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दूसरे इंटरनेशनल की टकराव से परिपूर्ण विरासत

वस्तुतः आज के सभी समाजवादी दूसरे इंटरनेशनल (1889 से 1914) के प्रत्यक्ष वंशज हैं। इसे सोशलिस्ट इंटरनेशनल के रूप में भी जाना जाता है, इस आंदोलन ने दुनिया के संगठित मजदूर वर्ग के बड़े हिस्से को समाजवादी क्रांति के बैनर के नीचे एकताबद्ध किया, और हर जगह पूंजीपतियों द्वारा इसे उनके अस्तित्व के खतरे  के रूप में देखा गया। फिर भी इक्कीसवीं सदी के समाजवादी लोग इस संगठन के इतिहास या इसके प्रतिनिधित्व के बारे में अपेक्षाकृत कम जानते हैं।

विशेष रूप से वामपंथी समाजवादियों के लिए, दूसरा इंटरनेशनल प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत में, 1914 में अंतरराष्ट्रीयतावाद के साथ अपने विश्वासघात से लगभग अनन्य रूप से जुड़ा हुआ है। उस समय दूसरे इंटरनेशनल को एक अपमानजनक पतन का सामना करना पड़ा, क्योंकि इसके प्रमुख दलों ने समाजवादी सिद्धांतों को त्याग दिया और अपनी-अपनी सरकारों के युद्ध प्रयासों को खुला समर्थन दिया।

तथ्य यह है कि 1919 में पूंजीवादी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध एक संगठन के रूप में दूसरा इंटरनेशनल फिर से कुछ सुधारों के साथ बनाया गया था, इसकी ऐसी छवि बन गयी है। 1919 के बाद के दूसरे इंटरनेशनल ने न केवल रूस में बोल्शेविक नेतृत्व वाली क्रांति का विरोध किया, बल्कि युद्ध की समाप्ति के बाद यूरोप और एशिया के अधिकांश हिस्से में फैली क्रांतिकारी लहर को दबाने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। इसके सामाजिक-जनवादी उत्तराधिकारियों ने आज तक इसी कार्यदिशा को बड़े पैमाने पर अपना रखा है।

1914 से पहले के दूसरे इंटरनेशनल की यह छवि इस तथ्य को समझाने में मदद करती है कि मेरी पुस्तक अंडर द सोशलिस्ट बैनर के प्रकाशन से पहले, इसके नौ कांग्रेसों के प्रस्तावों को पहले कभी भी अंग्रेजी में संकलित और प्रकाशित नहीं किया गया था। इनमें से कुछ प्रस्ताव वस्तुतः अज्ञात थे। बहुतों को तो ढूंढ़ना भी बहुत मुश्किल था।

हालांकि 1914 के बाद दूसरा इंटरनेशनल जो बन गया, उसे अस्वीकार करने के अच्छे-खासे कारण हैं, फिर भी इसकी विरासत को नज़रअंदाज़ करना या कम करके आंकना एक गलती है। ऐसा करने का मतलब समाजवादी आंदोलन के इतिहास और परंपराओं के एक महत्वपूर्ण हिस्से से मुंह मोड़ लेना है। इसके अलावा, इसका अर्थ है इस विरासत को सामाजिक-जनवादी धाराओं को सौंप देना, जिन्होंने एक सदी से अधिक समय से समाजवाद के लक्ष्य को धोखा दिया है या विकृत किया है। हालांकि, इस विरासत का सबसे अच्छा हिस्सा वैध रूप से क्रांतिकारी समाजवादियों का है। दूसरे इंटरनेशनल की ताकतों, कमजोरियों और अंतर्विरोधों को समझना आज के आंदोलन के लिए बड़े लाभ का हो सकता है।

क्रांतिकारी उद्भव और कार्यक्रम

1889 और 1912 के बीच दूसरे इंटरनेशनल के कांग्रेस द्वारा अपनाए गए सभी प्रस्तावों को पढ़कर, एक अपरिहार्य निष्कर्ष निकलता है-- समग्र रूप से इन दस्तावेजों को क्रांतिकारी मार्क्सवाद द्वारा निर्देशित किया गया था।

