मोदी सरकार की सरपरस्ती में कोयला कारोबार पर अडानी का कब्जा
राजनीतिक अर्थशास्त्र मोहित पुण्डीरपिछले साल 9 दिसम्बर को ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने अडानी के कोयला कारोबार से सम्बन्धित एक विस्तृत रिपोर्ट सार्वजनिक की। इस रिपोर्ट के लिए ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के पत्रकारों नें भारत, ऑस्ट्रेलिया समेत बांग्लादेश सरकार के 2 दर्जन से ज्यादा अधिकारियों के साक्षात्कार के लिए। इन्होंने अडानी और बांग्लादेश सरकार के बीच हुए गोपनीय समझौते का भी गहरा अध्ययन किया। इसके साथ ही अडानी की कम्पनियों के कर्मचारियों की बातचीत और अन्य सम्बन्धित दास्तावेजों को भी इस रिपोर्ट का आधार बनाया। सभी तथ्यों की जाँच–पड़ताल करने के बाद ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने यह खुलासा किया कि मोदी सरकार ने भारत की आम जनता, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की तबाही की कीमत पर अडानी के कोयला कारोबार को खड़ा किया है। इस के लिए मोदी ने कितनी ही बार कानूनों को बदला है। इसके साथ ही उन्होंने सरकारी बैंकों पर दबाव बनाकर अडानी को मनमाना कर्ज भी दिलवाया है। इस रिपोर्ट के अनुसार अडानी को अरबों रुपये का फायदा पहुँचाने के लिए मोदी ने ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश की सरकारों के साथ भी समझौता किया।
अडानी का कोयला कारोबार ऑस्ट्रेलिया, भारत और बांग्लादेश से जुडा हुआ हैं। अडानी ऑस्ट्रेलिया की कोयला खादानों को खरीद कर इन से कोयला निकालकर भारत भेज रहा है। भारत में इस कोयले का इस्तेमाल अडानी की कम्पनी बिजली बनाने के लिए कर रही है। अधिक दामों पर यह बिजली बांग्लादेश को निर्यात की जा रही है। यानी अडानी की इस परियोजना के लिए कच्चा माल ऑस्ट्रेलिया से लिया जा रहा है, फिर भारत में उससे बिजली बनायी जा रही है और अन्त में उसे बांग्लादेश को भेजा जा रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में इतनी धाँधली और संसाधनों की इतनी लूट हुई है कि अडानी दुनिया का दूसरा सबसे अमीर आदमी बन गया है। लेकिन तीनों देशों की आम जनता के हिस्से बर्बादी ही आयी है। इन सभी जगहों पर अडानी को आम लोगों के बेहद जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वहाँ की सरकारों ने अपने देश में चले इन विरोधों को कुचलकर अडानी का सीधा पक्ष लिया है। आगे हम सिलसिलेवार तरीके से तीनों देशों के घटनाक्रमों के जरिये अडानी के कारोबार को बढ़ाने के लिए किये गये भ्रष्टाचार और लूट पर चर्चा करेंगे।
केन्द्र सरकार में बीजेपी के आने के बाद से ही अडानी के कोयला कारोबार ने तेजी से आकार लेना शुरू कर दिया था। इसकी शुरुआत 2014 के नवम्बर महीने से होती है जब मोदी एक सम्मलेन में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैण्ड राज्य गये। इस यात्रा में मोदी के साथ अडानी भी ऑस्ट्रेलिया गये थे। यह यात्रा ऑस्ट्रेलिया में अडानी की कोयला परियोजना को आगे बढ़ाने वाली साबित हुई थी। वहाँ मोदी, अडानी और एसबीआई के चेयरमैन की एक मीटिंग हुर्इं थी। इस मीटिंग के बाद अडानी ने घोषणा की कि एसबीआई उनकी कारमाइकल कोयला परियोजना के लिए साढ़े 7 हजार करोड़ रुपये का कर्ज देगा। दरअसल यह परियोजना ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैण्ड की कारमाइकल कोयला खादान से अगले 60 सालों तक कोयला निकालने की है। लम्बे समय से अडानी की नजर इस कोयला खादान पर थी। 2010 में ही अडानी ने इसे खरीदने की घोषणा कर दी थी। लेकिन बीजेपी के सत्ता में आने के पहले इसे हासिल करना और इसके लिए भारतीय बैंकों से बेहिसाब कर्ज लेना अडानी के लिए आसान नहीं था।
