पास किट के निर्माण में काम आने वाली सामग्री की भारी कमी है।

यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है–– अगर परीक्षण इतनी जल्दी विकसित किया जा सकता है, तो कुछ देश अभी भी संघर्ष क्यों कर रहे हैं?

पहला प्रारूप

हाँगकांग में, वायरोलॉजिस्ट लियो पून भी जनवरी में हुए घटनाक्रम पर नजर रख रहे थे।

लैण्ड्ट की तरह, उन्होंने इस तरह फूट पडने वाली बीमारियों पर वर्षों तक काम किया। 2003 में, हाँगकांग विश्वविद्यालय (एचकेयू) में वैज्ञानिकों की उनकी टीम ने पता लगाया कि सार्स, जो अपनी मुख्य भूमि चीन में एक साल पहले उभरा था, वह एक कोरोना वायरस था।

उनका कहना है कि “चूँकि हम अतीत में इन सभी घटनाओं से गुजर चुके हैं, इसलिए हम जानते हैं कि कामकाजी नैदानिक परीक्षण करना कितना महत्त्वपूर्ण है,” इसलिए हमने मूल रूप से जल्द से जल्द काम पूरा करने की कोशिश की।

लेकिन लैण्ड्ट के विपरीत, पून को वायरस के आनुवंाशिक अनुक्रम का इन्तजार करना पड़ा।

शंघाई के फुडन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर झांग यॉन्जेन की ओर से अनुक्रमित जीनोम ओपन–सोर्स साइट यअपतवसवहपबंसण्वतहद्ध पर पोस्ट किया गया। लेकिन यह 11 जनवरी तक नहीं हो पाया था। चीनी अधिकारियों ने 12 जनवरी को अनुक्रम की जानकारी साझा की।

झांग के अनुक्रम की जानकारी देने के बाद पून की टीम ने काम शुरू किया।

सबसे पहले उन्होंने नये कोरोना वायरस के आरएनये को देखा और यह तय किया कि उनका परीक्षण कोड के उन हिस्सों पर लक्षित होगा जो सार्स कोरोना वायरस के आरएनये के समान हैं–– ऐसे भाग जिनकी उत्परिवर्तन की सम्भावना कम होगी, क्योंकि वे वायरस के लिए आवश्यक हैं।

इसके बाद, उन्होंने परीक्षण का प्रारूप तैयार किया।

अनुक्रम प्राप्त करने के छह दिनों के भीतर ही, पून ने एक कार्यशील परीक्षण तैयार कर लिया।

लैण्ड्ट की किट की तरह, पून की किट भी सार्स और कोविड–19 का परीक्षण कर सकती है। पून का कहना है कि सार्स महत्त्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि अभी सार्स का प्रकोप नहीं है।

इसके बाद के महीनों में पून ने मिस्र और कम्बोडिया सहित दुनिया के 40 से अधिक देशों में मुफ्त में परीक्षण किट भेजे हैं। प्रत्येक देश को केवल एक किट मिलती है, जिसकी कीमत 38 हजार से 48 हजार रुपये के बीच होती है और इसका उपयोग 100 नमूनों का परीक्षण करने के लिए किया जा सकता है। कुछ देशों, जैसे नेपाल ने अपने नमूनों को हाँगकांग विश्वविद्यालय में परीक्षण के लिए भेजा है। मामला यह है कि कुछ देशों को “कुछ समय चाहिए ताकि वे खुद की किट बनाने के लिए संसाधन जुटा सकें।

लेकिन जबकि टीआईबी मोलबोल जैसी कम्पनियाँ अपनी किट से कुछ पैसा कमा ले रही हैं, पून और उनकी टीम ने अन्य परियोजनाओं से अपनी कोविड–19 परीक्षण किटों के लिए धन  जुटाया है और यह महत्त्वपूर्ण है कि वे मुफ्त में काम कर रहे हैं।

“हमारे पास पैसा नहीं है, हमारे पास शून्य संसाधन हैं,” पून ने कहा। “हम इसे अपनी सदिच्छा से वितरित कर रहे हैं।”

दूसरे लोग भी, मुफ्त में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ ने अपनी वेबसाइट पर सात प्रोटोकॉल सूचीबद्ध किये हैं। ये प्रोटोकॉल उन वैज्ञानिकों को महत्त्वपूर्ण दिशा–निर्देश प्रदान कर रहे हैं, जो अपनी परीक्षण किट विकसित करना चाहते हैं। लैण्ड और पून दोनों के परीक्षण यहाँ विस्तार से दिये गये हैं।

पून ने जोर देते हुए कहा कि “ऐसे समय जब हम विश्वव्यापी स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं, (बौद्धिक सम्पदा) मुद्दा नहीं है।” “इस काम को करने के लिए हमें कहाँ से प्रेरणा मिल रही है, इन उभरते संक्रमणों पर जल्दी से अपनी प्रतिक्रिया देने से, ताकि हम अधिक से अधिक लोगों के जीवन को बचा सकें।”

शुरुआत में, चीन भी पीसीआर परीक्षण किट की कमी से जूझता दिखायी दिया–– इतना ही नहीं सरकारी मीडिया सिन्हुआ के अनुसार, चीन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भी दूसरे किस्म के परीक्षण को विकसित करने के लिए अनुसंधान पर जोर दिया। कुछ लोगों को परीक्षण की प्रतीक्षा करने के लिए मजबूर किया गया था क्योंकि चीन में अचानक महामारी फैलने से वहाँ की स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव बहुत बढ़ गया था।