जबकि दूसरे इंटरनेशनल कांग्रेस ने मजदूर वर्ग के हितों में सुधार के लिए लड़ाई लड़ी-- आठ घंटे का कार्यदिवस, राज्य प्रायोजित बीमा और पेंशन, सार्वजनिक शिक्षा, महिलाओं के लिए वोट, निवास का अधिकार, और अन्य सुधार उपाय-- उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया कि एक व्यवस्था के रूप में पूंजीवाद को सुधारा जा सकता है। उन्होंने मजदूर वर्ग से आह्वान किया कि वह राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में ले ले और प्रमुख उद्योगों के पूंजीपति मालिकों को बेदखल कर दे। उन्होंने जोर देकर कहा कि मजदूर वर्ग की मुक्ति स्वयं उसी के हाथों हो सकती है।

1889 में मजदूर आंदोलन के मार्क्सवादी घेरे द्वारा पेरिस में आयोजित दूसरे इंटरनेशनल के संस्थापक कांग्रेस में इस तरह के दृष्टिकोण को मजबूती से स्थापित किया गया था। फ्रांस में सुधारवादी ताकतों द्वारा एक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस का आयोजन किया गया था-- जिसे "पोस्सिबिलिटीज" (संभावनाशील) नाम से जाना गया, जिन्होंने यह माना था कि मेहनतकश लोगों को पूंजीवाद के तहत जो संभव है, उसी को पाने के लिए लड़ने तक खुद को सीमित रखना चाहिए। इसलिए शुरू से ही दूसरे इंटरनेशनल को सुधारवादी कार्यक्रम का विरोध करने के लिए क्रांतिकारी कार्यक्रम की आवश्यकता थी।

1889 के कांग्रेस द्वारा अपनाए गए एक प्रस्ताव ने नए आंदोलन के क्रांतिकारी लक्ष्य को संक्षेप में प्रस्तुत किया-- जिसे उस समय सामाजिक जनवाद के रूप में जाना जाता था-- यह घोषणा करते हुए कि "श्रम और मानवता की मुक्ति वर्ग-आधारित दलों में संगठित सर्वहारा वर्ग की अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई के बिना नहीं हो सकती है-- जो पूँजीपति वर्ग का स्वामित्वहरण करके और उत्पादन के साधनों के सामाजिक विनियोग के जरिये राजनीतिक सत्ता हथिया लेता है।" 1

आम तौर पर इसे अनदेखा किया गया कि फ्रेडरिक एंगेल्स ने दूसरे इंटरनेशनल के जन्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कार्ल मार्क्स के आजीवन सहयोगी के रूप में, एंगेल्स ने दूसरे इंटरनेशनल के संस्थापक कांग्रेस के संगठन और तैयारी के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने यह सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान दिया कि यह (दूसरा इंटरनेशनल) संभावनावादियों के साथ कार्यक्रम संबंधी प्रश्नों पर समझौता नहीं करता है। जबकि उनके साथ एक संयुक्त कांग्रेस का सैद्धांतिक रूप से विरोध नहीं किया, उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल एक स्पष्ट क्रांतिकारी कार्यक्रम ही एक सफल अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन की नींव रख सकता है। कांग्रेस के आयोजकों के साथ एंगेल्स के व्यापक पत्र-व्यवहार से एक छोटी सी किताब बन सकती है। 2

अपने काम के माध्यम से, एंगेल्स ने दूसरे इंटरनेशनल को कम्युनिस्ट घोषणापत्र से जोड़ने में मदद की, जिसे उन्होंने चालीस साल पहले मार्क्स के साथ मिलकर लिखा था। 1895 में अपनी मृत्यु तक, एंगेल्स ने विश्व आंदोलन में एक महत्वपूर्ण सलाहकार की भूमिका निभाई, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि विश्व आंदोलन पूंजीवाद के एक अपरिवर्तनीय क्रांतिकारी विरोधी के रूप में अपना दृष्टिकोण बनाए रखे।

