अनियतकालीन बुलेटिन

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समाचार: पुस्तक समीक्षा

31 Oct 2023

बिना कपड़ोंवाले दार्शनिक: 'द वॉर अगेंस्ट मार्क्सिज्म' की समीक्षा

(20 नवंबर, 2021 को पोस्ट किया गया) मूल रूप से प्रकाशित: काउंटरफ़ायर, 11 नवंबर, 221 को क्रिस नाइनहैम द्वारा | मार्क्सवाद के विरुद्ध युद्ध , टोनी मैककेना यह पुस्तक नयी है और लंबे समय से प्रतीक्षित है। इसके दो मुख्य गुण हैं. सबसे पहले, यह अकादमिक मार्क्सवाद और आलोचनात्मक सिद्धांत की कुछ फैशनेबल मूर्तियों-- जिनमें थियोडोर एडोर्नो, लुई अल्थुजर, चैंटल माउफ़े, अर्नेस्टो लैक्लाऊ और स्लावोज ज़िज़ेक शामिल हैं-- को एक ओर अश्लीलतावादी होने और दूसरी ओर अक्सर गहराई से गुमराह करनेवाला कहने का साहस करती है। दूसरा, यह क्रांतिकारी मार्क्सवाद के दार्शनिक आधार को बहुत स्पष्ट और जुझारू तरीके से सामने रखती है और उसका बचाव करती है। दाँव पर बहुत ऊंची चीज लगी हुई है। मैककेना जिन मुद्दों को संबोधित करते हैं वे मुख्यतः सैद्धांतिक हैं, लेकिन अमूर्तता से बहुत दूर हैं। वे इस बात से चिंतित हैं कि लोग पूंजीवाद, वर्ग का महत्व और पूंजीवाद विरोधी प्रतिरोध की संभावना...

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22 Aug 2022

एकान्त के सौ वर्ष: एक परिचय

गाब्रिएल गार्सीया मार्केज के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास 'एकान्त के सौ वर्ष' का हिन्दी अनुवाद राजकमल से प्रकाशित हुआ है। इस महाकाव्यात्मक उपन्यास को पढ़ना अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए यह टिप्पणी दी जा रही है। हमें अगर पुर्तगाल और स्पेन की आइबेरियन संस्कृति, सामाजिक जीवन और उससे जुड़ी हुई दूसरी चीजों की जानकारी हो तो इसका आनन्द उठाने में अधिक आसानी होगी। साथ ही यदि हम इस बात की कल्पना करें कि सामन्तवाद से व्यापारिक पूँजीवाद में संक्रमण के युग का आदमी किस प्रकार का था, उस समय के चरित्र जैसे समुद्री डाकू (पाइरेट्स), लुच्चे-लफंगे बदमाश, घुमन्तु (जिप्सी) और काउब्वाय वगैरह कैसे थे तो भी हमें इस उपन्यास को पढ़ने में आसानी होगी। स्पेनी औपनिवेशीकरण के समय लातिन अमरीका में किस तरह लोग अलग-अलग जगह से आकर बसे और किस तरह विभिन्न संस्कृतियों के बीच घात-प्रतिघात और मिश्रण हुआ और स्पेनी,...

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16 Apr 2022

लघु-पत्रिका ‘धरती’

“आज मुख्यधारा की पत्रिकाएँ और अखबार कारपोरेट जगत और साम्राज्यवादी ताकतों के प्रभाव में समाहित हो रही हैं। इस वजह से देश के चौथे स्तंभ के प्रति पाठकों में संशय उत्पन्न होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में लघु-पत्रिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। आप जितना बेहतर और वैज्ञानिक ढ़ंग से प्रिंट टैक्नोलॉजी के इतिहास से वाकिफ होंगे उतने ही बेहतर ढ़ंग से लघु-पत्रिका प्रकाशन को समझ सकते हैं। लघु-पत्रिका का सबसे बड़ा गुण है कि इसने संपादक और लेखक की अस्मिता को सुरक्षित रखा है। लघु-पत्रिकाएँ पिछलग्गू विमर्श का मंच नहीं हैं। लघु-पत्रिका का चरित्र सत्ता के चरित्र से भिन्न होता है, ये पत्रिकाएँ मौलिक सृजन का मंच हैं। साम्प्रदायिकता का सवाल हो या धर्मनिरपेक्षता का प्रश्न हो या वैश्वीकरण (ग्लोबलाईजेशन) का प्रश्न हो मुख्य धारा की व्यावसायिक पत्रिकाएँ सत्ता विमर्श को ही परोसती रही हैं। सत्ता विमर्श और...

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27 Dec 2021

पूंजी, प्रौद्योगिकी और मानव नियति!

