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समाचार: सामाजिक-सांस्कृतिक

18 Apr 2024

सृजनशीलता हमेशा सामजिक होती है।

शीर्षक 'सृजनशीलता हमेशा सामजिक होती है' से लिखा गया यह लेख एजाज अहमद की महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है। उन्होंने सृजनशीलता जैसे गूढ़ विषय को अपने अनुभव और सरल अंदाज से किसी भी आम पाठक के लिए बेहद रोचक और जिज्ञासा पैदा करने वाला बना दिया है। दार्शनिक शब्दाडम्बरों या अमूर्त उदाहरण के बजाय उन्होंने सृजनशीलता को रोजमर्रा की जिदगी से जोड़कर बताया है। उन्होंने बताया कि भाषा मनुष्य की पहली सृजनता है, बच्चा पैदा होने के बाद दो-तीन साल में अपने आसपास के लोगों की भाषा सीख लेता है। इस भाषा के जरिए वह संवाद करता है और सामाजिक रिश्ते बनाता है। इन रिश्तों में दोस्ती, प्रेम, नफ़रत सभी शामिल हैं। और यह सब सृजनशीलता ही है। उन्हीं के शब्दों में- "इसका अर्थ यह है कि सृजनशीलता केवल कवियों, गायकों, चित्राकारों या किसी और तरह के कलाकारों में ही नहीं, बल्कि सभी मनुष्यों में होती है और वह...

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16 Aug 2023

कल्पना कीजिए अगर आज आप मुस्लिम हों, अरुंधति रॉय ने कहा

लेखिका और टिप्पणीकार अरुंधति रॉय ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर गंभीर चिंता व्यक्त की है – खास तौर से इस बात पर कि इसे उन महिलाओं द्वारा ऐसी हिंसा को बढ़ावा दिए जाने पर जो अपराधियों के धर्म के आधार पर उनका समर्थन या विरोध करती हैं। “आज हम ऐसी स्थिति में हैं जहां महिलाएं बलात्कार को उचित ठहरा रही हैं, जहां महिलाएं पुरुषों को दूसरी महिलाओं के साथ बलात्कार करने के लिए कह रही हैं। मैं सिर्फ मणिपुर की बात नहीं कर रही हूं। मैं बहुत सारे मामलों के बारे में बात कर रही हूं - चाहे वह हाथरस में हो, चाहे वह जम्मू और कश्मीर में हो।“ बुकर पुरस्कार विजेता ने नवमलयाली सांस्कृतिक पुरस्कार प्राप्त करने के बाद रविवार को केरल के त्रिशूर में यह बात कही। “कौन किसका बलात्कार कर रहा है, इसके आधार पर महिलाएं उस (विशेष) समुदाय के समर्थन में खड़ी होती हैं।...

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6 Apr 2022

कलाकार: ‘आप, उत्पल दत्त के बारे में कम जानते हैं’

‘‘मैं तटस्थ नहीं पक्षधर हूं और मैं राजनीतिक संघर्ष में विश्वास करता हूं। जिस दिन मैं राजनीतिक संघर्ष में हिस्सा लेना बंद कर दूंगा, मैं एक कलाकार के रूप में भी मर जाऊंगा।’’ हिंदी पट्टी की बहुधा आबादी उत्पल दत्त को एक हास्य कलाकार के रूप में जानती है। जिन्होंने ‘गोलमाल’, ‘चुपके चुपके’, ‘रंग बिरंगी’, ‘शौकीन’ और ‘अंगूर’ जैसी फ़िल्मों में जबर्दस्त कॉमेडी की। एक इंक़लाबी रंगकर्मी के तौर पर वे उनसे शायद ही वाकिफ़ हों। जबकि एक दौर था, जब उत्पल दत्त ने अपने क्रांतिकारी रंगकर्म से सरकारों तक को हिला दिया था। अपनी क्रांतिकारी सरगर्मियों की वजह से वे आजा़द हिंदुस्तान में दो बार जे़ल भी गए। एक दौर था,जब वे देश की सबसे बड़ी थिएटर हस्तियों में से एक थे। आज़ादी के बाद उत्पल दत्त, भारतीय रंगमंच के अग्रदूतों में से एक थे। उन्होंने नाटककार, अभिनेता, थिएटर निर्देशक...

