अनियतकालीन बुलेटिन

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अंक 35, जून 2020

संपादकीय

कोरोना से ज्यादा खतरानाक है नवउदारवादी वायरस

30 मई के अखबारों में प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी का स्नेहीजन को सम्बोधित एक लम्बा पत्र प्रकाशित हुआ। अवसर था भाजपा सरकार के दूसरे कार्यकाल का, एक साल और कुल मिलाकर छह साल पूरा होना। उनका यह पत्र उन्हीं के शब्दों में स्नेहीजनों के “चरणों में प्रणाम करने और उनका आशीर्वाद लेने” तथा “लगातार दो...

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देश विदेश के इस अंक में

राजनीति

कोरोना लॉकडाउन भूख से लड़ें या कोरोना से

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25 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में अचानक लॉकडाउन का एलान कर दिया। कोरोना वायरस से देश का मध्यमवर्ग, पूँजीपति और मैनेजर, शासन–प्रशासन में बैठे तमाम पार्टियों के नेता और नौकरशाह (डीएम, एसपी, जज, तहसीलदार आदि) सब घबराये हुए हैं। बौखलाहट में वे तुगलकी फरमान जारी… आगे पढ़ें

कोरोना वायरस, सर्विलांस राज और राष्ट्रवादी अलगाव के खतरे

दुनिया भर के इनसानों के सामने एक बड़ा संकट है। हमारी पीढ़ी का शायद यह सबसे बड़ा संकट है। आने वाले कुछ दिनों और सप्ताहों में लोग और सरकारें जो फैसले करेंगी, उनके असर से दुनिया का हुलिया आने वाले सालों में बदल जायेगा। ये बदलाव सिर्फ स्वास्थ्य सेवा में ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था,… आगे पढ़ें

तीसरी दुनिया : वायरस पर नियंत्रण के बहाने दुनिया को एबसर्ड थिएटर में बदलती सरकारें

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(इस प्रहसन का पटाक्षेप कोरोना संकट की समाप्ति के साथ होगा। सरकार को पता है कि उसकी सारी नाकामयाबियों पर कोरोना भारी पड़ जायेगा। बेरोजगारी, महंगाई, जीडीपी में कमी सबका ठीकरा कोरोना के सिर फूटेगा।) लन्दन से प्रकाशित दैनिक ‘इंडिपेण्डेंट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात… आगे पढ़ें

भारत और कोरोना वायरस

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हालाँकि कोरोना वायरस का प्रभाव यूरोप और संयुक्त राज्य अमरीका पर ज्यादा हुआ है, फिर भी भारत इस बीमारी का सबसे बड़ा शिकार होने का दावेदार है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संकट का सामना करने के लिए एक शातिर जनसम्पर्क अभियान के अलावा बहुत कम काम किया है। वास्तव में… आगे पढ़ें

मुनाफा नहीं, इंसानियत ही दुनिया को बचा सकती है

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अमरीका आर्थिक, तकनीकी और सामरिक मामले में दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है। उसे धरती का स्वर्ग माना जाता है और वह ऐसा दावा भी करता है। लेकिन अब इस दावे की हवा निकलती दिख रही है। किसने यह सोचा था कि वहाँ कोरोना के मरीजों की संख्या 15 लाख से ऊपर पहुँच जायेगी और 90 हजार से ज्यादा… आगे पढ़ें

लॉकडाउन, मजदूर वर्ग की बढ़ती मुसीबत और एक नयी दुनिया की सम्भावना

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कोरोना संकट पर देश–दुनिया में इतनी ज्यादा उथल–पुथल मची है और इस का असर इतना व्यापक है कि इसे एक लेख में समेटना लगभग नामुमकिन है। दुनिया के हर देश और हर इनसान के पास कोरोना को समझने और समझाने का अपना न्यारा तरीका है। लेकिन जो तथ्य और रिपोर्टें सामने आयीं हैं, उनके… आगे पढ़ें

सामाजिक जनवाद की सनक

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(अमरीका में सामाजिक जनवाद के बड़े चेहरे ‘बर्नी सैण्डर्स’ को अन्त में राष्ट्रपति के प्रत्याशी से खुद को हटा देना पड़ा। यह उन ताकतों के लिए जोरदार झटका है जो मौजूदा नवउदारवादी दौर में सामाजिक जनवाद का झण्डा उठाये हुए हैं। दूसरी ओर, कोरोना महामारी के दौर में लॉकडाउन के… आगे पढ़ें

साहित्य

कोरोना महामारी के समय ‘वेनिस का सौदागर’ नाटक की एक तहकीकात

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(16वीं सदी में विलियम शेक्सपियर ने वेनिस का सौदागर (द मर्चेंट ऑफ वेनिस) नाटक की रचना की थी। यह नाटक कितना लोकप्रिय हुआ, इसका अंदाजा लगाने के लिए इतना कहना ही काफी है कि दुनिया की कई भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है और अपनी रचना काल से अब तक इसका दुनिया भर में अनगिनत बार मंचन… आगे पढ़ें