संयुक्त राज्य अमरीका में भी समस्याएँ थीं।

17 जनवरी को,  जिस दिन डब्ल्यूएचओ ने लैण्ड्ट के प्रोटोकॉल को प्रकाशित किया, उसी दिन एक शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एण्ड प्रिवेंशन ने अपना परीक्षण डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित प्रोटोकॉल का उपयोग किये बिना किया था।

एजेंसी ने 5 फरवरी को घोषणा की कि वह किट भेजना शुरू करेगी। इसके तुरन्त बाद कुछ प्रयोगशालाओं ने बताया कि परीक्षण काम नहीं कर रहे थे, जिसका अर्थ है कि किट को फिर से बनाना पडे़गा। यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें गड़बड़ी कैसे आ गयी।

वैज्ञानिकों को पहली बार निश्चित तौर पर पता नहीं होता कि उनका परीक्षण काम करेगा या नहीं। उदाहरण के लिए, अमरीका में निर्माण सम्बन्धित गड़बड़ी ने परीक्षण को पीछे ढकेल दिया–– अगर दुनिया में हर कोई उस एक परीक्षण पर भरोसा करता, तो इससे बड़ी समस्या पैदा हुई होती।

 

एक और मुद्दा है कि वायरस का इस तरह उत्परिवर्तित होना सम्भावित होता है कि एक किट अब आगे काम नहीं कर पायेे। उदाहरण के लिए, अगर एक परीक्षण कोविड–19 के “एन” जीन को लक्षित करता है और वायरस इस तरह उत्परिवर्तित हो जाता है जिससे वह जीन अब मौजूद ही न हो, तो किट वायरस को नहीं पकड़ पाएगी।

रावलिंसन का कहना है कि यह भी विचारणीय है कि एक परीक्षण जो एक देश में काम करता है वह दूसरे देश में काम ही न कर पाये। मान लिया, अगर डेंगू बुखार होने के चलते परीक्षण कामयाब नहीं हुआ क्योंकि उस देश में डेंगू बुखार बड़े पैमाने पर फैल चुका था, तो परीक्षण गलत तरीके से नकारात्मक परिणाम की ऊँची दर दे सकता है।

परीक्षणों की संख्या अधिक होने से निर्माता या आपूर्ति श्रृंखला पर भी कम दबाव पड़ता है, क्योंकि विभिन्न आपूर्तिकर्ता विभिन्न सामग्रियों का उपयोग कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए, अमरीका में चिकित्सा अधिकारियों ने कहा है कि वे स्वैब, अभिकर्मकों और तरल पदार्थों के परिवहन के लिए सूक्ष्म नलिका जैसे उपकरण सहित परीक्षण आपूर्ति की कमी से जूझ रहे हैं। कमी के चलते मिनेसोटा और ओहियो को सबसे कमजोर रोगियों में भी परीक्षण को सीमित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जापानी परीक्षण वितरक कुराबो, जो एक अलग तरह से परीक्षण करता है, जो एंटीबॉडी की तलाश करता है, उसका दावा है कि इसके परीक्षण का परिणाम आने में केवल 15 मिनट लगते हैं–– और उसमें स्वैब नमूनों के बजाय रक्त के नमूनों का उपयोग किया जाता है।

परीक्षण की धीमी गति और पर्याप्त लोगों का परीक्षण नहीं करने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका और ब्रिटेन दोनों की आलोचना की गयी है।

सीडीसी की वेबसाइट के अनुसार, यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एण्ड पब्लिक हेल्थ लैब ने 71,000 से अधिक नमूनों का परीक्षण किया है, हालाँकि उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने रविवार को कहा कि अब तक 2,54,000 अमरीकियों का परीक्षण किया गया है। 22 मार्च तक, ब्रिटेन ने 72,818 लोगों का परीक्षण किया था।

दक्षिण कोरिया में सरकार ने ड्राइव–थुरू लैब सहित परीक्षण को अविश्वसनीय रूप से सुलभ बना दिया है। इसने देश की 15.2 करोड़ आबादी में से 3,00,000 से अधिक लोगों का परीक्षण किया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य महानिदेशक एशले ब्लूमफील्ड के अनुसार, न्यूजीलैण्ड में, जहाँ 102 मामलों की पुष्टि हुई है, यूके में 5 प्रतिशत और अमरीका के 13 प्रतिशत की तुलना में वहाँ लगभग 1 से 2 प्रतिशत परीक्षण सकारात्मक आ रहे हैं।

पून का कहना है कि कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से कुछ देशों में परीक्षण धीमा हो गया है–– कुछ व्यवहार से जुडे हैं, तो कुछ प्रशासन से।

परीक्षण के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी, सही उपकरण और सही सामग्री की आवश्यकता होती है–– उनमें से किसी एक की कमी परीक्षण को रोक सकती है।

अमरीका में एक फालतू नौकरशाही घेरा बन हुआ है। कुछ देशों में, उभरती बीमारियों से जुड़े विभिन्न नियमों के कारण परीक्षणों का उपयोग लगभग तुरन्त किया जा सकता है।