15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट के पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने चुनावी बॉण्ड (या इलेक्टोरल बॉण्ड) को गैर–संवैधानिक करार दिया। इसने राजनीतिक गलियारे में एक तूफान खड़ा कर दिया। पहले से ही कयास लगाये जा रहे थे कि चुनावी बॉण्ड के जरिये मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने बहुत अधिक रकम हासिल की है और इस मामले में उसने विरोधी पार्टियों को पटखनी दी है, लेकिन किसी को इस बात का भान तक न था कि यह दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला साबित होने वाला है जिसका दावा बाद में खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति डॉक्टर प्रभाकर ने किया।

अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया (एसबीआई) को यह सख्त आदेश दिया कि वह चुनावी बॉण्ड के जरिये हुए तमाम लेनदेन को जनता के सामने ले आये। सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के जवाब में एसबीआई ने कहा कि 31 जून से पहले वे इस आँकड़े को व्यवस्थित रूप से सार्वजानिक नहीं कर सकते हैं। साफ था कि एसबीआई मोदी सरकार के दबाव में ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनाव के बाद तक टालने की बात कर रहा था जिससे मोदी को चुनाव में इसका नुकसान न उठाना पड़े। इससे स्टेट बैंक की मंशा पर सवाल उठे। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद एसबीआई ने 12, 14 और 17 मार्च को इसके बारे में तमाम तथ्य सार्वजानिक कर दिये।

इन तथ्यों से यह पहचान करना मुश्किल था कि किस व्यक्ति या संस्था ने किस पार्टी को कब कितना पैसा दिया है। चुनावी बॉण्ड का तरीका यह है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था एसबीआई से बड़ी–बड़ी रकम के चुनावी बॉण्ड खरीदती है और अपनी पसन्दीदा चुनावी पार्टी को वह बॉण्ड दे देती है। वह पार्टी एसबीआई जाकर उस बॉण्ड के बदले नगद रकम हासिल कर लेती है। सरकार ने दावा किया था कि इस प्रक्रिया में बॉण्ड देने वाले व्यक्ति की पहचान छिपी रहती है। लेकिन यह सफेद झूठ साबित हुआ जो इस मामले में घोटाले की असली कड़ी है।

द क्विंट की पूर्व–पत्रकार पूनम अग्रवाल ने बॉण्ड के कागज की जाँच करवाकर पाया कि इनमें एक छुपा हुआ कोड है जो नंगी आँख से दिखता नहीं है पर स्कैन करने पर उजागर होता है। इसके आधार पर जब सुप्रीम कोर्ट ने पूरी जानकारी देने को कहा तब एसबीआई ने बेचे गये 22,217 में से हर बॉण्ड के गोपनीय कोड और उसके खरीददार के नाम के साथ एक तालिका जारी कर दी। एक दूसरी तालिका में यह भी सूचित किया गया कि इन बॉण्डों में से कितनी रकम किस पार्टी को गयी है। एसबीआई की जानकारी छिपाने की कोशिश गुनाह बेलज्जत ही साबित हुई।

2017 में मोदी सरकार द्वारा पारित वित्तीय विधेयक में चुनावी बॉण्ड के जरिये चुनावी पार्टियों को पैसा जुटाने का इन्तजाम किया गया था। यह बॉण्ड सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया से ही खरीदा जा सकता था। इसको खरीदने के लिए नगद नहीं, बल्कि चेक या ऑनलाइन भुगतान करना जरूरी था। विधेयक में इसे खरीदने वालों का नाम गोपनीय रखा गया था। यानी किस पार्टी को कौन चन्दा दे रहा है यह जानना जनता का अधिकार नहीं हो सकता है। इसे लेकर पिछले कई सालों से सीपीएम, सीपीआई और फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टियों तथा मानवाधिकार सगठनों ने सवाल खड़े किये थे और इसके खिलाफ सीपीआईएम और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स संस्था ने याचिका भी दायर की थी।

