1998 की बोलिवेरियन क्रान्ति के बाद से ही वेनुजुएला काँटे की तरह साम्राज्यवादी अमरीका की आँखों में चुभता रहा है। इस क्रान्ति ने अमरीकापरस्त सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया और ह्युगो शावेज के नेतृत्व में नयी सरकार बनी। वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था तेल पर ही निर्भर है। नयी सरकार ने तेल की कमाई से जनहित योजनाओं को लागू किया। इसलिए बोलिवेरियन क्रान्ति के बाद ही जनता को रोटी, शिक्षा और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएँ बेहतर मिलनी शुरू हुर्इं। 1998 से लेकर आज तक, साम्राज्यवादी अमरीका क्रान्ति से पहले जैसी स्थिति की पुर्नस्थापना करने की जी–जान से कोशिश कर रहा है। अमरीकी सत्ता में चाहे जो हों डेमोक्रेटिक या रिपब्लिक, उनकी विदेश नीति पर खास फर्क नहीं पड़ता। वह केवल अपने मंसूबे पूरे करना चाहता है। और अमरीका अपनी कोशिश को लोकतंत्र की पुनर्बहाली, या तानाशाही का अन्त, जैसी मनमोहक शब्दावली में पेश करता है। इस लेख में हाल ही में सम्पन्न हुए वेनेजुएला के चुनाव में अमरीकी दखलंदाजी, वेनेजुएला की लोकप्रिय नीतियों और साथ ही वेनेजुएला की राह में मुश्किलों का विश्लेषण किया गया है।

वेनेजुएला के चुनाव में अमरीकी दखलंदाजी

वेनेजुएला में चुनाव दिसम्बर 2018 में होने थे। पर राष्ट्रीय संविधान सभा ने इन्हंे अप्रैल 2018 में कराने का निर्णय लिया। विपक्ष ने आपत्ति दर्ज करायी। चुनाव आयोग ने पक्ष–विपक्ष की सहमति से चुनाव का समय मई 2018 तय किया। राष्ट्रीय संविधान सभा में राष्ट्रपति मादुरो के समर्थकों की कमी नहीं थी फिर भी विपक्ष का सम्मान करते हुए मई 2018 में चुनाव तय किये गये। विपक्ष का मुख्य चेहरा थे हेनरी फॉल्कान महोदय जिन्होंने चुनाव में धाँधली का मनगढं़त आरोप लगाया और लोगों के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया। कमाल की बात है कि हजारों मरे हुए लोगों के भी हस्ताक्षर ले लिये गये। जब बात खुली तो उनकी बड़ी किरकिरी हुई।

फिर फॉल्कान महोदय ने अपने चुनावी वायदे में साम्राज्यवादी अमरीका के साथ हाथ मिलाने की बात कही। आईएमएफ और दूसरे पश्चिमी वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेकर वेनेजुएला को महान बनाने का सपना परोसा। पर विपक्ष की यह चाल भी न चली क्योंकि क्रान्ति के बाद से ही वेनेजुएला में एक आम समझदारी बनी हुई है कि नयी आर्थिक नीतियाँ डॉलर तो भेजती हैं–– पूँजीपतियों के लिए और सुविधाओं में कटौती करती हैं–– मेहनतकश जनता की। इसके बाद अमरीकी शह पर फॉल्कान महोदय ने चुनाव का बहिष्कार ही करना शुरू कर दिया जबकि मई 2018 में चुनाव के लिए सहमति पर उन्होंने खुद ही हस्ताक्षर किये थे। वेनेजुएला के चुनावों में अमरीका का एक हस्तक्षेप तो फॉल्कान महोदय थे जो कामयाब न हो सके। वैसे लातिन अमरीका में चुनाव कहीं भी हो, कहीं साम्राज्यवादी अमरीका पक्ष बनता है तो कहीं विपक्ष। भले ही उसे मुँह की खानी पडे़।

