तूतिकोरिन जनसंघर्ष का बर्बर दमन
राजनीति अमित इकबाल22 मई 2018 को तमिलनाडु के तूतिकोरिन (तुतुकुड़ी) में वेदान्ता रिसोर्सेस की ताम्बा फैक्ट्री, स्टारलाईट इंडस्ट्रीज के खिलाफ हजारों लोग प्रदर्शन कर रहे थे। जब प्रशासन ने उनकी बात अनसुनी कर दी तो उन्होंने पुलिस बैरिकेड तोड़कर कलेक्टर के दफ्तर में घुसने के कोशिश की। प्रशासन की नजर में यह ‘हिंसक’ कार्रवाई थी जिसे रोकने के लिए निशानेबाज पुलिस बुलाकर गोली चलायी गयी। सोशल मीडिया पर वायरल हुए घटना के वीडियो में साफ दिख रहा है कि प्रशासन ने चुन–चुनकर 14 लोगों को मारा जिनमें से ज्यादातर आन्दोलन के संगठनकर्ता या सक्रिय कार्यकर्ता थे। 17 साल की स्नोलिन के मुँह में बन्दूक ठूँसकर गोली चलायी गयी क्योंकि वह “प्रशासन के लिए गम्भीर खतरा” बन गयी थी।
1992 में महाराष्ट्र सरकार के औद्योगिक विकास निगम ने रत्नागिरि में स्टारलाईट इंडस्ट्रीज को ताम्बा निष्कासन फैक्ट्री खोलने के लिए 500 एकड़ जमीन दी थी। इस फैक्ट्री की प्रस्तावित उत्पादन क्षमता सालाना 60 हजार टन थी। लेकिन जब स्थानीय लोगों ने प्रदूषण के सम्भावित खतरे को देखते हुए कम्पनी के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया तो 1993 में वहाँ के कलेक्टर ने इस परियोजना पर रोक लगा दी। लेकिन इस फैसले को चुनौती देते हुए इसकी मूल कम्पनी वेदान्ता मुम्बई हाईकोर्ट पहुँची। इस परियोजना के चलते पर्यावरण और जनजीवन के सम्भावित नुकसान पर शोध कमेटी भी बनायी गयी। उस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक समुद्र के इतने नजदीक ऐसी औद्योगिक गतिविधि चलाना पर्यावरण और स्थानीय जनजीवन के लिए खतरनाक है।
महाराष्ट्र में खारिज की गयी परियोजना के लिए 1996 में तमिलनाडु में जमीन दे दी गयी। केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से किसी तरह की पर्यावरण सम्बन्धी जाँच से पहले ही पर्यावरण सम्बन्धित मंजूरी भी मिल गयी। वहाँ के स्थानीय लोगों ने भी अपनी जिन्दगी और पर्यावरण तबाह होने के डर से आन्दोलन करना शुरू किया। इसके चलते तमिलनाडु राज्य पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड और नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान को जिम्मेदारी दी गयी कि इस कम्पनी से होनेवाले प्रदूषण की जाँच करे।
1998 में नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी शोध संस्थान ने जाँच रिपोर्ट में बताया कि स्टारलाईट कम्पनी आस–पास हरित क्षेत्र विकसित करने में नाकाम रही है। ऐसे कुछ सामानों का उत्पादन कर रही हैं जिसका अनुमति नहीं है। इसने भूगर्भ जल में ताम्बा, लोहा, आर्सेनिक, एलुमिनियम, सेलेनियम, सीसा का कचरा फेंककर प्रदूषित किया है, वायु की गुणवत्ता निगरानी करने वाली ऑनलाइन मशीन से छेड़छाड़ की है। यह कारखाना मुन्नार की खाड़ी से मात्र 14 किलोमीटर दूरी पर है जो समझौते की शर्त के खिलाफ है। लेकिन यह रिपोर्ट पेश करने के 45 दिन के अन्दर ही इस संस्थान ने एक दूसरी रिपोर्ट पेश की जिसमें स्टारलाईट को निर्दाेष ठहराया गया। इत्तेफाक यह है कि सन 1999 से 2007 के बीच इस संस्थान को अलग–अलग शोध कार्य के लिए 1.27 करोड़ का अनुदान मिला। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्टारलाईट के लिए सालाना उत्पादन की सीमा 70 हजार टन तय की थी, जबकि 2004 में यह कम्पनी 1 लाख 75 हजार टन उत्पादन कर रही थी।