2014 में ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने अडानी को कारमाइकल खादान से कोयला निकालने की अनुमति दे दी। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में इसका जबरदस्त विरोध शुरू हो गया। यह परियोजना ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है। इस कोयला खदान के पास हजारों तरह के जीव–जन्तुओं की प्रजातियों का बसेरा है। इनमें से कई विलुप्त होने की कगार पर हैं। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में यह पाया है कि अगर कोयला खदानों को खोदा गया तो ये सभी प्रजातियाँ कुछ ही समय में प्रदूषण के चलते विलुप्त हो जाएँगी। यह परियोजना केवल जीव–जन्तुओं को ही प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि भू–जल और नदियों के लिए भी अभिशाप है। दरअसल कोयले को ढोने के लिए काफी अधिक मात्रा में पानी की जरूरत पड़ती है जिसकी पूर्ति के लिए भू–जल और नदियों का बेतहाशा दोहन किया जाता है। साथ ही इस कोयले को समु द्र तट तक पहुँचाने के लिए अडानी ने रेल लाइन बिछाने की तैयारी भी की इसके चलते यहाँ दुनिया का सबसे संवेदनशील पारितंत्र ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ के अस्तित्व तक पर खतरा मँडराने लगा।
ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण संगठन अडानी की इस पूरी परियोजना का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। इनका मानना है कि यह परियोजना ऑस्ट्रेलिया की पारिस्थितिकी को बेहद बुरी तरह परिवर्तित करेगी और आने वाले कुछ सालों में यहाँ का बड़ा भू–भाग बंजर हो जाएगा। इन संगठनों को ऑस्ट्रेलिया की बड़ी आबादी का समर्थन हासिल है। शुरू में यह विरोध देशव्यापी था, बाद में विभिन्न देशों के लगभग 70 संगठन इस परियोजना के विरोध में प्रखर आवाज उठाने लगे। इन्हांेने इस पूरे आन्दोलन को ‘अडानी को रोको’ नाम दिया।
2015 में इस आन्दोलन के कारण अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने अडानी के इस प्रोजेक्ट के लिए कर्ज देने से मना कर दिया। मार्च 2017 तक यह आन्दोलन पूरी दुनिया में फैल गया। इसका व्यापक असर यह पड़ा कि ऑस्ट्रेलिया के चार प्रमुख बैंकों को इस प्रोजेक्ट से पीछे हटना पड़ा। इसके साथ ही चीन के बैंकों को भी आधिकारिक रूप से वक्तव्य देना पड़ा कि वे इस प्रोजेक्ट में अडानी की मदद नहीं करेंगे। इसके अलावा 27 बीमा कम्पनियों ने भी अपने हाथ इस प्रोजेक्ट से पीछे खींच लिये। इस आन्दोलन ने अडानी और ऑस्ट्रेलिया के कोयला कार्टेल को जनता की ताकत का एहसास करा दिया। कुछ समय बाद ऑस्ट्रेलिया की तात्कालिक सरकार को भी यह मानना पड़ा कि अडानी की यह परियोजना पर्यावरण मानकों पर खरी नहीं उतरती है। इस आन्दोलन की यह बड़ी जीत है।
इस आन्दोलन ने एसबीआई के द्वारा अडानी को मनमाने तरीके से दिये कर्ज का भी भण्डाफोड़ किया। दरअसल एसबीआई की यह नीति है कि वह किसी ऐसी परियोजना के लिए कर्ज नहीं देगा जिससे पर्यावरण को नुकसान हो। लेकिन मोदी के दबाव के चलते एसबीआई को मजबूरन अडानी को कर्ज देना पड़ा। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी शाख गिरते देख एसबीआई ने भी अडानी को कर्ज देने के फैसले को वापस ले लिया।
आन्दोलन के कारण ऑस्ट्रेलिया में अडानी की यह परियोजना 8 सालों तक रुकी रही। लेकिन 2019 में ऑस्ट्रेलिया की सरकार बदल गयी। नयी सरकार कोयला कार्टेल के इशारों पर नाचती नजर आ रही है। नयी सरकार ने तमाम विरोधों को कुचलकर आखिरकार अडानी को कोयला निकालने की अनुमति दे दी। कुछ वित्तीय संस्थानों से कर्ज न मिलने के कारण अडानी को अपनी पूर्व योजना में कई बदलाव करने पड़े। इनमें कोयला खादान से समुद्र तट तक रेल बिछाने की योजना शामिल है। इसी तरह भारत में मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने एसबीआई पर एक बार फिर दबाव बनाकर अडानी को कर्ज दिलवा दिया।
