2014 में सत्ता सम्हालने के बाद मोदी सरकार ने “स्वच्छ भारत अभियान” और “स्मार्ट सिटी” बनाने का जबरदस्त प्रचार किया था। प्रचार की हालत यह थी कि प्रधानमंत्री से लेकर गली–मोहल्लों का वार्ड मेम्बर तक स्वच्छता सन्देश पर भाषण देते नजर आ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मोदी सरकार भारत को चमकाकर ही दम लेगी। वित्तीय वर्ष 2021 के बजट में स्वच्छ भारत अभियान के लिए रिकार्ड 1–41 लाख करोड़ रुपये दिये गये थे। इतने भारी भरकम बजट के बाद लग रहा था कि साल 2022 तो निश्वय ही चमकते भारत का साल होगा लेकिन सच यह है कि इस साल में भारत ने गन्दगी में रिकार्ड बनाये हैं। साफ–सुथरे घर, साफ पानी तो दूर, आम जनता के लिए साफ हवा भी दुर्लभ हो गयी है।

मार्च 2022 में स्विट्जरलैण्ड की संस्था आईक्यूएआईआर ने विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट जारी की थी। यह संस्था हवा में मौजूद पीएम 2–5 कणों की मौजूदगी के आधार पर हवा की शुद्धता की जाँच करती है। हवा में इन कणों की एक तय सीमा से अधिक मात्रा पर्यावरण और इनसानों के लिए खतरनाक है। स्विस संस्था ने दुनिया के 117 देशों के 6,475 शहरों और इलाकों का सर्वे किया था। सर्वे में जिन सौ शहरों की हवा दुनिया में सबसे खराब पायी गयी है उनमें राजधानी दिल्ली सहित 63 शहर भारत के हैं। इन शहरों की हवा साँस लेने लायक नहीं रह गयी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साफ हवा में पीएम 2–5 कणों की अधिकतम मात्रा 24 घंटे में 25 एमजी/एम3 होनी चाहिये। जबकि रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहरों की हवा इस मानक के हिसाब से 10 से 15 गुणा तक खराब हो चुकी है।

अमरीका में मेसाचुसेट्स के हेल्थ इफ्फेक्ट इन्स्टिट्यूट की अक्टूबर 2022 में जारी ग्लोबल एयर रिपोर्ट के मुताबिक भारत के दिल्ली और कोलकाता दुनिया के सबसे गन्दे शहर हैं। रिपोर्ट में दिल्ली की हवा डब्लूएचओ के मानक से 22 गुणा खराब पायी गयी है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 2019 में नेशनल क्लीन एयर कार्यक्रम की शुरुआत की थी जिसमें हवा में मौजूद हानिकारक कणों की मात्रा 20 से 30 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया था। इस कार्यक्रम में देश के 132 शहरों को शामिल किया गया था और 2022 के लिए 460 करोड़ का बजट जारी किया गया था। कमाल यह कि लक्ष्य पाना तो दूर, उल्टा इन 132 शहरों की हवा और ज्यादा खराब हो गयी है।

पीएम 2–5 कणों की हवा में मौजूदगी के नुकसान के बारे में डॉक्टरों और विशेषज्ञों का कहना है कि तय मानक से पीएम 2–5 कणों वाली हवा में लम्बे समय तक साँस लेने से लोगों को दमा और फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियाँ होने की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण दुनिया मंे हर साल 70 लाख लोग असमय मौत का शिकार होते हैं। भारत मंे ऐसी असमय मौत के शिकार लोगों की संख्या दुनिया मंे सबसे ज्यादा है। यहाँ गन्दी हवा के कारण हर साल 17 लाख से ज्यादा लोग मरते हैं। गन्दी हवा के कारण साल 2019 में भारत मंे 1 लाख से ज्यादा बच्चे जन्म के पहले महीने में ही मौत का शिकार बन गये थे। 2019 में गन्दी हवा के कारण केवल दिल्ली में ही 29 हजार से ज्यादा लोगों की असमय मौत हुई थी।

हवा को गन्दा करने वालों और इसका नुकसान झेलने वालों की दुनिया में दो श्रेणियाँ हैं जो एक दूसरे के ठीक उलटे हैं। दुनिया के पैमाने पर अमीर देशों ने हवा को सबसे ज्यादा गन्दा किया है लेकिन उसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीब देशों ने झेला है, ठीक इसी तरह देश के अन्दर अमीर लोग हवा को सबसे ज्यादा गन्दा करते हैं लेकिन इसका नुकसान सबसे ज्यादा गरीब लोग झेलते हैं और गन्दी हवा से असमय मौत का शिकार अधिकतर वे ही होते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि हवा के प्रदूषण का मुख्य कारण जीवाश्म र्इंधन (पैट्रोल, डीजल आदि) के इस्तेमाल से निकलने वाला धुआँ है। जीवाश्म र्इंधन, कार्बन और दूसरी जहरीली गैसों के उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत है जो पर्यावरण और इनसानों के लिए बेहद खतरनाक है।

अमीर देश दुनिया के अधिकतर कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। अमरीका सहित तमाम विकसित देश हर साल 15 मिट्रिक टन कार्बन का उत्सर्जन करते है। 1850 से अब तक अकेले अमरीका ने 509 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन किया है, जो पूरी दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का 20 प्रतिशत है।

