स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हुए हमारे देश के प्रधानमंत्री ने देश के आर्थिक संकट से जूझने के लिए अमीरों को हताशा के माहौल से उबारना जरूरी समझा। तमाम अमीरों को बैंकों की बदहाली के लिए गाली न देकर सम्पदाओं का स्रष्टा कहकर उनकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जो सम्पदा पैदा करते हैं (अमीर) उनके बगैर सम्पदाएँ पैदा करना और उसका वितरण असम्भव है। अगर ऐसा हुआ तो न गरीबों का भला होगा और न ही देश का। इसलिए सम्पदा के स्रष्टाओं को सन्देह की नजर से नहीं देखना चाहिए। आइये बांग्लादेश और चीन के दो अलग–अलग कारखानों में उत्पादन की प्रक्रिया में देखते हैं कि सम्पदा पैदा करने में किसकी क्या भूमिका है।

 
एक दिन की दिहाड़ी 15 मिनट में
सबसे नया और सबसे महँगा फोन आई–फोन एक्सएस के लगभग 7 करोड़ सैम्पल बिक चुके हैं। दुनिया के अलग–अलग देशों में इसकी कीमत 900 से लेकर 1900 अमरीकी डॉलर (63,900 से 1,34,900 रुपया) है। हाल ही में तुर्की के रेडिकल अर्थशास्त्री ई अहमद टनक ने आई–फोन 4 से लेकर एक्सएस मॉडल की उत्पादन प्रक्रिया के बारे में ट्राईकॉन्टिनेंटल पत्रिका में एक विस्तारित शोध पत्र प्रकाशित किया है। 
चूँकि आई–फोन के अलग–अलग हिस्सों से लेकर उन्हें जोड़कर फोन का रूप देने तक का काम तीसरी दुनिया के देशों में होता है इसलिए एक्सएस मॉडल की कीमत 900 से 1900 डॉलर तक है। अगर इसका पूरा उत्पादन अमरीका में होता तो कीमत कम से कम 30 हजार डॉलर होती। इस कीमत पर मौजूदा आई–फोन रखने वालों में चन्द लोग ही खरीदने की हैसियत रखते।
लेकिन हम अमरीका में इस फोन की कीमत को प्रमाण के रूप में लेते हैं 999 डॉलर यानी 70,929 रुपया। इस कीमत पर बिकने का मतलब इसमें भी भारी मुनाफा है। उत्पादन के अलग–अलग हिस्सों का हिसाब लगाने के बाद पता चलता है की इसमें मजदूरी भुगतान किया जाता है 1743 रुपया। मजदूरों को किये गये भुगतान को राजनीतिक अर्थशास्त्र की परिभाषा में परिवर्तनशील पूँजी कहते हैं और इसमें लगे कच्चा माल, मशीन आदि को स्थिर पूँजी कहते हैं। इसके अनुसार एक आई–फोन एक्सएस में लगी स्थिर पूँजी 26,341 रुपया है। कीमत में जुड़ी अतिरिक्त रकम शुद्ध मुनाफा 42,845 रुपया है क्योंकि काम करने वाले मजदूरों की अनुपस्थिति में स्थिर पूँजी कोई भी मूल्य पैदा नहीं कर सकती, इसलिए इसके उत्पादन में कारगर हिस्सा परिवर्तनशील पूँजी यानी मजदूरों की दिहाड़ी है। मुनाफा और दिहाड़ी के अनुपात को शोषण की दर के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिससे पता चलता है कि एक मजदूर अपनी दिहाड़ी के लिए कितना समय काम करता है और कितने समय कम्पनी के लिए बेगारी करता है। एक आई–फोन एक्सएस से होने वाला मुनाफा और भुगतान की गयी दिहाड़ी और मुनाफे का अनुपात यानी शोषण की दर 2458 फीसदी है।
