मिर्जापुर के पत्रकार पवन जायसवाल को पुलिस ने जेल में बन्द कर दिया क्योंकि उन्होंने 22 अगस्त को एक स्कूल के मिड डे मील में बच्चों को नमक–रोटी परोसने की खबर को छाप दिया था। प्रमाण के तौर पर उन्होंने वीडियो भी बना लिया। पर सरकार ने उन्हें उलटे धमकाना शुरू किया कि तुमने सरकार और प्रशासन को बदनाम करने के लिए ग्राम प्रधान के साथ मिलकर जबरन ऐसा किया है। इतना ही नहीं, पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामलों में केस दर्ज किया गया। षड़यंत्र करने, सरकार की छवि खराब करने और गलत साक्ष्य पर आधारित वीडिओ वायरल करने के लिए उनके ऊपर धारा 186, 193, 120बी और धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। सच और आलोचनात्मक खबर दिखाने वाले पत्रकारों के खिलाफ सरकार की तरफ से कई और मामलों में एफआईआर दर्ज की गयी है।
हरियाणा के हिसार में जब पत्रकार अनूप कुन्डू ने राज्य सरकार के गोदामों में सड़ते अनाज की खबर छापी तो यह बात खाद्य विभाग के अधिकारी सन्दीप चहल को नागवार गुजरी और उन्होंने पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी। उनके ऊपर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 451, 465 और धारा 500 के तहत मामला दर्ज किया गया।
पत्रकार के खिलाफ एफआईआर की तीसरी घटना है जून महीने की। जब पत्रकार प्रशान्त कनौजिया के मजाक बतौर किये गये एक सोसल साइट की पोस्ट को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बदनाम करना माना गया। पत्रकार को जेल में भेज दिया गया। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पत्रकार को ग्यारहवें दिन रिहा किया गया। इतना ही नहीं बाद में सरकार ने अपना बयान बदलकर कहा कि प्रशान्त के ऊपर यह केस केवल उस पोस्ट के लिए नहीं था बल्कि उनकी पुरानी जातिवादी पोस्ट की वजह से है।
इन तीन घटनाओं में एक समानता है कि ये तीनों मामले सरकार या सरकारी महकमे की आलोचना करते हैं। आलोचना करना न तो अलोकतांत्रिक है न ही किसी को बदनाम करने का षड़यंत्र। फिर भी सरकारी तंत्र को यह बर्दाश्त नहीं। भारी बहुमत की सरकार थोड़ी सी आलोचना से परेशान हो जाती है जबकि सरकार को तो आलोचना के बाद अपने काम के तौर तरीके में बदलाव लाना चाहिए। वास्तव में मिर्जापुर के पवन जायसवाल और हरियाणा के अनूप कुन्डू ने दो राज्य सरकारों के दो विभाग की सच्चाई सबके सामने ला कर रखी। जो काम सरकार को खुद करना चाहिए था वह पत्रकार ने कर दिखाया। सरकार को खुद अपनी योजनाओं की जाँच करानी चाहिए कि वे सही तरीके से पूरी हो रही हैं या नहीं। पर उन्हें इनाम में मिली जेल और एफआईआर। खैर सच्चे पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता कभी जेल जाने से नहीं डरते। उलटा सही खबर प्रकाशित करने की वजह से जेल जाने से उनकी प्रतिबद्धता और प्रतिष्ठा दोनों ही बढ़ती है।
आज पत्रकारों के प्रति सरकार के रवैये से साफ है कि वह सच नहीं सुनना चाहती। जो सरकार सच से डरे, भागे और सच बोलने वालों को जेल भेजे वह लोकतांत्रिक तो बिल्कुल नहीं हो सकती। लोकतांत्रिक मूल्य सिर्फ इस बात से तय नहीं हो सकते कि आप को बहुमत मिला है। सरकारी तंत्र का लोक के प्रति व्यवहार क्या है इससे तय होगा कि आप लोकतांत्रिक हैं या नहीं। यह हर पल, हर दिन के व्यवहार से तय होगा।
एक समय था जब चैपाल पर रेडियो की आवाज देश–दुनिया में चल रही राजनीति की खबर सुनाती थी। पूरे देश में एक जैसी सही सूचना पहुँचती थी। उसके आधार पर लोग अपनी–अपनी राय बनाते थे। आज यह सिलसिला टूट गया है। कहने को तो सूचना क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव आये हैं, पर सूचना यंत्र प्रतिक्रियावादी हाथों में और साम्प्रदायिक दिमागों के नियंत्रण में हैं। इसलिए आज देशवासियों का किसी भी मुद्दे पर एक राय होना असम्भवप्राय हो गया है। स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक झूठ और गलत सूचनाओं को प्रायोजित तरीके से फैलाया जा रहा है। जो चैनल और पत्र–पत्रिकाएँ न्यूज के नाम पर झूठ फैलाने का धन्धा कर रही हैं वे कोई गुप्त संस्थान नहीं हैं। उनके नाम और पते मौजूद हैं। देश की बड़ी–बड़ी हस्तियाँ वहाँ उठती बैठती हैं। प्रधानमंत्री तक वहाँ विशेष तरह के हल्के फुल्के साक्षात्कार देते हैं। जिनमें उनसे पूछा जाता है कि आप थकते क्यों नहीं हैं? प्रधानमंत्री सवाल सुनकर आत्ममुग्ध हो उठते हैं। भाव विभोर हो जाते हैं। प्रसन्न मुद्रा में चेहरे पर चमक आ जाती है। और आत्मविश्वास के साथ जबाव दे देते हैं कि “मुझे समस्त देश वासियों से ऊर्जा मिलती है।” क्या कोई सच्चा पत्रकार सामने होता तो यही सवाल करता? और फूहड़ जवाब सुनकर क्या वह सवाल न करता कि मिस्टर पीएम उन सभी देशवासियों में जिनसे आपने यह असीम ऊर्जा इकट्ठा की है वे कुपोषित बच्चे भी शामिल हैं या नहीं? आत्महत्या को मजबूर किसान शामिल हैं या नहीं? भात–भात कहकर मरने वाली झारखण्ड की मासूम बच्ची से भी आपको ऊर्जा मिलती है?
पर क्या करें? आज हमारे सामने जो मुख्य धारा का मीडिया है वह चाटुकारिता में पदक पाने के लिए उत्तेजित है। इसके अलावा वैकल्पिक मीडिया में कोई सच सामने लेकर आये उसे जेल और एफआईआर से चुप कराया जा रहा है। अधिकतर चैनल सरकार के प्रवक्ता बन गये हैं। उनके इसी काम के लिए इन मीडिया घरानों को विज्ञापन के रूप में प्रोत्साहन राशि दी जाती है। 
हमें निडर होकर सही सूचना का आदान–प्रदान करना होगा। इसके लिए पत्रिका, ब्लॉग आदि माध्यम से लोगों को जागरूक करना होगा। अन्त में ब्राजील के लेखक पाउलो कोहलो ने एक जगह लिखा है कि “आप बिना सरकार को प्रेम किये भी अपने देश से प्रेम कर सकते हैं।”