 पुस्तक-समीक्षा : ‘सैपियन्स – अ ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ मैनकाइंड’ एवं ‘21 लेसन्स फॉर द 21स्ट सेंचुरी’ - युवाल नोह हरारे पूंजीवादी सभ्यता के स्वर वर्तमान मानव सभ्यता को विभिन्न कसौटियों पर परखने और सकारात्मक या नकारात्मक दिशा में उसकी प्रगति को समझने के बड़े प्रयास काफी पहले से होते रहे हैं। 19वीं सदी में विकसित औद्योगिक पूंजीवाद के चरित्र और सर्वहारा के शोषण की पृष्ठभूमि में पहली बार राज्य के मूलभूत संगठन और उसके आर्थिक ढांचे के बीच सम्बन्धों और उसके सामाजिक निहितार्थों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। निसंदेह यह कार्ल मार्क्स ही थे जिन्होंने अपने महान ग्रंथ ‘दास कैपिटल’(1867) में मानव सभ्यता के विभिन्न चरणो में उत्पादन के स्वरूप और उसके सम्बन्धों पर पहला गंभीर और विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। इसके अनंतर मानव संवेदनाओं के स्तर पर इस आर्थिक व्यवहार को सम्यक रूप से समझते हुए...

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6 Dec 2020

जैव साम्राज्यवाद

(पंजाब से निकला हुआ किसान आन्दोलन तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है, यह आन्दोलन देश भर में अपने समर्थक और विरोधी को भी बाँटता जा रहा है, लेकिन इस दौरान दोनों पक्षों ने खेती पर पड़ने वाले साम्राज्यवादी प्रभाव को लगभग भुला दिया है, जिसे लेखक प्रोफेसर नरसिंह दयाल ने अपनी पुस्तक ‘जीन टेक्नोलॉजी और हमारी खेती’ में “जैव साम्राज्यवाद” नाम दिया है। पेश है इस विषय पर उसी किताब का पाँचवाँ अध्याय, जो इसके विविध पहलुओं को सविस्तार हमारे सामने रखता है।) अध्याय 5 : दूसरी हरित क्रान्ति 1980 के आते–आते भारत सहित दक्षिण–पूर्व एशिया के देशों में पहली हरित क्रान्ति की चमक फीकी पड़ने लगी थी और इसका चमकीला हरा रंग पीला हो गया था। हमारी सरकारों और कृषि विज्ञानियों ने इसके दुष्परिणामों को समझना शुरू कर दिया था। किसान तो इसे भुगत ही रहे थे। चावल और गेहूँ की खेती...

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6 May 2020

प्यूचे : आत्महत्या के बारे में

कोरोना आपदा काल में तमाम हादसों की तरह आत्महत्या भी अपने चरम पर है। एक उदीयमान, प्रखर पत्रकार युवती की आत्महत्या ने हम-सबको बहुत विचलित और मर्माहत कर दिया है। वाराणसी की रहने वाली 25 वर्षीय एक पत्रकार ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। एक छोटी सी पुस्तिका गार्गी प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी-- प्यूचे : आत्महत्या के बारे में। इसके लेखक कार्ल मार्क्स हैं। इसकी भूमिका में लिखा है-- "सचमुच यह कैसा समाज है जहाँ कोई व्यक्ति लाखों की भीड़ में खुद को गहन एकांत में पाता है; जहाँ कोई व्यक्ति अपने आपको मार डालने की अदम्य इच्छा से अभिभूत हो जाता है और किसी को इसका पता तक नहीं चलता? यह समाज समाज नहीं, बल्कि एक रेगिस्तान है जहाँ जंगली जानवर बसते हैं, जैसा कि रूसो ने कहा था।" -- जाक प्यूचे फ्राँसीसी क्रान्ति (1789) के 40 साल बाद उस...

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13 Apr 2020

कोरोना महामारी के समय ‘वेनिस का व्यापारी’ नाटक की एक तहकीकात

(16वीं सदी ​ में विलियम शेक्सपियर ने वेनिस का व्यापारी (द मर्चेंट ऑफ वेनिस) नाटक की रचना की थी. दुनिया की कई भाषाओं में  इसका अनुवाद हो चुका है और अपनी रचना काल से अब तक इसका दुनिया भर में अनगिनत बार मंचन किया जा चुका है. कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन जारी है. इस समय का फायदा उठाते हुए लेखक ने इस विश्व प्रसिद्ध और कालजयी रचना पर अपने चन्द शब्द लिखे हैं. इसके माध्यम से यहाँ 21 सदी की दो मुख्य परिघटनाओं पर भी जोर दिया गया है— पहला, वित्तीयकरण जिसे सूदखोरी का ही उन्नत रुप कहा जा सकता है और दूसरा, साम्प्रदायिकता और नस्लवाद. कोरोना महामारी से भी ये परिघटना कहीं नकहीं गहराई से जुडती हैं, जिसका यहाँ केवल संकेत भर किया गया है.) बस्सानियो मौजमस्ती में व्यस्त अमीर घराने का खुशमिजाज नौजवान है, बेलगाम फिजूलखर्ची ने उसे कंगाल कर...

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