इतना ही नहीं वेनेजुएला के चुनावों में मादुरो को हराने के लिए ट्रम्प प्रशासन की दूसरी योजना थी–– सैन्य हस्तक्षेप। इसके लिए हजारों अमरीकी सैनिक कोलम्बिया, गुआना और ब्राजील में भेजे गये। ये देश वेनेजुएला के पड़ोसी हैं। इनकी हजारों किलोमीटर की सीमाएँ वेनेजुएला के साथ–साथ हैं। अमरीकी उकसावे पर कोलम्बिया ने वेनेजुएला बार्डर पर चहल–कदमी बढ़ा दी। सैनिक और रसद की तादाद बढ़ानी शुरू की। यह देख राष्ट्रपति मादुरो की सरकार ने कोलम्बिया प्रतिनिधियों की बैठक बुलायी। कोलम्बियाई प्रतिनिधि कहने लगे–– पिछले 18 महीनों में 4.5 लाख वेनेजुएलावासी बॉर्डर के रास्ते कोलम्बिया में चले गये हैं। इसी को रोकने के लिए फौज बढ़ायी गयी है। वेनेजुएला के प्रतिनिधियों ने कहा–– पहली बात तो यह है कि हमारे आधिकारिक आँकडे़ इतनी भीड़ का विस्थापन नहीं दिखाते, दूसरी बात आपको याद दिला दें कि कोलम्बियाई गृहयुद्ध के दौरान 56 लाख कोलम्बियाई इसी बार्डर को पार करके वेनेजुएला में रहने के लिए आये थे।

खैर इसके बाद वेनेजुएला ने भी बार्डर पर अपनी सैन्य अभ्यास और अभियान जारी रखा। उधर अमरीका ने गुआना को भड़काया कि वनेेजुएला का तानाशाह आक्रमण की योजना बना रहा है। जबकि वेनेजुएला की पूरी राष्ट्रीय संविधान सभा चुनाव की तैयारी में लगी हुई थी। कुल मिलाकर यह दूसरी अमरीकी योजना भी असफल रही।

अमरीका का तीसरा हमला था मीडिया द्वारा

साम्राज्यवादी मीडिया ने पहले से ही वेनेजुएला की नीतियों और लोगों की जिन्दगी में आ रहे बदलावों को लेकर चुप्पी साध रखी है। पर वेनेजुएला को बदनाम करने का एक भी मौका वह हाथ से निकलने नहीं देता। इस चुनाव में एक अमरीकी कम्पनी द्वारा बनायी गयी टैग लाइन ‘‘वेनेजुएला के लिए प्रार्थना करो’’ को खूब उछाला गया। वेनेजुएला के लिए प्रार्थना क्यों? क्या वेनेजुएला किसी शैतान की गिरफ्त में है? क्या वहाँ लोगों का कत्लेआम हो रहा है? वेनेजुएला के लोगों ने इस हमले का बड़ा ही सीधा और स्पष्ट जवाब दिया–– हम जानते हैं कि आपको हम से तेल चाहिए, लेकिन तेल के लिए वेनेजुएला के लोगों को सताना बन्द करो। मादुरो को तानाशाह साबित करने की भरपूर कोशिश की गयी। लेकिन ट्रम्प प्रशासन की यह तीसरी चाल भी कामयाब नहीं हुई।

अन्त में वेनेजुएला ने तीस देशों को चुनाव की समीक्षा के लिए न्यौता दिया। इन देशों के 150 प्रतिनिधियों ने चुनाव की समीक्षा की। बहिष्कार के बावजूद मादुरो को कुल मतदाताओं में से 28 प्रतिशत वोट मिले और मादुरो विजयी हुए। अगले छ: साल के लिए फिर से वेनेजुएला की जनता ने उन पर भरोसा किया। मादुरो को मिला वोट प्रतिशत 2008 में ओबामा को मिले वोट प्रतिशत के बराबर है और 2012 में ओबामा और 2016 में ट्रम्प को मिले वोट प्रतिशत से ज्यादा है। फिर भी ट्रम्प प्रशासन मादुरो को तानाशाह कहता है और आर्थिक नाकाबन्दी थोपता रहता है।