ताकत और कमजोरियां

प्रथम विश्व युद्ध से पहले अपने अस्तित्व की चौथाई सदी में, दूसरे इंटरनेशनल ने अपने पक्ष में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की थीं। इनमें से मार्क्सवाद के बैनर के नीचे वैश्विक मजदूर वर्ग के आंदोलन को एकजुट करने और आंदोलन के रणनीतिक उद्देश्य को लोकप्रिय बनाने के प्रयास प्रमुख थे-- पूंजीपति वर्ग के क्रांतिकारी तख्तापलट और सर्वहारा वर्ग के शासन द्वारा उसके प्रतिस्थापन, यह समाजवाद की स्थापना की ओर पहला कदम है।

आज कलैण्डर पर दो तिथियां दूसरे इंटरनेशनल के महत्व को बताती हैं-- पहला मई दिवस, जिसे 1889 में आंदोलन की स्थापना कांग्रेस में दुनिया भर में मजदूर वर्ग की शक्ति के प्रदर्शन के रूप में स्थापित किया गया था; और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, 1910 में पूर्ण सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई में मजदूर महिलाओं की कार्रवाई के विश्वव्यापी दिवस के रूप में शुरू किया गया था।

दूसरे इंटरनेशनल ने संगठित मजदूर वर्ग की संभावित शक्ति और समाज को फिर से बनाने की उसकी क्षमता को दिखाया। लाखों मेहनतकश लोगों को समाजवाद की दिशा में लाकर और उन्हें पूंजीवाद के खिलाफ लड़ाई में संगठित करके, दूसरे इंटरनेशनल ने सफल क्रांतिकारी संघर्ष के लिए पूर्व शर्त बनाने में मदद की।

लेकिन इस वास्तविक और संभावित ताकत के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कमजोरियां और अंतर्विरोध भी थे।

ऐसी ही एक कमजोरी में इसकी भौगोलिक स्थिति भी शामिल थी। भले ही दूसरा इंटरनेशनल कई देशों तक फैला हुआ था, फिर भी यह मुख्य रूप से एक यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी संगठन बना रहा, और कभी भी वास्तव में विश्व आंदोलन नहीं बन पाया। जबकि कांग्रेस के प्रस्तावों ने एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों को समर्थन दिया, दूसरे इंटरनेशनल के अधिकांश नेताओं ने उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों को कम समर्थन दिया।

इसी तरह, इंटरनेशनल के प्रस्तावों में अक्सर उन रणनीतिक सहयोगियों की पर्याप्त सराहना का अभाव था, जिनकी मजदूर वर्ग को अपने संघर्ष में आवश्यकता थी-- औपनिवेशिक दुनिया के मेहनतकशों से लेकर मेहनतकश किसानों और छोटे दुकानदारों, राष्ट्रीय दमन के शिकार, और ऐसे अन्य लोगों के साथ एकजुटता कायम नहीं की गयी।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भले ही कांग्रेस के प्रस्तावों में औपचारिक रूप से पूंजीवाद के क्रांतिकारी विकल्प का आह्वान किया गया था, लेकिन दूसरे इंटरनेशनल में इस तरह के परिवर्तन में क्रांतिकारी कार्रवाई की भूमिका पर एक स्पष्ट दृष्टिकोण का अभाव था। सुधार और क्रांति के बीच का संबंध लगातार टकराव और बहस का मुद्दा था।

कथनी और करनी में अंतर

हालाँकि, दूसरे इंटरनेशनल की सबसे बड़ी कमजोरी, कथनी और करनी के बीच विकसित हुई खाई थी।

बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के दौरान, अधिकांश सामाजिक-जनवादी पार्टियों का दिन-प्रतिदिन का व्यवहार सुधारवादी और गैर-क्रांतिकारी परिप्रेक्ष्य में तेजी से बदलता गया, जो सुधारों को जीतने और समाजवादी परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य को दूर करने पर केंद्रित था। ट्रेड यूनियनों के भीतर-- जिनमें से अधिकांश समाजवादी पार्टियों के नेतृत्व में थे-- नौकरशाही वर्ग-सहयोगवादी दृष्टिकोण का विकास हुआ।

