“मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाउँगी, वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा”। परवीन शाकिर का यह शेर आज के दौर में झूठ और फर्जी खबर का कारखाना बन गयी सोशल मीडिया पर सटीक बैठता है। व्हाट्सएप और फेसबुक पर झूठी खबरें पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती बनी हुई हैं। ब्राजील का चुनाव हो या भारत का, यहाँ तक कि अमरीकी चुनाव भी सोशल मीडिया पर फैले झूठ से प्रभावित हुए बिना नहींं रह सका। विपक्षी उम्मीदवार को नीचा दिखाने के लिए सत्ता पक्ष नये झूठ गढ़ता है। विपक्ष भी दूध का धुला नहींं है, अपनी क्षमतानुसार वह भी झूठ का कारोबार करता है।
हमारे देश में पचास प्रतिशत से ज्यादा इण्टरनेट उपयोगकर्ता खबरों के लिए व्हाट्सएप और फेसबुक पर निर्भर रहते हैं। वे इन सोशल एप पर आयी खबर को सच मानते हैं और उसी के अनुसार व्यवहार करते हैं। इसी का नतीजा है कि सिर्फ 2017–18 में व्हाट्सएप मेसेज से गुमराह होकर भीड़ ने 31 लोगों की जान ले ली। 
बिना सिर–पैर की और हास्यास्पद बहस करने वाले संबित पात्रा ने शाहीन बाग में चल रहे विरोध प्रदर्शन के एक पोस्टर को हिन्दू विरोधी करार देते हुए ट्वीट किया। सिर्फ दो घण्टों में इस ट्वीट ने सात हजार लाइक पाये और तीन हजार बार रीट्वीट किया गया। इस पोस्टर में डॉक्टर संबित पात्रा ने नाजियों के प्रतीक चिन्ह को हिन्दुओं का स्वास्तिक बताकर झूठ फैलाया और हिन्दुओं से चेतावनी भरे अन्दाज में कहा कि– “जाग जाओ नहींं तो बहुत देर हो जायेगी”। जबकि सच बात यह है कि दुनियाभर में हिटलर को तानाशाही का प्रतीक समझा जाता है। जहाँ भी लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए संघर्ष होते हैं वहाँ हिटलर और उससे जुड़़े प्रतीकों का विरोध लाजिमी है। चीन में भी जब छात्र आन्दोलन करते हैं तो वे नाजियों के प्रतीक को पोस्टर पर लगाकर अपना विरोध जताते हैं। 
दूसरा उदाहरण लेते हैं। पोस्टकार्ड न्यूज के संस्थापक महेश विक्रम हेगड़े ने 20 जनवरी को ट्वीट किया। “कुछ दिन पहले जिहादियों ने जला दिया था और अब मंगलुरु अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर कुछ बमों के होने का पता चला है। जिहादियों को ज्यादा ताकत मिल रही है। अगर पुलिस इसके पीछे के चेहरे का पता लगा सके तो राजनेता मुश्किल में पड़ जाएँगे! घृणित”। यह खबर बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) और दूसरे ऐसे समूहों में खूब वायरल हुई जो किसी भी आतंकी घटना के लिए आतंकवादी को धर्म विशेष में खोजते हैं। विश्वनाथ, वीएचपी के वही नेता जिन्होंने सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ हड़ताल का नेतृत्व किया था। खैर, जाँच–पड़ताल से सच्चाई का पता चला कि बम रखने वाला तो कोई आदित्य राव है। पर तब तक देर हो चुकी थी। नफरत का जहर लोगों के दिलो–दिमाग में घुस चुका था। 
तीसरा उदाहरण–– यह झूठ फैलाया गया कि एनआरसी और सीएए के समर्थन में जाने के लिए बीजेपी नेता इनायत हुसैन के चेहरे को स्याही से पोत दिया और सैण्डल से पिटाई की, इसका एक फर्जी वीडियो भी वायरल हुआ। पर सच्चाई यह थी कि यह वीडियो अजमेर दरगाह के सचिव की 2018 में हुई पिटाई का है।
चैथा उदाहरण–– एनआरसी और सीएए के समर्थकों ने उसके विरोध में चल रहे आन्दोलन को बदनाम करने के लिए कहा  कि शाहीन बाग में बैठने के लिए 500 रुपये और बिरियानी मिल रही है। इस कानून के साथ सहमति रखने वालों ने इसे जंगल में लगी आग की तरह फैलाया। यही नहींं, आन्दोलनकारी महिलाओं के चरित्रहनन के कुत्सित प्रयास आज भी जारी हैं। 