इस पूरी परियोजना से एक तरफ ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण को बर्बादी की तरफ धकेल दिया गया है। वहीं दूसरी तरफ अडानी ने ऑस्ट्रेलिया की आम जनता की गाढ़ी कमायी का 200 करोड़ रुपये भी सबसीडी के नाम पर डकार लिया। इसी के साथ अडानी ने ऑस्ट्रेलिया की जनता से झूठ बोला कि इस परियोजना से उनके देश को बहुत लाभ होगा और वह कर के रूप में ऑस्ट्रेलियाई सरकार को 170 करोड़ रुपये देगा। यह परियोजना ऑस्ट्रेलिया की आम जनता के लिए आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से विनाशकारी साबित हो रही है। दुनियाभर के संगठन आज भी अडानी की इस परियोजना के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं। इन आन्दोलनकारियों को भारत और बांग्लादेश की जनता का भी सहयोग मिल रहा है क्योंकि इस परियोजना का भारी कीमत इन्ही देशों की आम जनता को चुकानी पड़ रही है।
एक तरफ ऑस्ट्रेलिया में कोयला खादान का करार चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ मोदी बांग्लादेश की सरकार से अडानी की बिजली बेचने के लिए समझौता कर रहे थे। 6 जून 2015 को मोदी अडानी बांग्लादेश की दो दिन की यात्रा विवादों में घिरी रही। ऐसी खबर आयी कि मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस करार के लिए भेंटस्वरूप सीमा के 6 विवादास्पद गाँव भी दे दिये थे। इस यात्रा के बाद बांग्लादेश सरकार और अडानी के बीच बिजली खरीद का गोपनीय समझौता हो गया। इस समझौते के तहत अगले 25 सालों तक बांग्लादेश अडानी के द्वारा निर्धारित कीमत पर बिजली खरीदने के लिए बाध्य रहेगा। लेकिन इस समझौते से बांग्लादेश की जनता को क्या फायदा होगा ? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
फिलहाल बांग्लादेश अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने में समर्थ है। वह अपने मौजूदा साधनों का केवल 40 फीसदी तक ही उपयोग कर पा रहा है। इसके साथ ही बांग्लादेश को सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्रोतों से बिजली बनाना पाँच गुणा सस्ता पड़ रहा है। ऐसे में अडानी से पाँच गुणा अधिक दाम पर बिजली खरीदने से बांग्लादेश को क्या फायदा है ? इस समझौते में अडानी का पक्ष भी मजबूत है और बांग्लादेश को उसकी सभी शर्तों को मानना अनिवार्य है। इस समझौते के तहत अडानी ने बांग्लादेश से अब तक एक लाख करोड़ रुपये ले लिये हैं। इतने रुपयों में बांग्लादेश अगले 100 सालों से भी ज्यादा समय तक वैकल्पिक माध्यम से अपनी ऊर्जा की सभी जरूरतों को पूरा कर सकता था। दरअसल, यह पूरी परियोजना किसी भी तरह से बांग्लादेश के भी हित में नहीं है। इस परियोजना के पहले से भीषण गरीबी और महँगाई का सामना कर रही बांग्लादेश की मेहनतकश जनता को और अधिक निचोड़कर अडानी के लिए मुनाफा तैयार किया जा रहा है। इस परियोजना से अडानी बांग्लादेश को अपने मनमाने दामों पर बिजली बेचकर अकूत मुनाफा कमाएगा और बांग्लादेश की आम जनता इसकी कीमत चुकाएगी।
इस परियोजना के सम्बन्ध भारत से सीधे जुड़े हुए हैं। अडानी की बिजली का उत्पादन झारखण्ड के गोड्डा जिले में हो रहा है जिसे आगे बांग्लादेश को निर्यात किया जा रहा है। गुजरात में अडानी के मुन्द्रा बन्दरगाह के लिए कौड़ियों के भाव जमीन देने का काम मोदी ने ही किया था। अब यही काम देश स्तर पर हो रहा है क्योंकि अडानी का बिजली उत्पादन झारखण्ड के गोड्डा जिले में होगा जिसके लिए मुन्द्रा बन्दरगाह से गोड्डा के लिए रेलवे लाइन बिछाई जा रही है। इस काम के लिए कौड़ियों के भाव जमीन दिलाने या फिर कानूनों को बदलकर अडानी को कर में छूट दिलाने का काम या फिर स्थानीय लोगों के विरोधों और अधिकारों को कुचलने का काम यह सब मोदी सत्ता का इस्तेमाल करके बखूबी कर रहा है।