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25 Mar 2021

भारत के प्रमुख किसान आंदोलन

आमतौर पर यह माना जाता है कि भारतीय समाज में समय-समय पर होने वाली उथल-पुथल में किसानों की कोई सार्थक भूमिका नहीं रही है, लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि भारत के स्वाधीनता आंदोलन में जिन लोगों ने शीर्ष स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, उनमें आदिवासियों, जनजातियों और किसानों का अहम योगदान रहा है। स्वतंत्रता से पहले किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में जो आंदोलन किए वे गांधीजी के प्रभाव के कारण हिंसा और बरबादी से भरे नहीं होते थे, लेकिन अब स्वतंत्रता के बाद जो किसानों के नाम पर आंदोलन या उनके आंदोलन हुए वे हिंसक और राजनीति से ज्यादा प्रेरित थे। देश में नील पैदा करने वाले किसानों का आंदोलन, पाबना विद्रोह, तेभागा आंदोलन, चम्पारण का सत्याग्रह और बारदोली में जो आंदोलन हुए थे, इन आंदोलनों का नेतृत्व महात्मा गांधी, वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं ने किया। आमतौर पर किसानों के...

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15 Oct 2020

​अतीत की खोज: भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन करने के लिए समित का गठन

विद्वानों और राजनेताओं ने केंद्र सरकार द्वारा भारत के प्राचीन इतिहास का अध्ययन करने के लिए गठित समिति की आलोचना की है। उन्होंने इसके पीछे छिपे एजेंडे पर संदेह व्यक्त किया है।  अक्टूबर 2014 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गणेश की प्लास्टिक सर्जरी के बारे में प्रसिद्ध टिप्पणी की थी-- “हम सभी महाभारत में कर्ण के बारे में पढ़ते हैं। अगर हम थोड़ा और सोचें तो हमें पता चलता है कि महाभारत कहता है कि कर्ण अपनी माँ के गर्भ से पैदा नहीं हुआ था। इसका मतलब है कि उस समय आनुवांशिक विज्ञान मौजूद था। यही कारण है कि कर्ण अपनी माता के गर्भ से बाहर पैदा हो सका.... हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं। उस समय कुछ प्लास्टिक सर्जन रहे होंगे जिन्होंने एक इंसान के शरीर पर हाथी का सिर लगाया था और प्लास्टिक सर्जरी का अभ्यास शुरू किया था” मोदी ने मुंबई में डॉक्टरों की एक...

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17 Sep 2020

इनसान की जिन्दगी में मनोविज्ञान का महत्त्व

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) देश के सर्वोत्तम तकनीकी संस्थानों में गिने जाते हैं। एमएचआरडी ने चैंकाने वाली खबर में बताया कि 2014 और 2019 के बीच 10 आईआईटी के सत्ताईस छात्रों ने पिछले पाँच वर्षों में आत्महत्या की है। इस सूचना ने एक बार फिर आत्महत्या, असफलता, अलगाव को समझने में मनोविज्ञान की भूमिका को कार्यसूची पर ला दिया है। अब तक माना जाता था कि देश के किसान और मजदूर अपनी आर्थिक समस्याओं के चलते आत्महत्या करते हैं। हालाँकि इन समस्याओं में आर्थिक पहलू के बावजूद मनोवैज्ञानिक पहलू से इनकार नहीं किया जा सकता। मनोविज्ञान को मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन माना जाता है। आज दुनिया भर में मनोविज्ञान का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है। शिक्षा, चिकित्सा विज्ञान, युद्ध और सैन्य मामले, समाज के अध्ययन, भीड़ की बढ़ती हिंसा और कट्टरता को समझने, मीडिया द्वारा लोगों की सोच–समझ को नियन्त्रित करने और सरकारी नीतियों...

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