सच्चाई तो यह है कि अमरीका द्वारा सेना, मीडिया या विपक्ष के जरिये वेनेजुएला में दखलंदाजी का लोकतंत्र की बहाली और तानाशाही से कोई लेना देना नहीं। अमरीका द्वारा आर्थिक नाकाबन्दी का भी लोकतंत्र से कोई रिश्ता नहीं है। हम देख सकते हैं कि लातिन अमरीकी देश होन्डुरास और ब्राजील में सैन्य तख्तापलट हुए थे। और चुनाव पर भी सवाल खडे़ हुए थे फिर भी अमरीका ने आर्थिक प्रतिबन्ध नहीं लगाये। उधर सऊदी अरब, जहाँ कोई राष्ट्रीय चुनाव होता ही नहीं, फिर भी अमरीका की तरफ से कोई आर्थिक प्रतिबन्ध नहीं है। उल्टा ये देश अमरीका के अच्छे सहयोगी हैं। अमरीका का असली मकसद दुनिया भर में आर्थिक नवउपनिवेशवादी नीतियाँ थोपना है न कि लोकतंत्र की बहाली करना।

एक नजर वेनेजुएला की नीतियों पर

वेनेजुएला की पूरी अर्थव्यवस्था तेल के दम पर चलती है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में गिरती तेल की कीमत सीधे वेनेजुएला की रीढ़ पर चोट करती है। ऊपर से अमरीका द्वारा थोपी गयी आर्थिक नाकाबन्दी उसका दम घोंट देती है। साम्राज्यवादी अमरीका, पड़ोसी मुल्कों के साथ तनातनी बढ़ाने की कोशिश करता रहता है जिससे वेनेजुएला पर सैन्य खर्च का दबाव भी बढ़ जाता है। इन जानलेवा मुश्किलों के बावजूद वेनेजुएला, शावेज से लेकर मादुरो के काल तक आम जनता की खुशहाली बढ़ाने के लिए, सच में अच्छे दिन लाने के लिए प्रतिबद्व है। ऐसा उन्होंने सिर्फ भाषणों में नहीं व्यवहार में किया है। कुछ उदाहरण देखिये। 2005 में हरिकेन कैटरिना नाम का भयानक चक्रवात आया था जिसने उत्तर–पूर्वी अमरीका में भयानक तबाही मचा दी थी। अरबों डॉलर की सम्पत्ति स्वाहा हो गयी थी। लाखों लोग घायल और बेघर हो गये। ऐसे में वेनेजुएला ने आगे बढ़–चढ़कर मदद की। टनों खाद्य सामग्री पहुँचायी। तेल और पानी पहुँचाया। जरूरी उपकरण और दवाओं के साथ डॅाक्टरों की टीम भेजी।

2011 में वेनेजुएला में तीस लाख घर बनाने का निर्णय लिया गया। एक घर में 4-5 लोग, यानी एक परिवार के रहने की व्यवस्था की और हर घर में जरूरी फर्नीचर भी लगाये। 2018 तक 20 लाख घर लोगों को दे दिये गये हैं। 2019 तक बचे हुए 10 लाख घर बनाने का काम भी पूरा हो जायेगा। वेनेजुएला की कुल आबादी 3 करोड़ के लगभग है। 1.5 करोड़ लोगों के रहने की व्यवस्था करना कोई छोटा काम नहीं है। 2019 तक वेनेजुएला में शायद ही कोई बेघर होगा।

वेनेजुएला ने लोकतंत्र को जन–जन तक पहुँचाया

2006 में सामूहिक परिषद के नियमों के तहत नागरिकों को नागरिक सभा गठित करने में शामिल किया गया। एक नागरिक सभा शहरों में 150 से 400 परिवारों की प्रतिनिधि होती है। गाँव में 20 परिवारों की और आदिवासी या दूरदराज इलाकों में 10 परिवारों की। 19 हजार से ज्यादा ऐसे समूह पंजीकृत हो चुके हैं। लगभग पूरी आबादी सच्चे लोकतंत्र में बँध गयी है। खूब चुनाव आते हैं। प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का भी अधिकार है। इन प्रतिनिधियों को 1 करोड़ डॉलर मिलता है जो वहाँ की जरूरतों के हिसाब से खर्च किये जाते हैं। छोटे–छोटे लोन देने के लिए आस–पास सामुदायिक बैंक खुले हैं। इन सबके बावजूद मादुरो ने स्वीकार किया है कि वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था का आधार अभी भी पूँजीवादी है। असली लोकतंत्र लाने के लिए पूँजीवादी सम्बन्धों को तोड़कर समाजवादी सम्बन्ध बनाने की दिशा में धीरे–धीरे बढ़ रहे हैं। सामूहिक परिषदें, लोगों की सरकार में भागीदारी, यही सब है जो वेनेजुएला में बोलिवेरियन क्रान्ति के सपने को पूरा करेगा।