हालाँकि समझौते के अनुसार, मुन्नार की खाड़ी से कम से कम 25 किलोमीटर दूर फैक्ट्री खोलना तय हुआ था। लेकिन इस कम्पनी ने इसे पहले ही नजरंदाज कर दिया और खाड़ी से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर फैक्ट्री खोल ली। इसके चलते आस–पास के खेत, जंगल, पानी और हवा पर गम्भीर खतरा पैदा हो गया। प्रदूषण बढ़ने के चलते किनारे की मछलियाँ गहरे समुन्दर की तरफ चली गयीं और मछुआरों की रोजी–रोटी पर खतरा पैदा हो गया।
1998 से लगातार कारखाने से जहरीली गैस लीक होने की घटना भी हो रही है और इससे कई लोग गम्भीर रूप से बीमार भी हो गये हैं। कचरों को बिना शोधन किये आस–पास के इलाके में फैलाने के चलते खेत और भूगर्भ जल भी प्रदूषित हुआ है। इसका असर सिर्फ स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि रोजगार पर भी पड़ने लगा।
तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज द्वारा 2006 में किये गये एक शोध के अनुसार इस इलाके में प्रदूषण की हालत कुछ ऐसी है भूगर्भ जल में लोहे की मात्रा औसत से 17 से 20 गुणा ज्यादा है, जिसके चलते भारी थकावट, जोड़ों का दर्द और पेट में दर्द बढ़ जाता है। बाकी जगहों की तुलना में साँस सम्बन्धी बिमारी से ग्रस्त लोगों की संख्या 14 फीसदी ज्यादा है और नाक, कान और गले की बीमारी भी अधिक पायी गयी है। महिलाओं का मासिक चक्र भी बहुत असंतुलित है। यह सर्वेक्षण जब किया गया था उस समय इस कारखाने की सालाना उत्पादन क्षमता 1 लाख 70 हजार टन थी, लेकिन इस रिपोर्ट के आने के कुछ समय बाद, 2007 में इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 4 लाख टन सालाना तक बढाने की अनुमति दे दी गयी।
कारखाना मौत का कुआँ बन गया। सितम्बर 2010 में कारखाने की तेजाब की टंकी में गिर जाने से एक मजदूर की मौत हो गयी। एक मजदूर आँखों में तेजाब लगने के चलते अँधा हो गया। काम के दौरान एक मजदूर इतना जख्मी हुआ कि 9 टाँके लगाने पड़े। मई–जून, 2010 में कारखाने के सल्फयूरिक एसिड प्लांट में हड़बड़ी में पम्प हाउस बनाते हुए वह ढह गया और एक मजदूर की मौत हो गयी। जनवरी 2010 में एक मजदूर दुर्घटना का शिकार हुआ और उसका एक पैर खराब हो गया। 2009 के अक्टूबर–नवम्बर में कारखाने के अन्दर भारी ट्रक के नीचे दबकर एक मजदूर की मौत हो गयी। जून 2008 में चिमनी साफ करने के दौरान कचरे का ढेर गिरने से एक मजदूर की गर्दन और एक हाथ कट गया और वहीं उसकी मौत हो गयी। 2007 में चिमनी साफ करने वाले एक और मजदूर की मौत हो गयी। एक मजदूर ट्रक नीचे सो रहा था जब ट्रक उस पर से गुजर गया और उसकी मौत हो गयी।
इन्हीं वजहों से पिछले 22 साल से इलाके के लोग अहिंसक तरीके से कम्पनी के खिलाफ लड़ रहे थे। पिछले साल फरवरी से लोग हर रोज हजारों की संख्या में कलेक्टर के दफ्तर के सामने शान्तिपूर्ण रूप से इस कारखाने को बन्द करवाने के लिए धरने पर इसी ‘हिंसक’ कार्रवाई को रोकने के लिए गोली चलाई गयी। इस मामले में सरकार जलियांवाला बाग के खूनी जनरल डायर को भी पीछे छोड़ चुकी है।