गोड्डा जिले में बिजली संयत्र को बनाने के लिए दो हजार एकड़ में फैले 9 गाँवों को जबरदस्ती खाली करवाया गया है। इस जमीन को हासिल करने के लिए अडानी को स्थानीय लोगों के लम्बे संघर्ष का सामना करना पड़ा। यह बेहद उपजाऊ जमीन संथाल जनजाति के लोगों का बसेरा है। वह इस जमीन पर खेती और मजदूरी करके अपना जीवन गुजारते हैं। लेकिन अब इन हजारों लोगों को उनकी जमीन से उजाड़कर अडानी को आबाद किया जा रहा है। शुरुआत में अडानी ने यहाँ के स्थानीय लोगों से नौकरी देने के वादा किया था। लेकिन आज ये लोग अपनी जमीन से भी बेदखल कर दिये गये। साथ ही इनके पास जीवन–यापन का कोई भी साधन मौजूद नहीं है। ऐसे में कितने ही लोग शहरों में जाकर बेहद कम मजदूरी पर दिन भर खटने को मजबूर हैं।
सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के साथ ही यह बिजली संयत्र झारखण्ड और पूरे भारत की पारिस्थितिकी के लिए भी बेहद खतरनाक है। ऐसा अनुमान है कि यह संयत्र हर रोज 50 टन से ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन करेगा। इससे निकलने वाली हानिकारक गैसें और जहरीले रसायन कुछ ही समय में 200 किलोमीटर तक के क्षेत्र को बंजर कर देंगे। इस दायरे में रहने वाले लोगों की खेती बर्बाद हो जाएगी, साथ ही भू–जल प्रदूषित हो जाएगा। यह हर साल लाखों लोगों की मौत का कारण बनेगा। इसके दुष्परिणामों की कल्पना करने से ही सिहरन होने लगते है। इसी कारण स्थानीय लोग और पर्यावरणविद इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। एक स्थानीय विधायक जब इसके विरोध में भूख हड़ताल पर बैठ गया तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल में डाल दिया। 6 महीने बाद बड़ी मुश्किल से उसकी जमानत हो पायी। आम जनता की तो बात बहुत दूर है, सरकार जनता के प्रतिनिधियों को भी सच बोलने पर कुचलने पर आतुर है। जनता की ताकत सरकार से बहुत बड़ी होती है, तमाम उत्पीड़न के बाद भी लोग विरोध में आज भी डटे हुए हैं। मोदी के इस साथ के चलते अडानी को 82 हजार करोड़ रुपये का सीधा फायदा पहुँचा है।
झारखण्ड राज्य में जैसे ही अडानी का बिजली संयत्र बनने का काम शुरू हुआ तुरन्त कुछ अधिकारी अडानी के खिलाफ आ गये। दरअसल राज्य में लगे किसी भी बिजली संयत्र को 25 फीसदी बिजली राज्य को सस्ते दर पर देने का कानून था। लेकिन अडानी ने इस कानून की खुले तौर पर अवहेलना की। जब झारखण्ड में भी बीजेपी की सरकार बन गयी तो इन सभी अधिकारियों को चुप करवा दिया गया। थोड़े समय बाद बीजेपी ने इस कानून को ही निरस्त कर दिया ताकि अडानी के सामने किसी भी तरह की कोई कानूनी अड़चन भी न बची रह जाये।
यह पहला मौका नहीं था जब अडानी के मुनाफे के सामने कानूनी रुकावटें आयी हों। इस परियोजना को भारत सरकार के ही पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक बताकर खारिज कर दिया था। मंत्रालय ने कहा था कि किसी दुसरे देश को बिजली देने के लिए हम अपने देश में प्रदूषण क्यों फैलायें ? इस सवाल का जवाब देने की जगह सरकार ने इस मंत्रालय की पूरी कमिटी को ही बदल दिया। नयी कमिटी ने अपनी पहली ही मीटिंग में बिना कोई वाद–विवाद किये अडानी की इस परियोजना को हरी झण्डी दे दी थी। इस कमिटी ने वहाँ रहने वाले स्थानीय लोगों से विचार–विमर्श करना तक भी जरूरी नहीं समझा, बल्कि कानून के हिसाब से यह करना जरूरी था।
लेकिन अडानी यहाँ तक ही नहीं रुका, बल्कि उसने अपने इस बिजली संयत्र के लिए कोयले की आपूर्ति के लिए बेहद सस्ते में सरकारी कोयले को भी हासिल कर लिया। मोदी सरकार ने एक तिहाई से भी ज्यादा सरकारी कोयला अडानी को दे दिया है। इस खुली डकैती का विरोध तात्कालिक कोयला सचिव अनिल स्वरूप ने किया था। उन्होंने कहा कि देश की सम्पदा को इस तरह कौड़ियों के भाव उद्योगपतियों को देने से देश को क्या फायदा है। लेकिन उनका सरकार से सवाल करना उन्हें बेहद भारी पड़ा। मोदी सरकार ने कुछ समय बाद उन्हें भी पद से हटा दिया।