एसबीआई द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2019 से फरवरी 2024 तक चुनावी बॉण्ड की कुल रकम 16,518 करोड़ रुपये है जिसमें से भाजपा को अकेले सबसे अधिक 6,060 करोड़ रुपये हासिल हुए, यानी 47 प्रतिशत। तृणमूल कांग्रेस को 1,609 करोड़ (13 प्रतिशत) और कांग्रेस को महज 1,421 करोड़ (11 प्रतिशत) रुपये मिले। इसके अलावा दूसरी चुनावी पार्टियों को कुछ टुकड़े मिले। बॉण्ड खरीदने वालों में से प्रमुख खरीददार फ्यूचर गेमिंग, मेघा इंजीनियरिंग, जिन्दल स्टील, वेदान्ता लिमिटेड, सीरम इंस्टिट्यूट आदि ने भाजपा को चन्दा दिया। चुनावी बॉण्ड घोटाले में इनमें से कुछ का सीधे हाथ देखा गया है।

इसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज का नाम सीधे नहीं आया है। यह आरोप लगाया गया है कि इसके नियंत्रण में काम करने वाली कम्पनी क्विक सप्लाई है जिसने कुल 410 करोड़ रुपये का बॉण्ड खरीदा है। 2021–22 में जब यह कम्पनी 360 करोड़ रुपये का बॉण्ड खरीद रही थी तब उसका मुनाफा था मात्र 21–72 करोड़ रुपये। इससे मनी लॉण्डरिंग की भनक मिलती है यानी चुनावी बॉण्ड खरीदने में काले धन का इस्तेमाल किया गया है। अडाणी समूह का नाम आश्चर्य जनक रूप से चुनावी बॉण्ड के खेल से गायब है।

मेघा इंजीनियरिंग ने भाजपा को 800 करोड़ रुपये का चन्दा दिया। बदले में उसको कुल 14,400 करोड़ रुपये के सरकारी प्रोजेक्ट का ठेका मिला। यह चन्दा दो, धन्धा लो का सबसे बदतरीन उदाहरण है। ऐसी कई कम्पनियों ने न सिर्फ भाजपा, बल्कि अलग–अलग राज्य में सत्तासीन गैर–भाजपा पार्टियों को भी चन्दा दिया है और बदले में कुछ न कुछ सरकारी ठेका हासिल किया। हालाँकि सभी मामलों में भाजपा ही बाजी मारती नजर आयी। उत्तराखण्ड के सिल्क्यारा में प्रदेश की भाजपा सरकार ने राजमार्ग निर्माण का ठेका (853 करोड़ रुपये) जिस नवयुग ग्रुप कम्पनी को दिया, उसने भी बॉण्ड देकर भाजपा का एहसान चुकाया। सीरम इंस्टिट्यूट को भी इसी प्रक्रिया में धन्धा हासिल हुआ। अब यह साफ हो गया है कि इस कम्पनी के उत्पाद कोविशिल्ड वैक्सीन को लगवाने में मोदी सरकार इतना हाथ–पैर क्यों मार रही थी। शराब ठेका मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ सरकारी गवाह बने अरविन्द फार्मास्युटिकल्स के मालिक ने भी चुनावी बॉण्ड खरीदकर भाजपा को दिया जो खुद इस मामले में गिरफ्तार था लेकिन चन्दा के बदले में उसके अपराध माफ करवा दिये गये और उसकी गवाही पर दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल को जेल भेज दिया गया। यह अब एक खुला रहस्य है कि शिर्डी साई इलेक्ट्रिकल जैसी 14 कम्पनियों पर सीबीआई, आयकर विभाग तथा ईडी के छापे डाले गये और उनसे इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिये चन्दा वसूला गया। इसके बाद उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई में ढील दे दी गयी।

लोकसभा चुनाव–2024 से ठीक पहले भाजपा से जुड़े इस घोटाले के उजागर होने से कांग्रेस के हाथ में एक बड़ा हथियार आ गया है जिसके जरिये वह चुनाव के नतीजे का रूख मोड़ने की कोशिश में लगी हुई है। इस मामले में वह भाजपा पर बेहद हमलावर है, लेकिन मोदी सरकार इससे बच–बचाव करती नजर आ रही है। इतना ही नहीं, वह अपनी चाटुकार मीडिया के जरिये दूसरे गैर जरूरी मुद्दों की हवा बनाकर इस मुद्दे को दबा रही है। लेकिन कांग्रेस अपने इस अभियान में कितनी कामयाब होती है यह तो चुनाव का परिणाम ही बतायेगा।

