भारतीय बैंकिंग व्यवस्था भयावह आर्थिक संकट का शिकार है। महाराष्ट्र के ‘पीएमसी बैंक’, कर्नाटक के ‘श्री राघुवेन्द्र सहकारी बैंक’ के बाद अब देश के 5 सबसे प्रतिष्ठित निजी बैंकों में शुमार ‘यस बैंक’ का दिवालिया होना इसका ताजा उदाहरण है।

आरबीआई ने यस बैंक के लेन–देन पर 30 दिनों के लिए रोक लगा दी थी। बैंक से रुपया निकासी को 50,000 रूपये प्रतिदिन तक सीमित कर दिया गया था। इसके साथ ही आरबीआई ने यस बैंक के निदेशक मण्डल को बर्खास्त कर ‘एसबीआई’ के वरिष्ठ आर्थिक अधिकारी और उप प्रबंध निदेशक प्रशान्त कुमार को यस बैंक के मामले की जाँच–पड़ताल के लिए नियुक्त किया। शुरूआती जाँच–पड़ताल द्वारा बैंक के निजी कम्पनियों, उद्योगपतियों व राजनेताओं को अवैध रूप से कर्ज बाँटने का खुलासा हुआ। इसके लिए प्रवर्तन निदेशालय ने यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर तथा दूसरे कई लोगों को धन शोधन के मामले में गिरफ्तार किया।

यस बैंक प्राइवेट बैंकों में तेजी से उभरकर सामने आया और जल्दी ही इसने देश के शीर्ष 5 निजी बैंकों में स्थान बना लिया। यस बैंक तीन इकाइयाँ चलाता है–– यश एसेट मैनेजमेंट सर्विस, यश कैपिटल और यस बैंक। यस बैंक की स्थापना राणा कपूर और अशोक कपूर ने 2004 में की थी। 2005 में यस बैंक ने ‘मास्टरकार्ड इंटरनेशनल’ के साथ साझा कर अन्तरराष्ट्रीय गोल्ड और सिल्वर डेबिट कार्ड के क्षेत्र में पदार्पण कर रिटेल बैंकिंग में अपना कदम रखा। दिसम्बर 2017 तक यस बैंक की देश भर में एक हजार से ज्यादा शाखाएँ और 18 हजार के लगभग ‘एटीएम’ स्थापित हो चुके थे। यस बैंक में 18 हजार कर्मचारी कार्य करते हैं।

यस बैंक नेट बैंकिंग में लगी 20 निजी कम्पनियों का साझेदार था। आज नेट बैंकिंग, मोबाइल नेट बैंकिंग बडे़ शहरों में आम बात बन चुकी है। नोटबन्दी के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘कैशलेस’ के नारे को खूब प्रचारित किया गया था। ‘पेटीएम’, ‘फोनपे’ जैसी नामचीन कम्पनियाँ यस बैंक की साझेदार थीं। देश भर में होने वाले ‘यूपीआई’ लेन–देन का 35 प्रतिशत यस बैंक से सम्बन्धित इन्हीं कम्पनियों द्वारा होता था। 2004 से 2005 के बीच यस बैंक देश में सबसे तेजी से उभरने वाला, निजी कम्पनियों का चहेता बैंक था। उसी समय इसके तेजी से उभार पर शंका जताते हुए एक अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक सेवा प्रदाता कम्पनी ‘यूवीएस’ ने इसके कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाये थे। ‘यूवीएस’ ने बताया था कि यस बैंक निजी कम्पनियों को अपनी क्षमता से ज्यादा कर्ज बाँट रहा है,। वह भी ऐसी कम्पनियों को जिनसे कर्ज वापस आना मुश्किल है। लेकिन यस बैंक लगातार ऐसी कम्पनियों को कर्ज बाँटता रहा। इनमें हाल ही में डूबी कम्पनियाँ–– डीएचएफएल, अनिल अम्बानी की रिलायंस ग्रुप, आईएफ एण्ड एससी आदि शामिल हैं। यस बैंक द्वारा दिये गये कर्जों में 25 फीसदी कर्ज गैर बैंकिंग कम्पनियों, रियल एस्टेट और विनिर्माण के क्षेत्र में लगी कम्पनियों को दिया गया। जबकि ये क्षेत्र पहले ही आर्थिक मन्दी की मार झेल रहे हैं। मौजूदा एनडीए सरकार ने यस बैंक के खिलाफ कड़े कदम उठाने के बजाय उसके सहयोगी बनकर उसके गोरखधन्धे को बढ़ावा दिया।

2014 से 2019 के मात्र पाँच सालों में तक यस बैंक द्वारा दिये गये कर्जों की रकम 55,633 करोड़ से पाँच गुणा बढ़कर 2,41,499 करोड़ तक पहुँच गयी। ये कर्ज सरकार के नजदीकी लोगों और चहेती कम्पनियों को बाँटे गये। जिनमें एस्सेल ग्रुप के मालिक, राज्यसभा सदस्य सुभाष चन्द्रा और अनिल अम्बानी प्रमुख हैं।

इस पूरे मामले में सरकार और आरबीआई की भूमिका बहुत संदिग्ध हैं। क्योंकि ‘आरबीआई’ द्वारा यस बैंक के लेन–देन पर रोक लगाने से एक दिन पूर्व ही गुजरात की एक कम्पनी ने बैंक से 265 करोड़ रूपये निकाले थे।

यस बैंक देश में बैंकिंग क्षेत्र के गहराते संकट की पोल खोलता है जो कि निजी कम्पनियों की लूट का नतीजा है। आज निजी कम्पनियों का कुल 9 लाख करोड़ से ज्यादा कर्ज बट्टा खाता यानी एनपीए हो चुका है। सरकार इन कम्पनियों पर कोई कार्रवाई करने के बजाय इनके लिए राहत पैकेज जारी करती है।

आरबीआई ने यस बैंक को आर्थिक संकट से उबारने की जिम्मेदारी स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया को सौंपी है। स्टेट बैंक यस बैंक के 49 फीसदी शेयर लगभग 2 हजार कारोड़ में खरीदकर उसे सकंट से उभारेगा। लेकिन सरकार ने उन नीतियों और उन लुटेरों के खिलाफ कुछ नहीं किया जिन्होंने ‘यस बैंक’ को डुबोया। इसका केवल यही अर्थ है कि जिस रोग से यह बैंक दिवालिया हुआ अब वही रोग इसके जरिये एस बी आई में भेज दिया गया है।