अनियतकालीन बुलेटिन

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शीशमबाडा कचरा प्लांट का सर्वे

 देहरादून की पछवादून घाटी में एक बेहद खूबसूरत जगह है–– बायाखाला । यह आसन नदी के किनारे पर है और इसके ठीक सामने पछवादून की हरी–भरी रसीली पहाड़ियाँ हैं । कुछ सालों पहले तक यह इलाका एक विशाल खूबसूरत पेंटिंग जैसा दिखता था । बरसात के मौसम में बासमती धान की सीढ़ीदार पट्टियाँ इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देती थी । लेकिन कुछ ही सालों में यह इलाका एक बदबूदार नरक में तब्दील कर दिया गया है । आसन नदी के खूबसूरत तट से लेकर बायाखाला और शीशमबाडा गाँव की दहलीजों तक की कई बीघे जमीन पर कूड़े का पहाड़ खड़ा कर दिया गया है । (फोटो इन्टरनेट न्यू हिन्दुस्तान से साभार)

इससे हर समय इतनी भयानक और जहरीली बदबू निकलती रहती है कि बाहर से गये किसी इंसान के लिए एक मिनट खड़ा होना भी दूभर हो जाता है । यह बदबू इलाके के निवासियों के जिस्म और कपड़ों से लेकर वहाँ की हर चीज में समा चुकी है । बरसात में कचरा रिसरिस कर जमीन के नीचे के पानी में घुलता जाता है जिससे पूरे इलाके का पानी जहरीला और बदबूदार हो गया है । पर्यावरण लोक मंच, देहरादून के युवाओं नें कूड़े के पहाड़ से इलाके के आम लोगों की जिन्दगी पर पड़ने वाले प्रभाव की सरसरी जाँच पड़ताल की है ।

कचरा प्लांट बनने का इतिहास

यह कचरे का पहाड़ एक ‘सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट’ के नाम पर 2016 से खड़ा किया जा रहा है । इसकी मंजूरी देते समय सरकार ने किसी भी पर्यावरण सम्बन्धी नियम का पालन नहीं किया था । जब कचरा प्लांट के लिए काम शुरू किया तब अधिकारियों ने कहा था कि यहाँ एक बाल और महिला विकास सेंटर बनाया जायेगा । यह अफवाह भी फैलायी गयी कि यहाँ बांस की फैक्ट्री लगेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा । कभी बताया जाता कि यहाँ बच्चों के लिए स्टेडियम बनेगा ।

बाद में सरकारी लोग ‘सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट’ और ‘प्लांट’ जैसे शब्द बोलते थे । उनकी बातों से इसकी भनक भी नही लगती थी कि यहाँ देहरादून शहर ही नहीं आसपास के इलाकों का भी कचरा जमा किया जायेगा । सरकार नें ऐसा मैनेजमेंट किया कि इलाके के लोगों की जिन्दगी नर्क हो गयी है ।

जब लोगों को सच का पता चला तब उन्होने इस कचरा प्लांट के खिलाफ जबरदस्त विरोध किया । इसके बावजूद सरकार ने लाठी–गोली के जबरिया तरीके से कूड़ा डलवाना शुरू करवा दिया और साथ ही इलाके की लोगों की एकता तोड़ने तथा लोगों को इस प्लांट से होने वाले फायदे गिनवाने में लग गयी । दावा किया गया कि ‘कूड़ा प्लांट’ से स्थानीय लोगों को बहुत रोजगार मिलेगा । इस प्लांट में आने वाले कचरे का इतना शानदार ‘प्रबन्धन’ किया जायेगा कि आस–पास के लोगों को कोई दिक्कत नहीं होगी । बायाखाला के एक शिक्षक भगत सिंह जी बताते है कि लोगों को यह बताया गया था कि यहाँ कचरे से बिजली बनायी जाएगी और इलाके के लोगों को मुफ्त बिजली मिलेगी । बिजली तो नही मिली पर इस कचरे के पहाड़ से जहरीली हवा और जहरीला पानी पीने को जरूर मिल रहा है ।

कचरा प्लांट के खिलाफ आन्दोलन

कचरा प्लांट के खिलाफ इलाके के लोग 2016 से ही लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं । इस संघर्ष में एक व्यक्ति–– इमरान पुलिस लाठीचार्ज में शहीद भी हो चुका है । धरना प्रदर्शन के अलावा लोगों ने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया लेकिन किसी ने उनकी एक न सुनी । लगता है पूरी राज्य मशीनरी इस मुद्दे पर इलाके की जनता के खिलाफ खड़ी है ।