वाहनों और उद्योगों से निकलने वाला धुआँ हवा को सबसे ज्यादा गन्दा करता है। अमीर लोग ही सबसे ज्यादा वाहनों (कार आदि) के मालिक हैं और उनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। इसी तरह नये–नये उपभोक्ता सामानों का इस्तेमाल भी वे ही सबसे ज्यादा करते हैं। देश की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी तो किसी तरह अपनी दो वक्त की रोटी का इन्तजाम कर पाती है। दुनिया के एक प्रतिशत सबसे अमीर लोग दुनिया के 50 प्रतिशत गरीब लोगों के बराबर कार्बन उत्सर्जन करते हैं। आज उत्सर्जन में जो बढ़ोतरी हो रही है उसके 46 प्रतिशत के लिए सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोग जिम्मेदार हैं। भारत में इससे हुई जनविनाश के बारे में फरवरी 2021 में एन्वायरमेंटल रिसर्च पत्रिका में छपे एक शोध लेख में बताया गया था कि जीवश्म र्इंधन (पैट्रोल, डीजल आदि) के इस्तेमाल से निकलने वाले धुएँ से 2018 में भारत में 25 लाख लोगों की असमय मौत हुई थी।

दुनिया के एक फीसदी अमीर लोग दुनिया की 80 फीसदी धन सम्पदा के मालिक बन बैठे हैं। भारत में ऊपर के दस फिसदी अमीर लोग 70 फिसदी धन सम्पदा के मालिक हैं। इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि महँगी–महँगी कारें, अय्याशी के आलीशान होटल, आलीशान बहुमंजिला घर का इस्तेमाल कौन करता है ? इनमें बिजली, पानी की बेहताशा खपत और इनसे निकलने वाला कचरा कौन झेलता है ? दुनिया के एक प्रतिशत सबसे अमीर लोग दुनिया के 50 प्रतिशत गरीब लोगों जितना कार्बन उत्सर्जन करते हैं। आज उत्सर्जन में जो बढ़ोतरी हो रही है उसके 46 प्रतिशत के लिए सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोग जिम्मेदार हैं।

खराब हवा के सबसे ज्यादा शिकार गरीब लोग बन रहे है। जीविकोपार्जन के लिए इन्हें बहुत लम्बे समय तक घर से बहार रहना पड़ता है। हवा का स्तर ज्यादा खराब होते ही दिल्ली सरकार लोगों को घर से न निकलने की सलाह दे देती है। खाते–पीते लोग इस पर अमल भी कर लेते हैं, लेकिन रोज कमाने, रोज खाने वाले गरीब मेहनतकश लोग इस पर अमल करेंगे तो भूखे मर जायेंगे। इसी खराब हवा में काम पर जाने के लिए वे रोज लम्बी यात्राएँ करते हैं। गन्दे जेलनुमा कार्यस्थलों पर 10–12 घंटों तक हाड़तोड़ काम करते हैं। इन जगहों पर खराब हवा से बचने के इन्तजामों के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। यह मेहनतकश आबादी शहरों की सबसे गन्दी जगहों पर, तंग बस्तियों में दड़बेनुमा कोटरों रहती है। इन कोटरों में न तो धूप जाती है न ही साफ हवा का प्रवाह होता है, बल्कि सड़कों की हवा और सफाई इन बस्तियों से कहीं बेहतर होती है।

दूसरी तरफ अमीर लोगों के पास खराब हवा से बचाव की सारी सुविधाएँ हैं। उनकी व्यवस्थित कॉलोनियों में पानी, स्वच्छता, पार्काे की तमाम सुविधाएँ मौजूद हैं। इन उपवननुमा कालोनियों में उनके आलीशान खुशबूदार घरों से लेकर कार्यालयों तक एयर प्यूरीफायर लगे हैं। काम उनके लिए मस्ती है, कोई मेहनत नहीं, कोई बन्धन नहीं। यहाँ तक कि अगर उन्हें खुले में भी आना होता है तो गले मंे एयर प्यूरीफायर टांग कर चलते है। इस समय भारत मंे एयर प्यूरीफायर का सालाना बाजार 280 से 300 करोड़ रुपये तक है और 15–20 प्रतिशत की वृद्धि कर रहा है।

मोदी सरकार स्वच्छ भारत अभियान पर जो लाखों करोड़ रुपये उड़ा रही है वह देश की मेहनतकश जनता से वसूला जाता है लेकिन मेहनतकशों के हित में उसका इस्तेमाल नहीं होता। अगर होता तो निश्वय ही उसका असर दिखायी देता। वास्तव में गरीब मेहनतकश जनता दोहरी मार झेल रही है, अमीरों की अय्याशी भरी जिन्दगी हर साल लाखों गरीबों को असमय मौत के मुँह में धकेल रही है, इससे बचाव के लिए जो धोखे भरी योजनाएँ चलायी जा रही हैं उनका खर्च भी उसी गरीब मेहनतकश जनता से वसूला जा रहा है जिन्हें इन योजनाओं से कोई लाभ नहीं।

हवा साफ करने का एकमात्र और आसान तरीका यह है कि निजी वाहनों पर लगाम लगायी जाये और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाया जाये, उद्योगों से निकलने वाले धुएँ के लिए फिल्टर लगाना अनिवार्य किया जाये और बेलगाम उपभोग पर लगाम लगाने की लिए सामूहिक जीवनशैली को बढ़ावा दिया जाये। अच्छे दिन का वादा करके सत्ता में आये मोदी क्या यह कर सकते हैं।

–– सत्येन्द्र सिद्धार्थ