किसने सोचा था कि साधारण से मेसेज भेजने वाले सोशल मीडिया एप इतने ताकतवर हो जाएँगे कि एक दिन सत्ता तक पहुँचने का जरिया बन जायेंगे। ब्राजील के अति दक्षिणपन्थी राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो की ताजपोशी में व्हाट्सएप ने अहम भूमिका निभायी थी। उनके समर्थकों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाये और विपक्षी प्रतिनिधियों के खिलाफ प्रचार किया। विपक्षी नेताओं को लेकर घटिया मीम्स, डॉक्टर्ड वीडियो और जोक्स बनाकर खूब प्रचारित किया गया। बोलसोनारो को चमत्कारी और बहुत मजबूत बनाकर जनता के बीच पेश किया किया गया। बोलसोनारो की ऐसी छवि गढ़ी गयी जैसे भ्रष्टाचार और बेरोजगारी कोई राक्षस हैं और बोलसोनारो एक ताकतवर देवता जिसके राष्ट्रपति पद पर आते ही ये दोनों राक्षस घुटनों के बल रेंगने लगेंगे। खैर बोलसोनारो लगभग दस प्रतिशत ज्यादा बहुमत से विजयी हुए। इसी के साथ ब्राजील को मिला ऐसा राष्ट्रपति जिसने एक महिला पर अभद्र टिप्पणी की कि “वह इतनी कुरूप है कि उसके साथ बलात्कार भी नहींं किया जा सकता” और तानाशाही पर कहा कि “हमें तानाशाही पसन्द है।” पर चुनाव जीतने पर वह अपने बयान से पलट गया और कहने लगा कि– “हम लोकतन्त्र का बचाव करंेगे और संविधान को लागू करेंगे”। ठीक ही बात है जब सीधी अंगुली से घी निकल रहा है तो अंगुली टेढ़ी करने की क्या जरूरत। जब संविधान के दायरे में रहकर उसकी ताजपोशी हो ही गयी तो उसे संविधान से क्या समस्या। दूसरी बात ब्राजील के मौजूदा संविधान की कसम खाकर उसने बाजार पर सरकारी नियंत्रण कम करना शुरू कर दिया है। सरकारी सम्पत्तियों को बेचना, शिक्षा और स्वास्थ्य को मुनाफाखोरों के हवाले कर देना, अमेजन के जंगलों में आग लगवाना यह सब काम अब ब्राजील में तेजी से हो रहा है। मजेदार बात यह कि उसकी ताजपोशी में हमारे प्रधानमंत्री ने बढ़–चढ़कर हिस्सा लिया। भारत सरकार ने इन महाशय को 2020 की गणतंत्र दिवस की परेड में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया। 
हमारे देश की कहानी भी जैर बोलसोनारो से कम रोचक नहीं है
पूरी धरती पर 180 देशों में करीब डेढ़ अरब व्हाट्सएप उपयोगकर्ता सक्रिय हैं। इनमें से तीस करोड़़ से भी ज्यादा भारत में हैं। यह भारत की जनसंख्या का एक चैथाई हिस्सा है। हर परिवार में औसत चार सदस्य मानें तो उनमें से कम से कम कोई एक व्हाट्सएप पर सक्रिय है। मतलब हर घर तक इन झूठी खबरों की पहुँच है।
 व्हाट्सएप चलाने वाले अनपढ़ और मूर्ख नहींं हैं। वे राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, नेता हैं, आईटी सेल के मुलाजिम हैं, डॉक्टर हैं, वकील हैं, प्रोफेसर हैं, सम्पादक हैं, कलाकार हैं और फिल्म निर्माता हैं। यानी देश के अगुआ लोगों की पूरी एक बटालियन है। पर वे ऐसा क्यों करते हैं? इसका उत्तर जानने के लिए किसी पीएचडी की जरूरत नहींं। वे लोग जिनका सच उजागर होने से राजपाट खतरे में पड़ जायेगा, झूठ और फर्जी खबर का धूल भरा गुबार खड़ा करते हैं जो लोगों को आँख बन्द करने पर मजबूर कर देती है। फर्जी खबर फैलाने वाले समूह जनता के मनोविज्ञान से परिचित होते हैं। जनता की कमजोरियों, तरह–तरह की शंकाओं और मन की भीतरी परतों में दफन डर का फायदा उठाकर फर्जी खबरों को हवा दी जाती है। उसके मौजूदा संकट को हल्का करके अतीत के गढ़े गये किस्सों और पूर्वाग्रहों को गम्भीर और जरूरी बताकर पेश किया जाता है। किसी व्यक्ति की समस्या को समाज की समस्या और सामाजिक समस्या को व्यक्ति–विशेष की समस्या बताकर गुमराह किया जाता है। सामाजिक मुद्दों पर बात करने वालों को असामाजिक और समाज के लिए खतरे के रूप में पेश किया जाता है। विवेकशील लोगों को ‘बुद्धिजीवी’ कहकर उनका उपाहास किया जाता है।
 आज फर्जी खबर फैलाने का सबसे अच्छा साधन है–– व्हाट्सएप। क्योंकि इस पर आप एक जैसी सोच वालों का ग्रुप आसानी से तैयार कर सकते हैं। व्हाट्सएप ग्रुप चलाने वाले के पास इसे एक तरफा रखने की क्षमता होती है। 