 सरकार ने इस जन–आन्दोलन को तोड़ने की भरपूर कोशिश की है । शुरुआत से ही इस जन–आन्दोलन से जुडी उमा देवी ने बताया कि प्रशासन ने आन्दोलन के अच्छे और सक्रिय नेताओं को आन्दोलन से दूर करने के लिए डर, धमकी, लालच जैसे सारे रास्ते अपनाये३ । हमारी एक ही माँग है कि इस कचरे के पहाड़ को हमारे घर के सामने से हटाया जाये । क्या सरकारी अधिकारी, जज और शहर के अमीर लोग अपने दरवाजे पर कचरे का ढेर बर्दास्त करेंगे ?

रेमकी कम्पनी और उससे जुड़ी समस्यायें

जितेन्द्र एक सचेत नौजवान हैं और बायखाला से सटे हाईवे पर एक दूकान चलाते है । वह लगातार इस आन्दोलन से जुड़े रहें हैं । उन्होंने बताया कि हम शुरू से ही लोगों को बता रहे थे कि कचरा प्रबन्धन करना हवाई बात है यहाँ पूरे शहर का कूड़ा जमा किया जायेगा लेकिन तब लोगों के दिमाग पर सरकार का झूठा प्रचार हावी था । आज इस कचरे नें आसन नदी में ही नही बल्कि हम सबकी जिन्दगी में भी जहर घोल दिया है३पता नहीं सरकार ने हमें किस गुनाह की सजा दी है ।

देहरादून वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड की मलिक कम्पनी ‘रेमकी’ है । इस कम्पनी का कचरा प्रबन्धन का काम देश भर में फैला है । पहले यही शीशमबाडा प्लांट का संचालन करती थी । जितेन्द्र ने यह भी बताया कि प्लांट बनने से पहले रेमकी कम्पनी ने पर्यावरण स्वीकृति रिपोर्ट में झूठा दावा किया था कि परियोजना साइट के आस पास कोई भी आवासीय इलाका नहीं है । जबकि यहाँ दस हजार से ज्यादा की आबादी रहती है । आज कल किसी भी परियोजना को पर्यावरण स्वीकृति दिलाना एक मुनापफे का धन्धा हो गया है । देशभर में तमाम प्राइवेट कम्पनिया इस काम में कूदी हुयी हैं । देहरादून शहर में ही ऐसी कई कम्पनियाँ है जो झूठी रिपोर्ट बनाकर तरह तरह की परियोंजनाओ को पर्यावरण मंजूरी दिला रहीं है । रेमकी इस खेल की धुरन्धर खिलाड़ी थी न जाने कितने नेता कितनी सरकारें उसकी जेब में पड़ी हैं कहा नहीं जा सकता ।

जब आन्दोलन उरूज पर था तो लोगों ने रेमकी के फर्जीवाड़े को भी उजागर किया । उसके खिलाफ कई सारे केस दर्ज हुए और आखिरकार जनता ने उसे प्लांट छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया । लेकिन इससे जनता को कोई राहत नहीं मिली और सरकार ने प्लांट के सञ्चालन की जिम्मेदारी एक गुमनाम से एन–जी–ओ– पर डाल दी । कचरा प्लांट में लगभग 40 मजदूर काम करते हैं । हमें वहाँ घुसने पर तीखी बदबू के चलते उबकाइ आ रही थी । अधिकतर मजदूर उसी बजबजाते कचरे की छटाई कर रहे थे । हमारे लिए वहाँ खड़ा होना नामुमकिन हो गया तो हम वहीं पास में बनी झोपड़ी में चले गये । यह झोपड़ी प्लांट में काम करने वाले एक मजदूर मान सिंह की थी । जो यहाँ पिछले सात साल से अपनें परिवार के साथ रह रहा है । मान सिंह ने बताया कि रेमकी कम्पनी ने कुछ भी काम नहीं किया था ।३ कम्पनी और सरकारी अधिकारी आपस में मिलकर सारा पैसा खा गये । हमने उनसे पूछा आप यहाँ इस झोपड़ी में कैसे रह लेते हैं जबकि इस बदबू में हमारे लिए थोड़ी देर रहना भी भारी हो गया–– वे कहते हैं कि अब इसमे जीनें की आदत हो गयी है, तुम्हे जरूरत पड़ेगी तो तुम भी रह लोगे ।