1914 में इस विकास के परिणाम पूरी तरह से देखे गए थे। कई दूसरे अंतर्राष्ट्रीय प्रस्तावों के स्पष्ट उल्लंघन में, दूसरे इंटरनेशनल के मुख्य दलों ने अपने पिछले वायदों को त्याग दिया और प्रथम विश्व युद्ध में अपनी सरकारों के युद्ध-प्रयासों के पीछे एक-एक करके खड़े हो गए। पूँजीवादी सरकारों को इन पार्टियों द्वारा दिए गए समर्थन के चलते लाखों मजदूरों और अन्य लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी।

कथनी और करनी के बीच की यही खाई उस समय के क्रांतिकारी समाजवादियों ने दूसरे इंटरनेशनल की केंद्रीय समस्या के रूप में प्रदर्शित की थी। 1914 के विश्वासघात के सबसे बड़े आलोचकों, जैसे वी आई लेनिन और रोजा लक्जमबर्ग ने कथनी और करनी के बीच के इस अंतर को सबसे तीखे शब्दों में बताया।

हालाँकि, इन आलोचनाओं के समय, लेनिन और लक्ज़मबर्ग ने उन प्रस्तावों को कभी नहीं छोड़ा जिन्हें द्वितीय इंटरनेशनल ने अपनाया था। बिल्कुल इसके विपरीत, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने लगातार इन प्रस्तावों में से सर्वश्रेष्ठ को यह दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया कि किस हद तक दूसरे इंटरनेशनल के बहुमत वाले नेता व्यवहार में इन प्रस्तावों का उल्लंघन कर रहे थे।

1919 में जब कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ( कॉमिन्टर्न) का गठन हुआ, तो उसने खुले तौर पर कहा कि उसका इरादा कथनी और करनी के बीच की खाई को पाटना है। कॉमिन्टर्न की पहली कांग्रेस के घोषणापत्र में, वास्तव में, खुले तौर पर खुद को "द इंटरनेशनल ऑफ डीड" (करनी का इंटरनेशनल) के रूप में वर्णित किया गया था। 3

आज की प्रासंगिकता के मुद्दे

वर्तमान समय में समाजवादियों के सामने अधिकांश प्रमुख प्रश्न नए नहीं हैं, जो पहले विभिन्न रूपों में और अन्य संदर्भों में सामने आए हैं। आज की लड़ाई में कई मुद्दे फिर भी उसी तरह के हैं जो एक सदी पहले दूसरे इंटरनेशनल ने उठाए थे--

राजनीतिक शक्ति--  संभवत: दूसरे इंटरनेशनल कांग्रेस में अपनाए गए प्रस्तावों के माध्यम से चलने वाला एकमात्र सबसे बड़ा सूत्र यह था कि मेहनतकश लोगों के सामने आने वाला हर प्रमुख मुद्दा राजनीतिक शक्ति के सवाल से जुड़ा हुआ था, और पूंजीपतियों और जमींदारों के वर्चस्व को खत्म करने की आवश्यकता थी। संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था का क्रांतिकारी परिवर्तन आवश्यक था।

युद्ध और सैन्यवाद--  मजदूरों को सभी साम्राज्यवादी युद्धों का विरोध करने की आवश्यकता है, दूसरे इंटरनेशनल के प्रस्तावों में इस पर जोर दिया गया है। जोर देकर कहा गया है कि साम्राज्यवादी युद्धों को एक औंस भी समर्थन नहीं दिया जाना चाहिए। संपूर्ण युद्ध मशीन के साथ सैन्यवाद और युद्ध के खिलाफ लड़ाई, एक महत्वपूर्ण कार्य है, यह समग्र मजदूर-वर्ग संघर्ष का हिस्सा है।

जनवादी अधिकार  इंटरनेशनल की कांग्रेसों में स्वीकृत संकल्पों ने राजनीतिक और जनवादी अधिकारों की केन्द्रीयता पर बल दिया है। उन्होंने इन अधिकारों को क्रांतिकारी संघर्ष के औजार के रूप में देखा, और बताया कि उन्हें जीतने की लड़ाई में मजदूर वर्ग की सबसे बड़ी हिस्सेदारी क्यों है।

ट्रेड यूनियनें-- यूनियनों  को केंद्रीय महत्व दिया गया है, उन्हें मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए सबसे बुनियादी संगठन के रूप में देखा गया है। यूनियन की शक्ति के प्रयोग पर सभी प्रतिबंधों को समाप्त करने के साथ-साथ यूनियन बनाने के अधिकार की रक्षा करने की आवश्यकता है।

साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद--  तीसरी दुनिया की औपनिवेशिक विजय और लूट को दूसरे इंटरनेशनल के स्वीकृत प्रस्तावों के अनुसार, पूंजीवादी शोषण के विस्तार के रूप में देखा गया था। इसलिए मजदूरों को उन उत्पीड़ित लोगों का समर्थन करना और उन्हें विजयी बनाना चाहिए जो साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी वर्चस्व, साथ ही इसके नस्लवादी औचित्य और युक्तिकरण के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हों।

आप्रवासन-- 1907 के दूसरे इंटरनेशनल के संकल्प ने मजदूरों के मुक्त आप्रवास और उत्प्रवास पर सभी प्रतिबंधों का विरोध करने की आवश्यकता की ओर इशारा किया, साथ ही साथ सभी प्रकार के नस्लवादी बलि का बकरा बनाये जाने का मुकाबला किया। अप्रवासी श्रमिकों को असहाय पीड़ितों के रूप में नहीं बल्कि पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष में सहयोगी और सुदृढीकरण के रूप में देखा जाना चाहिए।

श्रम कानून--  काम के घंटों को सीमित करने, काम करने की परिस्थितियों को विनियमित करने, बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने, समान काम के लिए समान वेतन अनिवार्य करने और श्रमिकों को संगठित करने के अधिकार की गारंटी देने वाले कानूनों की लड़ाई दूसरे इंटरनेशनल में समाजवादियों के लिए मुख्य थी।

सार्वजनिक शिक्षा और सांस्कृतिक उन्नति--  जैसा कि समाजवादियों ने एक सदी से भी पहले मान्यता दी थी, सार्वजनिक शिक्षा का अधिकार समाज को आगे बढ़ाने की लड़ाई में मजदूर वर्ग की विजय है। शिक्षा तक पहुंच-- उच्च शिक्षा सहित-- सभी के लिए नि:शुल्क उपलब्ध होनी चाहिए।

महिला मुक्ति--  दूसरे इंटरनेशनल के कई प्रस्तावों ने महिलाओं के उत्पीड़न को संबोधित किया और इसके साथ इसने यह भी दिखाया कि यह कैसे पूंजीवाद की संरचना में समाया हुआ है। उन्होंने कहा कि इस दमन के खिलाफ लड़ाई समग्र क्रांतिकारी संघर्ष में एक केंद्रीय भूमिका निभाएगी।

जैसा कि देखा जा सकता है, 1914 से पहले की अवधि के स्वीकृत दूसरे इंटरनेशनल के प्रस्तावों में कई प्रश्नों पर क्रांतिकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है जो आज भी हमारे सामने हैं। जबकि दुनिया में बहुत कुछ बदल गया है, इन सवालों पर दूसरे इंटरनेशनल के संकल्प फिर भी अपने मूल्य को बरकरार रखते हैं और एक ऐसे दृष्टिकोण का संकेत देते हैं जिससे इक्कीसवीं सदी के समाजवादी सीख सकते हैं।

निरंतरता क्यों मायने रखती है

आज की दुनिया में, मेहनतकश लोग और युवा ऐसे कई मुद्दों का सामना करते हैं, जिनके लिए आने वाले वर्षों में गहन संघर्ष की आवश्यकता होगी-- जलवायु परिवर्तन के परिणामों के खिलाफ लड़ाई, साम्राज्यवादी युद्धों और युद्ध की चालों पर, गर्भपात और महिलाओं के अधिकार, नस्लवादी पुलिस हत्याएं, स्वास्थ्य संकट, मेहनतकश लोगों और यूनियनों के अधिकारों पर हमले, अति दक्षिणपंथी और फासीवादी ताकतों से खतरा, और कई अन्य मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं।

ये संघर्ष समाजवादियों और सामाजिक परिवर्तन के सभी सेनानियों के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों पैदा करते हैं-- हम सबसे प्रभावी ढंग से कैसे लड़ सकते हैं? हमारी सफलता की संभावनाओं को अधिकतम करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