हमारे देश में दो वेबसाइट फर्जी न्यूज का पर्दाफाश करने के लिए मशहूर हैं। एक है अल्टन्यूज और दूसरी है बूम। इन वेबसाइट ने अब तक हजारों मसले सुलझाये हैं। इन झूठी और फर्जी खबरों से आप राजनीतिक सरगर्मी और देश के बुद्धिजीवी वर्ग की उथल पुथल को समझ सकते हैं। चाहे अनचाहे इन झूठी खबरों पर लम्बी बहस छिड़ जाती है और सरकार को वॉक ओवर मिल जाता है। क्योंकि जितनी देर में आप यह साबित करेंगे कि वे लोग झूठ फैला रहे हैं उतनी देर में दो नये झूठ आपके सामने तैयार खड़े होंगे। उधर अन्दर ही अन्दर सरकार दो–चार सरकारी कम्पनियों के निजीकरण या नीलामी का रोडमैप तैयार कर चुकी होगी।
इस सारे नजारे को कुछ ऐसे समझा जा सकता है जैसे एक बहुत घना और बड़ा पेड़ था। सबको छाया देता था। सभी जीव जन्तु और पक्षी मेलजोल से रहते थे। तभी एक व्यापारी को पता चला कि उसकी जड़ के नीचे बहुत गहना छुपा हुआ है। पर उसके लिए तो पेड़ को काटना पड़ेगा। व्यापारी जब पेड़ को काटने आया तो सारे जीव–जन्तु और पक्षी विरोध में उतर आये। आखिर उनकी जिन्दगी का सवाल था। व्यापारी को एक उपाय सूझा। वह कुछ उत्पाती बन्दरों को ले आया। वे दिन रात झूठ बोलते थे और फर्जी खबर उड़ाते थे। कुछ ही दिन में पूरे पेड़ पर एक दहशत का माहौल बन गया। एक बन्दर ने खबर उड़ाई। पेड़ के उस कोने में कबूतर गिलहरी को नोंच रहे हैं। तभी सारी गिलहरी अपने आसपास के कबूतरों पर टूट पड़ीं। कबूतरों के छोटे–छोटे बच्चों को घोंसलों से नीचे फेंक दिया गया। धीरे–धीरे पूरे पेड़ पर खून–खराबा बढ़ गया। पेड़ से गिरती खून की धार देखकर व्यापारी के दिल में ठण्डक पड़ी। फिर व्यापारी आया और पेड़ को जड़ से काटने लगा। सभी जीव–जन्तु और पक्षी डरे सहमे अकेले–अकेले अपने घोंसलों में बैठे रहे। कुछ ही दिन बाद पेड़ धड़ाम से जमीन पर गिर गया। जमीन उसके सम्मान में थोड़ी सी नीचे धँस गयी। सभी घोंसले उजड़ गये। जीव–जन्तु, पक्षी सबको पेड़ की घनी शाखाओं ने अपनी बाहों में हमेशा के लिए सुला लिया। सभी बन्दरों को एक एयर कण्डीशन कार में बैठाकर व्यापारी ऐसे ही दूसरे पेड़ पर छोड़़ आया।
अब ऐसे ही कुछ बन्दरों की सच्ची कहानी से हम अपने देश के माहौल को समझ सकते हैं। ऐसे बन्दरों में बहुत सारे नाम हैं।
एक बात और, हमारे देश के नागरिक इतने खानों में बँट गये हैं कि हमें सिर्फ अपनी पसन्द का सच सुनना अच्छा लगता है। जैसे डॉक्टर संबित पात्रा की फैलाई खबर हिन्दुओं की तरफ झुकाव और मुस्लिमों के लिए नफरत रखने वालों को सही लगेगी। उनके पूर्वाग्रहों को और मजबूत बनाएगी। 
यह तो सिर्फ दो–चार दिन का लेखा–जोखा है। जबकि सोशल मीडिया पर ऐसी खबरों की बाढ़ आयी रहती है। व्हाट्सएप को तो झूठ की यूनिवर्सिटी के तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। इससे जनता के अलग–अलग तबके और सम्प्रदाय के बीच के दूरी बढ़ रही है। लोगों के दिमाग गलत आँकड़े और अफवाह से भरे रहते हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा उन संगठनों और राजनीतिक पार्टियों को मिलता है जो लोगों के बीच तरह–तरह के भेदभाव फैलाकर अपना वोट बैंक बढ़ाते हैं। सबसे ज्यादा नुकसान होता है संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों और देश के भविष्य का। क्योंकि ये मूल्य सर्वधर्म समभाव, धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक नजरिया पर आधारित भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यह हमारा दुर्भाग्य है कि ये मूल्य सिर्फ पवित्र किताब तक सीमित रहे। हमारे समाज में इनकी बानगी तक नहींं दिखती। उलटे अब इन मूल्यों को गाली का पर्याय बनाया जा रहा है।