मान सिंह के झोपड़े के पास ही प्रेमा का अधबना घर है जिसमें दो कमरों के लिए पक्की दीवारें खड़ी हैं । एक कमरे की दीवारों पर पत्थर से दाब कर टिन ढाप दी गयी है इस कमरे में घर का सारा सामान और रसोई है दूसरा कमरा बिना छत का है प्रेमा और उसका तीन नाबालिक बच्चों का परिवार रहता है जाड़े बरसात या धुप में यह परिवार कहाँ पनाह लेता होगा यह हमें समझ नहीं आया । प्रेमा का पति कई साल पहले उसे छोड़कर जा चूका है पूरा परिवार मजदूरी करके गुजर–बसर कर रहा है । जिन्दगी ने प्रेमा के व्यवहार में तल्खी भर दी है । हमारे एक–दो सवाल के बाद ही वह तल्ख होकर कहने लगी कि बरसात में आकर देखना, कचरे के पहाड़ से निकला नाला मेरे घर में से होकर बहता है । प्रेमा ने घर के बाहर लगे हैण्डपम्प को चलाकर दिखाया, उसका पानी पीला और बदबूदार झाग से भरा था । वे वही पानी इस्तेमाल करते हैं और पीने का पानी कहीं दूर से लाते हैं । आस–पास के सभी घरों के हैण्डपम्प का यही हाल है । थोड़ी ठीक हैसियत के घरों में समर्सिबल लगा है उनसे भी पीला बदबूदार पानी आता है ।

 इसी दौरान प्रेमा की पड़ोसन ममता भी आ गयी । उसने कहा कि बदबू के चलते उनके रिश्तेदार और परिचित उनके घर आना पसन्द नहीं करते है । नये आदमी को तो यहाँ खाना खाते के समय उल्टी आ जाती है आँखों में जलन होती है साँस लेने में तकलीफ होती है । यहाँ की हवा इतनी जहरीली है कि एक रात हवा की जाँच के लिए मशीन लगाई गयी थी, सुबह तक मशीन में लगा फिल्टर पेपर पूरी तरह से काला हो गया था ।

 कचरे के पहाड़ के पास ही सन्तोष का घर है उसने बताया कि इस साल पुरे देहरादून में सेलाकुई के इलाके से सबसे ज़्यादा लोग डेंगू की चपेट में आये । कचरे की वजह से अजीब तरह के मक्खी– मच्छर पैदा हो गये हैं । उसका बेटा भी डेंगू की चपेट में आ गया था । डॉक्टर ने इतनी तेज दवाई दी कि बेटे का लीवर पफेल हो गया अब उसको हर तीसरे दिन अस्पताल ले जाकर डायलिसिस करवाना होता है । शायद यह उसको पूरी जिन्दगी तक करवाना पड़े । सन्तोष ने एक उलटी बात भी बतायी कि यह पता होने के बावजूद कि यह जगह नरक है फिर भी यहाँ किराये पर कमरा नहीं मिलता । सस्ते किराये के चक्कर में सेलाकुई में काम करने वाले मजदूर यहीं कमरा लेना चाहते हैं । पूरा दिन मेहनत करने वाले ये लोग यह भी नहीं सोचते कि वे यहाँ दो घडी चैन से आराम भी नहीं कर पायेंगे और अगर बीमार हुए तो इलाज भी करवाना उनके बस से बाहर है ।

इसी दौरान प्रेमा फिर से हमारे पास आ गयी । इस बार वह और ज्यादा तल्ख थी, उल्टा हमसे ही सवाल करने लगी– क्यों भाई ये कूड़ा तो सारे शहर का है फिर इसे शहर के बीच में, घन्टाघर पर क्यों नहीं डालते । या फिर राजपुर रोड और बसन्त विहार में क्यों नहीं डालते । मजदूर ही इतने फालतू हैं कि उनके घर के आगे कूड़ा डालो । कैन्ट में मुख्यमंत्री का घर है वहाँ खूब खाली जगह पड़ी है, वहाँ कोई कूड़ा डालकर दिखाये...–

प्रेमा की बातें एकदम खरी थी । उन पर सोचते हुए हमारी टीम वहीँ से वापस आ गयी । हमने सोचा कि कचरे के ढेर हमेशा गरीबों की बस्तियों के पास ही खड़े किये जाते हैं, कभी भी अमीरों की कालोनियों में नहीं, जो सबसे ज्यादा कचरा पैदा करते हैं । इससे होने वाले पर्यावरण विनाश की कीमत भी हमेशा सबसे ज्यादा गरीब लोग ही चुकाते हैं । वास्तव में पर्यावरण संकट का चरित्र भी पूरी तरह वर्गीय है ।

 (पर्यावरण लोक मंच, देहरादून)

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