हाल ही में स्वीडन की संस्था वी–डेम (वैरायटी ऑफ डेमोक्रेशी) ने अलग–अलग देशों में बढ़ रही निरंकुशता को दिखाने वाली एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट को 3700 विशेषज्ञों ने 202 देशों के 30 करोड़ तथ्यों के आधार पर तैयार किया है। रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले दस सालों में दुनिया में निरंकुशता बढ़ी है। रिपोर्ट में बढ़ रही निरंकुशता के आधार पर दुनियाभर के देशों को सूचीबद्ध किया गया है। इस सूची के अनुसार निरंकुश शासन के मामले में भारत सबसे निरंकुश सरकार वाले शीर्ष छ: देशों में शामिल है। इन सभी छ: देशों में आधिनायकवादी पार्टियों का शासन चल रहा है। इन पार्टियों के बारे में रिपोर्ट में बताया गया है कि ये निरंकुशता को बढ़ावा दे रही हैं। लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं को खत्म कर रही हैं। ये पार्टियाँ अल्पसंख्यक समुदायों समेत सारी जनता के मानवाधिकारों का हनन कर रही हैं। ये पार्टियाँ जनता से वायदा खिलाफी करती हैं और जनता में अपने बारे में झूठा प्रचार करवाती हैं। अपने विरोधियों को बदनाम करना और राजनीतिक हिंसा को बढ़ावा देना इन पार्टियों का प्रमुख काम बन गया है। भाजपा के बारे में बताया गया है कि यह नकली देश भक्त पार्टी अपने निरंकुश शासन को मजबूत करने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करती है। भारत में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अब चुनाव के जरिये निरंकुशता में बदल गयी है। यह अपने हिन्दु मुस्लिम ऐजेन्डों को कानूनी जामा पहना रही है।

गौ वंश के नाम पर हत्या, भीड़ द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की हत्या, देश के अलग–अलग हिस्सों में धार्मिक दंगों को भड़काना, दंगों के दोषियों को सजा न मिलना बल्कि दंगें से पीड़ितों को ही अपराधी घोषित करना सत्ताधारी पार्टी की कार्यशैली का हिस्सा बन गया है। दंगा पीडितों के घरों को तोड़ना भाजपा शासित राज्यों की सरकारों का तयशुदा काम बन चुका है। पूरी राज्य मशीनरी एक पार्टी के हितों को पूरा करने में लगा दी गयी है।

अपनी जन विरोधी नीतियों पर पर्दा डालने के लिए सरकार ने फूटपरस्ती के अल्पसंख्यक विरोधी ऐजेन्डों को तेजी से लागू किया है। सीएए–एनआरसी के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का जबरदस्त उत्पीड़न किया गया है।

कोरोना काल में जब कई करोड़ प्रवासी मजदूर सैकड़ों किलोमीटर के अपने घरों के सफर पर पैदल ही निकलने को मजबूर हुए जिसमें उन्होंने बेपनाह तकलीफों का सामना किया तब सरकार ने अपनी बदइन्तजामी से ध्यान हटाने के लिये अल्पसंख्यकों को महामारी का जिम्मेदार ठहरा दिया। करोड़ों लोगों ने इस बहकावे में आकर अल्पसंख्यक समुदाय के मजदूरों, ठेले खोमचें वालों, रहेड़ी पटरी वालों को पीटना शुरू कर दिया था।

केन्द्र सरकार द्वारा जहाँ अल्पसंख्यक विरोधी एजेण्डों पर जोर दिया जा रहा है, वहीं सरकार की जन विरोधी नीतियों की आलोचना करने वालों को राष्ट्र विरोधी कहकर बदनाम किया जा रहा है। सरकार जन विरोधी नीतियों की आलोचना करने वालों को बदनाम करने तक ही नहीं रुकी, बल्कि उन्हें जेल में भी डाला और अलग–अलग बहाने बनाकर उनका उत्पीड़न किया।

वी–डैम संस्थान द्वारा भारत को ‘चुनाव के जरिये तानाशाही’ में पिछले वर्ष भी वर्गीकृत किया गया था। जिस पर भारत इस वर्ष भी बना हुआ है। भारत दुनिया के शीर्ष निरंकुश देशों में शामिल है जिसका सीधा मतलब है कि कथित लोकतंत्र की आने वाले समय में और भी बुरी दशा होगी। भारत के लोकतंत्र में भारी गिरावट का मुख्य कारण नरेन्द्र मोदी और भाजपा सरकार के उदय के साथ सत्ता का केन्द्रीकरण है।

रिपोर्ट में चिन्हित किया गया है कि भारत में निरंकुशता अफगानिस्तान की तरह भयावह स्तर पर पहुँच गयी है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 70 फीसदी आबादी बढ़ती हुई तानाशाही से प्रभावित हो रही है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि तानाशाही अपना स्वरूप बदल रही है। यह पहले की तानाशाही से अलग है। आज तानाशाही की इस बदली हुई प्रकृति को समझने की जरूरत है। इस नयी तानाशाही को समझे बगैर इससे निपटने का रास्ता नहीं खोजा जा सकता।