नजीर अकबराबादी : जनता और जमीन का शायर

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जन्म 1735 – निधन 1830 नजीर अकबराबादी सिद्ध और सच्चे हिन्दुस्तानी कवि हैं। बिलकुल धूप की तरह उजले, मिट्टी की तरह गीले, पहाड़ की तरह ऊँचे, बरछी की तरह नुकीले और बहार की तरह रंगीले। उन्होंने आदमी और चीजों की असलियत कुछ इस तरह से बयाँ की है कि दिल छलनी–छलनी हो जाता है।… आगे पढ़ें

कहानी

रफीक भाई को समझाइये

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चला जाता हूँ हँसता–खेलता मौजे हवादिस से अगर आसानियाँ हो, जिन्दगी दुश्वार हो जाये भेल्लोर से लौटे हैं रफीक भाई। गये थे मामूजान की ओपन हार्ट सर्जरी करवाने अपनी जाँ से रोग लगा आए। ओपन हार्ट के सक्सेस से चैन मिला था। एक हफ्ता रुकना था सो मजाक–मजाक में थौरो चेकअप करवाने… आगे पढ़ें

व्यंग्य

दिखावे बहुत हो चुके! अब जरूरत है दिल, दिमाग और जवाबदेही से योजना बनाने की

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भारतीय अभिजात मीडिया और सत्ता–प्रतिष्ठान की बेनाम प्रवासी मजदूरों की आकस्मिक और हृदय को छू जाने वाली त्रासदी की खोज के बारे में मैं रोज पढ़–सुन रही हूँ। ऐसा लगता हैं ये सब टीकाकार समकालीन इतिहास के साथ–साथ अनेक अर्थशास्त्रियों, बुद्धिजीवियों, मीडिया और मुख्य… आगे पढ़ें

साक्षात्कार

महामारी ने पूँजीवाद की आत्मघाती प्रवृत्तियों को उजागर कर दिया है

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जिप्सन जॉन और जितेश पीएम ‘ट्राईकाण्टिनेण्टल इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च’ में फैलों हैं। दोनों ने ‘द वायर’ के लिए नोम चोमस्की का साक्षात्कार लिया। चोमस्की भाषाविद् और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, जो नवउदारवाद, सैन्यवाद, साम्राज्यवाद और औद्योगिक–मीडिया… आगे पढ़ें

विचार-विमर्श

भगवानपुर खेड़ा, मजदूरों की वह बस्ती जहाँ न रवि पहुँचता है, न कवि!

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(कोरोना महामारी और लॉकडाउन की सबसे बुरी मार मजदूर वर्ग पर पड़ रही है। जमीनी हालात का पता लगाने के लिए और राहत देने के लिए विकल्प मंच, शाहदरा के सदस्य कई किराये के मकानों में गये, जहाँ बड़ी संख्या में मजदूर रहते हैं। वहाँ जिस तरह के हालात देखने को मिले, वह कल्पना से परे है। यहाँ… आगे पढ़ें

अन्तरराष्ट्रीय

निगरानी, जासूसी और घुसपैठ : संकटकालीन व्यवस्था के बर्बर दमन का हथकंडा

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सरकार पिछले कुछ महीनों से सभी दूरसंचार कम्पनियों से उनके सभी ग्राहकों के कॉल रिकॉर्ड्स (सीडीआर) माँग रही है। सरकार यह काम दूरसंचार विभाग (डीओटी) की स्थानीय इकाइयों की मदद से कर रही है, जिसमें दूरसंचार विभाग के अधिकारी कम्पनियों से डेटा माँगते हैं। जबकि सीडीआर की जानकारी सुप्रीटेंडेंट… आगे पढ़ें

लातिन अमरीका के मूलनिवासियों, अफ्रीकी मूल के लोगों और लातिन अमरीकी संगठनों का आह्वान

कोविड–19 ने पूरी दुनिया में जो संकट पैदा किया है उसने आबया–याला यानी लातिन अमरीकी लोगों को एक चैराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। व्यवस्था के सड़ने के बदतरीन इजहारों के खिलाफ जनता के संगठन प्रतिरोध के हिरावल हैं। हम एक चैतरफा संकट से गुजर रहे हैं जिसने जीवन को उसके सभी… आगे पढ़ें

समाचार-विचार

उत्तर प्रदेश में गैरकानूनी पोस्टर लगाकर प्रदर्शनकारियों से हरजाना वसूला गया

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मार्च में उत्तर प्रदेश की सरकार ने सारे कानूनों को ताक पर रखकर लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर सार्वजनिक तौर पर जारी किये। इन पोस्टरों में 57 लोगों की फोटो, उनका पूरा नाम और पता लिखा गया। सरकार ने बिना किसी कानूनी कार्यवाही के इन्हें दंगाई घोषित कर दिया। इन पर… आगे पढ़ें