अमरीका और उसके सहयोगियों कोे सबसे ज्यादा डर इसी का है। इसी वजह से वे मादुरो को तानाशाह कहते हैं और ट्रम्प प्रशासन लोकतंत्र की पुनर्बहाली के लिए वहाँ सैन्य तख्तापलट की वकालत करता है। इसका असली मकसद है 1998 से पहले जैसी स्थिति कायम करना और अपने साम्राज्यवादी स्वार्थों को कायम करना।

अन्त में वेनेजुएला मेंे जनता के लिए जनवाद हासिल करने के संघर्ष में आ रही मुश्किलों का जायजा लेते हैं।

मई 2018 में चुनाव जीतने के बाद मादुरो ने सबसे पहले विपक्ष से शान्ति की अपील करते हुए बोलिवेरियन क्रान्ति को जारी रखने के लिए कहा और सैन्य षड़यत्र रचने वाले अमरीकी अधिकारी ब्राइन को वेनेजुएला छोड़ने का आदेश दिया।

अब वेनेजुएला के सामने दोहरी चुनौती है–– आर्थिक युद्ध का मुकाबला करना और स्वतंत्र अर्थव्यवस्था विकसित करना। कम्यूनों के नेतृत्त्व में नये–नये प्रोजेक्ट लेकर देश को खाद्य मामले में आत्मनिर्भर बनाना सबसे महत्त्वपूर्ण काम है। विनिर्माण करना भी जरूरी है, उद्योग विकसित करना जो कि 1950 से ही लगभग बन्द पडे़ हैं। दूसरा बिजली, इन्टरनेट, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा के लिए भी बडे़ प्रोजेक्ट लेने हैं। इन सबके लिए जरूरी है कि तेल की कीमत में बढोत्तरी हो, पर अमरीका ने अपना तेल उत्पादन दो गुना कर लिया है। प्रदूषण–मुक्त ईधन का भी तेजी से प्रचार–प्रसार हो रहा है, इसलिए वेनेजुएला को कम कीमत पर तेल बेचना पड़ता है। इस कारण अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में हाथ खोलकर खर्च नहीं हो पाता क्योंकि सबसे जरूरी हो जाती है रोटी।

देश के अन्दर के धोखेबाज जो शावेज से पहले के युग की वापसी चाहते हैं वे भी वेनेजुएला से ज्यादा अमरीका और अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय कारोबारियों के प्रतिवफादार हैं। वेनेजुएला को अभी इनसे भी सख्ती से निपटना है। भ्रष्टाचार और अपराध अभी भी बना ही रहेगा क्योंकि ये दोनों ही पूँजीवाद के अभिन्न अंग हैं।

मादुरो पर अमरीकी सहयोगी ब्राजील और कोलम्बिया के आक्रमणा का खतरा बना रहेगा। इन तमाम मुश्किलों को हल करते हुए वे कैसे आगे बढ़ेंगें यह तो भविष्य ही बतायेगा। पर अभी तक जो उन्होंने और वेनेजुएला के लोगों ने मानवता के लिए किया है दुनिया के सभी देशांे खासतौर पर साम्राज्यवादी अमरीका को सीखने की जरूरत है। उससे दुनिया भर की शान्तिप्रिय जनता को वेनेजुएला के ऊपर थोपे गये आर्थिक युद्ध रोकने के लिए आवाज बुलन्द करनी होगी। विश्व जनगण का नारा होना चाहिए–– वेनेजुएला पर आर्थिक युद्ध का अन्त हो, दुनिया भर में निर्दोष नागरिकों का कत्लेआम बन्द हो।