चीन की एक ठेकेदार कम्पनी फॉक्सकॉन में आई–फोन तैयार किया जाता है। भारत या बांग्लादेश की कम्पनियों जैसी इस कम्पनी में भी काम करने का समय लगातार बढ़ रहा है। आज वहाँ एक मजदूर इन कम्पनियों में 10 से 12 घंटा काम करता है। अगर हम मान लें कि आई–फोन के लिए काम करने वाला कोई मजदूर दिन में 10 घंटा काम कर रहा है तो ऊपर बताये गये अनुपात से यह पता चलता है कि काम के शिफ्ट के पहले 15 मिनट में एक मजदूर अपनी दिहाड़ी के बराबर काम कर लेता है। बाकी 9 घंटा 45 मिनट वह अपनी कम्पनी के लिए बेगारी करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर सुबह 6 बजे किसी की शिफ्ट शुरू होती है तो सवा 6 बजे तक वह अपनी दिहाड़ी भर का काम कर चुका होता है। लेकिन नौकरी दिन के हिसाब से मिलती है। इसलिए बाकी 9 घंटा 45 मिनट भी उन्हें बिना किसी दिहाड़ी के काम करना पड़ता है।


458 रुपये की टीशर्ट की सिलाई 4 पैसे
24 अप्रैल, 2013 में बांग्लादेश के ढाका में राणा प्लाजा नाम की एक बिल्डिंग जिसमें एक बैंक और सैकड़ों कपड़े कारखाने थे उसमें आग लगने के चलते 1133 मजदूरों की मौत हो गयी। इसके बाद मजदूरों ने अपनी सुरक्षा और मजदूरी बढ़ाने के लिए आन्दोलन किया तो सरकारी मध्यस्थता में दिहाड़ी में 77 फीसदी बढ़ोत्तरी भी हुई। 
एक टी–शर्ट जो जर्मनी के किसी नामचीन ब्राण्ड से यूरोप के बाजार में 4–95 यूरो (लगभग 458 बंगलादेशी रुपया) में बिकता है अक्सर बांग्लादेश, पाकिस्तान, भारत आदि के अँधेरे कारखानों में बनती है। ऐसे कारखानों में काम करने वाले मजदूर असंगठित क्षेत्र के होते हैं। इनके काम करने का समय, दिहाड़ी, छुट्टी इत्यादि सभी मालिकों की रहम पर तय होता है। इनमें महिला मजदूरों की संख्या किसी और क्षेत्र की तुलना में बहुत ज्यादा होता है। 
एक दिन की दिहाड़ी होती है 125 बंगलादेशी रुपया और काम करने का समय 10–12 घंटा। एक आदमी हर घंटे में 250 टी शर्ट बनाता है और पूरे दिन में 2500 से 3000। अपनी दिहाड़ी में हर एक रुपये जोड़ने के लिए वह 20 से 24 टी शर्ट बनाता है। इस आँकड़े के अनुसार उन मजदूरों को 458 रुपये में बिकने वाली एक टी शर्ट सिलने के लिए 4 से 5 पैसा भुगतान किया जाता है। इसे बेचने वाली कम्पनी हेन्स एण्ड मौरित्ज को मुनाफा होता है 55 बंगलादेशी रुपया। 185 रुपया जाता है, इसके ट्रान्सपोर्ट, थोक बिक्रेता और विज्ञापन कमपनियों खर्च और मुनाफे में। जर्मन सरकार इससे टैक्स कमाती है 72–75 रुपया। बांग्लादेश सरकार, कपड़ा मिल मालिक और सप्लाई कम्पनियों के हिस्से में जाता है 87–45 रुपया। 
2013 में बांग्लादेश के कपड़ा मीलों से कपड़े की आमदनी पर अमरीकी सरकार ने टैक्स कमाया 81 मिलियन डॉलर यानी (1 डॉलर त्र् 80 बंगलादेशी रुपया) 648 करोड़ बंगलादेशी रुपया। उन्हीं उत्पादों के लिए बांग्लादेश में लगे सभी मजदूरों की मजदूरी थी 69 मिलियन डॉलर यानी 552 करोड़ बंगलादेशी रुपया।
मजदूर संगठित न हो सके या संगठित आन्दोलन न कर सके इसलिए बांग्लादेश की राजधानी ढाका के औद्योगिक क्षेत्र में दंगारोधी 2900 रैपिड एक्शन पुलिस तैनात है जबकि कारखानों में मजदूरों की सुरक्षा इंतजाम को जाँचने के लिए मजदूर अधीक्षक की संख्या सिर्फ 51 है!