चुनावी बॉण्ड के जरिये चन्दा देने और बदले में धन्धा लेने वाले घोटाले ने चुनावी राजनीति की रही–सही गरिमा को तार–तार कर दिया है। इसमें सबसे बड़ी भुक्तभोगी है देश की जनता क्योंकि आज लोकतंत्र पर करोड़पतियों और अरबपतियों का राज  है। वे अपने अथाह पैसे के दम पर नेताओं सहित पार्टियों को खरीद लेते हैं। असल में इन्हीं लोगों ने इस लोकतंत्र को बन्धक बना लिया है और सरकार के जरिये वे देश के सभी संसाधनों पर अपना नियन्त्रण रखते हैं। इन्हीं के इशारे पर जनता की बुनियादी सुविधाओं में कटौती की जा रही है जिसका पैसा इन्हीं कम्पनियों को टैक्स में छूट के जरिये दिया जा रहा है। किसी ने ठीक ही कहा है कि यह लोकतंत्र नहीं, धनतंत्र है। सवाल तो यह है कि देश की  तमाम चुनावी पार्टियाँ जब अमीर पूँजीपतियों से चन्दा ले रही हैं तो वे किसकी दलाली करेंगी। ऐसी हालत में उन्हें देश की जनता की कोई परवाह क्यों होगी।

कॉरपोरेट परस्त पूँजीवादी नीतियों के चलते ही महँगाई, बेरोजगारी, भुखमरी और आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ रही हैं। कॉर्पोरेट चन्दे के बदले ही सरकार पूँजीपतियों के फायदे की नीतियाँ बनाती है। वह जनता के हक, भत्ते, राशन आदि को निगलती जा रही है।  सरकार दलित, आदिवासी, पिछड़े और गरीब विद्यार्थियों के वजीफे भी बन्द करती जा रही है। जनता को राशन कार्ड, रेलवे यात्रा और बैंक की सेवा से दूर किया जा रहा है। ये सभी क्षेत्र लूट का अड्डा बन गये हैं।

सभी चुनावी पार्टियों के लिए चुनाव और लोकतंत्र पूँजीपति वर्ग की सेवा का गन्दा खेल है। इस खेल में मोदी सरकार अपनी लाजो–हया छोड़कर सबसे आगे है। मोदी तो एक गोदी पत्रकार के साथ बातचीत में बेशर्मी भरा दावा करते नजर आये कि उनके द्वारा लाये गये चुनावी बॉण्ड के जरिये आज लोगों को चुनावी पार्टियों के चन्दे के बारे में जानने का मौका मिला है। जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा ने ही चुनावी बॉण्ड को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखवाया था। इतनी बातें सामने आने पर भी भाजपा बेशर्मी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

कांगे्रस जैसी विपक्षी पार्टियाँ चुनावी बॉण्ड को केवल इसलिए मुद्दा बना रही हैं कि इससे चुनावी फायदा उठाया जाये। वे पूँजीपतियों के अनाचार–भ्रष्टाचार पर चुप हैं। वे इस बात पर चुप हैं कि मजदूरों के श्रम का शोषण करके मुनाफा कमाना ही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है जो सभी भ्रष्टाचार की जननी है। किसी ने ठीक ही कहा है कि मुनाफा मजदूर के श्रम की चोरी से आता है। इस बात को सभी चुनावी पार्टियाँ छिपाती हैं जो बड़ी ही बेशर्मी से पूँजीपति वर्ग की सेवा कर रही हैं।

इन कॉर्पोरेट कम्पनियों के पास जमा तमाम दौलत का स्रोत है भारत के करोड़ों मेहनतकश लोग। इनकी मेहनत लूटकर ही वे अपनी तिजोरी भरते हैं और बदले में सरकार को टैक्स देने के बजाय सत्तासीन पार्टियों को चन्दा देकर मुनाफे का ज्यादातर हिस्सा मार लेते हैं। इन्हीं के हित में नीति बनाने वाली पार्टियाँ फिर हमारे पास आकर हमारे हित में कुछ न कुछ करने का झूठा वादा करती हैं। दरअसल, कॉर्पोरेट की सेवा में इन्होंने खुद को इतना गिरा लिया है कि इनसे किसी तरह की उम्मीद पालना भोलापन होगा। अब हमें तय करना है कि हम इस कॉर्पोरेट के क्रीतदासों को चुनेंगे या इनसे अलग होकर अपनी माँगों के लिए एकजुट होकर जन–संघर्ष और जन–आन्दोलन का रास्ता अपनायेंगे।