कोरोना जाँच और इलाज में निजी लैब–अस्पताल फिसड्डी

सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर आमादा है, जबकि निजी अस्पताल कोविड–19 के इलाज और जाँच में फिसड्डी साबित हुए हैं। सरकार ने निजी अस्पतालों की जाँच फीस काफी मँहगी तय की, जबकि इन अस्पतालों द्वारा उससे कहीं ज्यादा फीस वसूलने या जाँच में आनाकानी करने के मामले भी सामने आये।… आगे पढ़ें

कोरोना महामारी बनाम अन्य बीमारियाँ

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पूरी दुनिया पर कोविड–19 का साया मण्डरा रहा है। हर प्रकार के सर्दी–जुकाम के लिए जिम्मेदार “कोरोनावायरस” नामक विषाणु–परिवार के इस वायरस का असल नाम “सार्स–कॉव–2” है। इस बीमारी ने दुनिया में खास तौर पर अमीर और विकसित देशों को… आगे पढ़ें

दिल्ली दंगे का सबक

–– सतीश देशपाण्डे फरवरी के अन्तिम सप्ताह में दिल्ली में जो हुआ वह सतही समानताओं के बावजूद हुबहू दंगा नहीं था। कम से कम इस शब्द से हम जो मतलब समझते हैं वैसा तो कतई नहीं। न ही इसे पुराने जमाने की परिभाषाओं जैसे “साम्प्रदायिक हिंसा” या “जातीय संहार”… आगे पढ़ें

दिल्ली दंगे की जमीनी हकीकत

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भारतीय समाज के लिए नासूर बन चुकी साम्प्रदायिकता की समस्या ने देश को अनेकों जख्म दिये हंै। इसकी वजह से भारत के दो टुकड़े हुए और आजाद भारत ने धार्मिक हिंसा के अकथनीय कत्ल–ओ–गारत में अपनी आँखें खोलीं। जख्म का आलम यह है कि एक से समाज उभरता नहीं है तब तक दूसरा सतह पर उभर… आगे पढ़ें

बोल्सोनारो की नयी मुसीबत

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‘शोले’ फिल्म में ‘मौसी’ ने ‘जय’ से कहा, “बेटा आदमी की पहचान उसके यारों–दोस्तों से होती है”। हमारे प्रधानमंत्री जी के दुनिया में बहुत से दोस्त हैं। उनमें से दो खास दोस्त हैं–– इजराइल के राष्ट्रपति नेतेन्याहू और… आगे पढ़ें

मजदूरों–कर्मचारियों के हितों पर हमले के खिलाफ नये संघर्षों के लिए कमर कस लें!

आप बिलकुल चिन्ता न करें। आपकी यह नौकरी गयी है, तो इससे बेहतर नौकरी आपका इन्तजार कर रही होगी। बस आउटर पर खड़ी ट्रेन की तरह उसे भी सिग्नल मिलने की देरी है। फिर तो आपकी पौ बारह हो जाएगी। पाँचों उंगलियाँ घी में और सिर कड़ाही में होगा। ऐसे ही मैसेज आपको मिल रहे होंगे, जो आपके दिल की… आगे पढ़ें

यस बैंक की तबाही : लूट का नतीजा

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भारतीय बैंकिंग व्यवस्था भयावह आर्थिक संकट का शिकार है। महाराष्ट्र के ‘पीएमसी बैंक’, कर्नाटक के ‘श्री राघुवेन्द्र सहकारी बैंक’ के बाद अब देश के 5 सबसे प्रतिष्ठित निजी बैंकों में शुमार ‘यस बैंक’ का दिवालिया होना इसका ताजा उदाहरण है। आरबीआई ने… आगे पढ़ें

सरकार बहादुर कोरोना आपके लिए अवसर लाया है!

यह बात विवादों से परे है कि अब तक इस कोरोना महामारी का सबसे अधिक फायदा सरकारों ने उठाया है, दूसरे स्थान पर पूँजीपति/उद्योगपति हैं। खुद प्रधानमन्त्री मोदी जी ने स्वीकार किया कि यह हमारे लिए एक अवसर है। प्रवासी मजदूर पैदल चलते–चलते भूख, प्यास और थकावट के चलते मर रहे हैं।… आगे पढ़ें

अवर्गीकृत

पूँजीपति मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी भी छीन लेना चाहते हैं

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आईआईटी दिल्ली के इकोनोमिक्स के प्रोफेसर जयन जोस थॉमस का ‘द हिन्दू’ में लेख छपा, आसान और जानकारी बढ़ाने वाला। यहाँ उसके कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा की जा रही है। थॉमस लिखते हैं, “भारत में मजदूरों की तनख्वाह बढ़ानी चाहिए, इससे उपभोग बढ़ेगा। ज्यादा उत्पादन करने… आगे पढ़ें

फिदेल कास्त्रो सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के हिमायती

–– अभय शुक्ला (यह लेख 21 दिसम्बर 2016 को डाउन–टू–अर्थ की वेबसाइट पर छप चुका है। लेकिन कोरोना महामरी के मौजूदा दौर में क्यूबा, फिदेल कास्त्रो और उनकी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था फिर से चर्चा के केन्द्र में आ गयी है। इसी को ध्यान में रखते हुए उस लेख के… आगे पढ़ें