करों से छुटकारे के लिए अडानी ने 2018 में वाणिज्य मंत्रालय से अपने बिजली संयत्र वाली जगह को ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ (सेज) का दर्जा दिलवाने का आवेदन किया था। याद रहे कि सेज वह क्षेत्र होता है जिसमें आने वाले उद्योगों पर हर तरह के कर माफ कर दिये जाते हैं। लेकिन अडानी का यह आवेदन कानूनन स्वीकार्य नहीं हो सकता था क्योंकि 2016 में कानून था कि केवल एक उद्योग वाले क्षेत्र को ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। लेकिन अन्य कानूनों की तरह अडानी के लिए इस कानून को भी बदलकर उस क्षेत्र को ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ घोषित कर दिया गया। इससे अडानी को भारी फायदा हुआ। इस बिजली संयत्र को बनाने के लिए अलग–अलग देशों से कल–पुर्जों का निर्यात किया गया, जिसपर कम–से–कम दस फीसदी तक का कर लगाया जाता। लेकिन अब वह सब कर मुक्त कर दिया गया है। बिजली संयत्र में इस्तेमाल होने वाला अधिकतर कोयला ऑस्ट्रेलिया से निर्यात किया जाना है जिसपर कोई कर नहीं लगेगा। अडानी को न तो निर्यात कर देना होगा, न ही जीएसटी और न ही इस संयत्र से होने वाले मुनाफे पर इनकम टैक्स। अडानी के लिए यह बहुत बड़ा फायदे का सौदा है। इतना सब होने के बाद बिजली उत्पादन की पर यूनिट लागत बेहद कम हो रही है लेकिन उसके बाद भी अडानी अधिक कीमत पर इसे बांग्लादेश को बेच रहा है। इस पूरी परियोजना में अडानी ने खुली डकैती की है।
सरकार की मदद के चलते अडानी ने 8 एयर–पोर्ट और 13 बन्दरगाहों पर भी अपना अधिकार कायम कर लिया है। अडानी का 60 फीसदी से अधिक मुनाफा केवल कोयला आधारित कारोबार से आ रहा है। मोदी ने जिस तरह सभी कानूनों को दाँव पर रखकर और बेतहाशा कर्ज दिलवाकर अडानी के कारोबार को खड़ा किया है उससे निवेशकों को यह विश्वास हो गया है कि जबतक मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तब तक अडानी के कारोबार में लगातार बढ़ोतरी ही होगी। इसी कारण मोदी के आते ही अडानी के शेयरों की कीमतें बड़ी तेजी से बढ़ी हैं जिससे उसने हजारों करोड़ रुपये बिना कुछ किये कमा लिये हैं। मोदी के प्रधानमंत्री बनने की दावेदारी से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक के बीच के 8 महीनों में ही अडानी के शेयरों में प्रतिदिन करोड़ों रुपये की बढ़ोतरी हुई थी। इसमें विकास नहीं छुपा हुआ है बल्कि यह गुब्बारा है जो कभी भी फूट सकता है। ‘क्रेडिट स्विस ग्लोबल एजेंसी’ के अनुसार अडानी पर 2 लाख करोड रुपये से ज्यादा का कर्ज है। हाल ही में अडानी द्वारा अम्बुजा सीमेंट की कम्पनी खरीदने के बाद 40 हजार करोड़ रुपये कर्ज और बढ़ गया है। इस पूरी सम्पत्ति को खड़ा करने के लिए जनता की गाढ़ी कमायी की लूट की गयी है।
हमें अडानी के कोयला कारोबार को पर्यावरण के गहराते संकट से जोड़कर देखना चाहिए। मोदी ने भी एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था में कहा था कि हम भारत में कोयले से बनने वाली बिजली पर अत्यधिक कर लगाकर वैकल्पिक ऊर्जा की ओर बढ़ेंगे। लेकिन मोदी की यह बातें सरासर झूठी निकलीं। इस लेख में हमने इसी बात की गहरी जाँच–पड़ताल की है। ‘ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर’ के अनुसार अडानी आज पूरी दुनिया का सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र का कारोबारी बन गया है। फिलहाल भारत में अडानी के कोयला से बिजली बनाने वाले 8 संयत्र काम कर रहे है। इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। इस पूरे कारोबार के चलते अडानी की सम्पत्ति में पिछले 8 सालों में 1000 फीसदी की बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। वहीं दूसरी तरफ अडानी की मुनाफे की हवस के कारण भारत दुनिया का सबसे बड़ा कोयले का उपयोगकर्ता और तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश बन गया है।
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