जी–20 शिखर सम्मलेन : जनता की बर्बादी पर राजनेताओं की अय्याशी
समाचार-विचार मोहित पुण्डीरबीते 9–10 सितम्बर को दिल्ली में जी–20 का शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। भारत ने इस सम्मेलन की 18वीं बैठक की मेजबानी की। मुख्यधारा की मीडिया ने इसे एक अभूतपूर्व घटना की तरह जनता के बीच पेश किया। इसे मोदी की वैश्विक नीति की सफलता बताया और भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल किया। इन्होंने चाटुकारिता की हद पार करके इसे भूतो–न–भविष्यती घटना साबित करने की भरपूर कोशिश की। सच्चाई यह है कि हर साल कोई न कोई देश इस सम्मेलन की मेजबानी करता ही है। इस सम्मेलन पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये गये। सवाल यह उठता है कि देश की करोड़ों मेहनतकश जनता का पैसा बरबाद करके सरकार ने इस सम्मलेन से क्या हासिल कर लिया?
जी–20 बीस देशों का समूह है। यह साम्राज्यवादी देशों की संस्था जी–7 का विस्तार है जिनमें दूसरी कतार के उनके पिछलग्गू देश शामिल हैं। इनका मकसद देशी–विदेशी पूँजी के गठँजोर और साम्राज्यवादी नवउदारवादी नीतियों की हिफाजत करता है। इसका निर्माण 1999 के आर्थिक संकट के बाद इन देशों के बैंकरों और वित्तीय उद्योगपतियों ने किया था। 2007 की महामन्दी के बाद इसमें सभी देशों के राजनेता भी शामिल हुए। जाहिर है कि इस समूह का निर्माण आर्थिक संकट के दौर में हुआ, जिसका उद्देश्य पूँजीपतियों के मुनाफे में आयी कमी को दूर करना है। भारत में पिछले सालों में मजदूरों के हकों पर हमला तेज हुआ है, उनके हक में बने सभी कानूनों को सरकार एक–एक कर खत्म करने पर आमदा है। मजदूरों से उनके संगठन बनाने और हड़ताल करने के हक को छीना जा रहा है, जिसका सीधा फायदा उनका शोषण करने वाले देशी–विदेशी पूँजीपतियों को मिल रहा है। इनका आम जनता के हितों से कोई दिल लेना–देना नहीं है। इस साल जी–20 सम्मेलन में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, क्रिप्टोकरेंसी पर रेगुलेशन और वैश्विक फाइनेंशियल फ्रेमवर्क जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई जो पूँजीपतियों को मन्दी के दलदल से बाहर निकालने के महज तौर–तरीके हैं। जनता के हितों से इनका कोई लेना–देना नहीं है।
भाजपा और मीडिया इस आयोजन को राष्ट्रीय गौरव और सम्मान के रूप में पेश कर रही है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ इस आयोजन के लिए सुबह–शाम पसीना बहानेवाले मजदूरों को ठीक से मजदूरी नहीं दी गयी। सरकार की तरफ से कोई मदद न मिलने के कारण उन्हें जन्तर–मन्तर पर आन्दोलन करना पड़ रहा है। इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली स्थित देश के सबसे बड़े कन्वेंशन सेण्टर ‘भारत मण्डपम’ में हुआ था। इस पूरे कार्यक्रम की देखरेख करने वाली कम्पनी के अधीन 250 मजदूर दिन–रात काम करते रहे। इन मजदूरों को 16 हजार प्रति माह की मजदूरी देने का वादा किया गया था। लेकिन 2 महीने काम लेने के बाद इन्हें मात्र ढाई हजार रुपये दिये गये। जबकि इस पूरे आयोजन पर सरकार ने 2700 करोड़ रुपये खर्च किये। शानों–शौकत के लिए करोड़ों रुपये तबाह कर दिये गये लेकिन मजदूरों को उनकी मजदूरी का जायज पैसा देने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं है।
सरकार ने तुगलकाबाद, महरौली, धौलाकुआँ, जैसी अनेक जगहों से रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी लगाने वाले आदि मजदूरों की झुग्गियों को उजाड़ दिया। इसे सौन्दर्यकरण का नाम पर किया गया, लगभग 5 लाख लोगों को सरकार ने बेघर कर दिया। इनके पुनर्वास की कोई योजना नहीं बनायी गयी। एक तरफ मीडिया इस आयोजन की बेहद रंगीन फोटो दिखाकर लोगों के अन्दर गर्व महसूस करवा रहा था वहीं दूसरी तरफ इस आयोजन के चलते लाखों लोगों को सड़क पर सिसकने के लिए छोड़ दिया गया। इस गौरवशाली माहौल में इन लोगों को बलि चढ़ा दिया गया।
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