इन सवालों के जवाब के लिए समाजवादी विरासत और निरंतरता का अध्ययन हमें फायदा दे सकता है। ऐसा करना केवल विद्वानों और विशेषज्ञों के हित में नहीं है बल्कि, यह संघर्ष में कार्यकर्ताओं के सबसे अधिक दबाव वाले दिन-प्रतिदिन के कार्यों से संबंधित है।

जाहिर है कि 1889 से 1912 का दूसरा इंटरनेशनल आज के लिए कोई गाइडबुक नहीं दे सकता। फिर भी, इस आंदोलन को संदर्भ में ठीक से जांच कर, यह हमें कई सवालों पर सही दिशा में संकेत करने में मदद कर सकता है। हमारा लक्ष्य 1914 से पहले के दूसरे इंटरनेशनल को फिर से बनाना नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें इसकी ताकत और कमजोरियों, इसकी उपलब्धियों और इसकी असफलताओं को समझना चाहिए।

पूंजीवाद के मृत अंत और मानव अस्तित्व के लिए इसके खतरे को देखते हुए, आज युवा लोगों और अन्य लोगों की एक नई पीढ़ी समाजवाद के लिए जी रही है। इन कार्यकर्ताओं के सामने एक चुनौती है-- उस चुनौती का सामना करने के लिए बीसवीं शताब्दी की प्रमुख क्रांतियों के माध्यम से, और हाल के वर्षों के सामाजिक आंदोलनों के जरिये, मार्क्स और एंगेल्स के कम्युनिस्ट घोषणापत्र से सीख लेनी होगी और इनसे समाजवादी परंपरा के भीतर खुद को स्थापित करने में मदद करनी है।

दूसरे इंटरनेशनल की परंपरा और विरासत का गंभीरता से अध्ययन करके-- इसके अंतर्विरोधों और कमजोरियों को नजरअंदाज किए बिना-- आज समाजवादी आंदोलन में आने वाले लोग समाजवादी आंदोलन के गौरवपूर्ण इतिहास और समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए इसकी लड़ाई में अपना स्थान खोजने में मदद कर सकते हैं।


टिप्पणियाँ--

  1. माइक टैबर, एड., अंडर द सोशलिस्ट बैनर: रेज़ोल्यूशन ऑफ़ द सेकेंड इंटरनेशनल 1889-1912 (शिकागो: हेमार्केट बुक्स, 2021), पृ. 22.
  2. 1889 की कांग्रेस के आयोजन में योजनाओं, तैयारियों और रणनीतिक विचारों पर एंगेल्स के पत्र मार्क्स एंगेल्स कलेक्टेड वर्क्स (न्यूयॉर्क: इंटरनेशनल पब्लिशर्स, 2001) के खंड 48 में पाए जा सकते हैं।
  3. लियोन ट्रॉट्स्की द्वारा तैयार किया गया, "सारे विश्व के सर्वहारा वर्ग के लिए कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का घोषणापत्र" जॉन रिडेल, संस्करण, संस्थापक द कम्युनिस्ट इंटरनेशनल: प्रोसीडिंग्स एंड डॉक्यूमेंट्स ऑफ़ द फर्स्ट कांग्रेस: ​​मार्च 1919 (न्यूयॉर्क :) में पाया जा सकता है। पाथफाइंडर प्रेस, 1987)।

माइक टैबर के बारे में

माइक टैबर अंडर द सोशलिस्ट बैनर: रेज़ोल्यूशन ऑफ़ द सेकेंड इंटरनेशनल 1889-1912 ' (हेमार्केट बुक्स, 2021) के संपादक हैं। उन्होंने क्रांतिकारी और मजदूर वर्ग के आंदोलनों के इतिहास पर-- लेनिन के तहत कम्युनिस्ट इंटरनेशनल  के दस्तावेजों के संग्रह से लेकर मैल्कम एक्स, चे ग्वेरा और क्यूबा क्रांति के अन्य नेताओं के कार्यों तक कई किताबें संपादित और तैयार की हैं।

(एम ऑर ऑनलाइन से साभार, जून 28, 2022)

अनुवाद—विक्रम प्रताप

 

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