कारखाने के खिलाफ स्थानीय लोगों की लड़ाई में मजदूरों ने भी साथ दिया। जब कारखाने को बन्द करवाया गया तो कम्पनी ने कारखाना खोलने के लिए मजदूरों में हस्ताक्षर अभियान चलाया। लेकिन रोजी–रोटी के संकट के बावजूद मजदूरों ने स्थानीय लोगों का साथ दिया। प्रशासन ने मजदूरों को ऐसे आन्दोलोनों में हिस्सेदारी करने से रोकने के लिए भी शांतिपूर्ण आन्दोलन पर गोलियाँ बरसाई थी। गोलीबारी के बाद प्रशासन ने मजदूर बस्ती और गाँव में मजदूरों को गिरफ्तार करने की कोशिश की। इसके खिलाफ मजदूर और स्थानीय लोग एकजुट होकर अभी भी लड़ रहे हैं।
ब्रिटिश कम्पनी वेदान्ता ने देश के अन्य हिस्सों में भी लोगों की जिन्दगी बर्बाद की है। यह कम्पनी ओडिशा खनन निगम की सहायता से जनजीवन तथा पर्यावरण की परवाह किये बिना ही ओडिशा की नियामगिरि पहाड़ में अभ्रक खनन का काम शुरू कर चुकी थी। वहाँ के रहने वाले डोंगरिया कोंध जनजाति तथा जमीन, पानी, जंगल के लिए लड़ने वाले सभी लोकतांत्रिक ताकतों की सामूहिक लम्बी लड़ाई इसको रोकने में सफल हुई है। सरकारी उद्योग, भारत एलुमिनियम कम्पनी (बालको) का 51 फीसदी हिस्सा वेदान्ता को बेचे जाने के बाद एक भयावह दुर्घटना घटी। छत्तीसगढ़ के कोरबा में बालको परिसर के पम्प हाउस में निर्माणधीन चिमनी ढह गयी और इससे 40 लोगों की मौत हो गयी। बालको और चीनी ठेकेदार को गिरफ्तार कर लिया गया। पम्प हाउस बन्द करने का आदेश जारी हो गया। इस दुर्घटना में स्टारलाईट (यानी वेदान्ता) को निर्दाेष ठहराया गया और सिर्फ बालको और सरकारी अफसरों पर मुकदमा चलाया गया। ‘सेसा गोवा’ गोवा की बहुत बड़ी लौह अयस्क खनन कम्पनी है, इसकी मालिक कम्पनी वेदान्ता है। 2014 में गोवा हाई कोर्ट ने गोवा में सभी तरह के खनन को गैर कानूनी घोषित कर दिया था। इस फैसले को बदलकर मुम्बई हाई कोर्ट ने 2015 में स्टारलाईट (वेदान्ता) को फिर से खनन की छूट दे दी, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने फिर से रोक लगाने का आदेश दिया है। दुनिया भर में वेदान्ता कम्पनी जहाँ भी गयी है, वहाँ उसने भारी तबाही मचायी है।
वेदान्ता सरकारों पर अपना प्रभाव जमा लेती है। वह पार्टियों को चन्दा भी देती है। एक जन–याचिका की सुनवाई में पता चला कि 2004 से 2015 तक वेदान्ता ने भारतीय जनता पार्टी को 5 करोड़ और कांग्रेस को करीब 9 करोड़ रुपये चन्दा दिया था। इस लेन–देन की प्रक्रिया को कानूनी दायरे में लाना मुश्किल होता था। इसे 2018 में मोदी सरकार ने आसान कर दिखाया। सरकार ने वित्त विधेयक 2018 के माध्यम से विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (फेरा) में संशोधन करके उन सभी विदेशी योगदान को मान्य करार दिया जो 1976 के बाद किये गये हैं।
इन तथ्यों से पता चलता है कि मुक्त–बाजार की नीति के चलते वेदान्ता जैसी विदेशी कम्पनियाँ भारत में बेलगाम मुनाफा कमाती हैं और देश के पर्यावरण का विनाश करती हैं। सरकारें भी बेशर्मी से इन्हीं कम्पनियों के पक्ष में खड़ी हैं। जबकि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में भारत को ‘प्रदूषण का नरक’ कहा जाता है। यहाँ की सरकारी संस्थाओं का केवल यही काम रह गया है कि पर्यावरण सम्बन्धित नीतियों को ताक पर रखकर कॉर्पाेरेट घरानों की सेवा करें। इसलिए देश की जनता को ही तय करना है कि इन देशी–विदेशी पूँजीपतियों और उनकी रहनुमा सरकार के खिलाफ संघर्ष को किस दिशा में ले जाये।
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