हाल ही में उत्तर प्रदेश और हरियाणा की भाजपा सरकार ने इजराइल में मजदूरी के लिए भर्ती अभियान चलाया। इजराइल सरकार ने मजदूरों की भर्ती के लिए पन्द्रह अधिकारियों की एक टीम भारत भेजी। इस भर्ती अभियान में दोनों राज्यों से बीस हजार मजदूरों को लिया जाना है। इजराइल में जाने के बाद इन मजदूरों से राजमिस्त्री, बेलदारी, टाइल लगाना, प्लम्बर, बढ़ई आदि काम करवाये जायेंगे और इनकी मजदूरी प्रतिमाह 1–37 लाख रुपये होगी। उनकी ऊँची मजदूरी को देखकर भ्रम होता है कि उन्हें कितनी अच्छी नौकरी मिलने वाली है। लेकिन हालात कुछ और ही बयान करते हैं।

इजराइल में यह भर्ती प्रक्रिया ऐसे समय पर की जा रही है जब वहाँ युद्ध चल रहा है। वहाँ से रोजाना युद्ध में लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही हैं। युद्ध के चलते विभिन्न देशों ने अपने–अपने मजदूरों को इजराइल से वापस बुला लिया है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार ऐसे समय युद्ध का शिकार बनने के लिए भारतीय मजदूरों को इजराइल भेज रही हैं।

3 नवम्बर 2022 को भारत सरकार ने इजराइल आव्रजन एजेंसी पीआईबीए के साथ एक समझौता किया था। यह समझौता भारत सरकार के कौशल विकास और उद्यम मंत्रालय के साथ हुआ था। इस समझौते के अनुसार भारतीय मजदूरों को इजराइल में भवन निर्माण और देखभाल के लिए अस्थायी नौकरी पर भेजा जाना तय हुआ था। नवम्बर 2023 में इजराइल के पूर्व विदेश मंत्री ऐली कोहेन ने वहाँ की संसद में इस समझौते का जिक्र किया था। उन्होंने संसद में बताया था कि इस समझौते के अनुसार 42,000 भारतीय मजदूरों को इजराइल के भवन निर्माण और नर्सिंग क्षेत्रों में लगाया जाना है।

अक्टूबर, 2023 में हमास हमले से पहले इजराइल में एक लाख से अधिक विदेशी मजदूर काम कर रहे थे। इनमें थाइलैंड, फिलीपींस और गाजा के मजदूर की संख्या अधिक थी। हमास हमले के बाद थाइलैंड और फिलीपींस ने विशेष फ्लाइटों से अपने नागरिकों को वापस बुला लिया और इजराइल ने गाजा के मजदूरों की आवाजाही पर रोक लगा दी। ऐसे में इजराइल सरकार के सामने मजदूरों का संकट खड़ा हो गया। इसकी पूर्ति भारत सरकार के साथ हुए समझौते से की जा रही है।

युद्ध ग्रस्त क्षेत्र में भारतीय मजदूरों की सुरक्षा के बारे में इजराइली एजेंसी ने कोई भी बात नहीं की है। भारत सरकार भी केवल ‘ऊँची मजदूरी’ पर विदेश भेजने का ढिंढोरा पीट रही है। भारत की मजदूर ट्रेड यूनियनों ने भी इस पर सवाल उठाये हैं। उनका कहना है कि केन्द्र सरकार उन सभी सुरक्षा नियमों को नजरन्दाज कर रही है जो विदेश जाने वाले कामगारों के लिए विशेष रूप से युद्ध ग्रस्त क्षेत्र पर लागू किये जाते हैं। हालत यह है कि भारत से विदेश जाने वाले मजदूरों का विदेश मंत्रालय के ‘ई– मिग्रेंट’ पोर्टल पर पंजीकरण भी नहीं किया जा रहा है। भारत सरकार इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दे रही कि इजराइल में भारतीय मजदूरों की सुरक्षा के लिए किस मंत्रालय या विभाग, कम्पनी और एजेंसी की जिम्मेदारी होगी। इसके साथ ही इजराइल जाने वाले इन मजदूरों को किसी तरह के जीवन बीमा, चिकित्सा सुविधा या दुर्घटना सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।

जीवन–यापन के खर्च में इजराइल दुनिया के सबसे महँगे देशों में से एक है और वहाँ भारतीय मजदूरों को रहने–खाने का खर्च खुद वहन करना है। इजराइल की मुद्रा एक शकेल भारत के 21 रुपये के बराबर है। यानी मजदूरी का बड़ा हिस्सा मजदूरों को गुजारा करने के लिए ही खर्च करना पड़ेगा। इससे साफ हो जाता है कि इजराइल में मजदूरों को मिलने वाली बड़ी रकम कोई खुशी की बात नहीं है। बेरोेजगारी किस हद तक बढ़ गयी है कि हमारे देश के मजदूरों को आज राजी–रोटी के लिए भी जान जोखिम में डालनी पड़ रही है। आये दिन वहाँ भारतीय मजदूरों की मौत की खबरें आ रही हैं। एक तरफ जहाँ कई देशों ने अपने मजदूरों को वहाँ से वापस बुला लिया तो दूसरी तरफ हमारी सरकारें मजदूरों को मौत के मुँह में धकेल रही हैं। विदेशों में मोदी के डंका बजने की असलियत यही है।